यदि शाहरुख़ ख़ान पाक जेहादी एजेंट फिर राष्ट्रवादी मुसलमान कौन?

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प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता शाहरुख खान के विरोध में देश की कई अतिवादी शक्तियां एकजुट हो गई हैं। इन शक्तियों द्वारा शाहरुंख के विरोध का कारण यह बताया जा रहा है कि उन्होंने आई पी एल द्वारा आयोजित किए जाने वाले क्रिकेट टूर्नामेंट में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को भी शामिल किए जाने की हिमायत की। जबकि शाहरुख द्वारा न तो अपनी टीम कोलकाता नाईट राईडर्स में किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी को शामिल किया गया न ही वास्तव में ऐसा कुछ विशेष कहा गया जिससे यह जाहिर हो कि वे पाकिस्तान के प्रति हमदर्दी का इज़हार कर रहे हों। पाकिस्तानी खिलाड़ियों के सम्बंध में शाहरुख के वक्तव्य के अगले ही दिन भारत सरकार के गृहमंत्री पी चिदंबरम ने तो स्पष्ट शब्दों में यह कहा कि भारत में पाकिस्तान अथवा किसी भी अन्य देश का खिलाड़ी यदि खेलने आता है तो उसकी पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत सरकार की है। परंतु गृह मंत्री पर किसी अतिवादी नेता या संगठन ने निशाना साधना उचित नहीं समझा और साफ्ट टारगेट समझ कर शाहरुख खान के विरोध का परचम बुलंद कर दिया। निश्चित रूप से घटिया दर्जे की राजनीति करने वालों का यह भी एक शंगल होता है कि वे किसी सुप्रसिद्ध शख्सियत का महंज इस लिए विरोध करते हैं ताकि उस प्रसिद्ध हस्ती के साथ विरोध कर्ताओं का नाम भी जुड ज़ाए और उसे भी कुछ न कुछ प्रसिद्धि प्राप्त हो जाए। भले ही वह प्रसिद्धि नकारात्मक क्यों न हो।

शाहरुख ख़ान की बड़े ही घटिया शब्दों में आलोचना करने का जिम्मा इन दिनों जिन तथाकथित ‘राष्ट्रभक्त राजनीतिज्ञों’ ने उठा रखा है उनमें अब तक जो चेहरे सामने आ रहे हैं वे हैं महाराष्ट्र शिवसेना के नेतागण, विश्व हिंदू परिषद् के महामंत्री डा. प्रवीण तोगड़िया, श्री राम सेना के प्रमुख प्रमोद मुताली तथा इन्हीं फायर ब्रांड नेताओं के सुर से अपना सुर मिलाते हुए योग गुरु बाबा रामदेव ने भी शाहरुख़ ख़ान की आलोचना की है। डा. प्रवीण तोगड़िया ने तो शाहरुख ख़ान को पाकिस्तानी जेहादियों का एजेंट तक कह डाला है। शिवसेना कहती है कि देखें वे मुंबई में कै से रहते हैं। और शाहरुंख का निवास मन्नत मुंबई में है कराची में नहीं। इस प्रकार की शब्दावली से जिस शाहरुख़ ख़ान को नवांजा जा रहा है आईए उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर एक नजर डालने की कोशिश करते हैं और स्वयं इस निर्णय पर पहुंचने का प्रयास करते हैं कि जेहादी मानसिकता का शिकार कौन है और क्यों है?

शाहरुख़ ख़ान का जन्म 1965 में नई दिल्ली में एक पठान परिवार में हुआ। इनके पिता ताज मोहम्मद ख़ान एक प्रखर स्वतंत्रता सेनानी थे तथा भारत की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने ख़ूब संघर्ष किया। देश प्रेम उनमें ऐसा कूट-कूट कर भरा था कि वे भारत को विभाजित होते नहीं देखना चाहते थे। यही वजह थी कि वे 1947 के विभाजन से पूर्व ही पेशावर से भारत आ गए थे। उधर शाहरुख़ ख़ान की मां लतींफ फातमा मेजर जनरल शाहनवांज ख़ान की दत्तक पुत्री थीं। जनरल शाहनवाज खां का व्यक्तित्व परिचय का मोहताज नहीं है। वे सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में मेजर जनरल थे। जनरल ख़ान भी विभाजन से पूर्व पेशावर से भारत आए थे जबकि शाहरुख़ की मां का परिवार रावलपिंडी से भारत आया था। उपरोक्त परिवारों के देश प्रेम के बारे में जरा कल्पना कीजिए कि यह मुस्लिम घराने उन हालात में भारत आए जबकि सांप्रदायिकता के शोले धधकने को थे तथा भारत से लाखों मुसलमानों का पाकिस्तान की ओर पलायन करना तय था। इसी प्रकार हिंदू संप्रदाय के लोग पाकिस्तान से भारत आने की तैयारी कर रहे थे। ऐसे में चंद मुस्लिम घरानों का हवा के विपरीत कदम उठाना आख़िर हमें क्या एहसास कराता है।

