अगर पेड़ में रुपये फलते-प्रभुदयाल श्रीवास्तव

मान‌नीय‌ प‌र‌म‌भ‌ट्टार‌क‌ श‌हंशाहे आलिया प्रधान‌ मंत्री जी की सेवा में पेश‌ एक‌ बाल‌ गीत‌ ह‌म‌ नादान‌ ब‌च्चों की त‌र‌फ‌ से|

अगर पेड़ में रुपये फलते [बाल गीत]

टप् टप् टप् टप् रोज टपकते|

अगर पेड़ में रुपये फलते|

 

सुबह पेड़ के नीचे जाते

ढ़ेर पड़े रुपये मिल जाते

थैलों में भर भर कर रुपये

हम अपने घर में ले आते

मूंछों पर दे ताव रोज हम‌

सीना तान अकड़के चलते|

 

कभी पेड़ पर हम चढ़ जाते

जोर जोर से डाल हिलाते

पलक झपकते ढेरों रुपये

तरुवर के नीचे पुर जाते

थक जाते हम मित्रों के संग‌

रुपये एकत्रित करतॆ करते|

 

एक बड़ा वाहन ले आते

उसको रुपयों से भरवाते

गली गली में टोकनियों से

हम रुपये भरपूर लुटाते

वृद्ध गरीबों भिखमंगों की

रोज रुपयों से झोली भरते|

 

निर्धन कोई नहीं रह पाते

अरबों के मालिक बन जाते

होते सबके पास बगीचे

बड़े बड़े बंगले बन जाते

खाते पीते धूम मचाते

हम सब मिलकर मस्ती करते|

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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