भारत सरकार की असफल शिक्षा नीति?

हमारे देश कों गावो के देश से जाना जाता रहा है . और जिस देश की सत्तर फीसदी जनता ग्रामीण क्षेत्रो में निवास करती हो, जिसने अपने भीतर विभिन्न भाषाओ तथा कला संस्कृति का समावेश किया हो, आप इसी बात से अंदाज़ा लगा सकते हो कि ऐसे देश कों शिक्षा कि कितनी ज़रुरत हो होगी

भारत आज़ादी से पहले जब अंग्रेजो के हाथो कि कठ पुतली बना हुआ था उस दोर में यह देश शिक्षा के स्तर कों उबारने कि कोशिश तो कर रहा था लेकिन लेकिन ब्रिटिश हुक्मरान लोग उभरने देते भी कैसे ? ये एक बड़ा सवाल बुद्धिजिवयो के मन में उठ रहा था, इनको इस बात का भी दर था कि कही ये शिक्षित हो गए तो हमारा देश में राज करने से क्या फायदा होगा ? जो भी लोग उस समय के पढ़े -लिखे होते थे वो इन्ही के यहाँ पर दो टुकडो कि खातिर घर पर बंधे एक कुत्ते कि तरह पहरेदारी करते थे कहने का मतलब ये है कि पूर्ण रूप से इन गोरे लोगो के अधीन होकर चापलूसी करना . धीरे -२ समय बदलता गया देश में एक और शिक्षित वर्ग कही किसी कोने में पड़ा जागरूक हो रहा था .जैसे महात्मा गाँधी , डॉ. अंबेडकर, डॉ. रेजेंद्र प्रसाद पंडित जवाहर लाल नेहरु … इतियादी

लेकिन वही दूसरी तरफ कुछ लोग देश को आज़ादी दिलाने के चक्कर में जगह -२ जाकर आंदोलनों की शुरुवात कर रहे थे. अंग्रेजो का रुख अब पूरी तरह से इन आन्दोलन करने वालो कीऔर केन्द्रित हो चुका था शिक्षित वर्ग इस तरफ शिक्षित होता जा रहा था . यही वर्ग देश में थोड़ी बहुत पढाई करके ,विदेशी शिक्षा हासिल करने विदेशो की और पलायन कर रहा था .इन्होने शिक्षा की एहमियत कों समझा , कयोंकि इनको लग रहा था की देश कों आज़ादी लडाई करके मिलने वाली नहीं है .इसको शिक्षा के बल पर हासिल करना होगा . जैसे -२ ये लोग विदेशी शिक्षा हासिल करके लोटे तब इनको इस बात का एहसास हुआ की गोरे लोग देश कों कब्जाए बेठे है. धीरे -२ शिक्षित वर्ग ने एक शिक्षित लोगो का संगठन खड़ा करना शुरू कर दिया . कि किस प्रकार इनके चुंगल से देश कों आजाद करना चाहिए. उस वक़्त भी शिक्षा का स्तर कुछ खास नहीं दिखाई दे रहा था . लेकिन लगो का रुख शिक्षा के प्रति धीरे -२ बढ़ने लगा , देश अब आज़ादी पाने कि पूरी चरम सीमा पर पहुच चूका था

ब्रिटिश गवर्नर लार्ड माउन्टबेटन ,लार्ड मिंटो मार्ले कों लगा कि कही अगर सारा देश एक जुट हो गया तो तो बहुत बड़ा खतरा पैदा हो सकता है तभी उन्होंने मोहम्द अली जिन्ना पर नज़र रखनी शुरू कर दी. और अंत में देश कों दो भागो बटवा ही डाला . गाँधी ने देश कों हिस्सों में बाटने कि मनसा जाहिर कि और १४ अगस्त १९४७ कों पाकिस्तान के रूप में स्वीकृति दे दी .और भारत कों १५ अगस्त १९४७ कों अंग्रेजो के हाथो से स्वतंत्र हो ही गया आज़ादी मिलने के बाद भी देश के बुद्धिजीवी वर्ग ने अधिकार कि एहमियत कों समझा और देश में धीरे -२ साक्षरता दर का विस्तार होने लगा . देश कि जनता का धियान शिक्षा कि करने कोशिश कि , आज़ादी से पहले जनता अंग्रेजो कि गुलामी कर रही थी . वंही अब ये जनता क्षेत्रियो ज़मीदारोकि गुलामी करने लगे जिन लोगो ने शिक्षा कि एहमियत कों समझा उन्होंने अपने बच्चो शिक्ष के पीछे धकेल दिया .

