भारतीय-संस्कृति

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सतयुग , त्रेता , द्वापर में , विकसी इस युग में आई ,
गौरवान्वित हो पूर्वजों से, जग में सुकीर्ति भी पाई ।
पश्चिम से जो आँधी आई , पूरब में वो आकर छायी ,
बदला सब कुछ इस युग में, पश्चिम की संस्कृति भायी ।
निज भाषा, सुवेष और व्यंजन, संस्कृति आज भुला डाले ।
नवयुग में नव-संतति ने , नव-संस्कृति के रंग सँभाले ।।
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विश्व जब सोया पड़ा था , जागता था देश अपना ,
ज्ञान वेदों का दिया तब , मिला सबको दिव्य सपना ।
अवनि पर सबसे पुरानी, संस्कृति जानी गई जो ,
आज भूली जा रही है , देश में अपने वही क्यों ?
सभ्यता- संस्कृति विदेशी , वेष-भूषा सब निराली ,
अभिरुचि बदली है सबकी , इसी में दिखती खुशहाली ।।
०-०-०-०-०
– शकुन्तला बहादुर

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शकुन्तला बहादुर
भारत में उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में जन्मी शकुन्तला बहादुर लखनऊ विश्वविद्यालय तथा उसके महिला परास्नातक महाविद्यालय में ३७वर्षों तक संस्कृतप्रवक्ता,विभागाध्यक्षा रहकर प्राचार्या पद से अवकाशप्राप्त । इसी बीच जर्मनी के ट्यूबिंगेन विश्वविद्यालय में जर्मन एकेडेमिक एक्सचेंज सर्विस की फ़ेलोशिप पर जर्मनी में दो वर्षों तक शोधकार्य एवं वहीं हिन्दी,संस्कृत का शिक्षण भी। यूरोप एवं अमेरिका की साहित्यिक गोष्ठियों में प्रतिभागिता । अभी तक दो काव्य कृतियाँ, तीन गद्य की( ललित निबन्ध, संस्मरण)पुस्तकें प्रकाशित। भारत एवं अमेरिका की विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लेख प्रकाशित । दोनों देशों की प्रमुख हिन्दी एवं संस्कृत की संस्थाओं से सम्बद्ध । सम्प्रति विगत १८ वर्षों से कैलिफ़ोर्निया में निवास ।

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