मैं हिन्दू होने पर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता हूँ : डॉ. मीणा

प्रवक्‍ता डॉट कॉम के लोकप्रिय व नियमित कंट्रीब्‍यूटर डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ ने यह टिप्‍पणी डॉ. कुसुमलता केडिया के लेख ‘ईसाई धर्म और नारी मुक्ति’ पर एक टिप्‍पणीकार डॉ. राजेश कपूर के उकसावे पर की थी। ‘प्रवक्‍ता’ पर प्रकाशित डॉ. मीणा के लेखों पर लंबी चर्चा होती रही है। उनके विचार व व्‍यक्तित्‍व को लेकर भी कई टिप्‍पणीकार बार-बार सवाल उठाते रहे हैं। निम्‍नलिखित टिप्‍पणी में डॉ. मीणा ने सब कुछ स्‍पष्‍ट कर दिया है। (सं.)

इस लेख के समर्थन में पाठक बढचढकर टिप्पणी लिख रहे हैं, वे कितने सच्चे हैं? इस बात का आकलन इस बात से ही हो जाता है कि वे स्वयं को भारतीय संस्कृति का प्रवर्तक और संरक्षक बतलाते हैं| भारत की संस्कृति को संसार की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति बताते/दर्शाते हैं| भारत की संस्कृति पर हमला करने वालों को देख लेने या जान से मारने की धमकी देने वालों का खुला या मूक समर्थन करते हैं| इसके उपरान्त भी भारतीय संस्कृति में मित्र की जो परिभाषा दी गयी है, उसकी धज्जियॉं उड़ाते हुए भी मुझ जैसे लोगों के जान के दुश्मन बनकर भी, अगले ही पल मुझे मित्र लिखते हैं और अगली ही पंक्ति में अपने मित्र का सार्वजनिक रूप से अपमान भी करते हैं|

ऐसे तथाकथित भारतीय संस्कृति के संरक्षक मित्र इस लेख को पढकर फूले नहीं समा रहे हैं| एक भी व्यक्ति श्री अनुपम जी द्वारा प्रस्तुत तथ्यों पर गौर करने या समर्थन करने के लिये एक शब्द नहीं लिख रहा है|

मेरे ऐसे तथाकथित मित्रों को मेरे बारे में अनेक प्रकार की भ्रान्तियॉं हैं| जिन्हें समय-समय पर मैं तोड़ता भी आ रहा हूँ और आगे भी तोड़ता रहूँगा, लेकिन सच्चाई को लिखने में कभी भी इनसे भय नहीं खाने वाला हूँ|

इसलिये यहॉं पर कुछ बातें स्पष्ट करना जरूरी है कि-

१. मेरे तथाकथित मित्रों यदि आप प्रवक्ता पर या अन्य किसी भी साईट पर ईमानदारी से देखेंगे तो पायेंगे कि गत दो माह से मेरी उपस्थिति सांकेतिक ही रही है| जिसका कारण मेरी अस्वस्थता रही| जिसके चलते मेरे सभी कार्य प्रभावित रहे, लेकिन अब मैं फिर से स्वस्थ हो रहा हूँ और मेरी दिनचर्या नियमित होने जा रही है| इसके अलावा किसी भी आलेख से भागने का कोई कारण नहीं है|

२. दूसरे मेरे इन तथाकथित मित्रों को यह भी ज्ञात होना चाहिये कि मुझे नैट-मीनिया नहीं है| मैं हर लेख पर अपनी टिप्पणी नहीं लिखता हूँ, क्योंकि यह कार्य मेरा पूर्ण कालिक कार्य नहीं है| मैं अपना शौक पूरा करने या अपनी बात को कहने के लिये वेब मीडिया का उपयोग करता हूँ| पत्रकारिता मेरा व्यवसाय नहीं है|

३. मैं भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान का मुख्य संस्थापक और वर्तमान में राष्ट्रीय अध्यक्ष हूँ, जिसके करीब पॉंच हजार आजीवन सदस्य देश के १८ राज्यों में यथाशक्ति सेवा कर रहे हैं| इस संगठन की नीति के अनुसार हम किसी गैर-सदस्य, किसी उद्योगपति या किसी भी देशी या विदेशी सरकार या किसी भी ऐजेंसी से अनुदान स्वीकार नहीं करते हैं|

