आज के परिप्रेक्ष्य में सार्वजनिक उपक्रमों को देश के आर्थिक विकास में बढ़ानी होगी अपनी भूमिका

 

भारत द्वारा वर्ष 1947 में प्राप्त की गई राजनैतिक स्वतंत्रता के बाद मुख्य रूप से देश के आर्थिक विकास को गति देने के उद्देश्य से देश में कई सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना की गई थी। हालाँकि, उस वक़्त सार्वजनिक उपक्रमों को स्थापित करने के पीछे कई अन्य   तात्कालिक कारण भी थे यथा निजी क्षेत्र, ऐसे उद्योगों की स्थापना नहीं कर सकता था जिनमे पूँजी की बहुत अधिक आवश्यकता हो, पूँजी निवेश पर लाभ की प्राप्ति अनिश्चित हो, जहाँ आधुनिक तथा नवीनतम तकनीक की ज़रूरत हो एवं उत्पादन की प्रक्रिया बहुत लम्बी हो। इस प्रकार, देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक उपक्रमों ने अपनी भूमिका का निर्वहन वर्ष 1947 के बाद से ही प्रारम्भ कर दिया था। देश को इसके कई फ़ायदे भी हुए  हैं।

 

प्रथम, सार्वजनिक क्षेत्र देश में सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करने वाला व्यवस्थित क्षेत्र बन गया है। भारत में उद्योग एवं सेवा क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में से एक बहुत बड़ा वर्ग सार्वजनिक क्षेत्र में कार्यरत है।

 

द्वितीय, देश में पर्याप्त मात्रा में मौजूद प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में सार्वजनिक उपक्रमों ने मुख्य भूमिका निभाई है और देश के सकल घरेलू उत्पाद में अपने योगदान को बढ़ाया है।

 

तृतीय, सार्वजनिक उपक्रमों ने देश में वस्तुओं के आयात का स्थानापन्न खोजकर देश को कई क्षेत्रों में आत्म निर्भर बनाया है तथा देश से वस्तुओं के निर्यात को प्रोत्साहित कर देश के लिए विदेशी मुद्रा का अर्जन भी किया है।

 

चतुर्थ, सार्वजनिक क्षेत्र पूँजी निर्माण के महत्वपूर्ण यंत्र माने जाते हैं चूँकि यह लाभ मूल्य नीति पर आधारित होते हैं। अतः सार्वजनिक उपक्रमों ने देश में पूँजी निर्माण के लिए आवश्यक वातावरण उत्पन्न किया है एवं पूँजी निर्माण को जन्म दिया है।

 

पंचम, देश में कई सार्वजनिक इकाईयों की स्थापना पिछड़े क्षेत्रों में की गई है जिससे इन क्षेत्रों में भी रोज़गार के अवसर निर्मित हुए हैं। यहाँ तीन इस्पात परियोजनाओं, जिन्हें दुर्गापुर, राउरकेला एवं भिलाई में स्थापित किया गया एवं इन इलाक़ों के आसपास के क्षेत्रों में औद्योगिकीकरण सम्भव हो सका, का उदाहरण लिया जा सकता है। इस प्रकार, देश में संतुलित आर्थिक विकास लाने में भी सार्वजनिक उपक्रमों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साथ ही, देश में बुनियादी ढाँचे को विकसित करने में भी सार्वजनिक उपक्रमों ने अपनी महती भूमिका निभाई है। 

 

देश में बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध कराए जाने में तो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के योगदान का वर्णन यहाँ विशेष रूप से किया जा सकता है। आज से लगभग 51 वर्ष पूर्व, दिनांक 19 जुलाई 1969 को देश की उस समय की 14 सबसे बड़ी निजी क्षेत्र की बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। बाद में, वर्ष 1980 में भी 8 अन्य निजी क्षेत्र की बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। शुरू में तो देश के शहरी इलाक़ों के साथ साथ ग्रामीण इलाक़ों में भी शाखाओं का जाल फैलाया गया। ऐसे ऐसे गावों में सरकारी क्षेत्र के बैंकों की शाखाएँ खोली गई थी, जहाँ पुलिस थाना भी उपलब्ध नहीं था। देश के सुदूर क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध करायी गईं। तब से, देश के आर्थिक विकास में, सरकारी क्षेत्र के बैंकों का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है। विशेष रूप से, ग्रामीण क्षेत्रों में, सरकारी क्षेत्र के बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों एवं कोआपरेटिव क्षेत्र के बैंकों का योगदान सदैव याद किया जाएगा। इस दौरान भारतीय बैंकिंग उद्योग में कई तरह के परिवर्तन देखने को मिले।  बदलाव की इस बयार ने पिछले छह वर्षों में तीव्र गति पकड़ी है। आज ग्रामीण क्षेत्रों में न केवल बैंकों की शाखाएँ मौजूद हैं बल्कि कई ग्रामीण तो आज मोबाइल बैंकिंग एवं नेट बैंकिंग का इस्तेमाल भी करने लगे हैं। इस दौरान, देश के बैंकों में जन धन योजना के अंतर्गत कुल 38.73 करोड़ से अधिक नए जमा खाते खोले गए हैं, इन खातों का एक बहुत बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में ही खोला गया है। आज इन खातों में 1.33 लाख करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि जमा हो गई है। एक माह में, जन धन योजना के अंतर्गत, 18 करोड़ जमा खाते खोलने का विश्व रेकार्ड भी भारत के नाम पर ही दर्ज है।

