वेदों में निषेध है मांसाहार व पशुबलि

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cowअशोक प्रवृद्ध

 

राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू यादव के गो मांस को लेकर दिए गए बयान का समर्थन करते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री और राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के बीफ विवाद में कूद पड़ने से यह मुद्दा चुनाव के महत्वपूर्ण मामलों से भटककर बिहार विधानसभा चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गया है। रघुवंश ने पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद के गो मांस को लेकर दिए गए बयान का समर्थन करते हुए कहा कि प्राचीन काल में तो ऋषि-मुनि भी गो मांस खाया करते थे और शास्त्रों में इसका प्रमाण भी है। स्मरणीय है कि इससे पहले लालू प्रसाद ने कहा था कि हिंदू भी बीफ खाते थे। इस पर भाजपा के नंदकिशोर यादव ने कहा कि यह शर्मनाक है कि जो समाज गाय की पूजा करता है उसके लिए दिए जा रहे इस तरह के बयानों की निंदा की जानी चाहिए। लालू प्रसाद और रघुवंश का यह वयान राजनीति से प्रेरित तो है ही उनका यह वयान उनकी वैदिक ज्ञान से दूर होने और फिर वेदों के पाश्चात्य विद्वानों के भाष्यों व टिप्पणियों से प्रभावित होने का भी परिचायक है । पाश्चात्य विद्वान् और छद्म धर्मनिरपेक्ष लोग गाहे- बगाहे आक्षेप करते रहते हैं कि वेदों में मांसाहार व पशु बलि के समर्थन में मन्त्र हैं जिससे यह पता चलता है कि वैदिक काल में मांसाहार व पशु बलि जैसी प्रथा प्रचलन में थी, परन्तु वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन से इस सत्य का सत्यापन होता है और जैसा कि वेदों के उत्कट विद्वान् स्वामी दयानंद सरस्वती ने भी उद्घाटित किया है कि वेदों में मांसाहार एवं हवन में पशु बलि यथा, अश्वमेध में अश्व की, अजमेध में अज की , नरमेध में नर बलि किये जाने का कोई विधान नहीं हैं । वेद सत्य विद्याओं का परमेश्वरोक्त ग्रन्थ है, यह कोई बोझिल कर्मकांड की पुस्तक नहीं है ।

 

महर्षि दयानंद सरस्वती के भाष्य से पहले वेदों के विषय में जनमानस में विसंगतिपूर्ण धारणाओं का प्रमुख कारण उस काल में प्रचलित वेदों के भाष्य ही थे और भारत में फैले अंधकार का भी मुख्य कारण वेदों के सही अर्थ का प्रकाश नहीं होना था, जो आज भी है । सायण, महीधर आदि के वेद भाष्य में मांसाहार, हवन में पशुबलि, गाय, अश्व, बैल आदि का वध करने की अनुमति थी और इन भाष्यकारों के भ्रामक भाष्यों को पढ़ कर विदेशी भाष्यकारों जैसे मैक्समूलर, ग्रिफ्फिथ, विल्सन आदि भी वेदों का सही अर्थ न जान सके और पूरा विश्व वेदों के ज्ञान के प्रकाश से वंचित रह गया था । इन पाश्चात्य विद्वानों ने वेदों से मांसाहार का भरपूर प्रचार कर न केवल पवित्र वेदों को कलंकित किया अपितु लाखों निर्दोष प्राणियो को क़त्ल करवा कर मनुष्य जाति को पापी बना दिया । मध्य काल में हमारे देश में वाम मार्ग का प्रचलन था । मध्यमार्गी मांस, मदिरा, मैथुन, मीन आदि से मोक्ष की प्राप्ति मानते थे । आचार्य सायण आदि विद्वान वाम मार्ग से प्रभावित होने के कारण वेदों में मांस भक्षण एवं पशु बलि का विधान होने का समर्थन कर बैठे । निरीह प्राणियों के इस कत्लेआम एवं बोझिल कर्मकांड के कारण ही वेदों के सत्य ज्ञान से वंचित महात्मा बुद्ध एवं महावीर ने वेदों को हिंसा से लिप्त मानकर उन्हें अमान्य घोषित कर दिया । जिससे वेदों की बड़ी हानि हुई एवं अवैदिक मतों का प्रचार हुआ । जिससे क्षत्रिय धर्म का नाश होने से देश को परतन्त्रता की मुख तक देखनी  पड़ी । इस प्रकार वेदों में मांस भक्षण के गलत प्रचार के कारण देश की कितनी हानि हुई इसका सहज अंदाजा नहीं लगाया जा सकता । देश की इस अंधकारमय की स्थिति में महर्षि दयानंद ने वेदों का नवीन भाष्य कर सम्पूर्ण विश्व में सत्य ज्ञान के प्रकाश का शंखनाद किया । स्वामी दयानंद के क्रांतिकारी वेदभाष्य के प्रभावशाली विचारों ने साधारण जनमानस के मन में वेद के प्रति श्रद्दा भाव उत्पन्न कर दिया, वहीँ मांस भक्षण ,पशुबलि, कर्मकांड आदि को लेकर जो अन्धविश्वास हमारे देश में फैला था उसका भी निवारण कर दिया । वेदों से गो रक्षा के सम्बन्ध में प्रमाण दर्शा कर स्वामी दयानन्द ने महीधर के यजुर्वेद भाष्य में दर्शाए गए अश्लील, मांसाहार के समर्थक, भोझिल कर्म कांड का खंडन कर उसका सत्यार्थ प्रकाश कर न केवल वेदों को अपमान से बचा लिया अपितु उनकी रक्षा कर मानव जाति पर भारी उपकार भी किया । स्वामी दयानंद ने चार वेद संहिताओ को परम प्रमाण मानते हुए कहा कि दर्शन,उपनिषद, ब्राह्मण, सूत्र, स्मृति, रामायण, महाभारत, पुराण आदि तभी तक मान्य हैं जब तक वे वेदानुकुल हैं । उन्होंने आवाहन किया कि चारों वेदों में कहीं भी मांस भक्षण का विधान नहीं हैं, न देवताओं को मांस खिलाने का, न मनुष्यों को खिलाने का विधान हैं ।

