भारतीय मुद्रा का विमुद्रीकरण : एक बार फिर

newcurrencyडा. राधेश्याम द्विवेदी
भारत की अपनी राष्ट्रीय मुद्रा है। इसका बाज़ार नियामक और जारीकर्ता भारतीय रिज़र्व बैंक है। नये प्रतीक चिह्न के आने से पहले रुपये को हिन्दी में दर्शाने के लिए ‘रु’ और अंग्रेज़ी में Rs. का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक भारतीय रुपये को 100 पैसे में विभाजित किया गया है। सिक्कों का मूल्य 5, 10, 20, 25 और 50 पैसे और 1, 2, 5 और 10 रुपये भी है। बैंकनोट 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 के मूल्य पर हैं। भारतीय करेंसी को भारतीय रुपया (INR) तथा सिक्कों को “पैसे” कहा जाता है। एक रुपया 100 पैसे का होता है । भारतीय रुपये का प्रतीक है- यह डिजाईन देवनागरी अक्षर “र”(ra) और लैटिन बड़ा अक्षर “R” के सदृश है जिसमें ऊपर दोहरी आड़ी रेखा है।
भारतीय रुपया चिह्न (₹) भारतीय रुपये (भारत की आधिकारिक मुद्रा) के लिये प्रयोग किया जाने वाला मुद्रा चिह्न है। यह डिजाइन भारत सरकार द्वारा 15 जुलाई 2010 को सार्वजनिक किया गया था मूलतः यह नया चिह्न देवनागरी अक्षर ‘र’ पर आधारित है किन्तु यह रोमन के कैपिटल अक्षर R का बिना उर्ध्वाकार डण्डे का भी आभास देता है। अतः इस चिह्न को इन दोनो अक्षरों का मिश्रण माना जा सकता है। मूल रूप से तमिल भाषी इसके अभिकल्पक उदय के अनुसार जब वो इसका डिजाइन सोच रहे थे तो उन्हें लगा कि सिर्फ देवनागरी लिपि से संबंधित कोई चिन्ह ही भारतीय भावनाओं को व्यक्त कर सकता है। ऊपर की तरफ समान्तर रेखायें (उनके बीच में खाली जगह समेत) भारतीय झण्डे तिरंगे का आभास देती हैं।
भारतीय मुद्रा का निर्माण:-प्रारंभ में छोटे राज्य थे जहां वस्तु विनिमय अर्थात एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान संभव था। परंतु कालांतर में जब बड़े-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ तो यह प्रणाली समाप्त होती गई और इस कमी को पूरा करने के लिए मुद्रा को जन्म दिया गया। इतिहासकार के. वी. आर. आयंगर का मानना है कि प्राचीन भारत में मुद्राएं राजसत्ता के प्रतीक के रूप में ग्रहण की जाती थीं। परंतु प्रारंभ में किस व्यक्ति अथवा संस्था ने इन्हें जन्म दिया, यह ज्ञात नहीं है। अनुमान यह किया जाता है कि व्यापारी वर्ग ने आदान-प्रदान की सुविधा हेतु सर्वप्रथम सिक्के तैयार करवाए। संभवत: प्रारंभ में राज्य इसके प्रति उदासीन थे। परंतु परवर्ती युगों में इस पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि मुद्रा निर्माण पर पूर्णत: राज्य का अधिकार था। कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में मुद्राओं का प्रचलन विदेशी प्रभाव का परिणाम है। वहीं कुछ इसे इसी धरती की उपज मानते हैं। विल्सन और प्रिंसेप जैसे विद्वानों का मानना है कि भारत भूमि पर सिक्कों का आविर्भाव यूनानी आक्रमण के पश्चात हुआ। वहीं जान एलन उनकी इस अवधारणा को गलत बताते हुए कहते हैं कि ‘प्रारम्भिक भारतीय सिक्के जैसे ‘कार्षापण’ अथवा ‘आहत’ और यूनानी सिक्कों के मध्य कोई सम्पर्क नहीं था।
मुद्रा से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें:-
सिक्के:-वर्तमान में भारत में, 50 पैसे, 1 रुपये, 2 रुपये, 5 रुपये और 10 रुपये के मूल्यवर्गों में सिक्के जारी किये जा रहे हैं । 50 पैसे तक के सिक्के “छोटे सिक्के” और 1 रुपये तथा उसके ऊपर के सिक्कों को “रुपये सिक्के” कहते है। 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के 30 जून 2011 से संचलन से वापिस लिये गये हैं, अतः वे वैध मुद्रा नहीं रहे।
