डॉ. धनाकर ठाकुर
ममता बनर्जी ने यूपीए से हटने का निर्णय आम जनभावनाओं की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए लिया है या कांग्रेस विरोधी किसी फ्रंट के लिए नेता बन प्रधानमंत्री बनाने के लिए है यह तो भविष्य ही बताएगा। हिलेरी क्लिंटन जब उनसे मिलने गयीं थी तभी से मुझे यह शंका थी कि वह यूपीए-दो से नाता तोड़ने का बहाना खोजेगी और उसने यह कर दिया, वैसे क्या उन्हें यह इतने वर्षों में पता नहीं चला कि वह किनके साथ काम कर रही है उनका चरित्र कैसा है?
यदि वह अभी नहीं हटी तो वामपंथी इसका लाभ लेते क्योंकि जनता में मंहगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध गुस्सा है और ऐसे में एक क्षेत्रीय दल का सफाया फिर संभव है, अब वह भाजपा का समर्थन लेगी या थर्ड फ्रंट का का प्रश्न है?
यूँ कहिये कि भाजपा या कांग्रेस की यदि २०० से कम सीट आयी (जिसकी प्रबल सम्भावना है) तो कौन बनेगा प्रधानमंत्री?
१.कांग्रेस नीतीश के मुखौटे के साथ?
२. कांग्रेस मुलायम के मुखौटे के साथ?
३. नीतीश तीसरे मोर्चे के मुखौटे के साथ वामपंथियों के समर्थन से ?
४. मुलायम तीसरे मोर्चे के मुखौटे के साथ वामपंथियों के समर्थन से ?
चूंकी वामपंथियों का समर्थन तभी काम आयेगा जब ममता हारेंगी इसलिए ममता को वामपंथियों के समर्थन की जरूरत ही नहीं है
अब
५. बीजेपी नीतीश के मुखौटे के साथ? या
६ .बीजेपी जयललिता के मुखौटे के साथ?
७. बीजेपी ममता के के मुखौटे के साथ?
देखा जय तो इसमें नीतीश के मुखौटे के साथ की बात ही नहीं उठेगी बल्कि दोनों में दूरियां बढनेवाली है। रही बात जयललिता या ममता के साथ तो बीजेपी को कुछ भी खोना नहीं है क्योंकि उसका अपना वजूद उन दोनों प्रान्तों में नहीं है -दोनों ही से बीजेपी को २०१४ या १३ नहीं २०१९ या २०१८ की दृष्टि से लाभ है – किछ सीते उन प्रान्तों में होने से उसका आधार बढेगा – यदि अन्य क्षेत्रीय दल (YSR रेड्डी , बजद, पूर्वोत्तर के दल, शिव सेना, अकाली , साथ दें तो २०० से कम सीट होने पर दोनों में कोई एक महिला जो जितना जुटा सकेगी उस की बारी आयेगी – समाजवादी साथ दे सकते हैं यदि कांग्रेस के मुखौटा नहीं बने वैसे मुलायम या नीतीश जो भी मुलायम के साथ जाएगा २०१८/१९ नहीं इसके पहले के मध्यावधि चुनाव में साफ़ हो जाएगा।
समय आ गया है कि बीजेपी अपनी कार्यप्रणाली सुधारे – यदि मैं उसका संगठन मंत्री होता तो एक टर्म के बाद अपने मुख्य मंत्रियों को केंद्र की राजनीती में भेज देता -जिससे केन्द्रीय नेतृत्व में जननेताओं के संख्या बढ़ती (पैरवी मख्खनबाज़ी के नाम पर राज्य सभासदों की नहीं)- उनमे से कोई स्वतः सामने आ जाता।
वैसे बीजेपी तब तक २०० सीटें प्राप्त नहीं कर सकती जब तक-
१/ उत्तर प्रदेश में उसको ५० सीटें मिलें
२/ आँध्रप्रदेश में १० सीटें मिलें
३/ मिथिला (बिहार का आधा उत्तर-पूर्व भाग) में १५ सीटें मिलें
बांकी जगह या तो संतृप्त हैं या संभव नहीं दिखता पर
