इस हमाम में सब नंगे है……

संसद का शीतकालीन सत्र बर्बाद करने वाले टू जी स्पेक्ट्रम से लेकर सीवीसी थॉमस की नियिुक्त जैसे मामलो पर भी विपक्ष ने प्रधानमंत्री का इस्तीफा माँगने से परहेज किया। लेकिन “नोट के बदले वोट’’ का जिन्न विकिलीक्स के खुलासे के बाद एक बार फिर बोतल से बाहर आकर सरकार के सिर पर मंडराने लग गया है। परमाणु करार पर 14वी लोकसभा में यूपीए सरकार से मात खा चुके विपक्ष को अब 15वी लोकसभा में उसे घेरने का यह अच्छा मुद्दा मिला है जिसे वो हाथ से जाने नही देना चाहता है। विकिलीक्स के खुलासे के बाद विपक्ष ने पूरी एकजुटता के साथ लोकसभा और राज्यसभा में प्रधानमंत्री मनमोहन सिॅह के ब्यान और इस्तीफे की मांग की। दरअसल जुलाई 2008 में एटमी करार के मुद्दे पर लेफ्ट के सर्मथन खीचने के बाद अल्पमत में यूपीए सरकार के लिये राष्ट्रीय लोकदल के सांसदो में से हर एक को दस दस करोड़ रूपये बतौर रिश्वत देकर सरकार द्वारा बहुमत जुटाने की कोशिश के विकिलीक्स के खुलासे के बाद देश में एक बार फिर सियासी हल्खो में बवंडर खडा हो गया। इस प्रकार सांसदो की खरीद फरोक्त से बहुमत हासिल कर सरकार को बचाने और चलाने से एक ओर जहॉ पूरे विश्व में भारत की छवि खराब हुई है वही दूसरी ओर भारतीय लोकतंत्र भी कलंकित हुआ है।

यू तो इस फार्मूले को हर दौर में सरकार के गठन के लिये अपनाया गया है। कभी पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव पर भी सांसदो की खरीदफरोख्त के आरोप लगे थे। मधु कोडा़, अशोक चव्हाण, ए राजा, सुरेश मलमाडी, पृथ्वी राज चव्हाण सब अपने अपने क्षेत्र के माहिर है। भ्रष्टचार के तमाम आरोपो के बावजूद इनके माथे पर शिकन तक नही आ रही आखिर क्यो। इस की एक वजह हमारा लचीला कानून और दूसरा कारण ये तमाम लोग राजनीति में इतने रच बस गये है कि इन्हे सॉप सीढ़ी  के खेल की तरह हर खाने में चलना और बचना आ गया है। ये लोग तमाम दॉव पेंच से पूरी तरह वाकिफ है या यू भी कह सकते है की राजनीति के इस हम्माम में सारे नंगे है जिस का फायदा ऐसे कुछ लोग उठा रहे है। आजादी के बाद दो तीन दशक तक तो सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा पर इस के बाद धीरे धीरे राजनीति और राजनेताओ के चुनने में आम आदमी भटकने लगा। नतीजा राजतंत्र लूटतंत्र में बदल गया राजनेता संसद भवन पहुचने के लिये साम, दाम, दण्ड, भेद वाली चाणक्य नीति अपनाने लगे। चोर लुटेरो ने खद्दर पहननी शुरू कर दी और देश में लूटपाट का बाजार गर्म हो गया। रक्षक भक्षक हो गये संसदीय लोकतंत्र की आड़ लेकर कुछ नेताओ ने देश को लूट कर अन्दर ही अन्दर खोखला कर दिया आर्थिक तरक्की के मामले में नए मुकाम बननाने का दावा करने वाला भारत आज भ्रष्टाचार, घोटालो, और काले धन के मामले में नित नये नये कीर्तिमान बना रहा है। आज माननीय उच्च न्यायालय, हमारी सरकार, देश के वरिष्ठ अर्थशास्त्री, प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, सरकारी नुमाईन्दे व विपक्ष सहित पूरा भारत काले धन की समस्या से चिंतित है कि आखिर किस प्रकार इस समस्या से निबटा जाये साथ ही सरकार द्वारा इस मसले पर भी जोर आजमाईश की जा रही है की आखिर सरकार उन लोगो के नामो को किस प्रकार सार्वजनिक करे जिन भारतीयो के नाम विदेशी बैंको में कुबेर का खजाना जमा है। पर इस सब के साथ ही सरकार के सामने इक बडी चिंता ये भी आ रही है कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद ब रहा है, देश भी संपन्न हो रहा है पर देश का एक बडा वर्ग निरंतर गरीब होता जा रहा है दाने दाने को मोहताज होता जा रहा है। कल कारखानो में कर्मचारियो की छटनी हो रही है देश के कर्णधार नौजवान डिग्री लिये एक आफिस से दूसरे आफिस नौकरी के लिये चक्कर काट रहे है हर जगह नोवेकंसी का बोर्ड लगा है। देश में संसाधन बे है हम मजबूत हुए है फिर भी ऐसा आखिर ऐसा क्यो हो रहा है। देश के बडे बडे अर्थशास्त्री सोच सोचकर परेशान है। दरअसल इस मुद्दे पर देश के कुछ प्रभावशाली अर्थशास्त्रीयो का ये मानना है कि देश के कुछ प्रभावशाली और भष्ट लोगो ने देश का एक बडा धन विदेशी बैंको में जमा करा रखा है। जिस पैसे से भारत तरक्की करता, कल कारखाने तरक्की के गीत गाते, जिस पैसे से स्वास्थ्य सेवाए देशवासियो को मिलती, ग्रामीण इलाको में सडको का जाल बुना जाता आज वो पैसा स्विस बैंक की कालकोठरी में बंद है और सरकार चुप है। राष्ट्र संघ में इस मुद्दे पर वर्षो चर्चा हुई पर नतीजा कुछ नही।