४. मैं एक समाचार-पत्र का सम्पादक हूँ, जिसकी प्रकाशक मेरी पत्नी है| इस समाचार-पत्र में हम सरकारी विज्ञापन स्वीकार नहीं करते हैं|

५. मैं सम्पूर्ण रूप से धार्मिक व्यक्ति हूँ और मेरी ईश्‍वर में अटूट श्रृद्धा एवं आस्था है| मैं हिन्दू होने पर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता हूँ| संसार के जितने भी धर्मों के बारे में, मैं अभी तक जान पाया हूँ, उन सभी में, मैं हिन्दू धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानता हूँ| यह अलग बात है कि हिन्दू धर्म में अत्यधिक अच्छा हो सकने की सर्वाधिक सम्भावना है, लेकिन उसे मनुवादियों ने दबा रखा है| इसके उपरान्त भी हिन्दू धर्म सर्वश्रेष्ठ है| यदि समय मिला तो इस बारे में विस्तार से लिखूँगा|

६. मुझे अनेक राज्यों में सरकारी एवं सामाजिक सेवा करने का अवसर मिला है| इस दौरान मेरा वास्ता सभी धर्मों के लोगों से पड़ा है| यदि सार रूप में कहा जाये तो मुझे जितने भी क्रिश्‍चनों से वास्ता पड़ा उनमें से एक भी वफादार नहीं मिला| जबकि मेरे सर्वाधिक विश्‍वासपात्र मित्रों/शुभचिन्तकों में ब्राह्मणों की संख्या सर्वाधिक है| और ये सभी मेरे ब्राह्मन मित्र प्रवक्ता पर या कहीं पर भी प्रस्तुत मेरे सभी विचारों को जानते हैं और फिर भी से मुझसे असहमत नहीं हैं| क्योंकि ये सब मुझे समग्रता से जानते हैं| भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान के सचिव एवं कोषाध्यक्ष ब्राह्मण हैं| मैंने आज तक कभी भी ब्राह्मणों से नफरत नहीं की है, बल्कि मनुवादी, जिसे ब्राह्मणवादी विचारधारा भी कहते हैं, को और इसके पोषकों को मैं मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन (भारतीय सन्दर्भ में) मानता हूँ| इस अन्तर को नहीं समझ सकने वाले लोग मुझे हिन्दुत्व का और ब्राह्मणों का दुश्मन मान बैठे हैं| इसमें कम से कम मेरा दोष नहीं है|

७. यद्यपि मैं मानवअधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों का बड़ा समर्थक हूँ और मुझे इस क्षेत्र में कार्य करने में खुशी होती है, लेकिन भारतीय हालातों के बारे में और विशेषकर भारत के दबे-कुचले बहसंख्यक लोगों के बारे में लिखते या कार्य करते समय, विदेशों में क्या हो रहा है, इस बारे में, मैं अधिक चिन्तन नहीं करता, क्योंकि मेरा वास्ता भारत से है, इण्डिया से नहीं| मुझ जैसे सामान्य व्यक्ति को भारत में ही रहना है और भारत में मेरे जैसे लोगों के नम्बर एक दुश्मन क्रिश्‍चन नहीं, बल्कि मनुवादी हैं| इसलिये मैं विदेशी ताकतों के कृत्यों को बहाना बनाकर मुनवादियों के अत्याचारों को नजरअन्दाज नहीं कर सकता! अभी भी भारत की बहुसंख्यक हिन्दू और गैर-हिन्दू आबादी के दु:खों का बड़ा कारण मनुवाद है| जिसे आसानी से प्रमाणित किया जा सकता है|

८. आएसएस से मेरी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है, लेकिन चूँकि संघ मनुवाद का समर्थक तथा बहुसंख्यक वंचित भारतीयों को समान हक प्रदान करने का विरोध करता है, इसलिये मेरी नजर में संघ देश का दुश्मन है| भाजपा संघ का राजनैतिक चेहरा है|

९. मुझे कॉंग्रेस से कोई व्यक्तिगत लगाव नहीं है, सिवाय कॉंग्रेस की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की नीति के, जबकि मोहनदास कर्मचन्द गॉंधी में ये दोनों गुण नहीं थे, इस कारण से मैं उसे इस देश का राष्ट्रपिता बनाये जाने तक के खिलाफ हूँ| गॉंधी देश के बहुसंख्यक वंचित भारतीयों को समान हक प्रदान करने के विरुद्ध था, क्योंकि वह कट्टर मुनवादी हिन्दू था| गॉंधी को धर्मनिरपेक्षता या सामाजिक न्याय की विचारधारा में नाटकीय आस्था थी| आजादी से पूर्व के कॉंग्रेसियों में,गॉंधी सबसे बड़ा कट्टर हिन्दू था और देश का विभाजन गॉंधी की ही इसी मनुवादी सोच का नतीजा है|

जहॉं तक इस लेख का सवाल है, एक भारतीय स्त्री द्वारा, भारतीय स्त्री के हालतों के बारे में असत्य, मंगदंथ और काल्पनिक तथ्य प्रस्तुत करने वाला इससे घटिया लेख मैंने मेरे जीवन में नहीं पढ़ा!

