‘मैं भी भविष्यवक्ता!’- हरिकृष्ण निगम

मेरे एक प्रबुद्ध और प्रतिष्ठित मित्र भी अब दावा करने लगे हैं कि वे भी एक भविष्यवक्ता हैं। आज जब टी.वी. के अनेक चैनलों और चाहें मुद्रित मीडिया का कोई भी साप्ताहिक दैनिक अथवा किसी भी समयावधि में छपने वाली पत्र-पत्रिका हो, सभी भविष्य के कोहरे को पीछे झोंकने का दावा करते हैं तब इसे समाचार परोसने की एक विशिष्ट कला भी कहा जा सकता है। अंकशास्त्र या संख्या-सगुनौति कहें, प्रभावशाली, प्रतिष्ठित और चर्चित राजनेता या सार्वजनिक छवि वाले भी इस भविष्यवाणी-उद्योग के पनपते नए अध्याय में विशिष्ट भूमिका निभाने में कोई संकोच नहीं करते हैं। आने वाले समय की पर्तों में क्या छिपा है वस्तुतः कोई नहीं जानता है। पिछली पीढ़ी के वरिष्ठ पत्रकारों को कम-से-कम याद होगा कि सत्तर के दशक के प्रारंभ में इस देश की शायद हीं कोई पत्र-पत्रिका बची होगी जिसने उन भविष्यवक्ता को प्राथमिकता न दी होगी जो संजय गांधी के देश की शायद ही कोई पत्र-पत्रिका बची होगी जिसने उन भविष्यवक्ताओं को प्राथमिकता न दी होगी जो संजय गांधी को देश के भावी प्रधानमंत्री होने के लिए समुनुकूल ग्रह-नक्षत्रों, वर्ष और माह का ब्योरा देकर अपने भविष्यपन से इस देश क ो आश्वस्त कर रहे थे। अभी पिछले महीने से लेकर अब तक एक वार्षिक प्रथा के रूप में देश के प्रभावशाली व्यक्तियों का सन् 2010 में कैसा भविष्य होगा और उनके अपने भविष्य से देश की दिशा व दशा कैसे प्रभावित होगी इस पर हम अनेक छोटे-बड़े ज्योतिषाचार्यों को निरंतर सुनते आ रहे हैं। चाहे बेजान दारूवाला हो, वैद्यनाथ शास्त्री हों या अल्पज्ञात धर्म-प्रवण नामों की संज्ञायें हों जैसे पंडित कृष्ण मुरारी मिश्र अथवा शंकरा चरण, चन्द्रमौलि या सीताराम हों, सभी अलग-अलग प्रकृति के और कभी-कभी भयभीत करनेवाली, का भी आश्वस्त करने वाली या कभी उनके स्वर्णिम भविष्य की घोषणा करने में लगे हैं। उगते सूरज को वे सभी जैसे एक दौड़ भर कर नमस्कार करने में लगे हैं। कोई सोनिया गांधी की लौह महिला के रूप में, कोई त्यागमयी छवि की चर्चा कर रहा है तो कोई राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने में कितना समय लगेगा इसका भी अनुमान लगा रहा है। यदि राशियों के आधार पर भी राजनेताओं का चाहे वे सत्तारूढ़ या विपक्ष से जुड़े हों, लोगों का भविष्य निर्मित होता तो फिर कैसे सभी एकमत नहीं हैं। वस्तुतः भविष्यवाणियाँ जहाँ तक एक ओर मन को बहलाने वाली या ज्योतिषियों द्वारा राजनीति-प्रेरित लोगों द्वारा कहलाई जाती हैं, वहीं उनके विरोधियों या शत्रुओं का मनोबल गिराने के लिए भी करवाई जाती है। यहाँ चाहे मीडिया के स्वयंभू संरक्षक हों या सेकूलरवाद की शपथ खाने वाले कथित प्रगतिशील, प्रबुध्द व वैज्ञानिक दृष्टि युक्त हर दल के छोटे-बड़े नेता या कुछ उद्योगपति हों सभी इस अंध-श्रध्दा के प्रचार में दोषी कहे जा सकते हैं कुछ ज्योतिषी तो इतने वाक्पटु और चतुर दीखते हैं कि उनकी घोषित फलों की व्याख्या परस्पर विरोधाभासी रूप में वे स्वयं करने में सक्षम दीखते हैं।

कुछ समय से हमारे देश के टी.वी. चैनलों के कार्यक्र मों में वैसे भी अंधविश्वासों का बोलबाला बढ़ गया है और पिछलों जन्मों के प्रतिशोध, जादू-टोना, मंत्र-चमत्कार, रहस्य, रोमांच तथा असंभव सी लगने वाली घटनाओं, किंवदंतियों, भूतों-प्रेतों, नागो, कंदराओं या पराशक्तियों के नाम पर जो चाश्नी परोसी जा रही है उसमें भविष्यवक्ताओं का अपना भविष्य और भी उज्ज्वल होता दीखता है। ‘न्यूमेरोलॉजी’ के नाम पर तो अपने नाम की वर्तनी बदलने उसमें कुछ वर्ण घटाने-बढ़ाने का फैशन तो अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया है।

