अरूण पाण्डेय
नई दिल्ली । तमाम कोशिशों के बाद दिल्ली में यौन उत्पीडन कम नही हो रहा है सरकार प्रयास कर रही है लेकिन जिस तरह से ग्राफ दिन ब दिन बढ रहा है उसे देखकर नही लगता कि उत्पीडन की संख्या कम होगी। पिछले दिनों इसी को लेकर एक कार्यक्रम हुआ जिसमें उत्पीडन के सभी पक्षों पर चर्चा हुई और कुछ संस्थाओं अपने अपने सुझाव दिये। एक रिपोर्ट ‘‘फोस्टरिंग सेफ वर्कप्लेसेस’’ महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम के संबंध में कार्यबल की बदलती गतिशीलता की पहचान करने के लिए एक अध्ययन है।
यह रिपोर्ट इस बात को समझने का प्रयास है कि इस मुद्दे से निबटने के लिए हम कितनी दूर आए हैं। क्या कम्पनियां कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए तैयार हैं? किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है अब भी कंपनियों में अनिश्चितता, सावधानी और आत्मनिरीक्षण का वातावरण है। सर्वेक्षण दिखाता है कि 31ः उत्तरदाताओं ने अधिनियम (जो शिकायतों के समाधान के लिए आंतरिक शिकायत समिति का गठन किया जाना अनिवार्य बनाता है) के पास किए जाने के बाद भी इसे लागू ही नहीं किया। अनुपालन न करने वालों में 36 प्रतिशत भारतीय कंपनियों हैं जबकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मामले में 25 प्रतिशत का आंकड़ा थोड़ा बेहतर है। 40 प्रतिशत उत्तरदाताओं के मामले में आंतरिक शिकायत समिति सदस्यों को प्रशिक्षण दिया जाना अब भी बाकी है।
सर्वेक्षण में शामिल 35ः उत्तरदाताओं को इस बात की जानकारी नहीं थी कि आंतरिक शिकायत समिति गठित करने के संबंध में कानून का अनुपालन नहीं करने पर कैसी दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान है। हैरानी की बात है कि इस मामले में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ज्यादा अनभिज्ञ पाया गया, करीब 38ः कंपनियों को इस बात की जानकारी नहीं थी। 44 प्रतिशत उत्तरदाता संगठनों ने अपने परिसर में यौन उत्पीड़न की स्थिति में दंडात्मक कार्रवाई से जुड़े प्रावधानों और चेतावनी को प्रदर्शित नहीं किया था। एसएमई सेक्टर में यह आंकड़ा 71प्रतिशत पाया गया, जहां कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामलों में कार्रवाई की चेतावनी को दर्शाया नहीं गया था।
क्या है रिपोर्ट:
राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) के अनुसार कार्यस्थल पर महिलाओं के उत्पीड़न में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2013 में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की 249 शिकायतों की तुलना में 2014 में यह संख्या दोगुनी होकर 526 तक पहुंच गई।जबकि यह नियोक्ता की जिम्मेदारी है कि वह महिला कर्मियों को एक सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराए। आंतरिक शिकायत समिति का गठन, यौन उत्पीड़न की दंडात्मक परिणामों को कार्यस्थल पर प्रदर्शित करना, आईसीसी के सदस्यों के लिए ओरिएंटेशन कार्यक्रम और कर्मचारियों के लिए जागरूकता कार्यक्रम की कंपनियो नियोक्ता द्वारा व्यवस्था करना अधिनियम के तहत अनिवार्य बनाया गया है।
क्या है नियम:
कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 का उद्देश्य कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने, रोकथाम करने और शिकायतों के निवारण और इससे जुड़े मामलों के लिए सुरक्षा प्रदान करना है। अधिनियम के तहत निर्धारित प्रावधानों का उद्देश्य सभी महिला कर्मचारियों के हितों की रक्षा करना और सुशासन के तरीकों को अपनाना है।
मजबूत प्रतिबद्धता का आह्वान:
संगठनों को अपने कर्मियों को उचित प्रशिक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता है जिससे कि वह कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की प्रकृति और विस्तार के बारे में सजग रहें। उन्हें इन मामलों में शून्य सहिष्णुता नीति की वकालत की जरूरत और साथ ही साथ इस तरह की घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। यदि संगठन बहुराष्ट्रीय कंपनी है तो एक वैश्विक प्रशिक्षण मॉड्यूल संभवतः पर्याप्त नहीं हो, ऐसे में एक स्थानीय ट्रेनिंग माड्यूल आवश्यक है जो भारत में लागू कानूनों के अनुरूप हो।
सजग जांच तंत्र का उपयोग:
दुर्भावनापूर्ण शिकायतों भी समय-समय पर सामने आती हैं। यह आवश्यक है कि संगठन ऐसी शिकायतों की एक विस्तृत जांच करे और जहां भी इसे दुर्भावना से प्रेरित पाया जाए, शिकायत कर्ता के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई हो जिससे दुरुपयोग को रोकना सुनिश्चित हो। सभी प्रबंधको और निरीक्षकों को निर्देश दिया जा सकता है कि वह कार्यस्थल पर कड़ी निगरानी रखें और कुछ भी अप्रिय घटने पर इसकी सूचना वरिष्ठ प्रबंधन को तुरंत दें।
एक तंत्र बनाने की पहल:
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न में चिंता का एक प्रमुख क्षेत्र इसकी अवधारणात्मक प्रकृति है, विभिन्न व्यक्तियों द्वारा अलग ढंग से देखा जा सकता है। ये अलग अलग राय कई कारणों से हो सकती है, जिसमें संवाद हीनता भी शामिल है। इसलिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक कर्मी को इस बात के लिए शिक्षित किया जाए कि किस घटना को यौन उत्पीड़न माना जा सकता है।
मुद्दों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन:
आंतरिक शिकायत समिति को कई तरह की शिकायतें मिलती हैं जो प्रकृति और गहनता में भिन्न होती हैं। यह कुछ बुनियादी शिकायतें जैसे कि अवांछित ध्यान देने जैसे कि फूल और उपहार देने से लेकर गंभीर उत्पीड़न जैसे कि अपमानजनक कार्य संबंध या शक्ति के दुरुपयोग तक हो सकती हैं। ये दैनिक आधार पर मानसिक और भावनात्मक संकट को जन्म दे सकती हैं। प्रत्येक मामला अपने विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के साथ आता है और आंतरिक शिकायत समिति द्वारा तदनुसार इनसे निपटा जाना चाहिए।
आंतरिक शिकायत समिति:
इसके लिए नियमित रूप से कौशल निर्माण कार्यशालाओं का आयोजन, सबसे कनिष्ठ कर्मचारी या ठेकेदार तक जागरूकता सत्र, एक गैर पक्षपातपूर्ण और निष्पक्ष आंतरिक शिकायत समिति ,आंतरिक शिकायत समिति द्वारा समय पर तेज कार्रवाई, नियोक्ता द्वारा अनुचित व्यवहार को रोकने की पहल और सही लहजा कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का ढंग से मुकाबला करने के कुछ तरीकों में से हैं जिन्हें संगठन प्रभावी तरीके से लागू कर सकते हैं। जन चेतना बढ़ने के बावजूद, भारतीय कार्यस्थलों में यौन उत्पीड़न का प्रकोप जारी है। यदि इसे यूं ही छोड़ दिया जाए तो यह न केवल कर्मी के जीवन और कैरियर के लिए भयावह हो सकता है, बल्कि यह उत्पादकता और कर्मियों के मनोबल को कमजोर कर सकता है।