रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार का पर्याय बनती भारतीय राजनीति

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-तनवीर जाफ़री

हमारे देश में विशेषकर राजनैतिक व प्रशासनिक हल्कों में रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार हरामंखोरी तथा अपराधीकरण जैसी विसंगतियां कोई नई बात नहीं हैं। देश की स्वतंत्रता के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय से ही सरकारी खरीद में घोटालों की खबरें आनी शुरु हो गई थीं। स्वतंत्रता के 63 वर्ष बीत जाने के बाद अब यही विसंगतियां अपना एक ऐसा विराट रूप धारण कर चुकी हैं जिसने पूरे देश के विकास, यहां की अर्थव्यवस्था तथा अमीरों व गरीबों के मध्य के अंतर तक को प्रस्‍तावित कर दिया है। जरा कल्पना कीजिए कि जब देश के एक सबसे प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने टाटा समूह का प्रमुख रतन टाटा 12 वर्ष बीत जाने के बाद यह कहता सुनाई दे कि मुझसे 15 करोड़ रुपये की रिश्वत एक केंद्रीय मंत्री द्वारा इसलिए मांगी गई थी क्योंकि टाटा समूह सिंगापुर एयरलाईंस के साथ मिलकर देश में एक निजी विमानन कंपनी स्थापित करना चाहता था। और इस नई कंपनी के लाईसेंस देने के लिए 15 करोड़ रूपये मांगे गए। परिणाम स्वरूप टाटा ने पैसे नहीं दिए और प्रस्तावित निजी विमानन कंपनी नहीं शुरु हो सकी। यदि उस समय टाटा समूह ने नई विमानन कंपनी बनाकर कारोबार शुरु कर दिया होता तो इन 12 वर्षों के दौरान देश को अब तक कितना आर्थिक लाभ पहुंचता तथा कितने लोग राोगार पा चुके होते। एक अन्य उद्योगपति राहुल बजाज ने भी रतन टाटा से रिश्वत मांगे जाने की खबर की पुष्टि की है। और यह स्वीकार किया है कि तमाम औद्योगिक घराने अपना काम चलाने के लिए रिश्वत देते रहते हैं।

इन दिनों देश में जिन प्रमुख घोटालों को लेकर हंगामा बरपा है उनमें राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला तथा इन सभी घोटालों से ऊपर यहां तक कि देश का अब तक का सबसे बड़ा कहा जाने वाला स्पैक्ट्रम घोटाला शामिल है। राष्ट्रमंडल खेल घोटाले की चपेट में आकर जहां सुरेश कलमाड़ी को उनके पद से हटाया जा चुका है वहीं इन खेलों से जुड़े क्वींस बेटन रिले कार्यक्रम में हुई आर्थिक अनियमितताओं के सिलसिले में दो उच्च अधिकारियों को सी बी आई गिरं तार भी कर चुकी है। उधर आदर्श सोसायटी घोटाले की चपेट में आए महाराष्ट्र के मु यमंत्री अशोक चव्हाण को हटाकर उनकी जगह पृथ्वीराज चौहान को महाराष्ट्र का नया मु यमंत्री बनाया जा चुका है। गोया भ्रष्टाचार और घोटाले ने एक मु यमंत्री की कुर्सी तक को निगल डाला। और अब स्पैक्ट्रम महाघोटाले के मुखिया समझे जाने वाले संचार मंत्री तथा डी एम के नेता ए राजा को बड़ी मुश्किलों के बाद उनके पद से हटाया जा चुका है। परंतु अब स्पैक्ट्रम घोटाले की आंच प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी पहुंचने लगी है।

कहने को तो विपक्षी पार्टियां विशेषकर भाजपा नेता यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि भ्रष्टाचार के किसी मामले में पहली बार प्रधानमंत्री कार्यालय पर भी उंगली उठी है। परंतु यह आरोप सही नहीं है। याद कीजिए बिहार में राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के दौरान भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग में कार्यरत परियोजना निदेशक सत्येंद्र दूबे नामक एक ईमानदार व होनहार इंजीनियर की भ्रष्टाचारियों द्वारा 27 नवंबर 2003 को दिनदहाड़े गोली मार कर की गई नृशंस हत्या। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में दूबे ने सड़क निर्माण में हो रहे भ्रष्टाचार व धांधली संबंधी विस्तृत जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी थी। साथ ही दूबे ने पी एम ओ को यह भी सचेत किया था कि यदि उसके द्वारा पी एम ओ को दी गई जानकारी का भ्रष्टाचारियों को पता चला तो उसकी हत्या कर दी जाएगी, अत: इसे गुप्त रखते हुए कार्रवाई की जाए। और पी एम ओ में इस पत्र की प्राप्ति के बाद भ्रष्टाचारियों के विरुध्द कार्रवाई तो नहीं हुई हां, पी एम ओ को पत्र प्राप्त होने के चंद ही दिनों बाद उस ईमानदार, राष्ट्रभक्त अधिकारी सत्येंद्र दूबे की हत्या जरूर हो गई। स्वर्गीय सत्येंद्र दूबे के परिजन आज तक इस प्रश्न का ऊत्तर नहीं पा सके कि आखिर चेतावनी के बावजूद पी एम ओ से सत्येंद्र दूबे के पत्र की जानकारी भ्रष्टाचारी हत्यारों को कैसे और क्यों मिली?

