दलितों के विकास बिना राष्‍ट्र का सर्वांगीण विकास अधूरा : दत्तात्रेय होसबोले

dattatrey1राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि दलितों की समस्‍याओं को दूर करने के लिए शिक्षा, रोजगार और उद्यमिता पर विशेष ध्‍यान देने की आवश्‍यकता है।

उन्होंने यह बातें आज राष्‍ट्रवादी अम्‍बेडकरवादी महासंघ द्वारा डिप्‍टी स्‍पीकर हॉल, कांस्‍टीट्यूशन क्‍लब, नई दिल्‍ली में ‘हिंदू दलित के समक्ष चुनौतियां’ विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए कहीं।राष्‍ट्रवादी अम्‍बेडकरवादी महासंघ के राष्‍ट्रीय संयोजक व पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री श्री संजय पासवान ने सेमिनार की अध्‍यक्षता की।

श्री दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि आज दलित समाज अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी जैसी अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है। इसी चुनौतियां के बहाने ईसाई मिशनरी उनका धर्मांतरण कराने में जुटी है। वहीं माओवादी दलित युवकों को गुमराह कर उनके हाथों में बंदूक थमा रही हैं।

श्री होसबोले ने कहा कि दलितों के सर्वांगीण विकास के लिए हमें चौतरफा प्रयास करने होंगे, क्‍योंकि दलितों के विकास से ही हिंदू समाज सशक्‍त होगा और संगठित हिंदू समाज ही राष्‍ट्र की सुरक्षा, एकता व अखंडता और विकास की गारंटी है।

इस अवसर पर यहां आए अतिथि सामाजिक चिन्‍तक श्री फ्रांसिस ने कहा कि चर्च नेतृत्व हिंदू समाज में फैली कुरीतियों एवं छुआछूत का भय दिखाकर हिंदू दलितों का धर्मांतरण कराता है वहीं दूसरी ओर पुन: उन्हें दलितों की सूची में शामिल करवाने के लिए साजिश रच रहा है। हिंदू दलितों ने समानता के मुद्दे पर ईसाई धर्मांतरण स्‍वीकार किया था लेकिन चर्च नेतृत्व उनके साथ भेदभाव कर रहा है।

sanjayइस सेमिनार में जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय के प्राध्‍यापक प्रो. विवेक कुमार, नैकडोर के अध्‍यक्ष श्री अशोक भारती, हिंदू महासभा के नेता श्री दिनेश त्‍यागी, दलित विचारक श्री सुरेश पण्डित, दलित एक्‍टीविस्‍ट श्रीमती रूपांसी ने भी अपने विचार व्‍यक्‍त किए। कार्यक्रम में बडी संख्‍या में गणमान्‍य जन उपस्थित थे।

6 COMMENTS

  1. टिप्पणी (२)
    और, अर्जित किए बिना मिली, समानता व्यक्तिको सम्मानकी और स्वाभिमानकी अनुभूति नहीं करा सकती, जो अतीव आवश्यक है।आरक्षणभी इसी लिए सफल नहीं हो सकता। उससे वोट की राजनीति खेली जा सकती है।अपना चुनावी उल्लू सीधा किया जा सकता है।
    निम्न उद्धरण http://www.dalitchristian.comसे लिया है, आपहि देख लीजिए।
    “The church in India is a dalit church, because 70% of India’s 25 million Christians are dalits. Although dalits form the majority in all these churches, yet their place and influence in these churches is minimal or even insignificant. Their presence is totally eclipsed by the—> power of the “upper-caste”( वहां भी जाति तो है ही) Christians” who are only 30% of the Christian population. This is all the more true in the case of the Catholic Church where such discrimination is strongly felt.”
    यह उद्धरण आप http://www.dalitchristian.com पर स्वतः देख सकते हैं।निष्कर्श: दलितोंको सुविधा निश्चित प्रदान हो, पर उनके अपने प्रयासोंसे उपर उठने के लिए।
    और वैसे “किसीभी समाजमे सर्व जन समान कभी भी होते नहीं है।”– कोई दिखा दे, कि क्या सारे दुनिया भरके क्रिश्चन समान है? या सारे दुनिया भरके मुसलमान समान है? इसे इश्वरकी विविधता के रूपमे देखा जाना चाहिए। किसीको नीचा या उंचा ना देखा जाए। औरोंके विचार भी पढना चाहता हूं। दलितोंके विकास बिना सर्वांगीण विकास निश्चित अधूरा है।

