भारत: देशहित और सत्तलालसा

आस्तिक तिवारी

आज के दौर में भारत एक प्रगतिशील राष्ट्र के तौर पर अपना एक एक कदम बखूबी और बेहद सलीके से बढ़ा रहा है ,सारी दुनिया भारत को एक आशा के साथ देख रही है, उसके हित भारत के साथ जुड़े हुए है और भारत भी बेहद कूटनीतिक रूप से अपने हितों को साधने की भरपूर कोशिश कर रहा है ।परंतु,भारत को चुनौतियां जितनी आज अपने बाहरी राष्ट्र से नही मिल रही उससे कई ज्यादा चुनौतियां अपने नागरिकों से मिल रही है। ये चुनौतियां भारत को विश्वगुरु बनने में गति अवरोधक की तरह कार्य कर रही है ऊपर कहे हुए वाक्यों को अब में ये स्पष्ट कर देता हूँ ,गौरतलब है आज़ादी के बाद देश मे कई ऐसे कानून बने जिनका लागू होना देश हित मे और देश के विकास में सहायक था परंतु, इन कानूनों का देश मे भरसक विरोध अवाम द्वारा किया गया। जैसे, महिलायों को अधिकार देने वाला कानून जिसने महिलायों के अधिकार में बढ़ोतरी की थी एवं उनके अंदर आत्मविश्वास स्फुरित किया ,इसी तरीके से 1951 में जमींदारी की प्रथा को खत्म करना उन गरीब मजदूरों के हित में कानून था जो इस प्रथा के शिकार थे।इस कानून का भी विरोध हुआ था परंतु,ये सामंतवाद को भारत मे खत्म करने के लिए अत्यंत जरूरी था।आजादी के बाद दलितों को आरक्षण देना एक बहुत ही दृढ़तापूर्वक सरकार द्वारा लिया गया निर्णय था जिसका भी विरोध सवर्णो द्वारा किया गया था परन्तु उस काल की मांग आरक्षण थी। सारे राजघरानो का प्रिवी पर्स खत्म करने पर भी तत्कालीन सरकार को बहुत विरोध का सामना करना पड़ा परंतु ऐसे कानूनों से देश को दीर्घकालिक लाभ मिलता है जो भारत को विकसित राष्ट्र की दिशा में ले जाते। देशहित को सदैव किसी भी जाति ,धर्म एवं सम्प्रदाय से ऊपर रखकर ही देश मजबूत होता है।हाल ही कि सरकार ने समान नागरिक संहिता की दिशा में जो कदम उठाया है वो सराहनीय है वो भी इसी तरीके के कानूनों का उदाहरण है। ऐसे कानूनों को देश के अंदर काफी चुनौतियां सहनी पड़ती है परंतु ये देश के विकास में ईंधन का काम करती है ।इनमें से अधिकतर कानून तब बन सके जब देश मे विपक्ष बहुत कमजोर स्थिति में था क्योंकि उस समय वोट बैंक को साधने की चिंता न थी या फिर सत्ता पक्ष के नेता बहुत ही दृढ़शक्ति से परिपूर्ण होते थे ।परंतु आज के परिप्रेक्ष्य में हर राजनीतिक पार्टी देशहित नहीं सत्ता की लालसा और वोटबैंक को साधने की राजनीति कर रही है जो कि अपने राष्ट्र के लिए और राष्ट्र की प्रगति के लिए एक विषवेल साबित होगी ।उदाहरण के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण और दलितों को दिए हुए आरक्षण पर आजतक कोई विचार न होना वोटबैंक की राजनीति का उदाहरण है । प्रमोशन में आरक्षण एवं महिला अधिकारों का दुरुपयोग भी ऐसी ही कुछ समस्याएं है जिन पर वर्गों के हित से ऊपर रखकर देश हित मे पुनर्विचार करने का समय आ गया है ।आरक्षण ख़त्म होना देश हित के लिए सही नही है क्योंकि अभी भी बहुत से दलितों की स्थिति में उत्थान नही हुआ है परंतु उस आरक्षण का लाभ सही में दलित,वंचित और शोषितों को मिले ये सरकार को सुनिश्चित करना होगा, क्योंकि एक ही परिवार के लोगों को पीढ़ी दर पीढ़ी केवल जाति प्रमाण पत्र से समृद्ध होने के बाद भी आरक्षण मिलता रहे और उस दलित तक उस आरक्षण का लाभ न पहुँचे जो सच में शोषित और वंचित है तो ये देश की अवाम के हित में नही है ,इसीलिए इसपे पुनर्विचार करना आवश्यक है ।इसी तरह हाल की रिपोर्ट में आया था कि महिला कानूनों का सही में दुरुपयोग बढ़ गया तो इसका दुरुपयोग रोकने के लिए भी सरकारों को कदम उठाना पड़ेगा जो कि देश को बेहतर बनाएंगे एवं आमजन अपने आप को सुरक्षित एवं गौरवान्वित महसूस करेगा। आजादी के वर्षों के बाद से आजतक जो वोटबैंक को साधने को कोशिश की जा रही है उस पर विराम लगाने की कोशिश देश के नेताओं एवं बुद्धिजीवियों को करनी होगी। देश की सरकारों को दृढ़ता से कुछ कानून बनाने पड़ेंगे एवं विपक्षो को भी ऐसे कानून के लिए एकमत होना पड़ेगा जैसे कि कुछ प्रधानमंत्रियों के काल में हुआ भी है जिन्होंने अभूतपूर्व निर्णय लिए देशहित को देखकर ,तब भारत एक विश्वगुरु और विकसित राष्ट्र के रूप में उभर सकता है ।

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