मुझे सिंगापुर पसंद नहीं आया.

1
319

singaporeसच,मुझे सिंगापुर पसंद नहीं आया. साठ के दशक में एक गाना बहुत प्रचलित हुआ था,यह शहर बड़ा अलबेला हर तरफ हसीनों का मेला.तू चला चल अकेला.सिंगापुर सिंगापुर.फिल्म के हीरो सम्मी कपूर थे.मैंने फिल्म नहीं देखी थी,पर गाने ने सिंगापुर देखने की एक चाह तो अवश्य पैदा कर दी थी.उस समय तक सिंगापुर मलेशिया का ही हिस्सा था,पर अब तो वह एक स्वतन्त्र राष्ट्र है . फिर भी अब जब साठ पैंसठ वर्षों के बाद वहां पहुंचा तो मैं भले ही वैसा नहीं रहा था,पर दृश्य ने मुझे निराश नहीं किया. यही नहीं चकाचौंध किसी को भी लुभा सकने में समर्थ था,

सिंगापुर जगमगाता हुआ,रोशनियों में नहाया हुआ नगर है.आलीशान भवन,अत्याधुनिक संसाधन साफ सुथरी सड़के और रास्तें. नागरिक पूरी तरह अनुशासित फिर भी  सिंगापुर मुझे पसंद नहीं आया.

ऐसे आरम्भ से ही थोड़ी गड़बड़ी भी हो गयी थी.उस दिन सुबह साढ़े आठ बजे के बाद हमलोग (दो परिवार) दो  अलग अलग कारों से घर से रवाना हुए..हमलोगों का शहर  मलेशिया के पूर्वी तट  पर है.वहां से क्वाला लम्पुर करीब ४ घंटें का रास्ता है.फिर वहां से साढ़े तीन घंटें जोहर बारूं और फिर सिंगापुर.पहला प्रोग्राम तो अपनी गाड़ियों से ही सिंगापुर दर्शन का था,पर पुनर्विचार के बाद कारों को जोहर बारू में छोड़ने  का फैसला हुआ और फिर वहां से  सब औपचारिकताएं पूरी करते हुए सिंगापुर में होटल तक पहुंचाने के लिए भाड़े पर गाड़ी लेने को सोचा गया.कुछ तो दूसरे देश में जाने की हिचकिचाहट और कुछ सिंगापुर के कायदेकानून का खौफ.दोनों भारतीय परिवार को यही फैसला उचित जान पड़ा.ऐसे मलेशिया भी इस मामले में कम नहीं है. हाईवे पर जगह जगह कैमरे लगे हुए हैं और क़ानून के उल्लंघन पर भारी जुर्माना भरना पड़ता है.फिर भी सिंगापुर की बात ही कुछ और समझी जाती है.