इस परिदृश्य में मेरे मित्र के भविष्यदर्शी होने के दावे पर मेरा चौकन्ना होना स्वाभाविक था। वे सफाई देते हुए कहते हैं कि वे विशेषकर उस भविष्य के बारे में सोचते हैं जो शीघ्र ही मौजूद हो जाता है और उसके बारे में उनकी भविष्यवाणी गलत नहीं हो सकती है। उदाहरण के लिए जहाँ मुंबई अथवा निकटवर्ती क्षेत्रों में गत वर्ष वर्षा के मौसम में 700 से अधिक पुरुषों या बालकों की खुले मैनहोलों में गिरकर मृत्यु हुई थी वहीं इस वर्ष पूर्ववत बारिश होने पर कम-से-कम 1000 से अधिक व्यक्तियों के गिरकर मरने या हताहत होना इसलिए निश्चित है कि जहाँ एक और उन माहौलों के ढक्कनों की चोरी बड़े पैमाने पर हुई है वहीं पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ नदारद होते जा रहा है।

इसी तरह जलवायु परिवर्तन व गर्म होती धरती और पर्यावरण में हो रहे अप्रत्याशित एवं घातक बदलावों के बारे में व अनेक पशु-पक्षी व दुर्लभ पेड़-पौधों की अनेक प्रजातियों के विलुप्त होने के समाचार तो हम लगातार पढ़ते रहते हैं पर आज वायुमंडल के प्रदूषण की दौड़ हमें विनाश के कितने नजदीक ला चुकी है, इसका हमें अनुमान नहीं है। पड़ोसी में बंग्लादेश के तटीय भू-भाग, मालदीव, फिजी आदि द्वीपों के डूब जाने के खतरे के बारे में तो हम पढ़ते ही रहते हैं पर क्या हमने कभी सोचा है कि प्रकृति की बदलती हलचलों व गतिविधियों से अगले तीन बड़े नगरों कोलकाता, चेन्नई व मुंबई का क्या होगा। विनाशकारी समुद्री तूफान प्रलयकारी बाढ़ द्वारा इनके बड़े हिस्सों को डुबा सकती है – यदि धरती का तापमान इसी प्रकार बढ़ेगा। रेगिस्तान की दिल्ली की ओर बढ़ने की गति और जहरीली गैसों के उत्सर्जन से वातावरण के विसाक्त होने की प्रक्रिया से स्वास्थ्य सुविधाओं और अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाएँ नए रोगियों के लिए कभी पर्याप्त न होंगी। सारी बड़ी-बड़ी योजनाएं धरी के धरी रह जायेगी।

मेरे मित्र की दूसरी भविष्यवाणियाँ भी स्पष्ट हैं- भूमिगत जल के खतरनाक स्तर तक प्रदूषित होने, अन्य जल स्रोतों के भी लगातार विशाक्त होने और पेय जल के अभाव के कारण देश में ऐसे दंगे हो सकते हैं जो पानी के लिए ही होंगे। वैज्ञानिकों का एक मात्र यह कहना है कि अगला देशों के बीच बड़ा युद्ध पानी के मुद्दे पर होगा – यह तो दूर की बात हो सकती है पर इस देश में जल की आपूर्ति के बल पर व उसके उपयोग के आधार पर दो अलग-अलग वर्गों का लेना निश्चित है। बोतल बंद पानी के उपयोग की विज्ञापन से बढ़ती साझेदारी की प्रतिक्रिया निकट भविष्य में सामाजिक संघर्षों को जन्म दे सकती है। इस भविष्यवाणी के शत् प्रतिशत सत्य होने की संभावना है क्योंकि अपनी आवश्यकता से अधिक प्रकृति का दोहन हम इस देश में भी कर रहे हैं उसके परिणामों से बचना नामुमकिन है।

पिछले आकड़ों के विश्लेषण, अनुभव व संभावनाओं और औसत की सांख्यिकी सिध्दांतों के आधार पर प्रशासन की घोर उपेक्षा और अक्षमता को भी देखते हुए मेरे मित्र तो इस बात की भी भविष्यवाणी कर रहे हैं कि इस वर्ष आगामी वर्षा के मौसम में बिहार में कोसी, गंडक, दामोदर या कमलाबालान नदियों में विनाशकारी बाढ़ में कितने हजार लोग मृत या हताहत हो सकते है। इसी तरह प्राकृतिक आपदा और हमारी तत्परता के अभाव के कारण दूसरे हिस्सों में देश में क्या होगा, इसका भावी चित्रण असंभव नहीं है। सच में मानना पड़ेगा कि मेरे मित्र की भविष्यवाणी करने का दायरा मीडिया में भविष्यफल बताने वालों से कहीं कम है।

-लेखक, अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं।

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