मध्‍यप्रदेश के विकास में बाधक नौकरशाही?

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रामबिहारी सिंह

किसी भी देश और प्रदेश के विकास में सबसे बड़ी भूमिका उस मजहब या सूबे की नेताशाही और नौकरशाही की होती है। स्थिति-परिस्थिति के मुताबिक न सिर्फ योजनाएं क्रियान्वित करने की बल्कि प्रदेश का माहौल उपयुक्त रहे इसकी भी जिम्मेदारी होती है। लोगों में अमन-चौन कायम रहे इसके लिए भी काफी कुछ करना होता। आज जब भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया का हर मुल्क आतंकवाद नामक कैंसर से पीड़ित है और इससे बचने हर संभव उपाय अपनाए जा रहे हैं, बावजूद इसके आतंकवाद का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। मगर किसी भी प्रदेश में नौकरशाही इतनी दुराशाही हो जाए तो उसे आतंकवाद से भी ज्यादा घातक परिणाम भुगतना पड़ता है। कुछ ऐसी ही स्थिति हिन्दुस्तान का दिल कहलाने वाले प्रदेश मधयप्रदेश की है, जहां भ्रष्ट नौकरशाह मधयप्रदेश के विकास में सबसे बड़े बाधक हैं। बावजूद इसके प्रदेश के लिए ताजुब की बात यह है कि यहां पर जिस भी पार्टी या दल की सरकार होती है उसका मुखिया इन भ्रष्ट नौकरशाहों पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा है और आखिरकार इसका खामियाजा मधयप्रदेश और इसकी आवाम को भुगतना पड़ा है।

विगत सात वर्ष पूर्व कांग्रेस के 10 साल के शासनकाल के बाद अराजकता पूर्ण स्थिति में पहुंच चुके प्रदेश को सूबे की 6 करोड़ जनता ने जिस मकसद से कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका था उसकी पूर्ति तूफान की तरह आने और आंधी की तरह जाने वाली उमाभारती भी नहीं कर सकीं। उमा के बाद बाबूलाल गौर ने प्रदेश के मुखिया के तौर पर कमान संभाली। लोगों को उम्मीद जगी कि अतिक्रमण के धुर विरोधी और बुलडोजर मंत्री के नाम से मशहूर बाबूलाल गौर प्रदेश की भ्रष्ट नौकरशाही और भू-माफियाओं पर लगा पाने में सफल रहेंगे, पर ऐसा नहीं हो सका। और यहां भी जनता को निराशा हाथ लगी। समय के साथ उन्हें भी बदल दिया गया। गौर के सीएम रहते प्रदेश की राजनीति में उठे बवाल के बाद भाजपा हाईकमान ने सत्ता की बागडोर सीधो-साधो, किन्तु गंभीर शिवराज सिंह चौहान को सौंपी। किसान पुत्र के नाते प्रदेश की जनता को उम्मीद थी कि इस बेलगाम नौकरशाही पर शिवराज शिकंजा कस सकेंगे। पर यहां भी उनकी उम्मीदों को पंख नहीं लग सके। शिवराज की ठेठ भाषा व लोगों से मिलनसारिता के चलते इस किसान बेटे पर प्रदेश की भोली-भाली जनता ने भी मोहर लगा दी। प्रदेश की जनता तो अपने वादे पर खरी उतरी पर शिवराज इस पर पूरी तरह खरे नहीं उतर सके। और आज भी वह प्रदेश को भ्रष्ट नौकरशाही के जाल से मुक्ति नहीं दिला सके।

प्रदेश की नौकरशाही ने प्रदेश और जनता के विकास के बजाय अपना विकास किया। यह अफसर रातोंरात लखपति से करोड़पति हो गए। सरकार की विभिन्न योजनाओं में पानी की तरह पैसा बहाया गया, पर यह पैसा सूबे की जनता के पास नहीं, बल्कि जन्मों से भूखे इन भ्रष्ट अफसरों के पापी पेट में समा गया। प्रदेश की जनता आज भी बेतहासा बिजली कटौती, अनाश-शनाप बिजली बिल, पानी, सड़क की समस्याओं से जूझ रही है पर इन अफसरों का अन्नदाताओं की इस बर्बादी और बदहाली से कोई लेना-देना नहीं है। उधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वादे तो खूब करते हैं पर जब अफसरों के सामने इन वादों को अमलीजामा पहनाने की बारी आती है तो वह भी क्षणिक रिझा कर रह जाते हैं। कहने को तो मुख्यमंत्री मधयप्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बनाने के लिए विधानसभा का विशेश सत्र और प्रदेश की भ्रष्ट नौकरशाही पर लगाम लगाने के लिए लोक सेवा गारंटी कानून तक बना चुके हैं, पर इस सबके बावजूद प्रदेश की नौकरशाही बेलगाम है।

आए दिन आयकर विभाग, लोकायुक्त और राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) की छापामार कार्रवाई प्रदेश को घुन की तरह निगल रहे इन भ्रष्ट अफसरों की काली करतूतों से पर्दा उठा रही है। हद तो तब हो गई जब सूबे की जनता के हर दुख-दर्द बांटने में माहिर और हर सभा में प्रदेश से भ्रष्ट नौकरशाही, भू-माफिया, खनिज माफियाओं का सफाया करने की कसम खाने वाले मुख्यमंत्री की नाक के नीचे बैठे इन भ्रष्ट अफसरों के बैंक खातों, लॉकरों में ही नहीं, बल्कि रजाई-गद्दों में भी करोड़ों-अरबों रुपए रुई की जगह पर मिले। इससे बड़ी इंतहा और क्या होगी कि इस सबके बावजूद प्रदेश सरकार ऐसे घूखखोर और प्रदेश के खजाने को खोखला कर रहे मातहतों को सजा देने के बजाय उन्हें प्रमोशन, वेतनवृध्दि और स्थानांतरण करने में भी कोई गुरेज नहीं कर रही। दिखावे के लिए कुछ अफसरों के सस्पेंशन आर्डर जरूर किये गए, पर उनका क्या हश्र हुआ यह यहां आकर देखा जा सकता है। बेशर्मी और बेईमानी का चोला पहने यह अफसर यही नहीं रुके और सरकार की छुटपुट कार्रवाई के बाद कोई कोर्ट से स्टे आर्डर ले आ रहा है तो कोई जबरन पदभार ग्रहण कर रहा है।

भ्रष्ट नौकरशाही के सफाये की बात करने वाली प्रदेश सरकार इन भ्रष्ट अफसरों के आगे नतमस्तक है और तमाशा देख रही है। प्रदेश में इन भ्रष्ट अफसरों पर एक बार नहीं बल्कि बार-बार आयकर और लोकायुक्त के छापे पड़ रहे हैं और हर बार लाखों-करोड़ों की काली कमाई सामने आ रही है। प्रदेश में भ्रष्ट अफसरों के सरगना और प्रमुख सचिव रहे जोशी दंपति अरविंद और टीनू जोशी हों, पूर्व विधानसभा अपर सचिव कमलाकांत मिश्र हों, पूर्व स्वास्थ्य संचालक अशोक शर्मा हों या राजेश राजौरा। प्रदेश में ऐसे भ्रष्ट अफसरों की लंबी फेहरिस्त है। इधर कहने को तो हर बार चुनाव घोषणाओं के साथ हर पार्टी के मुख्य मुद्दों में भ्रष्टाचार प्रमुख रूप से शामिल होता है पर यही राजनीतिक दल सत्ता मिलते ही खुद भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं।

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