पिछड़े नहीं हैं भारत के मुसलमान

लेखक- दिलीप मिश्राहमारे देश के ही नहीं बल्कि दुनिया के मुसलमानों को आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक रूप से पिछड़ा माना जाता है। क्योंकि मुसलमान आर्थिक रूप से कमजोर और शैक्षणिक रूप से अशिक्षित हैं, इस कारण वह आतंकवादी बने या मजबूरी में बनाए जा रहे हैं। जबकि आज की वर्तमान स्थिति के अनुसार न तो अब भारत का मुसलमान गरीब है और न ही अशिक्षित। परंतु वह कट्टरवादी ताकतों के बंधन से अभी तक मुक्त नहीं हुआ है। आधुनिक शिक्षा और तकनीकी ज्ञान में वह देश के अन्य सभी समुदायों के बराबर अपना स्थान बना चुका है, परंतु उसकी इस योग्यता व ज्ञान का कट्टरवादी दुरूपयोग कर उसका इस्तेमाल कर रहे हैं। दुनियाभर के साम्यवादी, जिसमें विशेष रूप से भारत के सेक्युलरवादी यह प्रचारित करते रहते हैं कि क्योंकि मुसलमान पिछड़े हुए हैं और आर्थिक रूप से कमजोर हैं, इस कारण वह जेहादी या आतंकवादी होते जा रहे हैं, परंतु यह तथ्य अभी हाल ही में पकड़े गए ‘सिमी’ और इंडियन मुजाहद्दीन संगठनों के युवा आतंकवादियों ने झुठला दिया है। इनमें से सभी आतंकवादी आधुनिक तकनीक और शिक्षा से परिपूर्ण होने के साथ-साथ आर्थिक रूप से भी बहुत मजबूत है। परंतु धार्मिक कट्टरता के कारण देशद्रोही ताकतों के हाथ के खिलौने बने हुए हैं।

आज के आधुनिक भारत के युवा मुसलमान को अपने ऊपर से इन्हीं कट्टरवादी ताकतों के चंगुल से मुक्त होना होगा और इस देश के संसाधनों के बल पर उन्होंने जो योग्यता और सम्पन्नता अर्जित की है, उसका भरपूर उपयोग देश के अन्य धर्मांलंबियों के युवाओं के समान देश के हित में करना होगा और दामन पर जो आतंकवादी होने का दाग लगा है उसको साफ करना होगा। भारत के मुसलमान युवकों को अब पिछड़ा हुआ मानना इन युवकों और उनकी योग्यता का अपमान है और यह अपमान देश के छद्मवाद राजनेता और मजहबी कट्टरवादी शक्तियां अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए कर रही हैं। इस दुष्‍प्रचार के पीछे इन ताकतों का उद्देश्य मुसलमानों को लगातार यह एहसास कराते रहना है कि वह पिछड़े और उपेक्षित, देश के हिन्दुओं के कारण है। यही कारण और भय बता कर इन ताकतों ने मुलसमानों का साठ सालों तक दोहन किया है और उन्हें दिया कुछ भी नहीं है। कट्टरवादी मदरसों में पढ़ कर कोई मुसलमान देश के शीर्ष पदों पर नहीं पहुंचा है। उसे भारतीय शिक्षा पध्दति और साधनों का लाभ ही उठा कर अपनी योग्यता बड़ानी पड़ी है। आज जो तकनीकी, सूचना और कम्प्यूटर क्रांति भारत में हुई उसका लाभ मुसलमानों ने भी उतना ही उठाया है जितना देश धर्मों और वर्गों के युवकों ने भारत के वह मुस्लिम युवक देश में तरक्की और उन्नति कर गए जो अपने धर्मों की सामाजिक कुरूतियों और रूड़ियों के बंधनों को काटने में सफल हुए इसमें वह मुसलमान भी थे जो भारत के राष्ट्रपति, न्यायाधीश डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और उच्च पदों पर व्यापार में उन्नति कर पाए। परंतु वह मुसलमान युवक लगातार पिछड़ते चले गए जो कट्टरपंथियों के हाथ की कठपुतली ही बने रहे या जिनको इन कठमुल्लाओं, मोलवियों और उलेमाओं ने धार्मिक कट्टरता तथा भारतविरोध की जन्मघुट्टी लगातार पिलाई। भारत के मुसलमानों के पिछड़ेपन का कारण कोई अन्य धर्मावलंबी कभी नहीं है। इस बात को एक छोटे से उदाहरण से भी समझा जा सकता है। भारत में सन् 1835 में लार्ड विलियम बेटिंग ने कतकत्ले में पहला मेडिकल कॉलेज खोला तो वहां अन्य धर्मों और समाजों के युवकों की भीड़ लग गई। इस कॉलेज में दाखिला लेने के लिए मुस्लिम समाज ने इसे इस्लाम के विरूध्द ब्रिटिश सरकार का षड्यंत्र करार देकर, इस का विरोध कर रैलियां निकालीं और आधुनिक शिक्षा के विरूध्द जोरदार प्रदर्शन किए। इस नकारात्मक रवैये से कारण वह लगातार पिछड़ते चले गए अन्य समाज के लोगों ने ब्रिटिश साधनों का लाभ उठाकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त की। आज भी देश की नागरिक योजनाएं, स्वास्थ्य परियोजनाएं, कला संगीत व्यापार का अक्सर कट्टरवादी ताकतें विरोध करती रहती हैं। पोलियो, जनसंख्या नियंत्रण, सिनेमा में मुस्लिम युवकों-युवतियों का काम करने, सानिया मिर्जा का देश के लिए खेलने का विरोधकर यह कट्टरवादी शक्तियां किस का नुकसान कर रही हैं? मुसलमानों का ही। फिर मुसलमान यदि पिछड़े जाते हैं तो छद्मवादी इस पिछड़ेपन पर अन्य समाज के लोगों या योजनाकारों को दोष क्यों देते हैं। यह केवल इस कारण कि मुस्लिम युवक उनके हाथ ही कठपुतली बने रहें।

आज पूरी दुनिया का सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। पूरी दुनिया वैश्विक युग और समुदाय के रूप में बदल रही है। ऐसे समय में भारतीय मुसलमानों को राष्ट्र की प्रगतिधारा में जुड़ कर देश के साथ-साथ अपनी उन्नति के नए द्वार खोलना ही होंगे। इसके बिना उन्नति, प्रगति तथा सम्पन्नता संभव नहीं है। जिन मुसलमानों ने इस सत्य को स्वीकार कर लिया है वह अपने बच्चों को प्रगति के नए-नए क्षितिज में उड़ा भी रहे हैं और अच्छा जीवन स्तर बना रहे हैं। रूढियों की जंजीरों को तोड़कर और सकारात्मक सोच बना कर ही हम अपने दामन पर पिछड़ेपन और आतंकवादी होने का दाग धो सकते हैं और वह आज भी जरुरी आवश्कता है जिसे नए मुस्लिम युवकों को समय रहते समझना होगा।
(हिन्दुस्थान समाचार)

1 COMMENT

  1. desh ke musalmano tum apni kattar panth niti se bahar niklo ,or desh ki mukhe dhara se guro….md ali bjp kolkata

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