भारतीय सेना की‘सदभावना’ को गिलानी का‘अ’सलाम !

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मनोज ज्वाला


जम्मू कश्मीर में अलगाववादी आतंकी समूहों तथा उनके भाडे के
टट्टुओं एवं मासूम बच्चों के हाथों पत्थरबाजी का शिकार होती रही भारतीय
सेना और उसकी सदभावना सलाम करने योग्य है, प्रणम्य है । मालूम हो कि
खिलौनों से खेलने की उम्र के बच्चों को आतंकियों के हाथों का खिलौना बनने
से रोकने-बचाने तथा उनके भाग्य संवारने और उन्हें देश का अच्छा नागरिक
बनाने के लिए भारतीय सेना पत्थरों की चोट खा कर भी प्रतिकार करने के
बजाय उपकार व सत्कार करते हुए अपने सदभावना-विद्यालयों के द्वारा उन्हें
बेहतर शिक्षा व संस्कार प्रदान करने में लगी है । जी हां ! भारतीय सेना
बगैर किसी भेदभाव के ऐसे दर्जनों सदभावना विद्यालयों का संचालन करती है,
जहां अत्याधुनिक ज्ञान-विज्ञान से युक्त इतनी बेहतर शिक्षा प्रदान की
जाती है कि अभी सीबीएसई बोर्ड द्वारा जारी हुए दसवीं कक्षा के
परीक्षा-परिणाम से इसकी पुष्टि हो जाती है । इन सदभावना विद्यालयों के
शत-प्रतिशत बच्चे जहां उत्तीर्ण हुए हैं, वहीं इनके कई बच्चे ९०% से अधिक
अंक प्राप्त किये हैं ।
उल्लेखनीय है कि राज्य में ऐसे कुल 43 सदभावना विद्यालय (गुडविल
स्कूल) भारतीय सेना के द्वारा संचालित किये जा रहे हैं, जिनमें से तीन
सीबीएसई से बोर्ड से सम्बद्ध हैं, जबकि शेष सभी जम्मू-कश्मीर एजूकेशन
बोर्ड से । मिली जानकारी के मुताबिक राजौरी स्थित सदभावना विद्यालय के एक
छात्र हित्ताोम अयूब ने ९४.०२% अंक पाकर वहां ‘टॉप’ किया है । जम्मू
कश्मीर के आतंक-प्रभावित इलाकों में सेना द्वारा संचालित इन सदभावना
विद्यालयों में 15,000 से भी अधिक छात्र देश का अच्छा नागरिक बनने की
शिक्षा पा रहे हैं । भारतीय सेना की अथक श्रमशीलता व राष्ट्रनिष्ठ
बौद्धिकता से संचालित ये स्कूल अशांति के उस दौर में भी खुले रहते हैं,
जब घाटी में पत्थरों की हिंसक टंकार से वहां का वातावरण बिगड चुका होता
है तो पूरा देश उन फिरकापरस्त समूहों को मुंहतोड जवाब देने की मांग करने
लगता है । लेकिन सेना की सहनशीलता के कारण तब भी उन विद्यालयों में
पढ़ाई-लिखाई की दिनचर्या पर कोई असर नहीं पड़ता है ।
गौरतलब है कि सेना द्वारा संचालित इन सद्भावना विद्यालयों
(गुडविल स्कूलों) से काफ़ी प्रतिभावान छात्र भी निकल कर सामने आए हैं ।
इनमें से एक छात्र ताजमुल इस्लाम ने किक-बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीत कर पूरे
राज्य का नाम रोशन किया था । बावजूद इसके, अलगाववादी आतंकी समूहों व उनके
समर्थकों द्वारा इन विद्यालयों को बाधित किये जाने की कोशिशें की जाती
रही हैं । अलगाववादी आतंकियों का संरक्षक सैय्यद शाह अली गिलानी सन 2013
से ही इन सदभावना विद्यालयों के विरुद्ध जहर उगल रहा है । वह कहता है कि
सेना द्वारा चलाये जा रहे सद्भावना स्कूलों में सनक और बेहूदगी फैलाई जा
रही है, जिसे बंद किया जाना चाहिए । गिलानी के अनुसार ये सदभावना
विद्यालय कश्मीरी छात्रों को इस्लाम से विमुख कर रहे हैं, क्योंकि यहां
दी जाने वाली शिक्षा मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा से सर्वथा भिन्न है
। गिलानी अभिभावकों से इन सदभावना विद्यालयों का बहिष्कार करने की अपील
करते हुए कहता है कि “थोड़े फायदों के लिए हम अपनी अगली पीढ़ी को गँवा रहे
हैं । एक देश जो आज़ादी के लिए लड़ रहा है, वो कब्जेदारों को अपने बच्चों
की देखरेख करने की इज़ाज़त नहीं दे सकता ।” यह अलग बात है कि खुद गिलानी के
