देशी गाय बनाम विदेशी गाय

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देशी गाय
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देशी गाय
देशी गाय

न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों ने १९९३ ई. में डायबिटीज (टाइप-१), ऑटो इम्यून रोग, कोरोनरी आर्टरी डिजीज जैसी कई बीमारियों की जड़ यूरोपियन गायों का दूध होने का दावा (हाइपोथिसिस)पेश किया है!इस दूध को वे A1 दूध कहते हैं!यूरोपियन गोवंशमें से होल्सटीन, फ्रिजियन, जर्सी, स्विसब्राउन के दूध में BCM 7 जहर होने का मुद्दा उठने के बाद उन्होंने ऐसी गायों की पहचान के लिए पशु के बालों की जांच करने की प्रणाली विकसित की और उसका पेटेंट लिया!BCM 7 पैदा करने वाले दूध के उस अंश को A 1 बीटाकेसीन कहते हैं और उसके पाचन से जो खतरनाक रस निर्माण होता है, उसे BCM 7 कहते हैं!यह नशीला होता है; क्योंकि उसमे अफीम ‘मॉर्फीन’ होता है!न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों ने जब एशिया के गोवंश की जांच की तब वे फूले नहीं समाये! सभी भारतीय गोवंश, जिसमे गीर, साहीवाल, कांकरेज, देवणी, थारपारकर आदि गिनी जाती है, A 1 मुक्त यानि सुरक्षित पाए गए!
BCM 7 का पूर्ण रूप ‘बीटा-केझो-मार्फीन 7 ‘ है! इन वैज्ञानिकों के अध्ययन से प्रभावित होकर कुछ अमीर व्यक्तियों ने न्यूजीलैंड के नागरिकों के स्वास्थ्य रक्षा हेतु BCM 7 मुक्त दूध का उत्पादन और वितरण करने के लिए सं 2000 ई. में एक निजी कंपनी स्थापित की!उस कंपनी का नाम A २ कारपोरेशन रखा!
दुनिया के अमीर देशों ने नागरिकों की स्वास्थ्य रक्षा के लिए इस विषय में अनुसन्धान करने पर जोर दिया! रूस,जापान, पोलैंड, जर्मनी ने A 1 दूध के दुष्परिणामों के अध्ययन किये! उनका कहना है कि BCM 7 एक चालाक शैतान है, वह जब तक खून में नहीं पहुँचता- उससे कोई खतरा नहीं रहता! न्यूजीलैंड के वैज्ञानिकों को खून में BCM 7 पहचानने की जांच विकसित करने में सफलता नहीं मिली थी, लेकिन रशियन वैज्ञानिकों ने गाय के खून में BCM 7 ढूँढ़ने का तरीका विकसित किया और उसका पेटेंट करा लिया! रूस की चार अनुसन्धान-संस्थाओं के १२ वैज्ञानिकों ने काम किया!उन्होंने दिखा दिया कि जो शिशु (एक वर्ष से कम आयु वाले) A 1 दूध पीते हैं, उनके खून में BCM 7 आ जाता है!१३१ करोड़ आबादी वाले भारतियों के स्वास्थ्य का करीबी सम्बन्ध इस विषय से है! हम सब इस संकट से अंजान हैं!
भारत में विगत ८० से ९० के दशक में चलाये गए नस्ल सुधार अभियान ने यूरोपियन गोवंश के वीर्य से ग्रामीण क्षेत्र में पशुपालन विभाग ने करोड़ों A २ (अच्छी) गायों को A 1 (विषैला) बना दिया है!और हम जब बाजार में थैली का दूध लेते हैं, वह कई A 1 गायों के दूध का मिश्रण होता है! वही पीकर हम बड़े हुए! अब बार-बार यह कहा जा रहा है कि भारत में डायबिटीज, दिल की बीमारियां, ऑटोइम्यून रोग बढ़ रहे हैं!भारत इन बीमारियों की वैश्विक ‘राजधानी’ हो गया है!
आज देश में A २ दूध (स्वास्थ्यरक्षक) A १ (विषैले) दूध के साथ बेचा जा रहा है! यदि हम A २ दूध स्वतंत्र रूप से बेचें, उपलब्ध कराएं तो भारत की आने वाली पीढ़ियां जहरीले दूध A 1 से बच सकती हैं!यही सोच रखकर न्यजीलैंड में A २ कारपोरेशन की स्थापना की गयी थी!
जब न्यूजीलैंड के नागरिकों को A २ दूध की आवश्यकता महसूस हुई, उन्हें दूध पीने के लिए १० वर्ष तक इंतज़ार करना पड़ा! उन्हें भारत से A २ गोवंश का वीर्य या A2 सांड मंगवाने पड़े, फिर उनसे भारतीय नस्ल की गायें बनीं और वे A2 दूध देने लगीं, लेकिन हमें यह सब करने की आवश्यकता नहीं है!हमारे सभी राज्यों में सैंकड़ों गोपालक हैं, जो शुद्ध A2 भारतीय गायों को सैंकड़ों की संख्या में पाल रहे हैं!इसीलिए ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि हम खुशनसीब हैं, हमें १० वर्षों का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा!
करनाल के पशु-जेनेटिक अनुसन्धान के नतीजे:- भारत सरकार के करनाल स्थित राष्ट्रीय पशु जेनेटिक अनुसन्धान संस्थान में २००९ ई. में भारतीय गो और भैंस वंश की आनुवंशकीय जांच की थी! दोनों में A2 जींस पाया गया, वे A1 मुक्त पाई गईं!
भारत से वीर्य और A2 सांड ले जाने के बाद पर्याप्त मात्र में A2 दूध मिलने के लिए १० वर्ष लगेंगे! यह १० साल भारत के लिए सुहावना अवसर है! हम सिर्फ A2 दूध का निर्यात करके अरबों रुपये/डॉलर कमा सकते हैं!इन दस वर्षों में भारत के गोपालक किसान ५० वर्षों के अँधेरे युग से उभर सकते हैं!विकसित देश A2 दूध स्वयं पूर्ण हों,इसके पहले हम A2 दूध के वैश्विक उत्पादक बन जाएँ!
इसके लिए हमें निम्न लिखित नीतियां अपनानी होंगी!
१. भारतीय A2 सांडों का निर्यात बंद करें!
२.भारतीय गोवंश के दूध की A1,A2 स्थिति जानने के लिए राज्य सरकारें जिला स्तर पर जेनेटिक जांच की प्रयोगशालाएं स्थापित करें!
३.A2 दूध बेचकर आनेवाली राशि से A2 दूध मानवीय स्वास्थ्य पर होने वाले अच्छे परिणामों के अनुसन्धान के लिए चिकित्सा महाविद्यालयों को प्रेरित करें!
ये बातें यदि राज्य सरकारें करती हैं तो वे आर्थिक दृष्टि से संपन्न हो जाएँगी!मध्यपूर्व के देश डीजल-पेट्रोल के बल पर सुसम्पन्न हो गए हैं! हमारा गोवंश हमारे लिए भाग्यविधाता हो सकता है! आज पुरानी मूर्तियां देश के बाहर ले जाना जैसे प्रतिबंधित है, वैसे ही भारत के सांड और उनका वीर्य ले जाने पर प्रतिबन्ध लगाया जाय!

(लेखक डॉ.अशोक जी काले, प्रेषक श्री रामदयाल जी पोद्दार, कल्याण जुलाई,२०१५ अंक से साभार)

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