अगर वो रोज़ेदार ना भी होता तो क्या सांसद को ये अधिकार है?

-इक़बाल हिंदुस्तानी-
shivsena roza issue

-मोदी के राज में हिंदूवादी सोच के लोग आपे से बाहर हो रहे हैं!-

महाराष्ट्र सदन में शिवसेना के उग्र सांसद रंजन विचारे ने खराब खाना मिलने पर आईआरसीटीसी के कर्मचारी से जो अभद्र व्यवहार किया, वह उस कर्मचारी के मुस्लिम होने और उसका रोज़ा होेने और यह बात बताने के बावजूद ज़बरदस्ती उसके मुंह में रोटी ठूंसे जाने से हंगामे का कारण बना लेकिन अगर वह कर्मचारी मुस्लिम ना होता या उसका रोज़ा ना होता तो शायद इतना हंगामा नहीं होता। मेरा सवाल ठीक यहीं से शुरू होता है कि फिर हंगामा क्यों नहीं होता? या क्यों नहीं होना चाहिये था? यह ठीक है कि देश में लोकतंत्र है और हमारी व्यवस्था सेकुलर कहलाती है जिससे किसी अल्पसंख्यक के साथ इस तरह का ख़राब बर्ताव होने पर ना केवल विपक्ष बल्कि सरकार की तरफ से भी इस मामले को गंभीरता से लिया गया।

इतना ही नहीं, मुस्लिम विरोधी समझी जाने वाली शिवसेना ने भी पहले तो इस तरह की घटना से पूरी तरह पल्ला झाड़कर इसे झुठलाना चाहा लेकिन जब इस कारनामे की वीडियो फुटेज पूरे देश में मीडिया द्वारा वायरेल हो गयी तो उनको भी मजबूरन यह कहना पड़ा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारी पार्टी एक हिंदूवादी पार्टी है लेकिन हम दूसरे धर्मों का भी सम्मान करते हैं और अगर ऐसा करने से उस मुस्लिम युवक की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है तो हम इसके लिये खेद व्यक्त करते हैं। सबसे बड़ी बात यह हुयी कि सरकार ने इस मामले को संवेदनशील माना और भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी ने संसद में यह मामला उठते ही सरकार का सहयोगी दल होने के बावजूद यह कहने में देर नहीं लगाई कि सांसद का यह कृत्य गलत है। अजीब बात यह हुयी कि जिस तरह से चुनाव के दौरान एक भाजपा नेता गिरिराज ने मोदी विरोधियों को पाकिस्तान जाने की सलाह दे डाली थी वैसे ही सदन में भाजपा सांसद रमेश विधूड़ी ने इस मामले को उठाने वाले सांसदों को पाकिस्तान जाने की धमकी ठीक इस लहजे में दे दी जैसे पाकिस्तान ऐसे लोगों के लिये ही बना हो? यह देश केवल भाजपा और संघ परिवार की विचारधारा में विश्वास रखने वालों का ही नहीं है। इतना ही नहीं, यह मामला संसद में उठाये जाने से भाजपा सांसद विधूड़ी इतना उग्र हो गये कि उन्माद में आकर विपक्षी सांसदों पर हमला करने की नीयत से दौड़ पड़े लेकिन यह हमारे लोकतंत्र की गरिमा के लिये अच्छा हुआ कि अन्य वरिष्ठ सांसदों ने उनको ऐसा करने से पहले ही बीच बचाव कराकर रोक दिया। बाद में विधूड़ी ने भी इस हरकत के लिये माफी मांगी और स्पीकर ने उनकी टिप्पणी को रिकॉर्ड से निकाल कर मामले को शांत कर दिया।

इस सारे मामले में यह मुद्दा कहीं भी उठता दिखाई नहीं दिया कि अगर देश में आज भी मीडिया और विपक्ष के साथ ही सरकार में भी ऐसे लोगों का बहुमत है जो किसी अल्पसंयक के साथ होने वाली गलत हरकत और उसके धार्मिक विश्वास को पहुंचने वाली ठेस पर एकमत होकर उससे माफी और खेद जताने के लिये आरोपी को मजबूर कर सकते हैं यह हमारे देश के लोकतंत्र और निष्पक्षता की जीत है। इस तरह की घटनाओं के सम्मानजनक पटाक्षेप से हमें हिंदुस्तानी होने पर गर्व होता है। आज जब पूरे विश्व में धर्म और नस्ल के नाम पर लोगों को जानवरोें की तरह मारा और काटा जा रहा है तो ऐसे में अगर सत्ताधारी दल का एक घटक मनमानी के लिये सक्षम होकर भी अपनी भूल को स्वीकारता है तो यह हमारी सभ्यता संस्कृति और वसुधैवकुटंबकम का ही एक नायाब नमूना माना जा सकता है। इतने मतभेदों जातिभेदों और भ्रष्टाचार के बाद भी हमें अपने देश और संसद का यह सकारात्मक पहलू दुनिया के सामने लाना चाहिये कि देखो हमारे देश में ही यह भी संभव है।