४/ दिल्लीमे ५ सीटें मिलें
५ अस्सम में ५ सीटें मिलें
६ उड़ीसा में ५ सीटें मिलें
७ झारखण्ड में १० सीटें मिलें
सही प्रयत्न करने से और ईमानदार लोगों को टिकट देने से यह संभव है की २०१८/१९ के चुनाव में बीजेपी फिर आ सकती है २०० सीट के साथ पर।
कोरे हिंदुत्व के आवाहन से यह नहीं होनेवाला है क्योंकि आब देश में एक मुद्दे पर परिणाम नहीं आनेवाले हैं।
इसे राष्ट्रिय सम्मान के नेता ५०-६० वर्ष के बीचवाले खड़े करने चाहिए -जिन्हें ४० -५० वर्ष के बीच ही प्रांत से निकाल देना चाहिए – उन्हें में से जो बहुत सफल नहीं हों उम्हे प्रांत में वापस ६५-७० के बीच भेजना चाहिए- और ७५ के बाद किसी को भी किसी भी हालत में में ऐसे दायित्व पर नहीं होना चाहिए. इस दृष्टिसे अटलजी और अडवानीजी के अपने बारे में निर्णय गलत थे।
देश युवाओं का है यह हमें नहीं भूलना चाहिए और विश्व में युवा नेताओं के भरमार है पर कोई प्रांतीय नेता सीधे कूद लगाकर राष्ट्रिय नेता नहीं बन सकता है यह भी याद रहे.
प्रिय सभी,
आप सभी की टिप्पणियो का सम्मान करते हुए कहता हू कि, ये सभी राजनीतिक उठापटक की बाते है. राष्ट्रनिर्माण मे राजनीतिक दल की भूमिका इस राष्ट्र्हितकारक दृष्टि से देखे तो मेरा स्पष्ट मत है कि,–
१- भाजपा को पूर्णविचारपूर्वक हिन्दुत्व के आधार पर अपनी आर्थिक, विदेशविषयक, शिक्षा, उद्योग, स्वदेशी, कृषि, आरक्षण आदि सभी विषयो पर अपनी नीतिया सार्वजनिक रूपसे घोषित पुनः करनी चाहिये.
२. उनके आधार पर ‘लोक-शिक्षण’ का एक अभियान लेना चाहिये.
३. किसी भी अन्य दल से या नेता से किसी भी प्रकारका गठबन्धन न करते हुए केवल अपने बल पर केवल अपने चिह्न पर सभी स्तरो के, सभी प्रान्तो मे चुनाव मे भाग लेना चाहिये.
४. सत्ता मिले या नही धैर्य पूर्वक इसी मार्ग पर चलते रहना चाहिये. सतत लोकशिक्षण का अभियान करते रहना चाहिये. लोकशिक्षण सभी स्तर पर करते समय दूसरे पक्षो की आलोचना यत्किन्चित भी न करे, अपनी बात करे.
५. सत्ता मिलने पर अपनी बात से समझौता कदापि न करे
इसी से भाजपा और देशका भला होगा.
भाई धनकर जी,२०१८/१९ काफी दूर है. २०१३/१४ के बारे में बताएं.मेरे विचार में अगले लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा को बिना संकोच के नरेन्द्र मोदी का नाम घोषित करना होगा.भारत की राजनीती में नायक विहीन होकर आगे बढ़ना संभव नहीं है. गुजरात के चुनावों के बाद मोदी जी का राष्ट्रिय राजनीती में आना निश्चित लगता है. वही भाजपा को २०० के आस पास सीटें dila sakte hain.
मुझे लगता है, की बी जे पी के पास हुकम का पत्ता है, और वह है नरेन्द्र मोदी.
किसी सामान्य तर्क या निर्वाचन सिद्धांतों से इस पर विचार ना करें.
मोदी का कोई दूसरा विकल्प मुझे किसी भी पक्ष में दिखाई नहीं देता.
उपलब्धियां ही उपलब्धियां हैं उसकी —दूसरा मोदी शीघ्रता से, सीखता है, निःस्वार्थी है, और कांग्रेसी शठों के सामने शठ होना जानता है| धूर्तों के सामने धूर्त है|