भारतीय योग की विश्व मान्यता का सन्देश

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yogaप्राचीन काल में भारत से शुरु हुआ योग ने बीते दशकों में दुनिया भर के लोगों को आकर्षित किया है। अब भारत के आग्रह पर योग के महत्व को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया है। यह शायद पहला अवसर है, जब भारतीय योग से जुडे़ ज्ञान को पश्चिम समेत दुनिया के ज्यादातर देशों ने मान्यता दी है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस प्रस्ताव को जितने बहुमत  से पारित किया गया, यह भी एक ऐतिहासिक घटना है।

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने के लिये हाल ही में अपनी अमेरिका की यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में दिए अपने पहले भाषण में योग दिवस मनाए जाने की पुरजोर पैरवी की थी। असल में यह एक ऐसा प्रस्ताव जो सम्पूर्ण विश्व के स्वास्थ्य और मानवता के उन्नयन के लिये था।

योग भारतीयों के जीवन का एक अभिन्न अंग रहा है। लेकिन अब यह संपूर्ण विश्व का विषय एवं मानव मात्र के जीवन का अंग बन रहा है-यह दुनिया के सकारात्मक परिवर्तन का द्योतक है। मनुष्य नाना प्रकार के संस्कार रूपी रंगों से रंगे हुए शरीर में रहता है, लेकिन योगाभ्यास द्वारा तपाया गया शरीर रोग, बुढ़ापा आदि से रहित होकर स्वरूपानुभूति के योग्य होता है। आज के इस आपाधापी, अशांति, तनाव एवं असंतुलन के युग में बढ़ते मनोदैहिक रोगों का मुख्य कारण विसंगतिपूर्ण जीवन-शैली है। इसका एक कारण भौतिकता की होड़ भी है जिससे मानव की मानसिक चंचलता बढ़ी है एवं आध्यात्मिकता से वह वंचित होता गया है। नित्य नए रोगों के निवारण, व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक उत्थान, व्यक्तित्व विकास, कार्यक्षमता में अभिवृद्धि, तनावमुक्ति के लिए ध्यान जहां शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम है वहीं यह भौतिक उन्नति को सहज बनाने की प्रक्रिया है। इसके अभ्यासी पुरुष कभी रोगी नहीं हो सकते। वे निरंतर योग साधना के माध्यम से अपना इतना विकास कर सकते हैं कि हर चुनौती को सहजता से स्वीकार कर सकें। यह ध्यान पद्धति पारिवारिक संबंधों एवं रिश्तों में प्रगाढ़ता एवं मैत्री का भी सशक्त माध्यम है। यही कारण है कि आज समूची दुनिया में योग की मांग बढ़ रही है और इसकी आपूर्ति के लिए भारत की ओर सभी देश आशा भरी दृष्टि से देख रहे हैं। विश्व योग दिवस के माध्यम से योग की उपयोगिता बढ़ेगी और दुनिया में व्यापक रचनात्मक परिवर्तन दिखाई देंगे।

जाहिर है इन बदलते हालात में भारत अपने इस पुरातन एवं अति प्राचीन योग पद्धति के जरिए बेशुमार फायदा उठा सकता है। योग पर और अधिक ध्यान दिया जाए उसकी एक केन्द्रीय सुनियोजित व्यवस्था बनायी जाए तो भविष्य में यह ध्यान पद्धति धन कमाने के बेहतर जरिए की ओर ले जा सकती है। ऐसा इसलिए है क्योेंकि योग की जरूरत जीवन के हर क्षेत्र में महसूस की जा रही है।