विकिलीक्स के खुलासे के बाद 18 मार्च 2011 को लोकसभा को दिये अपने ब्यान पर दोनो सदनो में हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिॅह ने कहा कि उन की सरकार इन आरोपो को पूरी तरह खारिज करती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि नोट के बदले वोट मामले की जॉच लोकसभा की एक समिति ने की थी और उसकी सिफारिश के आधार पर ये मामला आगे जॉच के लिये दिल्ली पुलिस और अपराध शाखा को सौपा गया था जिस की जॉच जारी है। लेकिन अब तक संसदीय समिति को ऐसा कोई ठोस सबूत नही मिला जिस के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि कोई रिश्वत ली या दी गई है। प्रधानमंत्री के दोनो सदनो में दिये इस ब्यान के बाद खूब हंगामा हुआ शोर शराबा हुआ और सच हमेशा के लिये दफन हो गया। क्यो कि संसद के दोनो सदनो में सांसद खरीद फरोख्त कांड की पुष्टि करने वाले विकिलीक्स खुलासे पर लम्बी बहस और तर्क और वितर्क के बावजूद भी यह उजागर नही हो सका कि 22 जुलाई 2008 में लोकसभा में मनमोहन सरकार द्वारा रखे गये विश्वास प्रस्ताव को 545 सदस्यो की इस सभा में 275 मत किस प्रकार मिले जबकि सदन में यूपीए1 सदस्यो की संख्या केवल 231 थी और उसे घोषित रूप से सर्मथन देने वाले समाजवादी पार्टी सांसदो की संख्या 36 थी इस के अलावा 8 सदस्यो वाले वामपंथी मोर्च द्वारा अमेरिका से परमाणु करार के मुद्दे पर सर्मथन वापस लेने से यूपीए1 स्पष्ट रूप से अल्पमत में आ गई थी। यूपीए1 की गठबंधन सरकार के हर सहयोगी ने सर्मथन के नाम पर सरकार से जमकर ब्लैकमेलिंग की और मलाईदार मंत्रालय की मलाई खाई। हमारे देश के भोले भाले प्रधानमंत्री जी चाहे कितनी सफाई दे पर ये तो मानना ही पेगा कि यूपीए1 और यूपीए2 में फैले तमाम भ्रष्टाचार में उनका दामन साफ नही

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