युवा से वृद्धावस्था की ओर बढ़ता भारत

0
155

ः ललित गर्गः

संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक आबादी रिपोर्ट-2019 में भारत के लिये चैंकाने वाला तथ्य उजागर हुआ है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में सन् 2050 तक बुजुर्गों की संख्या तीन गुणों हो जाने का अनुमान है। आबादी का ऐसा बढ़ता टेढ़ा अनुपात जल्द ही भारत को बुजुर्गों-वृद्धों का समाज बनायेगा। इन नवीन स्थितियों में हमारे सामने बुजुर्गों की देखरेख और उनकी ऊर्जा के रचनात्मक उपयोग की चुनौती पेश होगी, साथ ही हमें अपने कुछ स्थापित जीवन मूल्यों पर पुनर्विचार के लिए भी बाध्य होना होगा। बुजुर्गों के उन्नत, स्वस्थ एवं खुशहाल जीवन के लिये सोच को बदलना होगा क्योंकि वर्तमान में हमारे देश में बुजुर्ग उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं, उनको उचित सम्मान एवं उन्नत जीवन जीने की दिशाएं नहीं दी गयी तो समाज में बिखराव एवं टूटन के त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण दृश्य देखने को मिलेंगे।
भारत की जनसंख्या में बढ़त-घटत के ये रुझान न केवल हमारी जीवन शैली से जुड़ी सामाजिक सांस्कृतिक मान्यताओं में बदलाव की आवश्यकता को व्यक्त कर रहे हैं बल्कि सरकार को भी इस दिशा में व्यापक योजनाएं लागू करने एवं इस मसले में सहयोग और समन्वय की जरूरत भी बता रहे हैं। भारत में न केवल बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है बल्कि जनसंख्या बढ़ते जाने की चुनौती भी वह झेल रहा है, जबकि दुनिया के 55 देश ऐसे हैं जहां आबादी घट रही है। 2050 तक इन देशों की आबादी में एक फीसदी या उससे अधिक गिरावट के आसार हैं। यह कमी सिर्फ जन्म दर में गिरावट के कारण नहीं आ रही है। कुछ देशों में इसके लिए लोगों का पलायन भी जिम्मेदार है। अराजकता और अशांति के शिकार कुछ इलाकों से लोग जान बचाने के लिए भाग रहे हैं। कुछ देश ऐसे भी हैं जहां कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं है, लेकिन रोजगार के अच्छे अवसरों की कमी उन्हें बेहतर ठिकानों की ओर जाने के लिए मजबूर कर रही है। बहरहाल, वैश्विक आबादी के इस बिगड़ते संतुलन को ध्यान में रखें तो आने वाले वर्षों में विभिन्न देश अकेले अपने स्तर पर इस समस्या का कोई हल नहीं निकाल पाएंगे।
आबादी रिपोर्ट-2019 के मुताबिक 2050 तक विश्व की जनसंख्या मौजूदा 770 करोड़ से बढ़ कर 970 करोड़ हो जाएगी। हालांकि जनसंख्या वृद्धि दर में लगभग हर जगह गिरावट दर्ज की जा रही है। लेकिन भारत बढ़ती जनसंख्या से जुझ रहा है। संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में 65 साल से ऊपर के बुजुर्गों की संख्या अभी पांच साल से कम उम्र के बच्चों से ज्यादा हो चुकी है और 2050 तक आबादी में उनका हिस्सा छोटे बच्चों का दोगुना और भारत के मामले में तीन गुना हो चुका होगा। भारत में पहले से ही 10.4 करोड़ वरिष्ठ नागरिक हैं और 2050 तक इनकी संख्या तीन गुना से अधिक होकर 34 करोड़ पहुंचने की संभावना है। प्रश्न भारत में तेजी से बढ़ती बुजुर्गों की संख्या को लेकर है। क्योंकि बुढ़ापा न केवल चेहरे पर झुर्रियां लाता है, बल्कि हरेक दिन की नई-नई चुनौतियां लेकर भी आता है। अकेलापन उन्हें सबसे ज्यादा खलता है, बात करने के लिए तरसते हैं। अपने बच्चों की राह ताकते हैं, निराशा उन्हें इतना खलता है कि उनका 77 पर्सेंट समय घर से बाहर गुजरता है, ताकि किसी से बात हो जाए। कोई उनकी बात सुन लें, गप्पें मार ले। 
गतदिनों ‘जुग जुग जियेंगे’ नाम से हुए सर्वे में अकेलेपन में जी रहे बुजुर्गों की यह सचाई सामने आई है। सर्वे के नतीजे चैंकाने वाले हैं, चिंता की बात तो यह है कि बच्चे अपने पैरेंट्स की जरूरत ही जब नहीं समझ पा रहे हैं तो उनकी समस्या का कैसे करेंगे? आईवीएच सीनियर केयर का यह सर्वेक्षण एकाकी जीवन जी रहे बुजुर्गों की चुनौतियों को समझने की एक पहल है और इस सर्वे से सामने आए तथ्य बुजुर्गों की देखभाल के लिए सटीक रोडमैप विकसित करने के लिए आधारशिला के तौर पर काम कर सकते हैं। अपने घर और बूढ़े मां बाप से दूर रह रहे बच्चों की सोच में असमानता कई सवाल खड़ी करती है। 