करेंसी:-वर्तमान में, भारत में `.10, `. 20, `.50, `.100, `.500 और `.1000 मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी किये जा रहे हैं । क्योंकि ये भारतीय रिज़र्व बैंक (रिज़र्व बैंक) द्वारा जारी किये जाते हैं, इसलिए इन्हें “बैंकनोट” कहा जाता है । `.1, `.2 और `.5 मूल्यवर्गों के नोटों का मुद्रण बंद किया गया है क्योंकि इनका सिक्काकरण हो चुका है। तथापि, पहले जारी किये गये ऐसे नोट अभी भी संचलन में पाये जा सकते हैं और ये नोट वैध मुद्रा बने रहेंगे ।
उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण:- मुख्यतः अघोषित धन पर नियंत्रण रखने के प्रयोजन से, जनवरी 1946 में उस समय संचलन में मौजुद `.1000 और `.10000 के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण किया गया था। वर्ष 1954 में `.1000, `.5000 और `.10000 के उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों को फिर से जारी किया गया और जनवरी 1978 में इन बैंकनोटों (`.1000, `.5000 और `.10000) को एक बार फिर विमुद्रीकृत किया गया।
एक रुपया भारत सरकार की देयताओं में:- करेंसी ऑर्डिनेंस 1940 के अंतर्गत जारी एक रुपये के नोट भी विधि मान्य मुद्रा हैं और उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम,1934 के सभी प्रयोजनों हेतु रुपये सिक्के के रूप में माना गया हैं।क्योंकि सरकार द्वारा जारी रुपये सिक्के भारत सरकार की देयताओं में आते हैं, इसलिए सरकार द्वारा जारी एक रुपया भी भारत सरकार की देयता है।
मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका:- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के आधार पर मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका निर्धारित हुई है। भारतीय रिज़र्व बैंक भारत में मुद्रा संबंधी कार्य संभालता है। भारत सरकार, रिज़र्व बैंक की सलाह पर जारी किये जानेवाले विभिन्न मूल्यवर्ग के बैंकनोटों के संबंध में निर्णय लेता है । भारतीय रिज़र्व बैंक सुरक्षा विशेषताओं सहित बैंकनोटों की रूपरेखा(डिजाइनिंग) तैयार करने में भी भारत सरकार के साथ समन्वय करता है । भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकनोटों की मूल्यवर्ग-वार संभावित आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, उनकी मात्रा का आकलन करता है और तदनुसार, विभिन्न मुद्रण प्रेसों को अपना मांगपत्र प्रस्तुत करता है । भारतीय रिज़र्व बैंक का उद्देश्य आम जनता को अच्छी गुणवत्ता के नोट प्रदान करना है। इसके लिए, संचलन से वापिस प्राप्त होनेवाले बैंकनोटों की जाँच की जाती हैं और पुन:जारी करने योग्य बैंकनोट फिर से संचलन में डाल दिये जाते हैं तथा गंदे और कटे-फटे बैंकनोटों को नष्ट कर दिया जाता है जिससे संचलन में बैंकनोटों की गुणवत्ता बनी रहे ।
मुद्रा विमुद्रीकरण:-मुद्रा विमुद्रीकरण के तहत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा चलाती है. यानी पुरानी मुद्रा की वैधता नहीं रहती. वह अवैध हो जाती है.आमतौर पर अर्थव्यवस्था में काले धन पर काबू पाने के लिए यह कदम यानी विमुद्रीकरण उठाया जाता है.जब कालाधन अर्थव्यवस्था के लिये खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिये विमुद्रीकरण अपनाया जाता है. जिनके पास काला धन होता है, वह उसके बदले नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते और काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है.