इसके पश्चात शाहरुख़ ख़ान दिल्ली के राजेंद्र नगर क्षेत्र में पले-बढ़े तथा सेंट कोलंबस स्कूल में शिक्षा ग्रहण करते हुए हंसराज कालेज से स्नातक किया। अपने अभिभावकों की मृत्यु के पश्चात 1991 में वे मुंबई चले गए। इसी वर्ष उन्होंने कश्मीरी मुंजाल ब्राह्मण परिवार की गौरी छिब्बर नामक कन्या से 25 अक्तूबर 1991 को विवाह रचाया। यह विवाह हिंदू रीति रिवाज के साथ संपन्न हुआ। इस समय शाहरुख़ के दो बच्चे, पुत्र आर्यन तथा पुत्री सुहाना हैं। शाहरुख़ ख़ान का घर किसी संपूर्ण धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी मुसलमान का घर कहा जा सकता है। उनके घर में कुरान,गीता,बाईबिल आदि सभी धर्म ग्रंथ मौजूद हैं तथा समय-समय पर वह इनका अध्ययन भी करते रहते हैं। शाहरुख़ को कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित सम्मानों व पुरस्कारों से भी नवांजा जा चुका है। सन् 2005 में उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार पदम श्री से सम्मानित किया गया। उसके पश्चात अप्रैल 2007 में लंदन के विश्व प्रसिद्ध मैडम तुसाद वेक्स म्यूंजियम में उनका आदमक़द मोम का बुत स्थापित किया गया। उसी वर्ष पैरिस में भी उनका ऐसा ही बुत एक सुप्रसिद्ध म्यूंजियम में स्थापित हुआ। यह सम्मान उन्हें फ्रेंच सरकार द्वारा दिया गया। अक्तूबर 2008 में उन्हें मलेशिया के राष्ट्रप्रमुख द्वारा वहां के एक अति प्रतिष्ठित सम्मान से नवांजा गया। ब्रिटिश विश्वविद्यालय ब्रेडफोर्ड शायर ने उन्हें 2009 में डाक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। पूरी दुनिया में भारतीय सिनेमा के माध्यम से देश का नाम रौशन करने वाले शाहरुख़ ख़ान के व्यक्तित्व पर कई पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।

उपरोक्त संक्षिप्त जीवन परिचय उस सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता का है जोकि जनरल शाहनवाज़ ख़ां की गोद में पला तथा जिसने देश भक्ति के न जाने कितने किस्से-कहानियां जनरल ख़ान के मुंह से सुनी होंगी। आईए इसी आलेख के बहाने आज मेजर जनरल शाह नवाज़ ख़ां को भी श्रद्धांजलि देने की कोशिश की जाए। मेरा भी यह सौभाग्य रहा है कि मैंने जनरल शाहनवांज की संगत की है तथा उनकी सेवा में कुछ समय बिताने का सौभाग्य मिला है। 1979 में इलाहाबाद के प्रयाग होटल में जनरल ख़ान किसी राजनैतिक कार्यक्रम में भाग लेने हेतु आकर ठहरे थे। मैंने देखा कि वे पांचों वक्त क़ी नमाज अदा करते थे। बिना दाढी वाले सच्चे राष्ट्रवादी मुसलमान थे। वे कैप्टन टिक्का खां की संतान थे तथा उन्होंने रायल इंडियन मिलिट्री कालेज देहरादून से कमीशन प्राप्त किया था। वे सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी विचारों से प्रेरणा पाकर भारतीय राष्ट्रीय सेना में शामिल हुए थे। 1956 में सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की जांच हेतु जो समिति गठित की गई थी जनरल ख़ान उसके प्रमुख थे।

