क्रिकेट के विश्व कप में मिली हार से सबको चिंता हुई. उन्हें भी जिन्हें कभी किसी बात की चिंता न हुई. कुछ लोगों को तो शरम भी आई. हमारे एक लेखक मित्र तो कुछ ज्यादा ही चिंतित हो गए. बोले, ‘जो लोग कल कोई न कोई बहाना मारकर ऑफिस से छुट्टी लेकर घर पर मैच देख रहे थे, वे अब कल किस मुह से ऑफिस जायेंगे.’
मित्र की चिंता वाजिब थी. सोचिये कि दुल्हे ने शादी के लिए आफिस से छुट्टी ली, और ऐन मौके पर लड़की किसी दुश्मन के संग फरार हो जाये तो दूल्हे राजा पर क्या बीतेगी. यार लोग तो चुटकियाँ ले लेकर जान ले लेंगे. पर मैं उन मित्रों में तो हूँ नहीं. इसलिए दोस्त की चिंता में शामिल हो गये.
मैंने मियां को समझाया कि अब तो शर्माने का फैशन पुराना हो गया. अब तो जो शर्माए वो पिछड़ा और बाबा आदम के ज़माने का कहलाये. अब हमारे मित्र चौंके, बोले ‘ये शर्माने का नया-पुराना से क्या लेना देना.’ मैंने समझाया, ‘देखिये, इस देश में इतने बड़े-बड़े घोटाले हो गए, कभी किसी को शर्म आई क्या? उलटे मार्च करके दिखाया कि जी देखो ये तो हमको नाहक परेशान कर रहे हैं, हम तो पाक साफ़ हैं, चाहे तो कोयले से ही पूछ लो. जिस सिंह के चेहरे पर दस साल कभी मुस्कान नहीं आई, वो भी अपनी मुस्कान रोक नहीं पाए. मानो वो कहना चाहते हों कि अब सिर्फ दो लाख करोड़ के घोटाले में भी क्या शर्माना. कोई अरबों करोड़ का मामला होता तो शायद सोच भी लेते कि शर्माना है या नही.
मैंने समझाना जरी रखा. अब देखिये न, इस देश में एक तरफ हजारों किसान आत्महत्या कर रहे हैं (अपना क़र्ज़ न चुका पाने के शर्म और दर्द में), पर किसी दूसरे को शरम आ रही है क्या. क्या सत्ताधारी, क्या विपक्ष, सब चिंता कर रहे हैं कि इस अन्नदाता का विकास कैसे हो? पर शरम किसे है, कहां है. यहाँ तो हर कोई दु:शासन की तरह किसानों के जिस्म से द्रोपदी की साड़ी की तरह उसके ज़मीन को खींच रहा है. पर किसी को शरम आ रही है क्या. उलटे कुछ अन्य हैं जो जंतर-मंतर पर धरना दे रहे हैं कि ‘जी उस कपड़े में से हमारा हिस्सा तो दिया ही नही.’ अकेले खाने नहीं देंगे की तर्ज पर वे अपनी-अपनी गोटी खेल रहे हैं. कह रहे हैं कि कल तक तो हमी लूट रहे थे, आज तुमको लूट का लाइसेंस मिल गया तो क्या हमारा कोई भी हक़ न हुआ. थोड़ा सा हक़ तो हमारा भी बनता है जी. सो बंदर बाँट चल रही है. पर किसी को शरम आ रही है क्या?
मैं समझाने पर तुला था. बोला, ‘ये भी तो देखिये, दुर्गा की पूजा करने वाले दिनरात बेटियों की हत्या कर रहे हैं. कोख से बची तो बलात्कार में, और उससे भी बची तो आनर-किलिंग में मारेंगे. पर कभी किसी को शरम आई क्या. जब अपने देश में शरमाने का फैशन इतना पुराना हो गया तो तू क्यूँ शरमा रहा है भाई.
मैंने साहब को समझाया, ‘इसलिए आप भी शरमाना छोड़ दीजिये.’ पर बाबू जी भी चिकनी मिटटी के बने हैं. जो एक बार पैरों में चिपक जाए तो चार बाल्टी पानी से भी न धुले. बोले, ‘पर अब कौन सा मुंह लेकर आफिस जाएँ.’ अब लो, कर लो बात. बात कहां से कहां पहुँच गयी और उन्हें अपने मुंह की पड़ी थी.
इस देश में सलाह देने की बीमारी पुरानी है. जिनकी शादी नहीं होती वो दूसरों को शादी की सलाह देते रहते हैं. खुद की कब्ज़ ठीक नहीं कर पाते तो क्या, पर दूसरों को कैंसर का इलाज बताते रहते हैं. मैं भी कोई छोटा मोटा ‘रायचन्द’ नहीं था. सोचा कि अब तो राय दे के ही मानेंगे. आखिर जिगरी दोस्त जो ठहरा. मुझे एक रास्ता सूझा, मैंने समझाया मियां अगर अपने मुंह की इतनी ही चिंता है तो उसका भी रास्ता है. चलो आपका मुंह आज़म खान साहब के यहाँ रखवा देते हैं. जहां शरम आने का दूर-दूर तक कोई चांस नहीं. एक तो यूपी, ऊपर से आजम खान. यहां शरम लिहाज आने का कोई मामला बनता ही नहीं है. पूरे राज्य में शरम का प्रवेश निषेध है. अब मेरे मित्र के चेहरे पर चमक लौटी, बोले कोई ख़तरा तो नहीं है न. मैंने बोला, जी बिलकुल नहीं. बस इतना ख्याल कीजियेगा कि साहब कुछ भी करें, आप उनके खिलाफ कोई ‘अपमानजनक टिप्पणी’ नहीं करेंगे. कहीं मित्र ख़तरे में न पड़ जाये, इसलिए मैंने कुछ बताना अपना फ़र्ज़ समझा. मैंने बताया, ‘अब ये अपमानजनक क्या होता है ये वही तय करेंगे. हां, इतना जानता हूँ कि उनके शासन में जघन्य बलात्कार होने पर भी इसको शरम का विषय नहीं माना जाता. कोई बलात्कार करे तो उसे ‘लड़कों से होने वाली छोटी सी गलती मानकर छोड़ दिया जाता है, पर शरमाया नहीं जाता. मुजफ्फरनगर के पीड़ित भूख से तडपे या मरें, खुद राजशाही जलसा मनाया जाता है. इस राज्य में ये ये शरम का विषय नहीं है. हां, बस आपको कोई टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है. वैसे तो लोकतंत्र है, सब स्वतंत्र है, पर राजा के खिलाफ बोलने वाला लोकतंत्र नहीं है, इसलिए सिर्फ़ टिप्पणी मत कीजियेगा.’
अब मेरे मित्र जी की चिंता दूर हो चुकी है. आज हम यूपी जा रहे हैं, अपना अपना मुंह समाजवाद के सिंघासन की छाया में रखने के लिए. अगर जिन्दा लौटे तो आगे का हाल आकर सुनायेंगे.
–अमित शर्मा