मैं लोकतंत्र हूँ।
निश्छल, मजबूत और सूझबूझ का सागर हूँ।
सारा ज्ञान मेरे अंदर है विराजमान है,
फिर भी न जाने प्राणी क्यों अज्ञान है?
हमेशा की तरह फिर से मुझे संकट में बता दिया,
लेकिन मैं अटल हूँ, विश्वास हूँ, सारे जहाँ में विख्यात हूँ,
मुझपर खतरा बताने वालों
गुणगान मेरा यूं गाने वालों।
जब बात गरीबों की होती है
कहाँ चले जाते हो तुम?
जब भूखे बिलखते हैं किसान
कहाँ सो जाते हो तुम?
खतरे में मैं तब क्यों आता?
जब तुमपर संकट गहराता
अस्मत मेरी तब क्यों आती याद?
धरना दे करते फरियाद।
न मुझपर खतरा है कोई,
न नाम मेरा तुम बदनाम करो
राजनीति की रोटी न सेको
देश के भविष्य के लिए काम करो
मैं तो एक मजबूत स्तम्भ हूँ
क्योंकि मैं लोकतंत्र हूँ।