मुझमें कोई खास बात नही है
मुझमे कोई अंदाज नही है
मैं एक अनजान हूँ अनपढ़ हूँ
नही आता शब्दों को सहेजना
फिर भी राही हूँ …
पगड़ी में चलना सिखा
शहर की गलियों से अनजान हूँ
गाँव की गलियों में कटती है दिन
शहर की शोर -गुल से अनजान हूँ
मै गाँव का एक अजनबी राही
शहर की और निकल पड़ा हूँ …..
सर दर्द की गोली …
घर से लेकर निकल पडा हूँ
दर्द भरी जज्बातों का जज्बा दिल में दबाकर
शहर की और निकल पड़ा हूँ …..