मेरी बेटी भारत से अपने बच्चों के साथ आई हुई थी.सिंगापुर का कार्यक्रम इस तरह बनाया गया था कि उसको  भारत लौटने के लिए क्वाला लम्पुर हवाई  अड्डे पर छोड़ हमलोग सिंगापुर के लिए रवाना होजाएंगे. हमलोग शाम के सात  बजे तक सिंगापुर पहुँच जाने की उम्मीद संजोये हुए थे.घर से निकलते ही वर्षा शुरू हो गयी थी,पर हमलोगों ने उसको ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया,क्योंकि यहाँ की सड़कें इतनी अच्छी हैं कि वर्षा से घबड़ाने जैसी कोई बात नहीं थी.हमलोगों के छोटे शहर से क्वालालम्पुर जाने वाले हाईवे पर एक दिन पहले भयंकर भू स्खलन हुआ था,पर हमलोगों को रिपोर्ट यह मिली थी कि हमलोगों के वहां पहुँचने के पहले वह अवरोध हट जाएगा. हमलोग प्राकृतिक दृश्य का आनंद लेते हुए अपने गंतव्य की ओर बढे जा रहे थे. पहला पड़ाव तो क्वाला लम्पुर था,जहाँ हमलोग एक बजे तक पहुँचने की उम्मीद कर रहे थे.क्वालालम्पुर से करीब सौ किलो मीटर पहले हमलोगों ने रूक कर चाय वगैरह पी और फिर आगे बढे.पर करीब तीस किलोमीटर आगे बढ़ते हीं चेकपोस्ट पर हमें रोक कर बताया गया कि  सड़क अभी भी साफ़ नहीं हुआ है,अतः आगे से हमलोगों को दूसरा मार्ग चुनना पड़ेगा, जो लम्बा मार्ग है..वहां दिशा निर्देश भी दिया गया, पर होनी को तो कुछ और मंजूर था.हमलोगों के पास कोई अन्य उपाय तो था नहीं,हमलोग अनजान देश के अनजान डगर पर चल पड़े.मलेशिया को प्रकृति नेअपने हाथों सवांरा है.यह मार्ग भी पहाड़ पहाड़ियों और जंगलों के बीच जा रहा था.उम्मीद यही थी कि इस मार्ग पर कोई अड़चन नहीं आएगा.एक बात तो थी.न केवल हाईवे,बल्कि यह मार्ग भी उतना ही प्रशस्त था.पर पहाड़,पहाड़ियों की ऊंचाई नीचाई तो अपने जगह कायम थी. प्राकृतिक सौंदर्य अपने पराकाष्ठा पर था,पर फुर्सत किसे थी ,यह सब निहारने की? बेटी के जहाज छूटने का डर तो अभी नहीं सता रहा था,क्योंकि फिलहाल हमलोगों के पास समय था.वर्षा जो पहले धीमी पड़  गयी थी,अब पूरे जोर शोर से आक्रमण कर रही थीहमलोगों के पास जी..पी.एस था,पर लग रहा था कि वह भी ठीक से काम नहीं कर रहा है,क्योंकि हमलोग चलते जा रहे थे.चलते जा रहे थे,पर क्वालालम्पुर का कोई चिह्न नहीं दृष्टिगोचर हो रहा था.कुछ  समय के लिए तो शायद जी.पी.एस ने भी काम करना बंद कर दिया.अब तो लगा कि हमलोग भयंकर मुसीबत में फंस गए है.सिंगापुर का प्रोग्राम तो अब पीछे छूट गया.अब तो हवाई अड्डे पर समय पर पहुँचने में भी प्रश्न चिह्न लगने की नौबत आ गयी.खैर कुछ देर के बाद जी.पी.एस कार्य करने लगा,पर हमलोगों का रास्ता भूलने वाला शक दूर नहीं हुआ.हाइवे पर भाषाकी समस्या नहीं होती,क्योंकि थोड़ा बहुत अंग्रेजी जानने वाला मिल ही जाता है,पर अंदर के इलाकों में थोड़ी अंग्रेजी जानने वाला भी कोई नहीं मिल रहा था. डेढ़ दो  घंटें का सफर तय करने के बाद हमलोग  एक छोटे शहर में पहुंचे.वहां एक बड़ी दूकान पर नजर पडी.दूकानदार काम चलाने लायक अंग्रेजी जानता था.पहले तो वह हमारी समस्या सुनकर बहुत जोर से हंसा उसको तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि हमलोग जहाँ से चले थे,वहां से क्वालालम्पुर जाने वाला इधर  भी आ सकता है.हमलोगों ने अपने भटकने का कारण बताया जब बात उसके समझ में आ गयी तो उसने बताया कि हमलोग ठीक रास्ते पर हैं.,पर अभी भी क्वालालम्पुर करीब १०० किलोमीटर  दूर है.हाइवे पर तो यह दूरी एक घंटें में तय की जा सकती थी,पर इस रास्ते पर तो कम से कम डेढ़ घंटे तो लगने ही थे. हमलोगों  ने हाईवे छोड़ा था,तो हम लोग शहर से ७० किलोमीटर की दूरी पर थे और शहर फिर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा फिर ५५ किलोमीटर यानि कूल दूरी १२५ किलोमीटर ,पर यहाँ तो इतने घंटे चलने बाद भी हमलोग हवाई अड्डे से १०० किलोमीटर दूर थे.

