-रमेश पाण्डेय –
उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा जिला है प्रतापगढ़। इस जिले की सबसे अविकसित विकास खंड है गौरा। इस विकास खंड के अन्तर्गत इलाहाबाद की सीमा से सटा गांव है कहला। गांव का नाम तो बेहद सामान्य सा है, पर इस गांव का इतिहास गर्व और साहस से भरा है। पर समय क्या आया? देश के इन नुमाइंदों ने गांव की शक्ल ऐसी कर दी कि अब यह गांव अपनी पहचान को भी मोहताज हो गया है। किसान आन्दोलन के नायक बाबा रामचन्दर की यह भूमि कर्मस्थली रही है। इस गांव की माटी ने ही इंदिरा गांधी को बचपन में लोगों के दर्द को एहसास कराया था। इस गांव के एक-एक परिवार का लगाव पंडित जवाहर लाल नेहरु से था। इस घटनाक्रम को जानने के लिए हम आपका ध्यानाकर्षण वर्ष 1931 की ओर करेंगे। बाबा रामचन्द्र मूलतरू महराष्ट्र के पंडित थे। वर्ष 1920 के आसपास वह भटकते हुए पट्टी तहसील क्षेत्र में पहुंचे। उन दिनों यहां अमरगढ़, बीरापुर, दिलीपपुर, सुल्तानपुर जैसी छोटी-छोटी रियासतों द्वारा किसान, मजदूरों से हरी बेगार कराया जाता था। बेगार का तात्पर्य यह है कि काम के बदले कोई मजदूरी या फिर पारिश्रमिक न देना, मांगने पर मजदूर को प्रताडि़त करना। बाबा रामचन्दर ने अग्रेजों के खिलाफ मुहिम तो चला ही रखी थी। इसी मुहिम के साथ उन्होंने बेगार प्रथा के खिलाफ भी आन्दोलन शुरू कर दिया। गरीब और मजदूरों को एकत्र करने के लिए बाबा रामचन्दर जय-जय सीताराम का नारा बोला करते थे। इस नारे को सुनने वाला किसान और मजबूर उसे बाबा का बुलाव समझकर उनके पास पहुंच जाता था। इस तरह से बाबा रामचन्दर ही ऐसे जननायक बने जो बगैर किसी प्रयास के हजारों की तादात में लोगों को एकत्र कर लिया करते थे। 16 फरवरी 1991 को बाबा रामचन्द्र ने तत्कालीन पट्टी (अब रानीगंज) तहसील के कहला गांव में विशाल जनसभा बुलाई। जनसभा शुरू हुई। इस जनसभा की जानकारी अंग्रेज अफसरों को हुई। शाम करीब पांच बजे रानीगंज थाने के तत्कालीन थानेदार तबारुक हुसैन ने सिपाहियों के साथ पहुंचकर जनसभा का बंद करने को कहा। जनसभा बंद नहीं हुई। सामने गांव के ही तीन किसान मथुरा प्रसाद यादव, कालिका प्रसाद विश्वकर्मा और रामदास कुर्मी तिरंगे झंडे को लेकर राष्ट्रगान गा रहे थे। अंग्रेज सिपाहियों ने इन तीनों किसानों पर गोली चला दी। गोली लगने से तीनों किसानों की मौत हो गयी। भगदड़ में दो सौ से अधिक किसान घायल हो गए। घटना के बाद गांव का माहौल तनावपूर्ण हो गया। अंग्रेज सिपाही तीनों शव जिला मुख्यालय उठा ले गए। उस समय कहला गांव के माताचरन कुर्मी पैदल पंडित जवाहर लाल नेहरु के घर आनंद भवन (इलाहाबाद) पहुंचे और उन्हें पूरी घटना के बारे में जानकारी दी। पंडित जी ने फौरन राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, विजय लक्ष्मी पंडित और अपने कई और साथियों को कहला गांव भेजा और खुद जिला मुख्यालय पहुंचे। दूसर दिन पंडित जी तीनों शव को लेकर कहला गांव आए और लोगों को ढांढस बंधाया। पंडित जी गांव के लोगों के साथ पैदल शव यात्रा में शामिल हुए। उस समय पंडित विजय लक्ष्मी के साथ इंदिरा गांधी भी कहला गांव आयी थीं। वर्ष 1972 में जब वह प्रधानमंत्री बनी तो उन्हें यह वाकया याद रहा। 16 फरवरी 1972 को कहला गांव पहुंची और शहीद किसानों की स्मृति में यहां एक हॉस्पिटल, हाईस्कूल स्तर का राजकीय स्कूल खोले जाने की घोषणा की, पर यह घोषणाएं आज तक फलीभूत नहीं हो सकीं। गांव में एक शहीद स्मारक बना हुआ है, जहां नियमित रूप से सफाई भी नहीं कराई जाती। शहीद किसानों की याद में यहां से परिवहन विभाग द्वारा बस का संचालन होता था, वह भी पिछले कई साल से बंद पड़ा है। गांव में तीनों शहीद किसानों की प्रतिमा भी स्थापित नहीं कराई जा सकी है। शहीद किसानों के खून से सिंचित यह गांव आज भी किसी नायक के इंतजार में है, जो विकास रूपी किरण शहीदों की पावन स्थली तक ला सके।