ऐसे ख़ानदान से संबंध रखने वाले शाहरुख़ ख़ान के संस्कार क्या पाकिस्तानी जेहादियों से मेल खा सकते हैं? क्या उसे इस प्रकार के ‘अलंकरणों’ से सम्मानित करना उचित है? इसका प्रभाव अन्य राष्ट्रभक्त उदारवादी तथा धर्मनिरपेक्ष भारतवासियों की सोच पर क्या पड़ सकता है? क्या आज के यह तथाकथित अतिवादी राष्ठ्रभक्त शाहरुख ख़ान की पारिवारिक पृष्ठभूमि की तुलना अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि से कर सकते हैं? आज शाहरुख़ ख़ान से यह उम्मीद की जा रही है कि वह बाल ठाकरे जैसे अलगावादी विचार रखने वाले नेता से जाकर मांफी मांगें कि उसने पाक टीम के प्रति हमदर्दी क्यों जताई? जबकि शाहरुख़ ख़ान से कहीं अधिक मुखरित स्वरों में गृहमंत्री सहित कई अन्य विशिष्ट व्यक्ति यह स्पष्ट कर चुके हैं कि खेल को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। स्वयं बाल ठाकरे की बहु स्मिता ठाकरे भी शाहरुख़ ख़ान का समर्थन करती देखी जा रही है। जबकि बाल ठाकरे के पुराने सहयोगी रहे नारायण राणे तो यहां तक कह रहे हैं कि बाल ठाकरे द्वारा यह सारा बवंडर केवल पैसे वसूलने की गरज़ से खड़ा किया जा रहा है। परंतु आज देश में किसी का विरोध नहीं हो रहा है। केवल शाहरुख़ ख़ान ही आख़िर निशाने पर क्यों हैं? उसे पाकिस्तानी जेहादी कहने वाले तथा धमकियां देने वालों को मांफी मांगने की तो कोई जरूरत ही नहीं होगी। चूंकि यह ‘स्वयंभू राष्ट्रभक्त’ हैं अत: इनके मुंह से निकले अपशब्द भी गोया ‘प्रसाद’ समझे जाने चाहिए। जबकि मांफी मांगने की उम्मीद सिर्फ शाहरुख़ से ही की जा रही है।

याद कीजिए 26-11 की बरसी पर आयोजित इंडिया गेट के मैदान पर हुआ वह कार्यक्रम जिसमें शाहरुख़ ख़ान ने ही इस बात पर चिंता जताई थी कि मुझसे ही लोग न जाने क्यों यह पूछते हैं कि आतंकवाद के बारे में आपकी क्या राय है। उसने आगे कहा था कि आतंकवाद के विषय में किसी की भी अलग-अलग राय तो हो ही नहीं सकती। परंतु शायद मुझसे इसलिए यह पूछा जाता है क्योंकि मैं एक मुसलमान हूं। कहीं आज अतिवादी शक्तियों द्वारा शाहरुख़ पर साधा जाने वाला निशाना शाहरुख़ के उसी संदेह की पुष्टि तो नहीं कर रहा? यदि ऐसा है तो यह देश की एकता व धर्मनिरपेक्षता के लिए अत्यंत घातक है। एक ओर तो शाहरुख़ ख़ान उदारवादी तथा प्रगतिशील सोच रखने वाले भारतीय मुसलमानों के लिए एक आदर्श के रूप में अपना स्थान बना चुके हैं तो दूसरी ओर उन्हें पाकिस्तानी जेहादी एजेंट जैसी उपाधियों से ‘सम्मानित’ किया जा रहा है। आज भारत सहित दुनिया के अन्य तमाम देशों में शाहरुख़ ख़ान के समर्थकों में मुसलमानों की संख्या तो कम जबकि हिंदू व अन्य समुदायों में शाहरुख़ ख़ान की स्वीकार्यता कहीं अधिक है। आख़िर इसके बावजूद उस पर अनावश्यक रूप से लांछन लगाने व बदनाम करने का औचित्य क्या है? दरअसल शाहरुख़ के विरोध का अर्थ उसका विरोध करना कम जबकि उसके विरुद्ध हिंदू मतों के ध्रुवीकरण का असफल प्रयास अधिक है। जो भी हो यह कोशिश अति दुर्भाग्यपूर्ण तथा देश के सांझी तहंजीब व धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के लिए ख़तरनाक है। ऐसी मानसिकता रखने वालों को जनता को ही सबंक सिखाना होगा। शायद धर्मनिरपेक्षता,उदारवाद तथा प्रगतिशील सोच रखने वाले शाहरुख़ जैसे मुसलमानों के बारे में ही शायर ने कहा है कि-

जाहिदे तंग नज़र ने मुझे काफिर जाना और काफिर यह समझता है कि मुसलमान हूं मैं।

-तनवीर जाफरी

5 COMMENTS

  1. मै सिर्फ एक सवाल शिवसेना एवं म न से से करना चाहूँगा की शाहरुख़ ने तो राष्ट्र विरोधी कार्य किया चलो मान लिया ! पर ज़रा ठाकरे परिवार कोई एक काम बताए की उन्होंने राष्ट्र हित में क्या किया है आज तक !