हमलोग किसी तरह डेढ़ बजेके बदले चार बजे हवाई अड्डे पर पहुंचे.इतनी देर हो चुकी थी कि हमलोग बेटी को उसको बच्चों के साथ वहां की औपचारिकता पूरी करके हीं वहां से निकल सकते थे.मैं तो अपने बेटे के मित्र, मुस्लिम परिवार के बारे में सोच रहा था,जो सिंगापुर के लिए हमलोगों के साथ ही चला था.वह दूसरे छोटे मार्ग से जाकर हमलोगों  के लिए जोहर बारु में प्रतीक्षा कर सकता था,पर उनलोगों ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था.शायद कुदरत ने हमलोगों की मदद के लिए ही ऐसा किया था.उस अनजान मार्ग पर अकेले भटकना कितना भयानक होता,यह हमलोगों को अब समझ में आ रहा था.अगर वह परिवार हमलोगों के साथ नहीं होता,तो शायद ही हमलोग क्वालालम्पुर पहुँच नहीं पाते,क्योंकि जी.पीस.एस उन्ही लोगों के पास था  .हमलोगों के पास उसका एक सस्ता संस्करण था,जो स्मार्ट फोन के साथ कनेक्टेड रहता है.मार्ग में बहुत जगह सिग्नल ही गायब हो जाता था.फिर सिग्नल आने पर हमलोगों को उसी रास्ते पर लौटने की सलाह देता था,जहाँ से हमलोग चले थे. खैर,शायद  हमलोगों की किस्मत ने ही उस परिवार को हमारे साथ रखा था.

बेटी और उसके बच्चों के लिए उड़ान की औपचारिकता पूरी करने और खाना खाने में करीब एक घंटा लग गया..हमलोग करीब पांच बजे वहां से जोहर बारू के लिए रवाना हुए. जहाँ हमलोगों को कारों को पार्क करके टैक्सी लेना था,जो हमलोगों को बॉर्डर पर चेकिंग वगैरह की औपचारिकता पूरी कराकर सिंगापुर के होटल में छोड़ देगा.ऐसे भी किसी दूसरे देश में प्रवेश के लिएयह कोई ख़ास अच्छा समय नहीं था.तुर्रा यह कि मलेशिया के लिए भी तो हमलोग विदेशी ही थे. अनचाही परिस्थितियों की वजह से जो देर हो चुकी थी,उसने तो हमलोगों की कठिनाई और बढ़ा दी थी.  लगता था कि हमलोग अर्द्ध   रात्रि से पहले होटल नहीं पहुँच सकेंगे.खैर राम राम और अल्लाह अल्लाह करते हुए आगे की यात्रा समाप्त हुई और करीब साढ़े आठ बजे हमलोग जोहर बारू पहुँच गए,जहाँ मिनी बस हमलोगों का इंतज़ार कर रही थी.वहां से फिर बॉर्डर पहुंचना था,जो करीब ३२ किलोमीटर था और फिर सिंगापुर जो बॉर्डर से आगे जाकर कर मिलने वाली नदी के दूसरे सिरे पर था.रात्रि बेला में तो कुछ दिखा नहीं पर लौटते  समय असल प्राकृतिक सौंदर्य का दर्शन हुआ. उस रात्रि बेला में भी न तो बॉर्डर के इस पार कोई दिक्कत आई और न उस पार . मलेशिया से बाहर निकलना था,अतः यहाँ दिक्कत की सम्भावना वैसे ही नहीं थी,पर, उस पार तो सिंगापुर था जो अपने कायदे क़ानून के लिए प्रसिद्ध है. पर उन लोगों की उस रात्रि बेला में भी तत्परता और मुस्तैदी देख कर हमलोग दंग रह गए.ऐसे हमलोग वहां थोड़ा खुस्किस्मत भी सिद्ध हुए,क्योंकि हमलोगों के ठीक पीछे एक बड़ी बस में भरकर टूरिस्ट पहुंचे थे. सारी तत्परता के बावजूद हमलोगों को होटल पहुँचने में करीब ग्यारह बज गए. सिंगापुर में प्रवेश करते ही जो रौशनी की बौछार दिखी थी ,वह होटल पहुँचने  तक कायम रही.हमलोग अपने अपने कमरों में सामान रख कर बाहर निकले खाने की खोज में.मलेशिया का हमलोगों का अनुभव था कि रात्रि के दस बजे के बाद खाना गिने चुने स्थानों में ही मिलता है,पर हमलोगों को ड्राइवर ने बतादिया था कि सड़क के पार ही बहुत से ढाबे ऐसे हैं,जो चौबीस घंटे खुले रहते हैं.सड़क के पार हमें वैसा माहौल भी दिखा था.पैदल पार पथ पर चढ़े तो पहला अनुभव ही खराब लगा.एक तो एक मुख्य सड़क (बीच रोड ) के पैदल पार पथ पर विकलांगों के लिए कोई सुविधा नहीं,दूसरे सीढ़ियां ऐसी कि महिलाओं और वृद्धों को भी चढ़ने में कष्ट हो.दूसरी तरफ अवश्य अधिकतर देशों के खाना उपलब्ध थे.जगह भी साफ़ सुथरी लगी.हमलोग रात्रि भोजन के बाद लौटे और दूसरे दिन का कार्यक्रम बनाते बनाते निद्रा निमग्न हो गए.

