सितम्बर का महत्व

-लाल कृष्ण आडवाणी

व्यक्तिगत रुप से आज (12 सितम्‍बर) का दिन मेरे लिए अविस्मरणीय है। ठीक इसी दिन 1947 में मैंने अपना जन्मस्थान कराची छोड़ा था। इन पिछले 63 वर्षों में, मैं सिर्फ दो बार कराची जा सका- पहली बार 1978 में और दूसरी बार 2005 में।

पाकिस्तान के जनरल मुशर्रफ दिल्ली में पैदा हुए। जब 2001 में वह दिल्ली आए तो स्वतंत्रता के पश्चात से यह उनकी पहली यात्रा थी। इसका उल्लेख मैंने राष्ट्रपति भवन में उनसे हुई पहली बातचीत में किया था।

मैंने कहा था ”क्या आपको दुर्भाग्यपूर्ण नहीं लगता कि 1947 के बाद के पांच दशकों में आप पहली बार अपने जन्मस्थान आ सके और मैं भी अपने गृहनगर कराची भी एक बार जा सका हूं (मेरी दूसरी यात्रा इसके बाद हुई थी) !”

जनरल के साथ मेरी पहली मुलाकात में हमारे बीच कराची के सेंट पेट्रिक हाई स्कूल, जहां हम दोनों की पढाई हुई, के बारे में पुरानी यादें ताजा करने से कुछ निकटता बढ़ी परन्तु मेरा यह सुझाव कि पाकिस्तान 1993 में मुंबई के बम विस्फोटों के मुख्य आरोपी (और भगोड़े) दाऊद इब्राहिम को यदि भारत को सौंप दे तो दोनों देशों के सम्बन्धो के बीच अप्रत्याशित मोड़ आ सकता है, ने माहौल को थोड़ा तनावपूर्ण बना दिया जिसके चलते जनरल मुशर्रफ ने तुरन्त दोहराया ”मि. आडवाणी, मैं आपको बताना चाहता हूं कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में नही है।”

इस मुलाकात के दौरान मौजूद भारत और पाकिस्तान के लगभग एक दर्जन अधिकारियों में से प्रत्येक जानता था कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने एकदम असत्य बोला था।

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मेरे अपने जीवन में सितम्बर महीने का एक और महत्व है। जैसाकि मैं अक्सर कहा करता हूं कि यदि कोई एक व्यक्ति है जिसके साथ मैं सीधे जुड़ा रहा और जिसे मैं अपनी सभी राजनीतिक गतिविधियों के लिए एक आदर्श ‘रोल मॉडल‘ मानता हूं और वे हैं पण्डित दीनदयाल उपाध्याय। उनका जन्मदिवस भी 25 सितम्बर को है। 1990 में जब मैने सोमनाथ से अयोध्या, जहां 30 अक्टूबर को कार सेवा करने की घोषणा हुई थी, तक की रथयात्रा करने का निर्णय किया तो मैंने इसे 25 सितम्बर से शुरु किया। मैं यह यात्रा पूरी नहीं कर सका। 23 अक्तूबर को बिहार के समस्तीपुर में मुझे गिरफ्तार कर हेलीकॉप्टर से मसानजोर (दुमका जिला) में बंदी बना कर रखा गया जो बिहार -पश्चिम बंगाल सीमा पर स्थित है।

1990 से, मैं प्रत्येक वर्ष 25 सितम्बर को सोमनाथ जाकर बारह ज्योर्तिलिंगों में से प्रमुख भगवान सोमनाथ का आशीर्वाद लेता रहा हूं। इसी मास में मुझे फिर इस तिथि को वहां जाना है। इस वर्ष मेरी राम रथ यात्रा, जो मेरे जीवन की एक उल्लेखनीय घटना है, की 20वीं वर्षगांठ है।

क्या उल्लेखनीय संयोग है कि गत् सप्ताह इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने घोषित किया है कि अयोध्या विवाद में स्वामित्व से सम्बन्धित मुकदमे पर पीठ का फैसला 24 सितम्बर, मेरी सोमनाथ यात्रा की पूर्व संध्या पर सुनाया जाएगा।

