कैशलेस अर्थव्यवस्था की दिशा में भारत

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credit-cardsसरकार की मंशा देश में कैशलेस अर्थव्यवस्था विकसित करने की है!यह संभव है! देश में इस समय लगभग 60 करोड़ बैंक खाते हैं! जो देश की जनसँख्या, लगभग १३२ करोड़, का लगभग आधे से कुछ कम है! इन खातों में से लगभग आधे खाते निष्क्रिय (डॉर्मेंट) हैं और प्रधान मंत्री जनधन योजना के तहत खुले लगभग तेईस करोड़ खातों में से जीरो बैलेंस खातों की संख्या बहुत अधिक है! जनधन खाताधारकों में से लगभग १८ करोड़ को डेबिट कार्ड के रूप में रुपे कार्ड दिए गए हैं!
कॅशलेस लेन देन को बढ़ावा देने के लिए सभी खाता धारकों को एटीएम/डेबिट कार्ड दिया जाना आवश्यक है! साथ ही उन्हें कार्ड के सञ्चालन की सघन प्रशिक्षण की व्यवस्था भी करनी चाहिए इसके लिए छोटी छोटी प्रचार फ़िल्में भी टीवी पर विज्ञापन के रूप में दिखाई जा सकती हैं और बैंकों के द्वारा भी विशेष प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से फिल्मो द्वारा और वास्तविक संव्यवहारों के द्वारा खाताधारकों को प्रशिक्षित किया जा सकता है!
एक समस्या पिनकोड या पासवर्ड की सुरक्षा की आ सकती है! उसके लिए मेरे विचार में अभी प्रचलित अल्फा न्यूमेरिक पिनकोड और पासवर्ड के स्थान पर अंगूठे/उंगली के निशान और आँखों की पुतली की पहचान वाले एटीएम लगाए जा सकते हैं! अंगूठे/ऊँगली के निशान और आँखों की पुतली की पहचान केवल खाताधारक से ही हो सकेगी! और किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कार्ड का दुरूपयोग असंभव हो जायेगा!तकनिकी रूप से यह कार्य बहुत मुश्किल नहीं है! आखिर लगभग १०० करोड़ से अधिक लोगों ने आधार कार्ड बनवाते समय इन बियोफीचर्स को रजिस्टर कराया ही है!
भारत के लोग नयी चीजों को देर से अपनाते हैं लेकिन जब अपनाते हैं तो फिर पीछे नहीं देखते! आज देश में लगभग १०५ करोड़ लोगों के पास मोबाइल फोन हैं! और हर व्यक्ति धड़ल्ले से उसका प्रयोग कर रहा है! अगर पूरे जोरशोर से प्रयास किया जाये तो निश्चय ही लोग कॅश के स्थान पर कार्ड व्यवस्था को रोजमर्रा की जिंदगी का भाग बना लेंगे और एक बार जब उन्हें इसकी सुविधा की आदत पड जाएगी तो फिर देखते ही देखते भारत भी इस क्षेत्र में अग्रिम पंक्ति में दिखाई देगा!

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