Previous articleसाइबर अन्ना और लोकतंत्र
Next articleपत्रकारिता विश्वविद्यालय में रिक्त स्थानों में प्रवेश हेतु ओपन काउन्सलिंग १ अगस्त को
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

17 COMMENTS

  1. बिंदु जैन जी जब आपने यह लिखा की
    “मैं हिन्दू होने पर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता हूँ | डा मीणा जी गर्व कीजिए लेकिन किसी को इस कारण से हेय नहीं समझिये की वह हिन्दू नहीं है |क्योकि जब कण कण में भगवान है तो जो गैर हिन्दू और यहा तक की सभी जीव जंतु भी भगवान का ही रूप है”,तो आपने एक ही साथ उन सारे हिन्दुओं को चुनौती दे डाली जो अपने को सुपर हिन्दू प्रमाणित करने की चक्कर में यह भी भूल जाते हैं की हिन्दू धर्म ने ही सिखाया है की कण कण में भगवान है.तुलसी दास ने भी रामचरित्र मानस में लिखा है ,
    “सियाराम मय सब जग जानी.
    ,करों प्रणाम जोरी युग पाणी”
    हमारे सुपर हिन्दू यह तर्क देतेहैं की दूसरे अगर ऐसा नहीं सोचते तो हम क्यों सोचे.जहां तक मीणा जी का प्रश्न है वे तो स्वयं इस इस सुपर हिन्दुओं के कटाक्ष के पात्र बने हुए हैं.

  2. मीणा जी को अरुंधती राय बनकर तोफा कमाना हैं | जीतनी हिन्दू ओंकी बुराइया करे उतना ही बड़ा नाम होता हैं , इनाम भी बड़ा मिलाता हैं | हिन्दू वीरोधी कानून बनाने के लिय मीणा जी को सरकार बुलाई गी |

  3. मीणाजी इस तथ्य पर विचार करे ” भक्ति तर्क से सिद्ध नहीं होती ” आप कैसे हिन्दू है ये हम बहुत पहले से जानते है आपको किस पर गर्व है ये भी हम पहले से जानते है इस पर विस्तार से अपना खुद का चारण गान लिखने कहा जरुरत है
    धर्मनिरपेक्ष क्या है ये जानिए ये विश्व के किसी दुसरे देश में क्यों नहीं इस पर लिखिए मनुवाद क्या है इस पर लिखिए कट्टरता कहा से शुरू होती है जातिवाद की गहराई में क्या है और क्या था इस पर लिखिए
    इस पर भी ध्यान दीजियेगा की सच्चा हिन्दू कभी अपनी प्रसंशा कम से कम खुद तो नहीं करना चाहेगा आप हिंदुत्व की आड़ लेकर जो अनर्गल प्रलाप कर रहे है उसका क्या कारन है

  4. मानवता के शोषकों को तो मानवता की पहचान ही नहीं हैं, वे तो अपने पूर्वजों के अपराधों को सही ठहराने के लिए अनर्गल राग अलापते हुए एस देश का सत्यानाश कर चुके हैं, लेकिन आदरणीय बिंदु जैन जी आपसे निवेदन है की मेरे किस कथन से आपको यह बात लिखनी पडी है कि-
    “डा मीणा जी गर्व कीजिए लेकिन किसी को इस कारण से हेय नहीं समझिये की वह हिन्दू नहीं है |”
    जहाँ कत मुझे याद है, व्यक्तिगत अनुभव के आलावा मैंने कभी ऐसा कोई कथन नहीं लिखा, जिसमें किसी गैर हिन्दू को हेय लिखा या दर्शाया हो या अन्य जीवों की हिंसा की बात लिखी हो!
    आपसे आग्रह है कि कृपया आपने जो सवाल उठाया है, उसकी वजह अवगत करने का कष्ट करें| गैर हिन्दुओं को हेय समझने का कार्य मैंने कभी नहीं किया और फिर भी आपको लगा हो तो अवगत जरूर करावें!