(अयोध्या विवाद) स्वामित्व सम्बन्धी अनेक मुकदमों के सम्बन्ध में उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ के निर्णय की सभी आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे हैं। कुछ दिन पूर्व संसदीय दल की बैठक में मैंने सभी सांसदों को सलाह दी थी कि वे संभावित फैसले के बारे में किसी अटकलबाजी में न फंसे और जो भी फैसला आए उस पर पार्टी की प्रतिक्रिया सधी और सहज हो। सामान्यतया पार्टीजनों ने इस सलाह को माना है।

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व्यक्तिगत रुप से मेरे लिए 9/12 और 9/25 भले ही महत्वपूर्ण होगें लेकिन दुनिया के लिए इस महीने की 9/11 यानि 2001 की 11 सितम्बर की तिथि से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ और नहीं हो सकता।

इससे एक वर्ष पूर्व, 14 सितम्बर, 2000 को प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त अधिवेशन के अपने संबोधन में कहा था:

”हमारे पडोसी से बढ़कर कोई क्षेत्र आतंकवाद का इतना बड़ा स्त्रोत नहीं है। वास्तव में, हमारे पडोस में – इस इक्कीसवीं शताब्दी में – केवल धर्म युध्द को ही नया जामा नहीं पहनाया गया है, बल्कि उसे राज्य की नीति के उपकरण के रुप में घोषित भी कर दिया गया है। दूरी और भूगोल किसी देश को अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से सुरक्षा नही प्रदान करते। आप जानते हैं और मैं जानता हूं: यह बुराई सफल नहीं हो सकती परन्तु अपनी असफलता में भी यह अवर्णनीय पीड़ा पहुंचा सकती है।”

वाजपेयीजी की टिप्पणियां कैसी भविष्यदर्शी थीं!

आतंकवाद के घृणित इतिहास में, अपहृत विमानों को मिसाइलों के रुप में उपयोग कर न्यूयॉर्क के वर्ल्ड टे्रड सेन्टर और पेंटागन पर किए गए घातक आतंकवादी हमलों का कोई साम्य नहीं है, जिसमें लगभग 3000 लोग मारे गए और जिसमें एक सौ से अधिक भारतीय थे।

एक दूसरे अपहृत विमान से व्हाईट हाऊस को निशाना बनाया जाना था, परन्तु विमान में सवार यात्रियों के साहस और देशभक्ति के चलते आतंकवादी मंसूबे सफल नहीं हो सके और विमान पेनसिलवानिया के ग्रामीण क्षेत्र में गिर कर नष्ट हो गया।

जनवरी 2002 में, मैं संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा पर गया था। न्यूयॉर्क में, मैं 9/11 के स्मारक ‘ग्राउंड जीरो‘ गया और मानव जाति के इतिहास के सबसे भयंकर आतंकवादी हमले के सम्मुख अमेरिका के लोगों के अडिग संकल्प की प्रशस्ति की।

बाद में, वाशिंगटन डीसी में स्थित भारतीय दूतावास में एक संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मैंने भारत और अमेरिका को लोकतंत्र के दो स्तंभ (टि्वन टावर्स आफ डेमोक्रेसी) निरुपित किया और कहा: ”आतंकवादियों ने भले ही स्टील और सीमेंट से बने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ढांचो को ध्वस्त कर दिया हो, परन्तु वे हमारे दोनों लोकतंत्रों की भावना और ढांचों को कभी हानि नहीं पहुंचा सकते।”

1 COMMENT

  1. अदव्वानिजी के इस सितम्बर प्रेम वाले आलेख को प्रवक्ता में छपने का मतलब तो मेरी समझ में नहीं आया.ऐसे अदवानीजी भारत के एक बड़े नेता हैं और उनके द्वारा कही और लिखी कोई भी चीज उनके अनुयायिओं के लिए पूजनीय हो सकती है,पर जहां तक आम पाठक का प्रश्न है उसे इससे क्या लाभ होगा यह मेरी समझ से परे है.मेरे विचार से यह आलेख प्रवक्ता ब्यूरो के उस उदघोशना के भी विरुद्ध जाता है जो वह प्रत्येक आलेख के पहले और लेखक परिचय के ऊपर करता है.ऐसे सम्पादकजी की मर्जी.

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