  2. sir, shahrukh’s is great man and million people loves him and still his heart throb of indian people and always love him but at present indian people are in trauma due to terror strikes so people of india wants the culprit and all terrorist base available in pakistan should be abolished but after 26/11 . pakistan is not given much seriousness towards this pain of people of india. at this juncture if anybody स्पेअक्स अबाउट प्ले एंड cultural events will not बे गुड फॉर पोपले ऑफ़ इंडिया. वेट एंड वाटच व्हेन राईट टाइम कामे थें स्पोर्ट्स, कल्तुरल इवेंट्स एंड सो मानी फ़्रिएन्द्ल्य मत्चेस एंड कल्तुरल एंड क्रेअतिवे अक्तिवितिएस विल तकस प्ले. स्टील शाहरुख़ इस गुड हमन बेंग एंड पोपले ऑफ़ इंडिया लोवेस अ लोट . सो दो’नत गिवे एनी किंद ऑफ़ एक्ष्प्लनतिओन अबाउट शाहरूख . हे इस ओउर हीरो एंड रेमिं हीरो नीद नोट तो बे वोर्री. आईटी इस मत्तेर ऑफ़ टाइम. रेस्ट एवेरी थिंग विल बे अल्रिघ्त. व्रित्टर जी इन मुंबई नोट ओनली शाहरुख़ खान हस बीन तर्गेत्तेद सो मानी बिग इन्दुस्त्रिअलिस्ट एंड बिग-बी एंड कारन जोहर हस बबन एक्ष्पेरिएन्केद बाद तसते ऑफ़ रेगिओनल पोलिटिक्स सो प्लेअसे दो’नत काउंट शाहरुख़ खान सेपरातेली , काजोल , कारन जोहर एंड व्होले टीम ऑफ़ माय नामे इस खान इस इन दिल्लेम्मा . सो व्रिते ओं बेहल्फ़ ऑफ़ व्होले टीम ऑफ़ माय नामे ऑफ़ खान एंड पोपले अरे बेंग हर्रस्सेद इन थे नामे ऑफ़ रेगिओनल पोलिटिक्स. थिंग एंड व्रिते मोरे कवर उप विथ अल पोपले एंड रियल प्रॉब्लम ऑफ़ मुम्बैकर एंड महार्स्त्रस बर्निंग इस्सुएस लिखे नोर्थ इन्दिंस अरे बेंग बेअतिनंद हर्रस्सेद एंड मानी मोरे
    थैंक्स
    सुनीता, mumbai

  3. क्या मैं जान सकता हूँ जाफरी साहेब की आखिर शाहरुख खान के कहने का मतलब क्या था? क्या कभी शाहरुख खान ने इस्लामिक देशो में धर्मनिरपेक्षता की न्यूनता पर चिंता जाहिर कर इस दिशा में सुधर की आवश्यकता महसूस की? क्या माई नेम इज खान खान किसी धर्मनिरपेक्षता की मानसिकता को प्रदर्शित करता है. भारत में धर्मनिरपेक्षता पर रोने वाले व अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि वाले इस्लाम के पैरोकार को इस्लामिक देशों में धर्मनिरपेक्षता की दुर्गति पर शर्म महसूस नहीं होती?
    अंत में शाहरूख खान का पाक खिलाड़ियों पर दिया गया वक्तव्य आई पी एल में बोली लगाने वालों को दोषी नहीं ठहरा रहा? क्या उनमें स्वयं शाहरुख खान दोषी नहीं हैं?
    जैसे अनेक प्रश्न आम जागरूक आदमी के मन में उमड्तें हैं मगर समाज की मानसिकता जब किसी दिशा में सोचना बंद कर देती है तो फिर उसकी और पलट कर भी नहीं देखती चाहे कितना ही बड़ा अन्याय हो रहा हो ?
    महिलाओं की पर्दा प्रथा, इस्लाम में बहु विवाह, तलाक जैसी महिला-विरोधी मानसिकता पर शाहरूख खान व आप जैसे तथाकथित स्वतंत्र विचार वाले लोग भी चुप्पी मरना ही बेहतर समझतें हैं. यह इस दुनिया की अव्यावहारिकता को ही दर्शाता है न की उसके बौधिक उत्थान को प्रदर्शित करता है.
    उत्तर की अपेक्षा में,
    Satish

  4. बहुत अच्छा वैरी गुड जवाब नहीं जाफरी साब

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