  5. डॉ राजेश कपूर जी की टिप्पणी को पुरे समर्थन के साथ मीणा जी आपसे पूछना चाहूँगा यह मनुवाद देश में कहा कहा पर है .
    इस काल्पनिक मनुवाद के समर्थक देश को किस prkar nuksan phucha rhe है

    इस काल्पनिक मनुवाद का ढिंढोरा पीट-पीट कर माया वती कहा से कहा पहुच गयी लेकिन उन्होंने कभी नहीं बताया आखिर ये मनु वाद होता क्या है .

    मायावती की शिक्षा के बारे में कुछ नहीं कहूँगा किन्तु आप एक शिक्षित पुरुष दीखते है अतः आपको आम जनमानस तक मनुवाद के समर्थको एवं उनके गुण दोषों को बताना चाहिए जिससे की जो लोग जाने अनजाने गलत रस्ते पर हो उन्हें भी सुधरने का मौका मिले .
    मीणा जी आपसे किसी की क्या अदावत है .

  6. मैं हिन्दू होने पर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करता हूँ | डा मीणा जी गर्व कीजिए लेकिन किसी को इस कारण से हेय नहीं समझिये की वह हिन्दू नहीं है |क्योकि जब कण कण में भगवान है तो जो गैर हिन्दू और यहा तक की सभी जीव जंतु भी भगवान का ही रूप है

  7. नहीं चाहते हुए प्रतिक्रिया देनी पड रही है। पूरे भारत का भ्रमण कर चुका हूं। मुझे पता ही नहीं चल रहा है कि आखिर हिन्दू कहते किसे हैं। अगर यह मान लूं कि हिन्दू प्रतीकों की पूजा करने वाला समाज है तो ईसाई माता मरियम की मूर्ति बनाकर पूज रहे हैं। इसू बाबा हो गये। पूरे झारखंड और दक्षिण के राज्यों में अब ईसाई वही टिका है जहां भगवार जिसस की मूर्ति की पूजा होती है। मुस्लमान पीरों को पूजने लगे। अब तो अगर आप गरीब नवाज के दरबार में जाएंगे तो साहब के मजार पर कम और जन्नत के दरवाजे पर ज्यादा भीड लगती है। धर्म किसी की बपौती नहीं है। हिन्दुत्व को गैर ब्राह्मणों ने धार दिया है। इस विचारधारा को किसी संगठित शक्ति ने नहीं आप जैसे लोगों ने संरक्षण दिया है। देष के अभिजात्यों ने तो इस देष की विचारधारा के साथ सदा धोखा किया है। मीना जी, सिंह साहब आपकी बातों से न तो मैं सहमत हूं और न ही विरोध कर रहा हूं। बिहार में एक किसान परिवार में जन्म लिया। धर्म को निकट से देखता रहा हूं। आप देखो ना। जिस चाणक्य को ब्राह्मण कहा जाता है वह वैष्य था। पुष्पमित्र के जाति का पता नहीं है। व्यास, वषिष्ठ, कनाद, कपिल, गौतम, सत्तकाम जावाल, ये तमाम ऋषि जन्म से ब्राह्मण नहीं थे। छोडिये मनु महाराज की स्मृति को। मेरा तो मानना है कि जो आप जानते हैं वही हिन्दुत्व है। काली को पूजें या पीर को। जिसू बाबा को पूजें या फकीर को। याद है, कबिरदास जी की वह वाणी, पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजुं पहाड, तासे तो चक्की भली पीस खये संसार। कबीर में मेरी बडी आस्था है। कबीर ने ही कहा जे बाभन बभिनिया जाया तो आन द्वार काहे नहीं आया। और बातें कभी विस्तार से लिखूंगा। शेष आप पर ही छोडता हूं।

  8. meena ji, sahi bat hai apki ……

    khud to ban gai mahatma aur bharat ka kar gai “SATYANASH”……….. ????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????/