वेदों में गाय के अनेक रूपों में नाम आये हैं । यजुर्वेद  8-43 में गाय को इडा (स्तुति की पात्र) , रनता (रमयित्री), हव्या (उसके दूध की हवन में आहुति दिए जाने से ), काम्या (चाहने योग्य होने से) , चंद्रा (अह्ह्यादायानि होने से ) , ज्योति (मन आदि को ज्योति प्रदान करने से ), अदिति (अखंडनिय होने से) , सरस्वती (दुग्ध्वती होने से ) , मही (महिमा शालिनी होने से), विश्रुती (विविध रूपों में श्रुत होने से) और अघन्या (न मारी जाने योग्य) कहा गया हैं ।वेदों में अंकित इन नामों से यह स्पष्ट सिद्ध होता हैं की वेदों में गाय को सम्मान की दृष्टि से देखा गया हैं क्यूंकि वो कल्याणकारी हैं । गाय पूज्य हैं । अथर्ववेद 12-4- 6—8  के अनुसार जो गाय के कान भी खरोंचता हैं, वह देवों की दृष्टि में अपराधी सिद्ध होता हैं । जो दाग कर निशान डालना चाहता हैं, उसका धन क्षीण हो जाता हैं । यदि किसी भोग के लिए इसके बाल काटता हैं, तो उसके किशोर मर जाते हैं । अथर्ववेद 13-5-56 में कहा है जो गाय को पैर से ठोकर मारता है, उसका मैं मूलोच्छेद कर देता हूँ । गाय, बैल आदि सब अवध्य हैं । ऋगवेद 8-101-15 के अनुसार  मैं समझदार मनुष्य को कहे देता हूँ कि तू बेचारी बेकसूर गाय की हत्या मत कर, वह अदिति हैं अर्थात काटने- चीरने योग्य नहीं हैं । ऋगवेद 8-101-16 में कहा है कि, मनुष्य अल्पबुद्धि होकर गाय को मारे काटे नहीं । अथर्ववेद 10-1-29 के अनुसार  तू हमारे गाय, घोड़े और पुरुष को मत मार । अथर्ववेद 12-4-38 के अनुसार जो (वृद्ध) गाय को घर में पकाता हैं उसके पुत्र मर जाते हैं । अथर्ववेद 4-11-3 के अनुसार जो बैलों को नहीं खाता वह कभी कष्ट में नहीं पड़ता हैं । ऋगवेद 6-28-4 के अनुसार गौयें वधालय में न जाये । अथर्ववेद 8-3-24 के अनुसार जो गोहत्या करके गाय के दूध से लोगो को वंचित करे , तलवार से उसका सर काट दो । यजुर्वेद 13-43 के अनुसार भी  गाय का वध मत कर , जो अखंडनीय हैं । अथर्ववेद 7-5-5 के अनुसार वे लोग मूढ़ हैं जो कुत्ते से या गाय के अंगों से यज्ञ करते हैं । यजुर्वेद 30-18 कहता है, गोहत्यारे को प्राण दंड दो । इन वैदिक प्रमाणों से स्वतः सिद्ध होता है कि वेदों में मांसाहार व पशुबलि का पूर्णतः निषेध है ।

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अशोक “प्रवृद्ध”
बाल्यकाल से ही अवकाश के समय अपने पितामह और उनके विद्वान मित्रों को वाल्मीकिय रामायण , महाभारत, पुराण, इतिहासादि ग्रन्थों को पढ़ कर सुनाने के क्रम में पुरातन धार्मिक-आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों के अध्ययन- मनन के प्रति मन में लगी लगन वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन-मनन-चिन्तन तक ले गई और इस लगन और ईच्छा की पूर्ति हेतु आज भी पुरातन ग्रन्थों, पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन , अनुसन्धान व लेखन शौक और कार्य दोनों । शाश्वत्त सत्य अर्थात चिरन्तन सनातन सत्य के अध्ययन व अनुसंधान हेतु निरन्तर रत्त रहकर कई पत्र-पत्रिकाओं , इलेक्ट्रोनिक व अन्तर्जाल संचार माध्यमों के लिए संस्कृत, हिन्दी, नागपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में स्वतंत्र लेखन ।

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