सभी बच्चे मदरसों से भिन्न विभिन्न विदेशी स्कूलों में शानदार शिक्षा पा
रहे हैं । गिलानी के अलावे अन्य दूसरे अलगाववादियों ने भी इन स्कूलों
में दी जा रही शिक्षा के विरुद्ध एक अभियान चला रखा है ।
बावजूद इसके , सदभावना विद्यालय सेना के जवनों व अधिकारियों की
सहनशीलता व राष्ट्रीय निष्ठा के कारण न केवल कुशलतापूर्वक चल रहे हैं,
बल्कि अनेक उपलब्धियां भी हासिल कर रहे हैं ; क्योंकि उन्हें आम जनता का
समर्थन प्राप्त है । वे इस तथ्य व सत्य को समझने लगे हैं कि इन
विद्यालयों का विरोध करने वाले नेतागण अपने बच्चों को दिल्ली-मुम्बई या
विदेशों के महंगे से महंगे विद्यालयों से शिक्षा दिलवा रहे हैं, जबकि
उन्हें इन विद्यालयों का बहिष्कार करने की नसीहत दे रहे हैं । इधर इन
विद्यालयों के प्रति आम जनता में बढती सदभावना से ख़फ़ा हिज़्बुल मुजाहिदीन
द्वारा इसके विरोध में जगह-जगह पोस्टर्स चिपकाए जाने की भी खबरें आती रही
हैं ।
उल्लेखनीय है कि कश्मीर में स्कूल और शिक्षा सदा से
अलगाववादियों व आतंकियों के निशाने पर रहे हैं । 2016 में इनके द्वारा
फैलाई गई अशांति के कारण कई सरकारी व गैर-सरकारी स्कूल 6 महीने तक बंद
रहे थे , लेकिन उन दिनों भी सेना के ये सदभावना विद्यालय (गुडविल स्कूल)
चलते रहे थे । भारतीय सेना की ओर से समय-समय पर घाटी में ‘स्कूल चलो
अभियान’ भी चलाया जाता रहा है, जिसके तहत बच्चों को स्कूलों में भेजने के
बावत उनके अभिभावकों को प्रेरित किया जाता है और उन्हें मुफ़्त में कोचिंग
की सुविधा भी दी जाती रही है । इतना ही नहीं, इन छात्रों को पढ़ाई के
अलावा खेल-कूद सहित अन्य क्रियाकलापों में भी बढ़-चढ़ कर भाग लेना सिखाया
जाता है । इन सदभावना विद्यालयों में पदस्थापित प्रशिक्षित एवं योग्य
शिक्षक किसी भी अच्छे शिक्षण संस्थान के शिक्षकों से किसी भी मायने में
कम नहीं होते हैं और इनकी शैक्षणिक गुणवत्ता भी बेहतर होती है । जैसा कि
नाम से ही स्पष्ट है, सेना के इन सदभावना विद्यालयों का उद्देश्य बच्चों
को समाज धर्म व राष्ट्र के प्रति सदभाव की पृष्ठभूमि पर विज्ञान-सम्मत
शिक्षा दे कर उन्हें प्रतिभावान आदर्श नागरिक बनाना रहा है । इस कारण
कम्पुटरीकृत कक्षाओं तथा वृहत अधुनिक पुस्तकालयों और अन्य आधारभूत
सुविधाओं-संरचनाओं से सुसज्जित-समृद्ध इन सदभावना विद्यालयों की गुणवत्ता
कम से कम उन मदरसों में दी जाने वाली दकियानुसी शिक्षा से तो हर मायने
में बीस है, जहां बच्चों को मजहबी कट्टरता के नाम पर घृणा की घूंट पिलायी
जाती है । अलगाववादियों को यही बात चूभती है कि अगर इन सदभावना
विद्यालयों का विस्तार होता जाएगा तो फिर उन्हें सेना के विरुद्ध
पत्थरबाज बच्चे आखिर कहां से मिलेंगे ? यही करण है कि गिलानी जैसे लोग
सेना के जवानों पर पत्थर मरने वालों को तो सलाम करते हैं, किन्तु उन
पत्थरों की मार खा-खा कर भी उनके प्रति सदभावना रखते हुए ‘गुडविल स्कूल’
चलाने वाली सेना की सलामती वे तनिक भी नहीं चाहते । बावजूद इसके,
दहशतगर्दी के अंधेरे में डुबी कश्मीर घाटी को शिक्षा की मशाल से रोशन
करने के निमित्त सन १९९८ से मात्र चार ‘सदभावना विद्यालयों (गुडविल
स्कूलों) से शुरू हुआ सेना का यह अभियान विस्तार पाता जा रहा है । इन
विद्यालयों की संख्या चार से बढ कर अब ४३ हो गई है, जिनमें लगभग २०,०००
बच्चों को अलगाववाद के विरुद्ध राष्ट्रीयता के पाठ पढाते हुए उनके सुन्दर
भविष्य गढे जा रहे हैं, उन्हें भारत के निष्ठावान नागरिक बनाये जा रहे
हैं ।
• मनोज ज्वाला ; मई’ २०१९
• दूरभाष- ६२०४००६८९७

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