आज़ादी के पहले अनगिनत शहीद हुए
कड़ी राहों से हँसते हुए गुज़रे हम सब के लिए
कि हमारे लिए ज़रूरी थी आज़ादी हमारी !
आज़ादी के बाद शहीद हुए हमारे गांधी
कि हम नव-आज़ाद लोगों को शायद
ज़रूरत न थी उस रहबरी की अब
कि वह रोकती मनचाही आज़ादी हमारी !
आज़ादी के साथ, इधर मुल्क से ग़ुलामी गयी
उधर हमारे सोचने समझने की आज़ादी गयी
हम पहले भी ग़ुलाम थे अब भी ग़ुलाम ठहरे
पा कर भी छिनी है जैसे आज़ादी हमारी !
अपनी ही ग़ुलामी से, जंग का जुनूं लाएं कहां से
अब रहबरी को इक नया गांधी आये कहां से ?