दूसरे दिन से हमारा सिंगापुर दर्शन का कार्यक्रम आरम्भ हुआ.होटल से इंटरनेशनल स्टूडियो का सफर.सचमुच लगा कि हमलोग किसी अत्याधुनिक नगर में हैं.चमचमाती सड़कें,आलिशान आधुनिक ऊँची ऊँची इमारतें,ऐसे अब तो एक तरह से आदत सी हो गयी थी,भारत से बहार यह सब देखने की,फिर भी सिंगापुर अलग दिख रहा था.किसी भी विदेशी को लुभाने के लिए यह काफी था.हम भारतीय तो इस तरह का दृश्य अपने देश में देखने को सोच भी नहीं सकते हैं.

इंटरनेशनल स्टूडियो ऑफ सिंगापुर तो सचमुच  इनका शो पीस है. क्या नहीं है यहाँ?पूरे दिन हमलोग वहां घूमते रहे,पर लगा   कि पूरा नहीं देख पाये. उनका विश्व प्रसिद्द सी एक्वैरियम भी उस दिन नहीं देख पाये .शाम के छः बजे यह बंद हो जाता है,अतः हमलोग वहाँ से निकल कर होटल आ गए. वैसे भी मेरा परिवार किसी मित्र के यहां रात्रि भोजन के लिए आमंत्रित था,अतः हमलोग वहाँ जाने को तैयार होने लगे.टैक्सी लेते समय कायदे क़ानून का सामना करना पड़ा.वहाँ आम टैक्सी में ड्राइवर के अतिरिक्त केवल चार आदमी बैठ सकते थे.मेरे साढ़े सात वर्षीय दुबले पतले पौत्र को भी टैक्सी वाला लेने को तैयार नहीं हुआ.खैर बाद में विशेष टैक्सी में अधिक किराये के साथ वहाँ के लिए रवाना हुए.रात्रि वेला का प्रारम्भ हो चूका था.सिंगापुर रौशनी से जगमगा रहा था.पंद्रह मिनट के बाद हमलोग गंतव्य स्थान पर पहुँच गए.

रात्रि बेला में भी सिंगापुर का शान दृष्टिगोचर हो रहा था.कालोनी में भी बहुमंजिली इमारते तरतीब से बनी हुई थी. बहुत दूर से ही एक तरह की बहुमंजिली  इमारते देखते देखते हमलोग वहाँ पहुंचे थे.हरियाली के दर्शन अवश्य दुर्लभ थे,पर उनके बारहवे मंजिल की फ़्लैट की बालकोनी से रात्रि बेला में सागर का नजारा देखकर मजा आ गया अभी तो समुद्र पूरी तरह दिख भी नहीं रहा था.सोचा दिन में यहाँ का दृश्य कितना सुन्दर लगता होगा. हमारे बेटे बहु के मित्र ने  मुझसे स्वाभाविक प्रश्न पूछा,” आपको सिंगापुर कैसा लगा ?”

मैं जो उत्तर दिया,उन्होंने तो उसकी उम्मीद नहीं की होगी.मैने कहा,”अभी तो ठीक तरह से देखा नहीं है.केवल एक दिन का अनुभव हुआ है.सुंदरतो है. मनुष्य की कल्पना का साकार रूप भी इसे कहा जा सकताहै,पर बहुत अच्छा नहीं लगा”.लगता है,वे थोड़ा आश्चर्य चकित हुए.फिर कारण पूछा. मैंने जो कारण बताया उन्होंने भी उसे स्वीकार किया. लौटना तो उनकी गाडी से हुआ,अतः पहले वाली स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा.