इसके साथ ही जो सवाल मेरे दिल और दिमाग में बार बार उभर रहा है और मुझे परेशान कर रहा है वो यह है कि यह मामला अगर एक गैर मुस्लिम कर्मचारी का होता तो शायद इतना तूल नहीं दिया जाता। न तो विपक्ष को इससे वोटबैंक का लाभ दिखाई देता और ना ही मीडिया को इससे इतनी टीआरपी मिलती और साथ ही सरकार को पूरी दुनिया में इस बात का जवाब भी नहीं देना पड़ता कि उसके राज मेें भारत में अल्पसंख्यकों के मौलिक संवैधानिक अधिकार सुरक्षित नहीं हैं। अगर कोई सांसद किसी हिंदू कर्मचारी के साथ भी यह अभद्रता करता है तो वह गंभीर मामला क्यों नहीं होना चाहिये? क्या सांसद को किसी के साथ अभद्रता का भी विशेष अधिकार हासिल होता है? सांसद अगर सत्ताधारी गठबंधन से जुड़े घटक का है तो उसका अपराध और भी गंभीर नहीं हो जाता? देश का कानून बनाने वाली सबसे बड़ी पंचायत का सदस्य ही कानून हाथ में लेगा? उसके खिलाफ अब तक कोई प्राथमिकी थाने में दर्ज नहीं हुयी क्यों? उस सांसद के खिलाफ अब तक संसद ने कोई कार्यवाही नहीं की क्यों? उसके खिलाफ़ उसकी पार्टी शिवसेना ने अब तक कोई एक्शन नहीं लिया क्यों? क्या कोई दावा कर सकता है कि यह एक्शन लेने लायक मामला ही नहीं था? चलिये अब घटना को पलट लीजिये मान लीजिये आईआरसीटीसी के किसी अधिकारी या कर्मचारी ने यह हरकत किसी सांसद के साथ की होती तो कल्पना कीजिये अब तक उसके खिलाफ क्या क्या कार्रवाई हो गयी होती?

इसका मतलब हमारे देश में दो पैमाने हैं कानून लागू करने के? सवाल यह भी है कि शिवसेना सांसदों ने आवासीय आयुक्त के कार्यालय में जमकर तोड़फोड़ भी क्यों की? जहां तक हमारी जानकारी है लोकसभा से लेकर दिल्ली स्थित किसी भी राज्य के सदन में खाना बनाने का काम सरकारी यानी रेल मंत्रालय की एजंसी आईआरसीटीसी करती है तो यह मामला सीध्ेा केंद्र सरकार के अंतर्गत आता है। शिवसेना सांसद खुद केंद्र सरकार का हिस्सा हैं तो अगर सरकार के सदस्य ही कोई शिकायत या गड़बड़ी होने पर इस तरह कानून हाथ में लेंगे तो आम आदमी से क्या आशा है ?

दूसरों पर तब्सरा जब किया कीजिये,
आईना सामने रख लिया कीजिये।।

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

4 COMMENTS

  1. ये विवाद एक ग्राहक और दुकानदार के बीच हुये विवाद की तरह है, कई बार भावावेश मे ऐसा हो जाता है हम सभी इस बात से परिचित है, जहां तक लेखक का ये कहना है की अगर यही घटना सांसद के साथ होती तो क्या होता, तो आपको याद होगा श्रीमान इस देश की जनता ने न केवल उन्हे चुनाव मे इसकी सजा दी है बल्कि कई बार थप्पड़ से गाल लाल कर दिये है

  2. इक़बाल हिंदुस्तानी जी का लेख पढ़ा और शिवेंद्र मोहन जी की टिप्पणी भी। मै इस बात से तो सहमत हूँ कि चाहें हिंदू हो या मुसलमान भले ही रोज़े से या उपवास से भी न हो किसी के मुंह मे खाना ठूँसना ग़लत है, खाना कैसा भी ख़राब हो … ज़बान दराज़ी भी हुई हो तो भी यह व्यवहार सही नहीं था।जब किसी मुसलमान के साथ कुछ होता है तो हिंदुओं को कोई पुरानी घटना याद आजाती है और जब हिन्दुओं के साथ कुछ होता है तो मुसलमानो को हिन्दुओं की हटधर्मिता याद आ जाती है… यही तो नेता और राजनैतिक दल चाहते हैं।यदि हम भूल सके कि हम हिन्दू या मुसलमान नहीं बस इंसान हैं, तभी ऐसी घटनायें बन्द हो सकती हैं। धर्म से ऊपर उठकर सोचना पड़ेगा।