 

वर्तमान में, भारतवर्ष में बैंकिंग उद्योग एक बार फिर परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है। डिजिटल बैंकिंग के माध्यम से भारतीय बैंकिंग उद्योग में बहुत बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं। बैंक की शाखाओं की कार्यशैली में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है। कल्पना कीजिए उस समय की, जब सरकारी क्षेत्र के बैंक की शाखाओं में, अपना कार्य करवाना तो छोड़िए, इन शाखाओं में घुसना भी अपने आप में एक मुश्किल भरा कार्य हुआ करता था। भारी भीड़ का सामना करना होता था। किंतु, आज बैंकिंग व्यवहार के लिए बैंक की शाखा में जाने की आवश्यकता ही नहीं है। बल्कि, डिजिटल बैंकिंग के माध्यम से आप अपने घर बैठे ही बैंकिंग व्यवहार कर सकते हैं। मोबाइल बैंकिंग के बाद तो यह कहा जाने लगा है कि बैंक आपके ज़ेब में है।

 

इसी प्रकार, अभी हाल ही में कोरोना वायरस महामारी के दौर में जब कई भारतीय अन्य देशों में फँस गए थे, ऐसे समय में भी देश के सार्वजनिक उपक्रम एयर इंडिया ने ही इन भारतीय प्रवासियों की मदद की एवं विशेष विमान चलाकर विदेशों में फँसे हज़ारों भारतीयों को देश में सकुशल वापिस लाया गया। अतः देश में जब जब आपदा की स्थिति निर्मित हुई है तब तब सार्वजनिक उपक्रमों ने आगे आकर देश की जनता की मदद की है।

  

वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था मुख्यतः तीन प्रकार की पाई गई है। पूँजीवादी, समाजवादी एवं मिश्रित। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में राज्य का हस्तक्षेप नगण्य सा होता है, जैसे, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, आदि। समाजवादी अर्थव्यवस्था में राज्य का महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप होता है, जैसे, रूस एवं चीन। जबकि मिश्रित अर्थव्यवस्था में राज्य एवं निजी क्षेत्र दोनों का ही हस्तक्षेप रहता है, जैसे भारत। अर्थव्यवस्था के स्वरुप के आधार पर ही नियोजन का स्वरुप निर्धारित होता है। भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्यतः मिश्रित अर्थव्यवस्था की प्रकृति की है लेकिन वर्ष 1990 तक विकास दर की सीमित सफलता और भूमंडलीकरण के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्ष 1991 के बाद से ही निजीकरण किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। वर्तमान में सार्वजनिक उपक्रमों के घाटे की प्रवृत्ति के कारण इनका निजीकरण किया जाना, देश में विचार विमर्श का एक मुख्य मुद्दा बना हुआ है।

 

सामान्यतः यह माना जाता है कि व्यापार एवं व्यवसाय करना राज्य का काम नहीं है। इसलिये अक्सर यह कहा जाता है कि देश के व्यापार एवं व्यवसाय में सरकार का अत्यंत सीमित हस्तक्षेप होना चाहिये। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का संचालन बाज़ार कारकों के माध्यम से होता है। भूमंडलीकरण के पश्चात् इस प्रकार की अवधारण का और तेज़ी से विकास हो रहा है।

 

इसके अतिरिक्त निजीकरण के पक्ष में कुछ अन्य प्रमुख कारण भी गिनाए जाते हैं। जैसे, सरकार स्वयं को गैर सामरिक उद्यमों के नियंत्रण, प्रबंधन और संचालन के बजाय शासन की दक्षता पर अपना अधिक ध्यान केंद्रित करे। गैर-महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगी सार्वजनिक संसाधनों की बड़ी धनराशि को समाज की प्राथमिकता में सर्वोपरि क्षेत्रों में लगाना चाहिये, जैसे- सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, प्राथमिक शिक्षा तथा सामाजिक और आवश्यक आधारभूत संरचना। अतः वाणिज्यिक जोखिम वाले जिन सार्वजनिक उपक्रमों में करदाताओं का धन लगा हुआ है, को ऐसे निजी क्षेत्र में हस्तांतरित किया जाना चाहिए जिसके संबंध में निजी क्षेत्र आगे आने के लिये उत्सुक और योग्य हैं। वस्तुत: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में लगा धन जनसाधारण का होता है इसलिये कॉर्पोरेट क्षेत्र में लगाए जा रहे अत्यधिक वित्त की मात्रा पर विचार किया जाना अति आवश्यक है।