  2. (टिप्पणी एक)
    दलित समस्या सुलझाना दीर्घ प्रक्रिया है।इस प्रक्रियामें शॉर्ट कट नहीं है।एक बटन दबाया और प्रकाश फैल गया; लो, समस्या सुलझ गयी ऐसी, प्रक्रिया नहीं है।
    “धर्मांतरण”सेभी यह सुलझती नहीं है। क्यों कि धर्मांतरणके बाद आप वही के वही है, उपर उपर नाम बदला, पहचान बदली है।जैसे कोई नाम के साथ BA, MA लगा ले; तो वह ग्यानी नहीं बन जाता।वैसे धरम बदलनेसे कोई रोजगार क्षम नहीं बन जाता। इससे आपकी व्यावसायिक उपयुक्तता नहीं बढी। किसीको आप डाक्टर, शिक्षक, विमान चालक, या प्रबंधक, नहीं बना सकते। केवल एक प्रमाणपत्र (बिना प्रमाण) देनेसे योग्यता नहीं बढती।योग्यता को प्रयत्न करके बढाना होता है। हां, उसके लिए कुछ सुविधा दी जा सकती है,और दी जानी चाहिए, अन्याय दूर होना चाहिए, एक सोचे समझे, मर्यादित वर्षोंके कालके लिए, सदाके लिए नहीं। समान अवसर सदा दिए जाए।छूआ छूत दूर हो। स्वच्छ आदतें हर कोई अपनाए, छूआछूत आपहि आप, दूर होगी।

  3. सिर्फ दलितों की क्यों बात की जाये, यदि हम प्रत्येक व्यक्ति की गरीबी दूर करने का संकल्प नहीं लेते हैं तो सारा विकास अधूरा है. जब तक व्यक्ति भूख के कारण मरता है तो आपका विकास किस काम का. हमारे प्रधान मंत्री ने अल्पसंख्यकों का देश के शंसाधानो पर पहला अधिकार बता कर ऐसी ही बात कही थी.

    हाँ यदि दलितों की ही बात करनी है तो समाज में उनके सामाजिक स्तर में सुधार के बारे में ऐसा कहना यथोचित होगा जो की धर्मांतरण के बाद भी ऊपर नहीं उठता. अर्थात धर्मांतरण दलितों के स्तर में सुधार का कोई उपयुक्त आधार नहीं है.

  4. दलितों का भला हिन्दू धरम में नहीं हे. उसे त्यागने में है. हिन्दू धरम ने दलितों का शोषण किया है. तुम फिर धरम के नाम पर उनका शोषण करना चाहते हो .
    जय भीम

  5. दत्ता जी का चित्र लगा देख कर अच्छा लगा. दलितों को अब धार्मिक कर्म्कड़ में भागीदार बनाया जाना चाहिए. जिस प्रकार बिहार में किशोर कुनाल ने दलित को पुजारी बना कर प्रयोग किया है उसी प्रकार सभी मठ मंदिरों में दलितों को पुजारी बनाया जाना चाहिए.
    गौतम चौधरी
    अहमदाबाद.

  6. आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत सराहनीय कदम । हिन्दु एकता के लिए वे सभी प्रयास किए जाने चाहिए जिनसे हिन्दु दलितों को लाभ पहुँचे और लालू-आलू-भालू किस्म की पार्टियाँ उन्हें बर्गला न सकें । खतरा चर्च या इस्लाम से कम है खतरा तो उन छ्द्म धर्मनिरपेक्षों से ज़्यादा है जो मुस्लिम वोट पाने के लिए उन के लिए आरक्षण की माँग करते हैं और हिन्दुओं में जातिवाद को बढावा देकर ऊलजुलूल हरकते करते हैं ।

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