  3. दूसरों पर तब्सरा जब किया कीजिये,
    आईना सामने रख लिया कीजिये।।

    लेखक के शब्दों से ही शुरआत कर रहा हूँ , इस घटना से पहले ही अमरनाथ की घटना हुई थी। उसके बारे में लेखक को कोई घुटन नहीं हुई ? इससे ज्यादा बड़ी घटना थी वो। लेकिन दोगले सेक्युलर शुतुरमुर्ग की भांति रेत में गर्दन घुसा लिए, जैसे की कुछ हुआ ही नहीं हो। और जिस घटना का जिक्र हो रहा है उसके बारे में भी पहले तफ्सील से पता कर लेते तो क्या गुनाह हो जाता ? एक तो ख़राब खाना और ऊपर से जबान दराजी। इस व्यव्हार पर तो घर में भी उठा पटक हो जाती है। और बाहर तो लोग पैसे दे कर भी इसी तरह का घटिया खाना खाने को मजबूर करते हैं। और मुसलामानों के साथ ये अल्पसंख्यक का रोना ले के क्यों बैठ जाती है, तथाकथित सेक्युलर जमात। मुसलमान अब अल्पसंख्यक नहीं इस देश में। शब्दों के साथ खेलना छोड़ना होगा। ये घटना तूल इसीलिए पकड़ गई की विवाद के केंद्र में एक मुस्लिम था, अगर कोई और होता तो ये दोगले सेकुलर कहीं सो रहे होते।

    दूसरों आईना दिखाने से पहले
    जरा अपनी गिरेबां भी देख जालिम।


    सादर,

    • श्री इक़बाल हिंदुस्तानी ने इस पूरे प्रकरण को निरपेक्ष भाव से देखने की सलाह दी है.उन्होंने भी तो यही दोहराया है कि अगर यह घटना किसी गैर मुस्लिम या गैर रोज वाले के साथ होती, ,तो क्या सांसद का अपराध काम हो जाता?हमें अपने गरेबान में झांकने की आवश्यकता है कि ऐसा क्यों है कि हमारा क़ानून बनाने वाला ही क़ानून को अपने हाथ में ले लेता है?हमारी कठिनाई यह है कि हम इस पहलू पर सोचते ही नहीं.

    • वो बेधड़क लिखते रहें

      दूसरों पर तब्सरा जब किया कीजिये,
      आईना सामने रख लिया कीजिये।।

      और आप बचाव में सफाई देते रहें|

      दूसरों (को) आईना दिखाने से पहले
      जरा अपनी गिरेबां भी देख जालिम।

      परन्तु कांग्रेस उत्पादित धर्मनिरपेक्षता के साथ साथ भारत में “हिंदू वादी सोच के लोग आपे से बाहर हो रहे हैं” का हुल्लड़ और कितनी देर चलता रहेगा? दैनिक समाचार पत्रों में भ्रमकारी समाचार पर आधारित यह नया लेख और मोदी शासन विरोधी निबंध श्रृंखला में अन्य लेखों को केवल झुठला देने से काम नहीं चलेगा| उदाहरणार्थ, कृपया समाचार के शीर्षक की ओर विशेष ध्यान दें, बीते दिन अंग्रेजी समाचार पत्र टाइम्ज़ ऑफ इंडिया ने प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया द्वारा समाचार “Curfew imposed in Tarou town of Haryana” (https://www.ptinews.com/news/4794458_Curfew-imposed-in-Tarou-town-of-Haryana-.html) पर आधारित “Communal clash: Curfew imposed in Tarou town of Haryana” (https://timesofindia.indiatimes.com/city/chandigarh/Communal-clash-Curfew-imposed-in-Tarou-town-of-Haryana/articleshow/36262072.cms) प्रस्तुत कर हमारी भावनाओं से खिलवाड़ किया है और हम निष्क्रिय भावुक हिन्दू मुसलमान को इसकी भनक तक नहीं है| आज राष्ट्रवादी “मोदी राज” में सभी नागरिकों में शांति व परस्पर सहयोग को बनाए रखने हेतु निरंकुश भारतीय मीडिया में लेखकों, पत्रकारों और पत्रकारिता पर कुशल विधि और व्यवस्था के अंतर्गत अंकुश रख इन्हें अनुशासित करना होगा|

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