  9. CHHODIYE JI HINDU-VINDU, DESH DUNIYA KO IN kabhi na hal hone wale shigoofon me nahi fanskar kisi pogapanthi me nhi fanskar……………aage badhna hai,,,,,jati, dharm aur darshan kaa raag alaapne wali pratigaami taakten desh ko fir wahi le jana chahti han jahan ”BALGAADI hi sadhan ho, CHAAND mama ho, SOORAJ saat ghodon pe sawaar ho, DHARTI sheshnaag ke fan pe tiki ho, koi BHIMKAAY CHUHE ko sawari bana ke uski jaan le rahaa ho……………..kitnaa ginaaun in DHAPORSHANKH DHARMIK MANYTAAON KO………HA HA HA HA
    BADI HANSI AA RHI HAI

    • प्राचीन विचार उपमा से युक्त है इसकी असली बात आपको समझ में नहीं aane वाली.
      आपने कहा सूर्य सात घोड़ो पर सवार, पर आप यह नहीं सोचते की सूर्य के सात रंग की किरने है या असली घोडा .
      आत्मा विस्मृत होने पर गर्व कर रहे है…..

  10. मीना जी द्वारा अपने आप को हिन्दू होने में गर्व का अनुभव करने की बात पढने के बाद जब उनके लेख देखे तो आश्चर्य हुआ. यह सज्जन अजमल कसाब और अफज़ल गुरु (जिन्हें न्यायपालिका द्वारा जघन्य अपराधी घोषित किया जा चूका है) और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और स्वामी असीमानंद में कोई अंतर नहीं देख पाते. भारत की सांस्कृतिक विरासत सड़ी गली है सभी मुख्य विषयों पर इनके विचार देश में वर्ग तथा धर्मं के आधार पर पारस्परिक वैमनस्य को प्रोत्साहन देने वाले हैं. मनु के नाम पर हिन्दू धर्मं को गली देने वालों ने इसे राजनितिक सत्ता प्राप्त करने का साधन बना लिया है. इन्ही के नेता अमेरिका जा कर दलित -अल्पसंखक गठबंधन द्वारा भारत में सत्तासीन होने की घोषणा करते हैं. सब को पता है की इन सम्मेलनों का खर्च कौन उठाता है घुलाम नबी फै कांड से ऐसे ही कुछ लेखकों की कलई खुली है ऐसे लोगों को परामर्श देने में कोई लाभ नहीं. उनका अजेंडा भली प्रकार सोच विचार करने के बाद तय किया गया है जिसे वे पूरी शक्ति के साथ कार्यान्वित करते रहेंगे. मीनाजी pravakta पर तीस्ता सीतलवाद के पर्याय हैं यह अब स्पष्ट हो गया.

  11. भाई रमेश सिह जी , आपकी तरह हम अनेकों की समस्या एक ही है कि वे हिन्दू जीवन दर्शन और वर्तमान हिन्दू समाज के व्यवहार का घाल-मेल कर देते हैं. सादर सुझाव है कि आजकल के हिन्दुओं के व्यवहार से हिन्दू धर्म व संस्कृति को समझने का प्रयास करेगे तो धोखा खा जायेंगे. आजकल के अधिकाँश हिन्दू तो स्वयं नहीं जानते कि हिन्दू धर्म व संस्कृति है क्या. इनमें अधिकाँश वे बेचारे हैं जो पिछली ६-७ पीढ़ियों से मैकाले की वह शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जिसके बारे में बड़े अभिमान से मैकाले ने कहा था कि इस शिक्षा को प्राप्त करने के बाद कोई भी हिन्दू सत्य ह्रदय से हिन्दू नहीं रह जाएगा. फिर उसे धर्मांतरित करना ( ईसाई बनाना) सरल हो जाएगा. मैक्समुलर ने भी यही कहा एव अपने पत्रों में लिखा है. अतः ये अंग्रजी शिक्षा में पढ़े और पले लोगों में तो नाम मात्र को ही हिन्दू धर्म के अवशेष बचे हैं. अतः इनके व्यवहार से हिंदुत्व को समझने का प्रयास करेंगे तो धोखा ही खाना पडेगा. अथ यदि वास्तव में कोई अपने मानव जीवन को सार्थक, साकार करने के लिए हिन्दू जीवन दर्शन को जानना चाहता है तो उसे कोई एक उपनिषद या गीता आदि को कई बार समझ-समझ कर पढ़ना होगा. और भी अनेक ग्रन्थ हैं जिन से जीव, प्रकृति और इश्वर के रहस्यों के बारे में जाना जा सकता है. ……..सबसे बड़ी बात यह है कि जीवन के इन रहस्यों के बारे में ठीक से समझाने की क्षमता विश्व के किसी सम्प्रदाय या दर्शन में नहीं हैं , केवल आर्य साहित्य या हिन्दू धर्म व दर्शन के ग्रंथों में है. अतः मानव बन कर जन्म लेने के बाद यदि इस दर्शन को समझने का प्रयास नहीं किया तो मनुष्य बन कर जन्म लेना सार्थक कभी नहीं हो पायेगा. अतः किसी पर कृपा करने के लिए नहीं, स्वयं अपने जीवन को सार्थक बनाने, इस जीवन के अर्थ को समझने के लिए , किसी साधक की संगत में या स्वयं साधक बन कर सरल अनुवाद पढ़ना होगा. इस हेतु कोई गीता (भगवद गीता,अष्टावक्र गीता, अवधूत गीता) एक योगी की आत्म कथा, राम कृष्ण वचनामृत आदि सैंकड़ों पुस्तकों में से कोई एक अच्छी पुस्तक पढ़ें तो फिर आप स्वयं इस धर्म के अर्थों को समझने लगेंगे और दूसरों को समझा सकेंगे. जीवन में सुख व आनंद भी बढ़ता जाएगा. इति शुभम !