नकली नोट तथा कालाधन बनाम विमुद्रीकरण:-देश में नकली नोट का सम्बन्ध 1991 से प्रारम्भ आर्थिक सुधार से माना जा रहा है। उदारवाद के बाद चार कम्यूनिस्ट पार्टी एवं काँग्रेस समर्थित संयुक्त मोर्चे की सरकार को सन 1996-97 में 3,35,900 करोड़ रुपये की नयी मुद्रा छपवाने की आवश्यकता पड़ी। संयुक्त मोर्चा सरकार ने काले धन की समाप्ति के लिए स्वैच्छिक आय उजागर योजना (वीडीआईएस) शुरु की। वीडीआईएस में लगभग 33,000 करोड़ रुपये का काला धन सामने आया। आरबीआई के टकसाल की क्षमता 2,16,575 करोड़ रुपये की थी, जिससे विदेशों से 1,20,000 करोड़ रुपये के नोट छपवाने माँग हुई। भारतीय मुद्रा छापने वाली विदेशी कम्पनियों को स्पष्ट निर्देश था कि वे भारतीय नोट की प्लेट, स्याही, वाटरमार्क कागज भारत सरकार को सौंपेंगी। वैसे, इंग्लैण्ड की कम्पनी डेलारू देश-विदेशों की सरकारों के नोट छापती है।
विमुद्रीकरण : एक तीर से दो शिकार:- अगर देश को मुद्रा की जरुरत है, तो वह दो काम कर सकती है- काले धन के रुप में छुपी मुद्रा को बाहर निकाले और नयी मुद्रा छपवाये। 1996-97 में हमारी सरकार ने दोनों कामों में लापरवाही दिखायी- सारे काले धन को जब्त करने की कोशिश नहीं की गयी और विदेशों में मुद्रा छपवायी गयी। नतीजा हम देख ही रहे हैं।जबकि “विमुद्रीकरण” एक ऐसा रास्ता है, जिससे एक ही बार में दोनों समस्याओं (काला धन तथा मुद्रा की कमी) का समाधान पाया जा सकता है, जैसा घोषणापत्र में लिखा भी है-
नये किस्म के नोट छपवा कर प्रचलित नोटों को रद्द किया जायेगा और कम-से-कम समय के अन्दर इन नोटों की अदला-बदली की जायेगी। अदला-बदली के दौरान एक हजार रुपये से कम की राशि को डाकघर की शाखाओं में तथा पाँच हजार रुपये से कम की राशि को बैंकों की शाखाओं में हाथों-हाथ बदला जायेगा। पाँच हजार रुपये तथा इससे बड़ी राशि को ‘पास बुक’ के माध्यम से बदला जायेगा- यानि, पुराने नोटों को जमा करके नये नोटों का भुगतान लेना पड़ेगा। पचास हजार रुपये से अधिक की राशि को बदलने के लिये आयकर विभाग की मंजूरी अनिवार्य होगी।भविष्य में प्रत्येक बीस वर्ष में एक बार ‘विमुद्रीकरण’ की इस प्रक्रिया को दुहराने की व्यवस्था की जायेगी।बैंक और बैंक-जैसी संस्थाओं में ‘लॉकर’ की व्यवस्था समाप्त की जायेगी, या फिर, इसकी ‘गोपनीयता’ समाप्त कर दी जायेगी।
मुद्रा का विमुद्रीकरण : एक बार फिर:- मंगलवार 08.11.2016 की आधी रात से देश में चलने वाले 500-1000 नोट बंद हो गए हैं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल ही राष्ट्र को संबोधित करते हुए इसकी घोषणा की थी. अब आपको 500 और 1000 के नोट को बैंक या डाकघरों में जाकर बदलना होगा. इन्हें 50 दिनों के भीतर यानी कि 30 दिसम्बर तक बदला जा सकता है. इन्हें बदलवाने की प्रक्रिया 11 नवम्बर से शुरू होगी.

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