 

अभी हाल ही में देश की वित्त मंत्री माननीया श्रीमती निर्मला सीतारमन ने देश के सार्वजनिक उपक्रमों में लागू किए जाने हेतु कई आर्थिक सुधार कार्यकर्मों की घोषणा की है। जिसके कारण देश के कई क्षेत्रों में सार्वजनिक उपकर्मों में बड़े स्तर पर समेकन की प्रक्रिया प्रारम्भ होगी एवं कई सरकारी उपक्रमों में विनिवेश की प्रक्रिया भी प्रारम्भ होगी। केंद्र सरकार शीघ्र ही सार्वजनिक उपक्रमों के लिए एक नयी नीति की घोषणा करेगी, जिसके अनुसार ग़ैर सामरिक क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों का साध्यता के आधार पर निजीकरण किया जा सकेगा। उक्त नीति पत्र में उन सामरिक क्षेत्रों का वर्णन भी किया जाएगा जिनमें सार्वजनिक उपक्रमों के बने रहने की आवश्यता होगी।

 

देश में रोज़गार के अधिक से अधिक अवसर उत्पन्न करने एवं देश के आर्थिक विकास को गति देने के लिए सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र दोनों को ही मिलकर अपना भरपूर योगदान देना आज की आवश्यकता है। अभी तक भारतीय अर्थव्यवस्था वैसे भी मिश्रित अर्थव्यवस्था के तौर पर ही कार्य कर रही है अतः सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र दोनों का ही समान महत्व है। परंतु यदि सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के लिए अपना अपना कार्य क्षेत्र निश्चित कर लिया जाए तो देश में उपलब्ध संसाधनों का भरपूर दोहन किया जा सकता है और इन दोनों क्षेत्रों के बीच ओवर्लैपिंग की सम्भावना भी कम हो जाएगी। हाँ, सार्वजनिक क्षेत्र को अपनी दक्षता में सुधार करना आवश्यक होगा ताकि इसे लाभप्रद बनाया जा सके एवं आर्थिक सहायता के लिए इसकी निर्भरता सरकार पर कम से कम होती जाए। साथ ही, सार्वजनिक क्षेत्र को अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी का वहन भी अभी करते रहना होगा क्योंकि देश में अभी इसकी आवश्यकता है। देश में ऐसे कई क्षेत्र हैं जहाँ विकास किए जाने की अत्यधिक आवश्यकता है, ऐसे इलाक़ों में निजी क्षेत्र का पहुँचना बहुत मुश्किल है क्योंकि निजी क्षेत्र प्रारम्भ से ही अपने निर्णयों को लाभप्रदता की तराज़ू पर तौलता है जबकि सार्वजनिक क्षेत्र अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी की ओर भी अपना ध्यान देता है।

 

कोरोना वायरस महामारी के बाद देश में आर्थिक गतिविधियों को पुनः प्रारम्भ किया जा रहा है। देश के यशस्वी प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने देश को आत्मनिर्भर बनाए जाने के लिए सभी देशवासियों को अपने अपने स्तर पर गम्भीर प्रयास करने का आह्वान किया है। देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वदेशी को अपनाना एक श्रेयस्कर रास्ता हो सकता है। इसलिए, आज सार्वजनिक उपक्रमों को देश के आर्थिक विकास में पूर्व में किए गए अपने योगदान को ध्यान में लेते हुए, देश के आर्थिक विकास में अपनी भागीदारी को पुनः बढ़ाना ही होगा। आज देश को जब आत्म निर्भर बनाए जाने का भरसक प्रयास किया जा रहा है, ऐसे समय में सार्वजनिक क्षेत्र की महत्ता को कमतर नहीं आँका जा सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों को देश में ही उपलब्ध संसाधनों का उपयोग कर अपनी विनिर्माण प्रक्रिया को आगे बढ़ाना आवश्यक है ताकि स्वदेश में निर्मित वस्तुओं को देश के दूर दराज़ इलाक़ों में आसानी पहुँचाया जा सके एवं देश में इन उत्पादों की माँग उत्पन्न की जा सके। अब समय गया है कि निजी क्षेत्र को भी अब स्वदेशी तकनीकी को बढ़ावा देना चाहिए ताकि देश में कमाई गई पूँजी को देश में ही ख़र्च किया जाकर देश में आर्थिक चक्र को गति दी जा सके।    

 

प्रह्लाद सबनानी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here