  12. डा. मीना जी आपकी नीयत पर पाठकों को बार-बार संदेह होता रहा है. आज आपने एक बार फिर से साबित कर दिया कि सचमुच आपकी नीयत ही सही नहीं है. मेरे और इंजी.दिवस गौड़ जी के उकसावे में ( सम्पादक महोदय के अनुसार मेरे उकसावे में ) आकर उत्तर देने कि कृपा कि पर उत्तर के नाम पर मैदान छोड़ कर भागते नज़र आये. ऐसा लचर उत्तर दिया जिसकी आशा आपसे तो बिलकुल न थी. प्रो. कुसुम लता केडिया जी जैसी विदुषी के तथ्यों का उत्तर तो आपने दिया ही नहीं, वह क्शामता भी आपकी नहीं. – आप किसी समाचार पात्र के सम्पादक है, किसी संस्था के प्रमुख हैं जिसके ५००० सदस्य हैं और वह संस्था १८ प्रदेशों में काम करती है : यह आत्म श्लाघा आप पहले भी कई बार कर चुके हैं. मनु विज्ञान के ज्ञाताओं के अनुसार हीन ग्रंथी का शिकार लोग ऐसा करते रहते हैं. पाठकों ने और किसी को ‘प्रवक्ता’ ऐसा करते पहले कभी नहीं देखा. – इतना लंबा लेख अपनी प्रशंसा में और मेरी आलोचना में लिखने की कृपा की, थोड़ा सा प्रयास केडिया जी के लेख में दिए तथ्यों को समझने में भी कर लेते. पर इतने उच्च स्तरीय लेख पर इतनी निम्न स्तर की टिपण्णी कर के आपने अपने स्तर को ही तो प्रकट किया है. … – जरा स्पष्ट कर दें कि किसने आपको जान से मारने की धमकी दी है ? यह परम्परा तो आपके प्यारे जिहादियों और चर्च संचालित संगठनों की है जिस पर आप मौनसाधे रहते हैं. आपको तो हिन्दू, भगवा आतंकवाद ही नज़र आता है . उत्तर-पूर्वांचल में वर्षों से जो हत्याकांड अनेक दशकों से चर्च और बंगलादेशियो द्वारा चल रहे हैं, मूल निवासियों-हिन्दुओं की जो हत्याएं हो रही हैं, उसके पीछे कौन है ? हिन्दू आतंक का राग गाने वाले आप लोग इस पर चुप क्यूँ हैं ? – जिस काल्पनिक मनुवाद का अविष्कार विदेशी चर्च ने अंग्रजी शासन काल में किया, जो आजतक भारत के किसी राज्य व समाज में कभी भी प्रचलित नहीं रहा ; आप उसी का ढिंढोरा पीट-पीट कर समाज में विद्वेष के बीज बोने की नीतियों पर बड़ी कुटिलता से चले जा रहे है. ये तो हिन्दू समाज है जो ऐसे लोगों को अनेक दशकों से सहन कर रहा है. फिर भी आप कहते हैं कि आपको जीवन का भय है…. – जीवन का भय तो हिन्दू समाज को है जिसे समाप्त करने के लिए एक नए कानून का प्रारूप ( लक्षित हिसा कानून ) सोनिया कांग्रेस (एन.ए.सी) ने बनाया है. आतंकवादियों को जेलों में जवाईयों की तरह पालने वाली कांग्रेस आपको धर्म निरपेक्ष नज़र आती है ? आप की वास्तविकता इन बातों से स्पष्ट हो ही जाती है. – तभी तो देशभक्त राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आपको शत्रु नज़र अता है. जिस संगठन के कार्यकर्ताओं ने सैकड़ों बार देश के लिए जीवन दाव पर लगाया, कांग्रेस की नेता इंदिरा जी द्वारा देश पर तानाशाही लादने के बाद यह संघ ही था जिसके लाखों कार्यकर्ता जेलों में गए थे.. भूकंप, सुनामी, पाक आक्रमण के समय ये संघी हैं जो तन-मन-धन से राष्ट्र \ सेवा में जुट जाते हैं. – आपकी कांग्रेस ने कब ऐसा कोई काम किया ? या आपके ५००० सदस्यों ने ऐसा कुछ किया हो ? – आप कहते हैं कि आपको हिन्दू होने पर गर्व है. यदि आप असत्य नहीं बोल रहे ( जो कि आप पहले भी बोल चुके हैं ) तो ज़रा बतलाने की कृपा करें कि आपकी नज़र में हिन्दू धर्म की क्या विशेषताएं हैं? कौन से हिन्दू धर्म ग्रंथों की किन