भारत को शक्तिशाली बनाकर उभारना होगा

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– ललित गर्ग –
महासंकट के समय में कैसी होती है जीवनशैली, राजनीति, प्रशासन, समाज एवं अर्थ की नीतियां? कुछ विचारकों एवं विशेषज्ञों का मानना है कि कठिन दौर की समस्त नीतियां जीवन की कठोर एवं क्रूर सच्चाइयों से निर्मित होती है, न कि दूरस्थ आशावाद एवं आदर्शवाद से। भविष्य के सपने और मिथकीय सच्चाई, दोनों ही थोड़ी देर के लिए स्थगित हो जाते हैं। आज हमारे जीवन के केंद्र में कोरोना वायरस है और उससे उत्पन्न हुआ जीवन संकट है। अतः आज की सोच, व्यवस्था एवं आचरण भी वायरस के विमर्श पर केंद्रित है। कोरोना मुक्ति के लिये न केवल मनुष्य बल्कि प्रशासन एवं राजनीति को न्यूनतम आचार संहिता में बांधना जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के सूत्रों पर भरपूर बल देकर एक सशक्त अभियान चलाया जाए ताकि जीवन के हर पक्ष पर हावी हो रही असुरक्षा, आशंका एवं असंयम की कालिमा को हटाया जा सके, ताकि कोरोना का महासंकट हमारे राष्ट्रीय जीवन एवं चरित्र के लिए खतरा नहीं, बल्कि जीवन उजाला बन सके। हम फिर से पूर्ववत स्थिति में ही नहीं लौटे बल्कि एक शक्तिशाली भारत बनकर उभरे, यही सबसे बड़ी चुनौती है।
कोरोना के महासंकट से जूझ रहे सम्पूर्ण भारत का समय और इस महासंकट से हुए भारी नुकसान से उपरत होने के लिये नरेन्द्र मोदी की विकास व कल्याणकारी योजनाओं की ओर हमंे पूरी जिजीविषा से आगे बढ़ना होगा। पहले नेताओं की छवि उनके द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं और राज्य के संसाधनों के विकासपरक वितरण से बनती-बिगड़ती थी लेकिन कोरोना महामारी ने शासन-व्यवस्था के चरित्र में आमूल-चूल परिवर्तन ला दिया है, भले ही ये परिवर्तन अस्थाई हों। लेकिन इन परिवर्तनों एवं विकास की योजनाओं में हमें सकारात्मकता ढूंढ़नी ही होगी। क्योंकि कई प्रकार के जानलेवा दबावों से हमारा राष्ट्रीय जीवन प्रभावित है। विडम्बनापूर्ण है कि अगर राष्ट्रीय जीवन निर्माण की कहीं कोई आवाज उठाता है तो लगता है यह कोई विजातीय तत्व है जो हमार जीवन में घुसाया जा रहा है। जिस मर्यादा, संयम, सद्चरित्र और सत्य आचरण पर हमारी संस्कृति जीती रही है, सामाजिक व्यवस्था बनी रही है, जीवन व्यवहार चलता रहा है उन्हें  आज अधिक प्रभावी एवं सशक्त तरीके से जीने की जरूरत है। नरेन्द्र मोदी टूटते-बिखरते विश्वासों को जोड़ने एवं आशा का संचार करने के लिये एक अनूठे राष्ट्रीय चरित्र को निर्मित कर रहे हैं, जो न तो आयात हुआ है और न निर्यात और न ही इसकी परिभाषा किसी शास्त्र में लिखी हुई है। इसे देश, काल, स्थिति व राष्ट्रीय हित को देखकर बनाया गया है, जिसमें हमारी संस्कृति एवं सभ्यता शुद्ध सांस ले सके, लगभग विनष्ट हो चुके राष्ट्र का पुनर्संृजन एवं पुनर्निर्माण हो सके।
महामारियां हो या युद्ध की संभावनाएं, सीमाओं पर संकट हो या जन-स्वास्थ्य पर मंडरा रहे खतरे आज भी और पहले भी सामाजिक अंतर्विरोध को बढ़ाते रहे हैं और अमीरी-गरीबी के बीच की खाई को और गहरी करते रहे हैं। यह पूरी दुनिया में हो रहा है। ऐसे में, भारतीय राजनीति में भी फिर से गरीब, मजदूर जैसे सामाजिक रूप केंद्र में आ गयेे हैं। इस नए दौर में भारतीय राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन दिखाई देरहा है। जन-स्वास्थ्य, असुरक्षा बोध, चिकित्सकीय सुविधा जैसे शब्द हमारी जीवनशैली में महत्वपूर्ण हो गये हैं। इन बदले परिदृश्यों एवं संकट के धुंधलकों के बीच राजनीति समाधान बनने की बजाय समस्या बने, यह विडम्बनापूर्ण है। महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में जो कुछ देखने को मिल रहा है, वह चिन्ताजनक है। पिछले कई वर्षों से राजनैतिक एवं सामाजिक स्वार्थों ने हमारे राजनीति, इतिहास एवं संस्कृति को एक विपरीत दिशा में मोड़ दिया है और प्रबुद्ध वर्ग भी दिशाहीन मोड़ देख रहा है। अपनी मूल संस्कृति को रौंदकर किसी भी अपसंस्कृति को बड़ा नहीं किया जा सकता। जीवन को समाप्त करना हिंसा है, तो जीवन मूल्यों को समाप्त करना भी हिंसा है। महापुरुषों ने तो किसी के दिल को दुखाना भी हिंसा माना है। लेकिन कोरोना पीड़ितों