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हम कोई कृति बनाते है - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
हमने जीवन के धागों को, धड़ी की सुँईं से टाँका है। रोज़ वही दिनचर्या है रोज़ वही निवाले हैं। कभी शब्द बो देते है तो कविता उगने लगती है। कभी कभी शब्दों की खरपतवारों को, उखाज़ उखाड़ के फेंका है। शब्द खिलौने से लगते हैं, मन बहलाते है, कभी हँसी…