सिर्फ भारत में ही नहीं, विदेशों में भी योग को लेकर एक दिलचस्पी जग रही है। विदेशों में हमारे कई योग गुरु पहले से ही काम कर रहे हैं, जिनमें महेश योगी, ओशो आदि रहे हैं और इधर योग गुरु बाबा रामदेव के शिविर भी तमाम मुल्कों में लग रहे हैं। प्रेक्षाध्यान शिविरों का भी विदेशों में आकर्षण बढ़ा है। प्रतिवर्ष लगने वाले अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षाध्यान शिविर में विदेशों से आने वाले शिविरार्थियों एवं प्रशिक्षणार्थियों के अनुभवों से ज्ञात होता है कि विदेशों में प्रेक्षाध्यान की कितनी मांग है। बात इन चंद योग गुरुओं के शिविरों तक ही सीमित नहीं है बल्कि योग की जो नयी मांग पैदा हुई है उसमें वैसे अनुभवी एवं दक्ष योग प्रशिक्षकों की भी जरूरत है, जिनका बेशक बड़ा नाम नहीं है पर वे कुशल योग प्रशिक्षक हैं। यूरोप और अमेरिका के अलावा रसिया, जापान, चीन और सिंगापुर जैसे देशों में भी योग प्रशिक्षकों की मांग बढ़ रही है। और विशेषतः भारतीय योग प्रशिक्षकों और योग गुरुओं की तो जबरदस्त मांग है।

बेशक योग के प्रति बढ़ती दिलचस्पी और स्वास्थ्य जागरूकता के नए रुझानों के कारण योग प्रशिक्षक के लिए कार्य अवसरों में दिनोंदिन बढ़ोतरी ही हो रही है, लेकिन जरूरत के मुताबिक हमारे पास योग प्रशिक्षक हैं ही कितने? हमारे देश में ऐसी कोई केन्द्रीय संस्था नहीं है, जो इन योग प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण की गुणवत्ता और प्लेसमेंट जैसे मामलों की निगरानी करें। हालांकि दिल्ली स्थित भारतीय योग संस्थान और विश्वायतन, मुंगेर स्थित बिहार स्कूल आॅफ योगा, नय्यर डैम (केरल) का शिवानन्द आश्रम, पुणे स्थित बी.के.एस.आयंगर स्कूल और पट्टाभि जायसे जैसी दर्जनों संस्थाएं यहां निजी तौर पर काम कर रही हैं और उन्हीं से भारतीय योग प्रशिक्षक तैयार होकर निकलते हैं। पर एक केन्द्रीय व्यवस्था की जरूरत तो तब भी है। इस दिशा में भारत सरकार को भी योग प्रशिक्षक तैयार करने एवं विदेशों में भारतीय योग को प्रतिष्ठित करने की दिशा में चिन्तन करना चाहिए। एक केन्द्रीय योग संस्थान का गठन किया जाना चाहिए।

ऐसा नहीं है कि योग के प्रशिक्षक विदेशों में ही जरूरी हों। भारत के शहरों और कस्बों में भी योग बतौर फैशन प्रचलन में आ चुका है। आगे चलकर जब मेडिकल टूरिज्म पूरे उफान पर होगा और विदेशों में लोग चिकित्सा के लिए बड़ी संख्या में भारत का रुख करना  शुरू करेंगे, तो योग एक बेहतर करियर संभावना वाला क्षेत्र बनकर सामने आएगा। फिलहाल भारत में ही एक योग प्रशिक्षक की प्रतिमाह आय 20,000 से लेकर 50,000 रुपये तक हो सकती है तो विदेशों में और भी अच्छे वेतनमान पर योग-प्रशिक्षक जा सकेंगे। भारत में भी योग जागृति के लिये विविध उपक्रम संचालित किये जाने चाहिए। वैसे योग प्रशिक्षक सामुदायिक केन्द्रों तथा सार्वजनिक पार्कों में सशुल्क योग शिविरों का आयोजन करते हैं। वे स्कूल, काॅलेजों तथा अन्य संगठनों में योग सिखाते हैं। योग प्रशिक्षक का कार्यक्षेत्र विस्तृत है और भविष्य अधिक संभावनाओं से भरा दिखाई दे रहा है। योग प्रशिक्षक जनसेवा के ध्येय के मकसद से योग प्रचारक बनने से लेकर किसी मंदिर, अस्पताल, जिम या खेल संस्थान आदि कहीं भी अपने लिए आजीविका ढूंढ सकते हैं।