बहरहाल, टैक्स चोरी, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी तथा अन्य तमाम गलत तरींकों से कमाई गई नेताओं, अधिकारियों, भ्रष्टाचारियों तथा निजी कंपनियों के मालिकों की पूंजी अबइतनी अधिक बढ़ गई है कि अमेरिका में वाशिंटन स्थित एक संस्था ग्लोबल फाईनेंशियल इंटिग्रिटी को इस विषय पर अपने कुछ आंकड़े जारी करने पड़े हैं। इस संस्था का आंकलन है कि भारत वर्ष को आजादी से लेकर अब तक कम से कम 450 अरब डॉलर का नुंकसान हुआ है। यानि लगभग 23 लाख करोड़ रुपये से अधिक का घाटा। यदि यह धन हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद का हिस्सा होता अर्थात् यह रंकम देश की कानूनी पूंजी होती तो इसके जरिए पूरे देश की स्वास्थय, शिक्षा व बिजली-पानी जैसी सभी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता था। तमाम अर्थशास्त्रियों का यह विश्वास है कि यदि रिश्वत, भ्रष्टाचार तथा हरामंखोरी जैसी दीमक हमारे देश के नेताओं व अधिकारियों के रूप में देश को खा न रही होती तो नि:संदेह भारतवर्ष अब तक चीन को भी पीछे छोड़ चुका होता। परंतु धन लोभियों द्वारा टैक्स देने से बचने के लिए, गलत तरींकों से कमाई गई दौलत को छुपा कर रखने के लिए, घूसंखोरी, भ्रष्टाचार, अपराध तथा अन्य गैर कानूनी धंधों पर पर्दा डाले रखने के लिए इस दौलत को विदेशों में भेज दिया गया। भ्रष्टाचार की इंतेहा केवल यहीं समाप्त नहीं हुई है। दुर्भाग्य तो यह है कि देश की राजनीति का अधिकांश भाग अर्थात् अधिकांश राजनैतिक दलों के आधिकांश नेता इस समय भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। और इस पर तमाशा यह कि एक भ्रष्टाचारी दूसरे भ्रष्टाचारी को यह कहता दिखाई दे रहा है कि तुम भ्रष्टाचारी हो, तुम्‍हारी पार्टी का अमुक नेता भ्रष्टाचारी है परंतु हम नहीं हैं, क्योंकि हम तो सांस्कृतिक राष्ट्रवादी हैं।

और भ्रष्टाचार संबंधी ऐसी ही बहस में गत् सप्ताह संसद की कार्रवाई मात्र पहले दिन ही चल सकी। शेष पूरा सप्ताह घपले, घोटाले व रिश्वतखोरी जैसे मुद्दों पर हुए शोर-शराबे की भेंट चढ़ गया। अब जरा यह भी गौर कीजिए कि हमारे देश की आम जनता की गाढ़ी कमाई का लगभग 8 करोड़ रुपया प्रतिदिन संसद की कार्रवाई पर खर्च किया जाता है। कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि जनता का पैसा पहले तो भ्रष्टाचारियों की भेंट चढ़े, फिर जनता ही इसके नकारात्मक परिणामों अर्थात् प्रगति व विकास की कमियों को भुगते और बाद में संसद में इसी विषय पर हो रहे शोर-शराबे पर भी अपने ही पैसे खर्च करे? आज देश के तमाम क्षेत्रों में यह खबरें सुनाई देती हैं कि कहीं सड़कें नहीं हैं तो कहीं स्कूल व अस्पताल नहीं हैं। कहीं प्रत्येक वर्ष बाढ़ का प्रकोप सिंर्फ इसलिए रहता है कि वहां ऊंचे बांध नहीं बन सके। भुखमरी के चलते गरीबों के मरने या आत्महत्या करने के समाचार भी अक्सर सुनाई देते हैं। दूसरी ओर खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी, नकली दवाईयों का बाजार में धड़ल्ले से बिकना, घटिया सड़कों का निर्माण होना, कमजोर सरकारी इमारतों का बनना आदि गोरखधंधा बे रोक टोक चल रहा है। इन सभी कारणों के चलते तमाम लोगों की मौतें भी हो जाती हैं।

उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राय से कुछ ऐसे समाचार मात्र स्वास्‍थ्‍य विभाग से प्राप्त हो रहे हें जिन्हें सुनकर आम आदमी केवल अंफसोस ही कर सकता है। खबर है कि स्वास्थय विभाग के अधिकारियों द्वारा प्रदेश को मलेरिया उन्मूलन के लिए भेजा गया पूरा का पूरा बजट ही चट कर दिया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा केंद्र सरकार के सहयोग से इस प्रदेश में बड़े पैमाने पर पल्स पोलियो अभियान,शिशु मातृ सुरक्षा अभियान, कुष्ठ निवारण कार्यक्रम,जननी सुरक्षा कार्यक्रम, क्षय रोग उपचार, अंधता निवारण तथा टीकाकरण जैसी स्वास्थय संबंधी योजनाएं चलाने के निर्देश दिए गए हैं। जाहिर है इसके लिए प्रदेश सरकार को भारी-भरकम बजट भी दिया गया है। परंतु स्वास्थय विभाग उक्त कार्यक्रमों के संचालन के बजाए इस बजट को आपस में बांट खाने में यादा विश्वास रखता है। गत् कुछ वर्षों में स्वास्थय विभाग से जुड़े ठेकों को लेकर कई लोगों की हत्याएं भी हो चुकी हैं।

गोया अब तो यह भी तय समझा जाना चाहिए कि इन भ्रष्टाचारियों ने जिनमें नेता, अधिकारी, इनके चमचे, इनके रिश्तेदार आदि सभी शामिल हैं के विरुद्ध यदि किसी ईमानदार अधिकारी, पत्रकार अथवा सामाजिक कार्यकर्ता ने उंगली उठाई तो उसे भी मंजुनाथन, सत्येंद्र दूबे तथा अमित जेठवा आदि राष्ट्रभक्तों की ही तरह अपनी जान गंवानी पड़ सकती है। जिहाजा अब यदि देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है तो सर्वप्रथम देश की राजनीति से भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का संफाया करने की जरूरत है। जनता तथा आम मतदाता यह बहुत अच्छी तरह जानता है कि उसके क्षेत्र की पंचायत से लेकर संसद तक का नुमाईंदा राजनीति के क्षेत्र में अपनी सक्रियता अथवा अपने निर्वाचन से पूर्व क्या आर्थिक हैसियत रखता था और अब कुछ ही समय में अथवा कुछ ही वर्षों में वह आर्थिक रूप से कितना संपन्न हो चुका है। मंहगाई के इस दौर में जबकि एक व्यक्ति का रोटी खाना व साधारण तरींके से उसका परिवार चलाना दूभर हो रहा है ऐसे में जनता के समक्ष चुनाव के समय हाथ जोड़ने वाला तथा स्वयं को समाजसेवी बताने का ढोंग करने वाला कोई राजनैतिक कार्यकर्ता यदि आए दिन अपनी संपत्ति बढ़ाता ही जा रहा है अथवा उसका रहन-सहन असाधारण होता जा रहा है तो जनता को स्वयं समझ लेना चाहिए कि अमुक व्यक्ति,समाजसेवी या नेता नहीं बल्कि हमारे देश में लगी भ्रष्टाचार रूपी दीमकों के झुंड का ही एक प्रमुख हिस्सा है। और ऐसी दीमकों को अपने मतों द्वारा मसल देने में ही जनता, समाज तथा देश का कल्याण निहित है।