भारत में 2050 तक हर पांचवां भारतीय 60 वर्ष से अधिक का होगा। युवाओं की अधिक संख्या की वजह से भले ही अभी भारत को युवाओं का देश कहा जा रहा है लेकिन धीरे-धीरे वरिष्ठ नागरिकों की संख्या बढ़ेगी। फिलहाल हर 12वां भारतीय वरिष्ठ नागरिक है। युवा से वृद्धावस्था की ओर बढ़ते भारत के वर्तमान दौर की एक बहुत बड़ी विडम्बना है कि इस समय की बुजुर्ग पीढ़ी घोर उपेक्षा और अवमानना की शिकार है। यह पीढ़ी उपेक्षा, भावनात्मक रिक्तता और उदासी को ओढ़े हुए है। इस पीढ़ी के चेहरे पर पड़ी झुर्रियां, कमजोर आंखें, थका तन और उदास मन जिन त्रासद स्थितियांे को बयां कर रही है उसके लिए जिम्मेदार है हमारी आधुनिक सोच और स्वार्थपूर्ण जीवन शैली। समूची दुनिया में वरिष्ठ नागरिकों की दयनीय स्थितियां एक चुनौती बन कर खड़ी है, एक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या बनी हुई है।
भारत में बुजुर्गों का बढ़ता अनुपात और उनकी लगातार हो रही उपेक्षा अधिक चिन्तनीय है। दादा-दादी, नाना-नानी की यह पीढ़ी एक जमाने में भारतीय परंपरा और परिवेश में अतिरिक्त सम्मान की अधिकारी हुआ करती थी और उसकी छत्रछाया में संपूर्ण पारिवारिक परिवेश निश्चिंत और भरापूरा महसूस करता था। न केवल परिवार में बल्कि समाज में भी इस पीढ़ी का रुतबा था, शान थी। आखिर यह शान क्यों लुप्त होती जा रही है?  क्यों वृद्ध पीढ़ी उपेक्षित होती जा रही है?  क्यों वृद्धों को निरर्थक और अनुपयोगी समझा जा रहा है? वृद्धों की उपेक्षा से परिवार तो कमजोर हो ही रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा नई पीढ़ी प्रभावित हो रही है। क्या हम वृद्ध पीढ़ी को परिवार की मूलधारा में नहीं ला सकते? ऐसे कौन से कारण और हालात हैं जिनके चलते वृद्धजन इतने उपेक्षित होते जा रहे हैं? यह इतनी बड़ी समस्या है कि किसी एक अभियान से इसे रास्ता नहीं मिल सकता। इस समस्या का समाधान पाने के लिए जन-जन की चेतना को जागना होगा। 
हमारे सामने एक अहम प्रश्न और है कि हम किस तरह नई पीढ़ी और बुजुर्ग पीढ़ी के बीच बढ़ती दूरी को पाटने का प्रयत्न करें। इन दोनों पीढ़ियों के बीच संवादिता और संवेदनशीलता इसी तरह लुप्त होती रही तो समाज और परिवार अपने नैतिक दायित्व से विमुख हो जाएगा। दो पीढ़ियों की यह भावात्मक या व्यावहारिक दूरी किसी भी दृष्टि से हितकर नहीं है। जरूरी है कि हम बुजुर्ग पीढ़ी को उसकी उम्र के अंतिम पड़ाव में मानसिक स्वस्थता का माहौल दें। नई पीढ़ी और बुजुर्ग पीढ़ी की संयुक्त जीवनशैली से अनेक तरह के फायदे हैं जिनसे न केवल समाज और राष्ट्र मजबूत होगा बल्कि परिवार भी अपूर्व शांति और उल्लास का अनुभव करेगा। सबसे अधिक नई पीढ़ी अपने बुजुर्गों की छत्रछाया में अपने आपको शक्तिशाली एवं समृद्ध महसूस करेगी। एक अवस्था के पश्चात निश्चित ही व्यक्ति में परिपक्वता और ठोसता आती है। बड़े लोगों के अनुभव से लाभ उठाकर युवा पीढ़ी भी संस्कार समृद्ध बन सकती है और वृद्धजनों के अनुभवों का वैभव और ज्ञान की अपूर्व संपदा उन्हें दुनिया की रफ्तार के साथ कदमताल करने में सहायक हो सकती है। वृद्ध पीढ़ी को संवारना, उपयोगी बनाना और उसे परिवार, समाज एवं राष्ट्र की मूलधारा में लाना एक महत्वपूर्ण उपक्रम है। इस वृद्ध पीढ़ी का हाथ पकड़ कर चलने से जीवन में उत्साह का संचार होगा, क्योंकि इनका विश्वास सामूहिकता में है, सबको साथ लेकर चलने में है। अकेले चलना कोई चलना नहीं होता, चलते-चलते किसी दूसरे को भी चलने के लिये प्रोत्साहित करें। सरकार भी वृद्ध पीढ़ी के अनुभवों एवं क्षमताओं का लाभ लेने के लिये उनकी स्वास्थ्य एवं शारीरिक स्थितियों के अनुरूप कार्य-क्षेत्रों की संभावनाओं को तलाशे।    प्रेषकः

 (ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here