म.प्र. विधानसभा का अनुकरणीय व शालीन अध्याय

प्रवीण गुगनानी

यदि भारतीय राजनीति में लोकतंत्र को एक राजनैतिक धर्म माने तो संसदीय सदनों और विधानसभाओं को इस धर्म का मंदिर मानने में कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए, और संयोग वश भारतीय राजनैतिक परिवेश में ऐसी मान्यताएं स्थापित व सर्वमान्य भी है. संसदीय सदनों, विधानसभाओं को भले मंदिर माने किन्तु प्रक्रियाओं में और पक्ष विपक्ष की राजनीति में यहाँ विवादों का जन्म लेना, उस पर खूब गर्मागर्म बहस होना, आपसी खींचतान होना, तर्क वितर्क होना, आरोप प्रत्यारोप लगना और श्रेय लेने देने से लेकर कटाक्ष और व्यंग्य की तलवारें चलाना भी स्वाभाविक प्रक्रिया माना जाता है. इस तारतम्य में म.प्र. विधानसभा का अपना गौरव शाली और समृद्ध इतिहास रहा है.

म.प्र. विधानसभा के गौरवशाली इतिहास पर यदि हम गौर करें तो स्वाभाविक और बरबस ही हमारा ध्यान इसकी समृद्ध परम्पराओं की ओर चला जाता है.

पिछले दिनों म.प्र. विधानसभा के इतिहास में एक विलक्षण अध्याय जुड गया जब दो विपक्षी विधायकों की पहले तो बर्खास्तगी की गई और फिर विशेष विधानसभा सत्र बुलाकर बर्खास्तगी रद्द करने का प्रस्ताव भी पारित किया गया.

गत १७ एवं १८ जुलाई का दिन म.प्र. विधानसभा के लिए शर्मनाक एवं काले दिवस के रूप में जाना जाएगा जब उद्दंडता, लापरवाही, एवं अनुशासन तोड़ने के आरोप में विधानसभा अध्यक्ष ने उपनेता प्रतिपक्ष राकेश चौधरी एवं विधायक कल्पना परुलेकर की सदस्यता रद्द कर उन्हें बर्खास्त करने का प्रस्ताव चुनाव आयोग को भेज दिया. १७ जुलाई को स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा की मांग को लेकर विधानसभाध्यक्ष श्री रोहाणी के कक्ष के सामने नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के नेतृत्व में बैठ गए और इस घटना क्रम की परिणति विधानसभा में विभिन्न अशोभनीय व अविस्मरणीय पड़ावों से होती हुई दो विधायकों की सदस्यता समाप्ति पर जाकर खत्म हुई.

इस घटनाक्रम में व इसके पूर्व की देश भर की संसदीय व विधानसभा सदस्यता समाप्ति के प्रकरणों में यह प्रकरण कई प्रकार से विशिष्ट व इतिहास बनने की ओर अग्रसर है. इस प्रकरण में दो सदस्यों की सदस्यता बहाली का प्रस्ताव चुनाव आयोग को भेजकर वर्तमान विधानसभा में अध्यक्ष की आसंदी पर विराजमान ईश्वरदास रोहाणी व संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा के विशाल ह्रदय, सामंजस्य पूर्ण कार्यपद्धति व लोकतंत्र की आत्मा में विश्वास प्रकट करने का जो अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है वह देश भर अन्यत्र कहीं विद्यमान नहीं है. बर्खास्त दोनों सदस्यों ने जब नेता प्रतिपक्ष अजयसिंह के कुशल व सौजन्यशील नेतृत्व में विधानसभा अध्यक्ष के सम्मुख खेद प्रकट किया व अपने आचरण पर शर्मिंदगी प्रकट की व रोहाणी जी ने उसे परिस्थितिजन्य घटना मानकर उन्हें क्षमा कर दिया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंग चौहान ने भी इस पूरे प्रकरण में अतिशय सौहाद्रता दिखाई तो निश्चित ही संसदीय विवेक, सौजन्य, शालीनता, सद्भाव व सामंजस्य का एक नया इतिहास म.प्र. विधानसभा में स्थापित हो गया. म.प्र. के द्विदलीय राजनैतिक परिदृश्य के दोनो दलों ने विशेषतः भाजपाई मुख्यमन्त्री शिवराज सिंग, संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा और विधानसभाध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह सहित दोनों बर्खास्त विधायकों सभी ने विशाल किन्तु विवेकशील ह्रदय का परिचय देते हुए इस प्रकरण का सुखद पटाक्षेप कर दिया. इसके पूर्व भी देश के संसदीय इतिहास में सदस्यों की बर्खास्तगी के अनेक मामले हुए है. १९५१ में लोकसभा के सदस्य मुद्गल को, १९७७ में इंदिरा गाँधी को, २००५ में लोकसभा के दस एवं राज्यसभा के एक सदस्य को बर्खास्त किया गया था एवं १९५२ में म.प्र. विधानसभा के ही पंढरीनाथ दत्त व १९६७ में यशवंत मेघवाल व १९७८ में सुरेश सेठ को अनुशासन हीनता के आरोप में बर्खास्त किया गया किन्तु इन मामलो में किसी भी सदस्य की सदस्यता बहाल नहीं की गई थी.

वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा व नेता प्रतिपक्ष सिंह ने बर्खास्त विधानसभा सदस्यों के साथ मिलकर जो सामंजस्य बैठाया और सुन्दर व सकारात्मक अध्याय को लिखते हुए जिस प्रकार केवल इस प्रस्ताव के लिए विधानसभा का विशेष सत्र आहूत किया व इन सदस्यों के क्षमा मांगने के बाद चुनाव आयोग को सदस्यता बहाली का प्रस्ताव भेजा है वह भारतीय संसदीय व विधानसभा के इतिहास में सर्वथा नया किन्तु सुखद अध्याय है. आशा है चुनाव आयोग भी नयी संसदीय शैली के इस प्रकरण पर सकारात्मक रवैया अपनाकर विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी और संसदीय कार्यमंत्री की जोड़ी को इस विधानसभा को एक स्वर्णिम इतिहास और लोकतंत्र की आत्मा में विश्वास के नए अनोखे इतिहास को लिखने का अनुमोदन करेगा.

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