4 COMMENTS

  1. जाफरी जी बिल्ली के गले में कौन धंटी बांधे?कुछ लोगों ने कोशिश की तो उनका परिणाम आपके सामने है.ऐसे हमाम में सभी नंगे हैं.उसमे पार्टी या विचारधारा से कोई लेना देना नहीं है.शुरुआत तो उसी दिन हो गयी थी जब नेहरु जी ने कहा था की अगर भान्खरा बाँध को कुछ नहीं होता तो वहां से खाए पैसों से अगर दिल्ली का सौन्दर्यकरण हो रहा है तो घाटा ही क्या है? उनका वह प्रसिद्ध कथन भी आपलोग नहीं भूले होंगे जब उन्होंने कहा था की जमाखोरों और मुनाफाखोरों को नजदीक के बिजली के खम्भों से लटका दो.क्या ऐसा कभी हुआ ?क्या कोई जमाखोर या मुनाफा खोर किसी खम्भे से लटकाया गया ?ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि रिश्वत खोरों के बारे में तो उन्होंने कुछ कहा ही नहीं.सब कुछ रिश्वत के तले चलता रहा.एक सवाल पर आपने कभी गौर किया है?क्यों एक इंजिनीयर,डाक्टर या किसी सुप्रसिद्ध मैनजेमेंट संस्था से उतीर्ण स्नातक सिविल सर्विसेस को अपनी प्रथम चाह बनाता है जब उसके अपने क्षेत्र में जयादा वेतन मान और बेहतर स्थानों पर बहाली संभव है.मेरे अपने विचार से तो जब तक आप नौकरशाही को ईमानदार और प्रगतिशील नहीं बनायेंगे तब तक कुछ भी संभव नहीं है.राजनीति में कौन आता है यह तो जग जाहिर है पर हमारा नौकर शाही तो समाज का विशिष्ठ तबका है.तब और गजब हो जाता है जब वही नौकर शाह सेवा निवर्ती के बाद राजनीति में आता है और वही कुछ करने लगता है,जो एक वाहुवली राजनीतिज्ञ करता है.जाफरीजी अब बताइये आप इसमे क्या करेंगे?भ्रष्टाचार उन्मूलन कहाँ से आरम्भ करेंगे?

  2. मैं मानता हूँ कि तनवीर जाफ़री जी के लेख को मैंने इसके शीर्षक से लेकर अंत तक नहीं पढ़ा है| मैंने पूरा लेख इस लिए नहीं पढ़ा कि औरों की तरह मैं लेख के विषय से पहले से परिचित हूँ बल्कि इस लिए नही पढ़ा क्योंकि मेरे में ऐसे लेखों को पढने की सहनशीलता नहीं है| मेरी सांस रुक जाती है और तंत्रिकाएं सुकड़ने के कारण रक्तचाप बढ़ जाती है| अहिंसा का पुजारी, मैं असहाय हो अपनी आराम कुर्सी में बैठ जाता हूँ| अगल बगल कोई भी मेरी परिस्थिति और भारत वर्ष के दुर्भाग्य और उसकी व्यथा को जानने का उत्सुक नहीं है| या यूं कहिये के किसी को अपनी स्वयं की कोई सुध नहीं है| यंत्र-मानव बने अधिकाँश लोग जन्म से समाधिक्षेत्र तक हँसते रोते अपना बोझ ढोह रहे हैं|
    ज़ाफ़री जी जैसे और कई बुद्धिजीवी सर्व-व्यापी अनैतिकता और भ्रष्टाचार के विरोध में लिखते हैं लेकिन कोई इन्हें पढ़े तो कुछ जाने| सच तो यह है कि साधारण जीवन यापन अपने में ही एक बड़ा संघर्ष है और उससे ऊपर उठ कुछ कर सकने की किसी में कोई क्षमता नहीं है| इस प्रकार व्यक्ति-वाद में असहाय लोग एकजुट कोई कुछ करने में असमर्थ हैं| यदि संगठन बनते देखने को आये हैं तो उनकी परिभाषा ही उसमे अनैतिकता और भ्रष्टाचार का अखाड़ा बना देने में सहायक है| भारत वर्ष में राष्ट्रवाद के अभाव के कारण और मार्ग-दर्शकों की स्वयं की संकीर्ण सूझ-बूझ ने संगठन को केवल एक मात्र उसके अनुयायीओं की भलाई के लिए रचा है| आज हर प्रकार के संगठन ने चाहे उसमे राजनीतिक वर्ग क्यों न हों स्वयं को अति शक्तिशाली व प्रजा को निर्बल व असहाय बना दिया है|

  3. “रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार का पर्याय बनती भारतीय राजनीति” – by – तनवीर जाफ़री

    सरकार में CAG द्वारा वर्णित रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार पर विचार संसद की JPC न करे बल्कि PAC करे, इस पर इतना अधिक विवाद, यह दर्शाता है, कि इसमें दाल में बहुत ही ज्यादा काला है.

    हो सकता है कि केंद्र सरकार और कांग्रेस / साथी दल – दोनों के शीर्ष पदाधिकारी 2G स्पेक्त्रेम लायेसंस के पौने दो लाख करोड रुपए में गहरे लिप्त हैं.

    सभी ने शायद मिल कर अगले चुनाव में खर्चे का प्रबंध कर लिया है – to reach according to his need – probably 10 % each

    ……………….. रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार में अंतर क्या है ? ………………..

    – अनिल सहगल –

  4. जय जय मनमोहन अंकल ! कांटा लगे ना कंकर !! ये प्याला जो तेरे नाम का पिया !!!

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