योग को सिर्फ कैरियर की नजर से या आम जन के स्वास्थ्य में सुधार की नजर से ही नहीं, बल्कि देश की चिकित्सा निर्भरता के पैमाने से भी देखने की जरूरत है। विशेषतः भारत की तरक्की और बढ़ते समग्र विकास की दृष्टि से भी योग को मूलभूत आधार बनाये जाने की जरूरत है। अगर हम चाहते हैं कि नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य एवं उन्नत कार्यक्षमता सुलभ हो तो योग को एक युक्ति के रूप में अपनाया जा सकता है।

योग केवल मनुष्य की जीवनशैली को संतुलित और समृद्ध ही नहीं बनाता बल्कि यह पर्यावरण को भी दोषमुक्त करता है। योग के द्वारा ऐसी जागृति मनुष्य मस्तिष्क में होती कि वह जलवायु परिवर्तन से निपटने में दुनिया की मदद कर सकता है। याद रहे जलवायु परिवर्तन से जुड़ी एक रिपोर्ट में कहा भी गया है कि लोगों में जो गुस्सा देखा जा रहा है और जिस तेजी से दुनिया में आत्महत्याएं बढ़ रही हैं, उनका एक कारण जलवायु में हो रहा बदलाव भी है। दुनिया के देशों ने इस समस्या को समझा और योग को इससे निपटने का आसान और सर्वसुलभ माध्यम माना। वैसे भी योग में मानवता को एकजुट करने की अद्भुत शक्ति है क्योंकि योग में ज्ञान, कर्म और भक्ति का समन्वय एवं समागम है।

मानसिक तनावों से जर्जर होता आज का मनुष्य संतोष और आनन्द की तलास में इधर-उधर भटक रहा है। शांति का अहसास महसूस करने के लिए उतावला हो रहा है। वह अपनी जीवन बगिया के आसपास से स्वार्थ, क्रोध, कटुता, ईष्र्या, घृणा आदि के काँटों को दूर कर देना चाहता है। उसे अपने इस जीवन रूपी उद्यान में सुगंध लानी है। उसे उस मार्ग की तलाश है जो उसे शरीर से दृढ़ और बलवान बनाये, बुद्धि से प्रखर और पुरुषार्थी बनाये, भौतिक लक्ष्यों की पूर्ति करते हुए उसे आत्मवान बनाये। निश्चित रूप से ऐसा मार्ग है और वह मार्ग योग का ही मार्ग है। महर्षि पतंजली ने योगदर्शन का नाम दिया है। योगदर्शन एक मानवतावादी सार्वभौम संपूर्ण जीवन दर्शन है।

आधुनिक युग में योग का महत्व और भी बढ़ गया है क्योंकि हमारी व्यस्तता और भागदौड़ भरी जिन्दगी ने हमे रोगों से घेर दिया है। आज हम देख रहें हैं कि मधुमेह, रक्तचाप, मोटापा, सिर-दर्द, छोटी उम्र में बालों का सफेद होना आदि जैसे आम रोग देखे जा रहे हैं। अत्यधिक तनाव, प्रदूषण, कैरियर की चिंता इत्यादि ने इन्सान को रोगग्रस्त बना छोड़ा है। आज युवाओं में कम मेहनत में ज्यादा पाने की हौड़ ने उन्हें अविवेकी बना छोड़ा है और इसी के चलते नौकरी प्रतिस्पर्धा का दूषण बन कर रह गई है जो आत्महत्याओं का बड़ कारण बन रही है। योग की जीवनशैली से ही हम इन समस्याओं से मुक्ति पा सकेंगे। योग एक ऐसी अमूल्य औषधि है जो बिना मूल्य आप को स्वस्थता प्रदान कर सकती है, आप को शक्तिवर्धक बना सकती है, आप का आत्म-विश्वास बढ़ा सकती है और स्वस्थ शरीर का आशीर्वाद भी दे सकती है। विश्व में अमनचेन ला सकती, इंसानों के बीच बढ़ती दूरियों को पाट सकती है। आर्थिक विकास के साथ-साथ एक आदर्श समाज निर्माण कर सकती है।  उठिए योग के महत्व को जानिए, पहचानिए और जीवन में उसे अपनाइये।

 

-ललित गर्ग

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