के घावों के गर्म तवों पर राजनीतिक रोटियां सेंकना तो सबसे बड़ी हिंसा एवं अनैतिकता है। हमें सकारात्मक राजनीति की ओर अग्रसर होना होगा, सत्ता पक्ष और विपक्ष में संवाद-विवाद को मानवीय अस्तित्व के बड़े सवालों की ओर बढ़ाना होगा। कोरोना ने जैसे डरावने एवं विनाशक दृश्य उपस्थित किये हंै, उनमें सत्ता केंद्रित राजनीति की स्वार्थपरकता कमजोर करना होगा एवं सेवाभाव एवं परोपकार की राजनीति का विस्तार करना होेगा। संकटों का जवाब सेवाभाव ही होता है, इसी पैमाने पर राजनीति को पहले से भी ज्यादा परखा जाना चाहिए एवं इन्हीं दिशाओं में राजनीति को मोड़ देना चाहिए।
 राजनीति चाहे देश की हो या दुनिया की, जिसके केंद्र में जहां पहले मानवाधिकार, समानता, उपेक्षित समूहों के प्रश्न महत्वपूर्ण होते थे, वहां अब इस कोरोना वायरस के विरुद्ध लड़ाई, इसके लिए संसाधन, इसकी दवा व उनका वितरण राजनीति के केंद्र में है। जो देश इस लड़ाई में अच्छा प्रदर्शन करेगा, उसकी राजनीति और राजनेताओं को पूरी दुनिया में सम्मान मिलेगा। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी नीतियों एवं कोरोनामुक्ति की योजनाओं के लिये पूरी दुनिया में प्रशंसा पा रहे हैं, यह हमारे लिये गर्व का विषय है। जबकि पूरी दुनिया में चिकित्सा की राजनीति व राजनीति की चिकित्सा का दौर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के इर्द-गिर्द खड़ा हो रहा विवाद भी यही साबित करता है कि अब महामारी व संक्रमण के विमर्श को राजनीति में प्रतीकात्मक शक्ति का औंजार बनाना होगा। भारत की भूमिका इसमें प्रत्यक्ष है।
हमें कोरोना संक्रमण के दौर में सकारात्मक सोच एवं नीतियों के नये क्षितिज उद्घाटित करने ही होंगे। क्योंकि राजनीतिक शक्तियां एवं भौतिकतावादी कोरोना वायरस या महामारी के कारण पूरी दुनिया को इस तरह घरों में कैद करने की स्थितियों पर प्रश्न खड़े कर रहे हैं, इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा। हालांकि वे अभी तक कोरोना का समाधान या इलाज नहीं ढूंढ़ पाए हैं, जबकि पर्यावरणविद और प्रकृतिप्रेमियों को लॉकडाउन में इस महासंकट की समस्या का सकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहा है और ऐसा होते हुए देखा भी गया है। उत्तर कोरोना काल में उन्नत एवं स्वस्थ जीवनशैली के लिये लॉकडाउन एवं सामाजिक दूरी को जरूरी माना जाने लगा है और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिये उन्हें अपनाने पर विचार होना चाहिए। यह एक बड़ा सत्य है कि कोरोना वायरस का हमला भी प्रकृति का संतुलन बिगड़ने एवं सुविधावादी जीवनशैली का परिणाम है। स्वार्थ एवं आधुनिकता की अंधी दौड़ में आज पूरी दुनिया ने प्रकृति का जबर्दस्त दोहन किया है। अत्याधिक प्रदूषण एवं प्रकृति का दोहण जहां प्रकृति के लिये एक खतरनाक वायरस हैं, जिस तरह कोरोना वायरस मनुष्य जीवन के लिये जानलेवा वायरस है।
प्रकृति एवं पर्यावरण ही नहीं, जीवन में गिरावट एवं अवमूल्यन के अनेक स्तर हैं। समस्याएं भी अनेक मुखरित हैं पर राष्ट्रीय चरित्र को विघटित करने वाले कुछ प्रमुख बिन्दु हैं- साम्प्रदायिक संकीर्णता, राजनीतिक स्वार्थ, आर्थिक अपराध। इसलिए उनके समाधान के बिन्दु भाईचारा, शिक्षा पद्धति में सुधार, लोकतंत्र शुद्धि, व्यसन मुक्ति, अश्लीलता निवारण, शाकाहार, योग, आयुर्वेद आदि हैं। जीवन विनाश की ढलान पर फिसलती मनुष्यता के लिए सबके दिल में पीड़ा है, लेकिन इस पीड़ा से मुक्ति के लिये एक नयी मनुष्यता को विकसित करने, राजनीति में नैतिकता की प्रतिष्ठा, संयम एवं अध्यात्ममय जीवनशैली जरूरी है। आवश्यकता है इन मूल्यों को जीने की। आवश्यकता है मनुष्य को प्रामाणिक बनाने की। आवश्यकता है आदर्श एवं संतुलित समाज रचना की। आवश्यकता है राष्ट्रीय हित को सर्वाेपरि रखकर चलने की, तभी देश के चरित्र में कोरोना से हुए नुकसान को भरने की ताकत आ सकेगी। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ एवं सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामय के घोष को भारत की जीवनशैली एवं जन-जन की जीवनशैली बनाने के लिये भी तत्पर होना होगा।  

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