नेतृत्व ईमानदार हो तो भारत बनेगा सुपरपावरः डा. गुप्त

भोपाल,19 नवंबर। प्रख्यात अर्थशास्त्री व दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे डा. बजरंगलाल गुप्त का कहना है कि भारत को अगर ईमानदार, नैतिक और आत्मविश्वासी नेतृत्व मिले तो देश सुपरपावर बन सकता है। वे यहां माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में “विविधता व अनेकता में एकता के सूत्र” विषय पर आयोजित व्याख्यान में मुख्यवक्ता की आसंदी से बोल रहे थे । उन्होंने कहा कि दुनिया के अंदर बढ़ रहे तमाम तरह के संघर्षों से मुक्ति का रास्ता भारतीय संस्कृति ही दिखलाती है क्योंकि यह विविधता में विश्वास करती है। सबको साथ लेकर चलने का भरोसा जगाती है। सभी संस्कृतियों के लिए परस्पर सम्मान व अपनत्व का भाव ही भारतीयता की पहचान है। उनका कहना था कि सारी विचारधाराएं विविधता को नष्ट करने और एकरूपता स्थापित करने पर आमादा हैं, जबकि यह काम अप्राकृतिक है।

उन्होंने कहा कि एक समय हमारे प्रकृति प्रेम को पिछड़ापन कहकर दुत्कारने वाले पश्चिमी देश भी आज भारतीय तत्वज्ञान को समझने लगे हैं । जहाँ ये देश एक धर्म के मानक पर एकता की बात करते हैं, वहीं भारत समस्त धर्मों का सम्मान कर परस्पर अस्मिता के विचार को चरितार्थ करता आया है । शिकागो में अपने भाषण में स्वामी विवेकानंद ने भी इसी बात की पुष्टि की थी । उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति की प्रासंगिकता आज भी है, क्योंकि यह वसुधैव कुटुम्बकम की बात करती है। जबकि पश्चिमी देश तो हमेशा से पूंजीवाद व व्यक्तिवाद पर जोर देते आए हैं जो 2007 के सबसे बड़े आर्थिक संकट का कारण बना । वाल स्ट्रीट के खिलाफ चल रहे नागरिक संघर्ष भी इसकी पुष्टि करते हैं। सोवियत संघ का विघटन भी साम्यवाद की गलत आर्थिक पद्धति को अपनाने से ही हुआ। श्री गुप्त ने यह भी कहा कि गरीबों का अमीर देश कहा जाने वाला भारत जैव-विविधता से संपन्न है, जिस पर पश्चिम की बुरी नज़र है । अपनी इसी निधि का संरक्षण हमारा कर्तव्य है, जिससे हम भविष्य में भी स्वावलंबी व मज़बूत बने रहेंगे ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि हमें विकास का नया रास्ता तलाशना होगा। भारतीय जीवन मूल्य ही विविधता स्वीकार्यता और सम्मान देते हैं। इसका प्रयोग मीडिया, मीडिया शिक्षा और जीवन में करने की आवश्यक्ता है। उनका कहना था कि मानवता के हित में हमें अपनी यह वैश्विक भूमिका स्वीकार करनी होगी। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में कुलपति प्रो.बृजकिशोर कुठियाला ने शाल-श्रीफल पुष्पगुच्छ एवं पुस्तकों का सेट भेंट करके डा.बजरंगलाल गुप्त का अभिनदंन किया। व्याख्यान के बाद डॉ. गुप्त ने श्रोताओं के प्रश्नों के भी उत्तर दिए । कार्यक्रम में प्रो. अमिताभ भटनागर, प्रो. आशीष जोशी, डा. श्रीकांत सिंह, डा. पवित्र श्रीवास्तव, पुष्पेंद्रपाल सिंह, डा. आरती सारंग, दीपेंद्र सिंह बधेल, डा. अविनाश वाजपेयी मौजूद रहे।

3 COMMENTS

  1. सही बात कही|
    बस कुछ वर्ष पहले एक पुस्तक छपी है अमरिकामें, नाम है
    ” Gift Unopened ” Eleanar stark नामक महिला द्वारा कैम्ब्रिज से छपी है|
    ” गिफ्ट अन ओपंड ” में, वह कहना चाहती है, अमरीका से कि ===> हे अमरीका — तुझे विवेकानंद इतना बड़ा उपहार दे कर गए, किन्तु तू ने उसे अभी खोला तक नहीं है| और कहीं कोने में, बिना खोले रख छोड़ा है| उसे खोल कर देख वही तेरा और विश्वका तारणहार है|
    वैसे अमरीका का उत्थान करने में भी विवेकानंद जी द्वारा दिये गए व्याख्यानों में, बड़े बड़े विद्वान्, उद्योजक, प्रोफ़ेसर, चिन्तक, दार्शनिक, उपस्थित रहा करते थे, जिन के कारण माना जता है की इस देश की उन्नति संभव हुयी| सुना है कि हेनरी फोर्ड को भी फोर्ड फौन्डेशन स्थापित करने में विवेकनद जी के ही लेक्चर से दिशा एवं प्रेरणा मिली थी|
    पर एक प्रश्न भी पूछा गया था , स्वामीजी से –“कि जिस भारत के पास “गीता” थी वह परतंत्र कैसे हुआ?
    क्या कहें?
    भारत अपनी गीता पढ़कर उसके अनुसार आचरण करे तब ना?
    आज ११० वर्ष बाद फिरसे गिफ्ट का आवरण खोलने का समय आया है|
    पढ़ रहा हूँ पुस्तक, और आज समज पा रहा हूँ, कि सारे संसार भर में “सर्वेपि सुखिन: सन्तु ” या
    “वसुधैव कुटुम्बकम” —
    कहने वाली, और अपने लोगों के सिवा
    –अन्यों को नरक में ना भेजने वाली संस्कृति कोई नहीं –कोई नहीं–कोई नहीं|
    मुझे पता चल रहा है, कि ===> सारे धर्मोंको कोई समान नहीं मानता|
    हम ही, आत्म सम्म्होहित है| self hypnotised
    है, जैसे सज्जन को सारे सज्जन दिखाई देते हैं| चोर को चोर|
    समय मिलने पर ” gift unopened ” पर लघु लेख डालूँगा|

  2. विचारोत्तेजक लेख. लेकिन वर्तमान सेकुलर राजनीति को न तो विमर्श के लिए फुरसत है और ना ही उसके पास कोइ विजन है. वोट बैंक की जोड़ तोड़ में लगी सेकुलर राजनीति से कोइ भी आशा रखना बेकार है.

  3. गहरी बातें हैं। ऐसे ज्ञानी जन्य की बातों पर शासक अमल करे तो इतिहास का रास्ता बदल सकता है।

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