आज भी बहती है
रहते थे लोग वहाँ
आज भी रहते हैं
गलियाँ और सड़कें
वहाँ तब भी थी
आज भी हैं
मंदिर से घंटी
और मस्जिद से अजान
तब भी सुनाई देती थी
आज भी सुनाई देती है ।
बावजूद इनके
आज कहीं दिखता नहीं
राम का मंदिर
न बाबरी मस्जिद
दोनों के बीच का प्रेम
डूब गया सरयु में
जबकि राम-रहीम के लोग
एक साथ उसी माटी में
खेलते-कुदते बड़े हुए थे
आज रहीम को भागना पड़ा है
और राम डूब गये हैं सरयु में
मलबे की माटी ढोते-ढोते ।