बातों से आप प्रभावित है ? – महोदय आप पहले भी अनेक बार बड़ी असभ्यता का साथ कह चुके हैं कि सभी हिन्दू धर्म ग्रंथों में विष भरा हुआ है. श्रीमान आप स्वयं अपने फैलाए जाल में फंसते जा रहे हैं. टालने से अब काम नहीं चलेगा कि कभी इस पर लिखूंगा. आगे आपकी मर्ज़ी. – आप हिन्दू धर्म व समाज के विरुद्ध लेखन व प्रचार के लिए पूर्णकालिक हैं कि नहीं यह तो पता नहीं पर ये जो इतने पाठक आपकी पोस्ट/लेख पढ़ कर उसपर इतनी कठोर टिप्पणिया करते हैं, उनका भी ये व्यवसाय नहीं, देश व समाज के प्रति लगाव, प्रेम है. – तर्कसंगत कटु विरोध भी बुरा नहीं लगता. पर जो लोग निरंतर, पूर्वाग्रह से भरा भारत को हानि पहुचाने वाला लेखन अत्यधिक पूर्वाग्रह से करते हैं, उनके प्रति न चाहते हुए भी स्वाभाविक रूप से कुछ तो रोष पैदा हो ही जाता है. – पर यदि दुराग्र न हो और नीयत सही हो तो संवाद स्वस्थ रहता है. पर क्या आप इमानदारी से संवाद कर रहे है ? – आपने गांधी जी के बारे में काफी असभ्य भाषा का प्रयोग अनेक बार किया है. गांधी जी के बारे में आप अनेक बार एकांगी लेख व टिप्पणियाँ लिखते हैं. क्या यह इमानदारी है ? क्या आप नैतिकता और सभ्यता का पालन कर रहे हैं ? विश्व में गांधी जी का जो इतना सम्मान है, उनकी जो इतनी स्तुति होती है, क्या वह अकारण है ? क्या आपने उनकी छोटी सी पुस्तक ” हिंद स्वराज ” पढ़ी है ? यदि नहीं तो आपको उन पर टिपण्णी करने का नैतिक अधिकार नहीं है. यदि पढ़ी है तो भी आप इमानदार नहीं, आपकी नीयत में खोट है. अन्यथा उसकी सामग्री के प्रभाव से आप कैसे अछूते रहते ? श्रधेय दलाईलामा और रिम्पोछे के इलावा विश्व के अनेक विद्वानों ने इस पुस्तक की बड़ी प्रशंसा की है. कहें तो आपको भेंट में भेज दूँ ? – आप कहते है कि आप किसी पत्र के सम्पादक है, किसी संस्था के प्रमुख हैं . फिर तो बहुत गैर ज़िम्मेदार हैं. आप गांधी जी के कमसे कम सत्य पर किये प्रयोगों व उक्त पुस्तक को तो पढ़ना चाहिए था, तब संतुलित लेख लिखते. गांधी जी जैसे महान व्यक्तित्व की एकांगी आलोचना तो केवल वे ही करेंगे जो विदेशी चर्च या उन जैसे किसी गुप्त अजेंडे को लेकर चल रहे हों. या वे जो किसी कारण से भ्रमित हों. आप किस वर्ग में हैं ? – आप सचमुच स्वस्थ संवाद में विश्वास रखते हैं या केवल दिखावा है ? विरुद्ध विचार होने पर भी विरोधी विचार वाले को भारतीय संस्कृति में मित्र ही माना जता है. मेरे द्वारा आपको मित्र कहना आपको गलत क्यूँ लगा ? मैं तो सचमुच आपको आज भी मित्र ही मानता हूँ. सत्य ह्रदय से कहता हूँ कि यह दिखावा नहीं. इतने दिन से आपसे संवाद करते-करते अनेकों बार आप पर रोष तो हुआ पर शत्रु भाव तो बिलकुल नहीं है. मुझे तो आप मित्र ही लगते है. – हर मानव से गलती हो रही है, हो जाती है. तो क्या उन्हें अपना शत्रु मानें ? दिल की बात कहता हूँ कि जिहादी या किसी आतंकवादी द्वारा आक्रमण किये जाने पर उसका पूरी शक्ती से प्रतिकार करूंगा. उससे रक्षा के भी सब उपाय करूंगा. पर शान्ति काल में उसके प्रति प्रेम व क्षमा भाव रखते हुए, उसे एक भटका मानव मान कर उसके परिवर्तन व कल्याण के लिए जो भी संभव हो वह करूंगा. मुझ अल्पग्य की दृष्टी में यही सही है और यही भारतीय संस्कृति है. – आशा है कि स्वस्थ संवाद करते हुए मित्र भाव बनाए रखेगे. आपका शुभाकांक्षी.

