भारत बनाम ईंडिया……..
सहमा सकुचा सिमटा सा
उपेक्षित,निरुत्साह, भारत है डरा हुआ
ईंडिया है स्वाभिमानी,स्वछंद स्वतंत्र
उदंडता,उत्साह उमंग से भरा हुआ
सहमा हुआ है डरा हुआ है
पर अडिग है अस्तित्व को बचाने के लिये
विडंबना है कि हर ईंडियन आतुर है
भारत को बेचकर खाने के लिये……
दुनिया को बदल दे भारत में
वो ज़ज्बा वो उमंग है
पर क्या करे ये अपने ही लोगों से तंग है
आधुनिकता का चोला पहनने को
भारत भी डोल रहा है
क्युंकि आज हर भारतीय खोल रहा है
दादी नानी को वॄधाश्रम में देखा
और घर मे हर बच्चा कुत्ता पाल रहा है
हँसी आती है हर उस ईंडियन पर
जो बीना नींव के ही मकान ढाल रहा है
अमेरीका में एक बडा सा बँगला हो
आज भारतीयों का यही सपना है
भूल गये सब वो संस्कृती वो सभ्यता
वो लहलहाता खेत मिट्टी की खुशबू
जो हमारा और हमारे देश का अपना है
आज भी भारत का हर आँगन
और हर आँगन पर खडा खाली चारपाई
चीख चीख कर पुछ रहा
घर के हर दिवार से
कहाँ गये सब बच्चे,
क्युँ नहीं दादी-नानी आईं?
काश की बेजान पडा ये दिवार बोलता
सुनसान पडे आँगन का राज़ खोलता
कहता चीख कर कि बेवकुफ़ों
कुछ साल बाद ये आँगन भी आयेंगें याद
ये आँगन भी आयेंगें याद……..
the lines here are meant for deep thinking……..
इन्डिया और भारत का अन्तर मिट जाये तो बात बने
दूरी कम करने की अपनी कोशिश करता रहता हूँ