सरयू को नजरअंदाज कर क्या भाजपा बहुमत से दूर रहेगी ?

·      भाजपा से निष्कासन के बाद सरयू राय ने दिया मंत्री परिषद से इस्तीफा                                                                     

मुरली मनोहर श्रीवास्तव

सरयू राय के इस्तीफे से झारखंड की राजनीति में नया मोड़ आ गया है। सबसे बड़ी बात ये है कि आखिर तीन चरण चुनाव हो जाने के बाद ही क्यों इन्होंने इस्तीफा दिया। क्या इसलिए की पार्टी उनके साथ कौन सा रवैया अपनाती है या फिर आम आवाम के नाम पर हक दिलाने के लिए राजनीतिक शहीद होकर झारखंड की राजनीति में खुद को स्थापित करने की ललक बनी हुई थी। अगर उन्होंने ऐसा सोचा होगा तो उनके सोचे पर भाजपा केंद्रीय कमेटी ने पानी फेर दिया है। लेकिन इससे इतर सरयू राय की झारखंड की राजनीति में दिए गए इस्तीफे से कई सवाल उपज खड़े हुए हैं। उनमें से एक यह भी है कि जो उन्होंने कहा है कि भाजपा 15 सीटों पर सीमट जाएगी, कहीं ऐसा तो नहीं कि वहां की राजनीतिक आबोहवा को भांपने के बाद इस्तीफे का उन्होंने मन बनाया। या फिर इस फिराक में थे कि अगर पार्टी की स्थिति झारखंड में बेहतर रही तो इसका फायदा उठाने में वो सफल हो जाते।

रघुबर सरकार में खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग के कैबिनेट मंत्री सरयू राय ने झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू से मिलकर अपना इस्‍तीफा सौंप दिया। ज्ञात हो कि झारखंड विधानसभा चुनाव के बीच भाजपा के बागी सरयू राय ने भारतीय जनता पार्टी को जमकर बददुआएं दी है। मुख्‍यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर पूर्वी सीट से चुनाव मैदान में आमने-सामने थे। आपको याद दिला दूं कि भाजपा अध्यक्ष ने सरयू सहित 20 नेताओं को छह वर्षों के लिए पार्टी से निकाल दिया था।

अपने चुनावी मैदान में झारखंड राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी सरयू राय कहते रहे कि मैं नहीं बल्कि यहां की जनता चुनाव लड़ रही है। इन्हें पूरा विश्वास है कि वो इस सीट से जीत दर्ज कराएंगे। नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने उन्हें चुनाव में समर्थन दिया है तो जाहिर सी बात है कि हेमंत के समर्थन में वो संथाल जाएंगे। झारखंड विधानसभा चुनाव की जमशेदपुर पूर्वी सीट जिसे हॉट सीट मानी जा रही है। चुनावी मैदान में वो खुद को भाजपा से बाहर बता रहे थे तथा उसकी कार्यशैली पर प्रहार करते रहे। इस मसले पर सरयू राय ने कहा कि 17 नवंबर को ही उन्होंने फैक्स से इस्तीफा राजभवन को भेज दिया था। भाजपा से टिकट नहीं दिए जाने के बाद सरयू बागी होकर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ चुनाव लडऩे का निर्णय लिया था। चुनावी मैदान में आने के बाद एक महिला द्वारा उनके ऊपर जमीन हड़पने का आरोप लगाया जिसका उन्होंने अपने इस जमीन का उल्लेख चुनाव आयोग में दर्ज शपथ पत्र में भी किया गया है। सरयू ने बताया कि मैंने यह जमीन सीबीआइ के तत्कालीन डीआइजी राकेश अस्थाना व पत्रकार रहे हरिवंश जी से लिया था।

अब ऐसे में देखने वाली बात ये है कि अगर कहीं जो झारखंड में भाजपा थोड़ी कमजोर पड़ती है और सरयू राय की जीत हो जाती है तो सरयू राय का राजनितीक ग्राफ काफी बढ़ जाएगा। वहीं रघुबर दास खुद की राजनीति में फीके जरुर पड़ जाएंगे। झारखंड की राजनीति में स्थायी सरकार देने वाली भाजपा को काफी समय मिला था। सूबे के विकास करने और खुद को स्थापित करने का, मगर समय रहते इस सरकार को जितना विकास करना चाहिए था उस लिहाज से कुछ खास नहीं कर पाया। इस बात की भी भाजपा को चिंता जरुर बनी हुई है। सरयू राय को बाहर का रास्ता दिखाकर भाजपा खुश है या पछता रही है यह तो रिजल्ट आने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। लेकिन इतना तो तय माना जा रहा है कि भाजपा अपने किसी भी चाल को चलने के पीछे अपनी रणनीति पर भरोसा करती है। देखने वाली बात यह है कि आखिर इस बार भाजपा की चाल में सरयू राय फंसते हैं या भाजपा के लिए राहें मुश्किल करते हैं इसके लिए चुनावी नतीजे तक जरुर इंतजार करना होगा।

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