  13. “कॉंग्रेस की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की नीति ” !!! वाह मीना जी वाह

  14. आप करते होंगे,मैं भी करता था,पर अब नहीं करता.दूसरे धर्म या मजहबों के बारे में तो मैं ज्यादा जानता नहीं,अतः उनके बारे में टिप्पणी नहीं करता,पर जब से हिन्दू धर्म के तथाकथित कर्णधारों का बहुरूपियापन देखा, ,तब से लगने लगा है की आखिर मैं अपने हिन्दू होने पर गर्व करूँ भी तो क्यों करूँ.बचपन से मन्दिरों का वीभत्स रूप देखता आरहा था,पर हिन्दू दर्शन ने हमेशा प्रभावित किया.लगा की मन्दिर चाहे जिस रूप में भी हो हमारा जीवन दर्शन तो महान है ,पर जब उस जीवन दर्शन में हिपोक्रेशी यानि नैतिक दोगलापन को पनपते और वीभत्स रूप लेते देखा तो सच पूछिए तो मुझे लगने लगा की क्या हिंदुत्व यही हैऔर अगर नहीं है तो आखिर इन लोगों को जो अपने को हिन्दू कहने में गर्व का अनुभव करते है किस श्रेणी में रखूँ.इसे आप एक तरह का मोह भंग भी कह सकते हैं.

  15. सर जी यदि आप हिन्दू विचारधारा इ समर्थक हो तो मनुवादी शब्द नहीं लेते आप ने हिन्दू धर्म को सर्वश्रेष्ट बताया है हिन्दू धर्म सर्वश्रेष है इसमें कोइ दो राय नहीं है , अगर आप का मतलब जातिवाद से है तो सभी लोगों ने माना तभी jativat लागु हुआ है इसीलिए सिर्फ कुछ वर्गों को दोषी मानना ठीक नहीं है इसकेलिए हम सब जिम्मेदार है ,आप ने एक और बात कही की मोहनदास गाँधी कट्टर हिन्दू थे लगता है आप मजाक के मुद मैं है अगर गाँधी कट्टर होते तो अपनी पूरी ज़िन्दगी मैं हिन्दू मुस्लमान एअकता और धर्मनिरपेक्षता मैं अपना समय नहीं बिताते , वो भी आज़ादी की मांग को छोड़कर , और हिन्दुयोंको कमजोर बनाकर अपने काल्पनिक अहिंसा का उपदेश दे कर, रही बात संघ की वैसे मेरा संघ से कोइ रिश्ता नहीं है पर संघ की विचारधारा को जनता हूँ , मुझे आप का मनुवाद नज़र नहीं आया रही बात मोहनदास गाँधी की तो वो कोइ रास्ट्रपिता नहीं है , वो सिर्फ पाकिस्तान और बंगलादेश का राष्टपिता है भारत का नहीं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here