दूसरे दिन हमलोग फिर सिंगापुर भ्रमण को निकले.मौसम आज भी बहुत सुहावना था.हमलोगों की असल यात्रा तो कल भी सिंगापुर ले लैंडमार्क बिग फ्लायर  से आरम्भ हुई थी,जहाँ हमें होटल का शटल छोड़ गया था और आज भी वहीँ से आरम्भ हुई.हमलोग बिग फ्लायर का लुफ्त कल भी नहीं उठा पाये थे,आज तो उसपर चढ़ना ही था.पर वह बाद में. आज  सिंगापुर दर्शन का कार्यक्रम तो इस प्रकार आरम्भ हुआ कि  मजा आ गया.मेरे लिए तो  यह सचमुच अदभूत था. हमलोग डकबोट पर सवार हुए.वह जमीं पर तो आम मिनी बस थी,पर सड़क से सीधे समुद्र में उतरते ही मोटरबोट बन जाती थी.मेरे लिए तो यह अनोखा अनुभव था. समुद्र में उतरते ही सिंगापुर का अनुपम सौंदर्य सामने आ गया.हमलोग करीब एक घंटे समुद्र में भ्रमण करते रहे ,पर रहे नगर के नजदीक ही और देखते रहे मानव की कारीगरी का अनुपम नजारा. भ्रमण करते हुए हमलोग सिंगापुर के प्रवेश द्वार पर आ गए.सिंह की मूर्ति के साथ सिंगापुर में स्वागत लिखा हुआ  देख कर अच्छा लगा. समुद्री रास्ते से सिंगापुर आने वालों की स्वागत के इस   अंदाज ने मुझे न्यूयॉर्क की स्वतंत्रता के मूर्ति की याद दिला दी.

नाटकीय अंदाज में वहीँ से फिर हमारा डकबोट जमीन पर यानि सड़क पर आया.ऐसा लगा कि हमलोग अभी अभी  सिंगापुर  में प्रवेश ही कर रहे हैं.फिर सिंगापुर का नजारा देखते हुए बिग फ्लायर के पास .बिग फ्लायर सचमुच बिग यानि बड़ा है.यह एशिया  का इस तरह का सबसे बड़ा झूला है .अब तो भोजन का समय हो चूका था,पर हमलोगों में किसी को अब बिग फ्लायर के सैर के पहले कुछ भी करने की इच्छा नहीं थी.पहले तो लगा कि इसकी तेज रफ़्तार होगी,पर यह तो इतना आराम देह निकला कि धीरे धीरे ऊपर उठते हुए ,पता ही नहीं चला कि कब हमलोग इतनी ऊंचाई पर पहुँच गए.सिंगापुर का विहंगम दृश्य भी बहुत सुन्दर लगा ,पर जो कमी मुझे आरम्भ से खटक रही थी,वहां से देखने पर अनुभव हुआ कि सच में  वह कमी है.वहां से उतर कर भोजन  किये और चले हमलोग फिर से इंटरनेशनल स्टूडियो,जहाँ अभी भी बहुत कुछ देखना  शेष  था.सब कुछ देखना तो संभव नहीं था,अतः हमलोगों का लक्ष्य था सी एक्वैरियम, जो दुनिया के गिने चुने या सबसे बड़े एक्वैरियम में से था.

एक्वैरियम सचमुच बड़ा था और इसे ऐसा रूप दिया गया था कि अनेक स्थलों पर ऐसा लगने लगता था कि हमलोग इन समुद्री   मछलियों को सागर में ही देख रहे हैं.यह सब करके हमलोग होटल लौटे और  फिर चले औपचारिक रूप से रात की बाहों में लिपटे सिंगापुर के दर्शन के लिए.नगर रौशनी में नहाया हुआ था.क्रिसमस अभी दूर था.(हमलोग १३ नवम्बर की रात से १६ नवम्बर तीन बजे तक सिंगापुर में थे.),पर शहर में जोर शोर की जा रही तैयारियों का नजारा भी देखने को मिला.हमलोगों को टूरिस्ट बस ने बुग्गी रोड पर छोड़ दिया.हमलोग ऐसे बस से उतर कर कुछ खरीदारी वगैरह करके वहां से फिर बस में सवार हो सकते थे,पर हमलोगों  को बस को अलविदा करना ज्यादा अच्छा लगा. इसका पहला कारण तो यह था कि हमलोगों का होटल यहाँ से बहुत नजदीक था,जहाँ हमलोग खाना खाते हुए आराम से पैदल ही पहुँच सकते थे,दूसरा यह कि हम लोग आजादी से कुछ करसकते थे,जिसके लिए समय सीमा नहीं रहती.

