जकड़ी हूं बंधन में
सदियों से
अब मुझे मुक्ति चाहिए।
बंधन खोल सके जो
आज़ादी दे मुझे
वो शक्ति अब चाहिए।
उड़ना चाहती हूं
स्वच्छंद गगन में
‘पर’ मुझे मेरे चाहिए।
मैं लड़की हूं
हां मैं लड़की हूं
तो क्या हुआ
जीना का हक़ मुझे भी चाहिए।
अब न सहूंगी बंधन
अब न उठाऊंगी रिवाजों की
बेड़ियों का भार
हां मुझे भी अब
जीवन में बहार चाहिए।