यहाँ हमलोगों को एक बड़े स्टोर काम्प्लेक्स के पास छोड़ा गया था.हमें यह भी बताया गया था कि यहां से सिंगापुर से  यादगार के रूप में बाहर ले जाने लायक  हर तरह की चीजें मिलती है.था भी कुछ ऐसा ही,पर जो नहीं बताया गया था,वह थी यहाँ की गन्दगी.हमारे स्टैण्डर्ड से नहीं,बल्कि सिंगापुर के स्टैण्डर्ड से.यहां गन्दगी भी थी और बेतरतीबी  .भी.लोग झुण्ड में बैठे हुए सिगरेट  और कोल्ड ड्रिंक पी रहे थे और सिगरेट के टुकड़े डस्टबीन के साथ साथ इधर उधर भी फेंक रहे थे,जबकि बड़े बड़े डस्टबीन हर उचित स्थान पर रखे हुए थे.अनुशासन हीनता स्पष्ट दृष्टि गोचर हो रही थी.सिंगापुर में हमलोगों की यह तीसरी और अंतिम रात थी.तीसरे दिन तो एक तरह से हमलोगों को दोपहर तक ही यहाँ रहना था,पर सोचे थे कि कुछ और देख लेंगे,पर  कुदरत को तो अपनी करामात दिखानी थी,अतः उसकी नौबत नहीं आई.उस दिन सबेरे से ही वर्षा शुरू हो गयी. फिर भी हमलोग निकले.होटल की आतिथ्य सेवा ने हमलोगों को एक बड़े मॉल तक पहुंचा दिया. बारिश कभी कम कभी ज्यादा होती रही महिलाओं और बच्चों को खरीदारी  की भी छूट मिली,क्योंकि वर्षा के कारण  बाहर जा नहीं सकते  थे.किसी तरह समय बीता कर हमलोग होटल लौटे और फिर खाना खाकर  सिंगापुर   छोड़ने की तैयारी होटल से सिंगापुर बॉर्डर तक का रास्ता अब हमलोग दिन में देख रहे थे , क्योंकि जाते समय रात्रि बेला थी.यह औद्योगिक एरिया है,जो रात में नहीं समझ में आया था..

सिंगापुर की यात्रा समाप्त हो गयी, मानव निर्मित अदभूत नजारा देखने को मिला .दिखा हर जगह अनुशासन और  दिखे अनुशासन प्रिय लोग.पर यह सबकुछ जो बना ,उसमे प्रकृति के साथ ,खिलवाड़,उसके साथ ज्यादती मुझे दुखी कर गयी.सिंगापुर इतने विस्तार के पहले शायद अधिक सुन्दर रहा होगा,जब प्रकृति के साथ मानव का साथ था,.यहाँ तो अब  सब कुछ मानव निर्मित हो गया था,कृत्रिम हो गया था. मनुष्य का प्रकृति पर यह आक्रमण मुझे सचमुच दुःखी कर गया. क्या कोई ऐसा रास्ता नहीं निकल सकता था,जिससे  विकास के साथ साथ स्वाभाविकता भी कायम रहती. क्यों कंक्रीट के जंगलों के बीच प्रकृति कहीं गुम हो गयी?दुबई में भी वहां की प्राकृतिक वास्तविकता  गायब हो गयी है,पर वहां यह बुरा नहीं लगता,क्योंकि प्रकृति ने तो उसे मरूभूमि बनाया था,.आदमियों ने उसे एक सुन्दर नगर का रूप दे दिया,जहाँ बीच बीच में,कृत्रिम ही सही,पर  हरियाली भी है.

1 COMMENT

  1. सिंगापुर व्यवसायिक रूप से इनोवेटीभ है। ली क्वान यु ने संकल्प के साथ लाख विरोध के बावजूद अपने ढंग से सिंगापुर को विकसित किया। उन्हें लोगो की निंदा से इस बात की अधिक चिंता थी की लोगों ने उन्हें चुना है और उन्हें जनता को डिलेवरी करना है। राज्य नागरिकों के साथ न्यायपूर्ण आचरण करता है लेकिन जो लोग शैतानी करते है उनके साथ कड़ाई से पेश आता है। कर कानून उदार है। इस प्रकार सिंगापुर की तरक्की अनुकरणीय है। आपको पसन्द आए या ना आए, ली क्वान यु को इसकी परवाह नही थी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here