समुन्द्र के तटवर्तिए क्षेत्र में जहा पर अंग्रेजो वर्चस्व ज्यादा था . वहा शिक्षा का स्तर थोडा -२ ठीक था . जैसे .तमिलनायडू. केरला . उड़ीसा , पशिम बंगाल, गुजरात ,महाराष्ठ ,गोआ , ये भारत के उन राज्यों में से एक थे जहा के लोगो ने शिक्षा के अधिकार कों समझा और पहचाना भी ,भारत का मध्य भू- भाग राजस्थान ,मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश हरियाणा ,पंजाब . इन क्षेत्रो में शिक्षा का स्तर ज़रूरत से ज्यादा कम था.जहा के ज़मीदार वर्ग ने इनको उभरने नहीं दिया .तभी ये प्रेदश आज भूखमरी और गरीबी के सबसे ज्यादा शिकार है . भारतीय संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर ने संविधान में शिक्षा के अधिकार कि एहमियत कों बताया कि शिक्षा देश के हर वर्ग के लिए ज़रूरी है. पंडित जवाहर लाला नेहरु जब देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने देश कि जनता कों शिक्षा के प्रति जागरूक होने कि बात कही थी, कि देश की जनता कों जागरूक करना होगा. तभी देश का विकास होगा . देश के उच्च वर्ग कों अब सबसे ज्यादा समस्या हो गयी थी वो था दलित वर्ग जिसको देश का सबसे ज्यादा दबा कुचला वर्ग मना जाता था जिसका नाम सुनकर धरती भी चिड जाती थी . इस वर्ग कों शिक्षा देना कोई नहीं देना चाहता था इनके पूर्वजो ने इसी तरह की मुसीबतों कों झेला है .देश के उच्च पदों पर बेठे कुछ गिने चुने दलितवर्ग के आज भी उच्च वर्ग की आँखों में खटकते है .

समय के साथ -२ इन्सान बदला, उसकी सोच बदली , समाज बदला , और अपने विचारो में तेज़ गति लानी शुरू की .देश के दूर दराज क्षेत्रो में पल रही प्रतिभाओ के सामने सबसे बड़ी समस्या थी तो वो ये इसको आगे कैसे लाया जाए ? इन दुर दराज इलाको से स्कूल कोसो दूर होते थे जहा तक पहुच पाना असंभव होता था .देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदरा गाँधीके बेटे राजीव गाँधी बड़े ही प्रतिभा शाली व्यक्तित्व वाले इन्सान थे . अपनी माता जी के मृत्यु के बाद जब देश की सत्ता अपने हाथो में ली . तो उनका बस एक ही सपना था की देश का हर हर बच्चा पढ़ा लिखा हो .राजीव गाँधी ने सन १९८६ में प्रतिभा शाली बचोचो के लिए जवाहर नवोदय विधालय की नीव रखी .ताकि हर प्रतिभा शाली बच्चो के लिए उनके भविष्य कों उज्जवल बनाया जाये . ग्रामीण परिवेश से आये बच्चो कों अपनी प्रतिभा निखारने का पूरा मोका मिले .केंद्र सरकर भी जवाहर नवोदय विधालय के हर एक बच्चे पर सालाना बावन हज़ार रूपये खर्च करती है

केंद्र सरकार की शिक्षा का अधिकार, सर्व शिक्षा अभियान जैसी कई पहलों पर और प्रगति के बावजूद भी भारत में विश्व की ३५ हज़ार फीसदी आबादी निरक्षर है जिसकी साक्षरता दर ६८ फीसदी है .प्राथमिक स्तर पर सन १९५०-१९५१ में स्कूलों में दाखिला लेने वालो बच्चो की संख्या उन्नीस करोड़ दो लाख थी .वही २०००-२००१ में ये बढ़कर दस अरब अन्ठानवे करोड़ हो गयी आज़ादी के बाद साक्षरता दर १८.३३ फीसदी से बढ़कर २००१ में ६४.०१.फीसदी हो गयी है एक पक्ष में देख जाये तो देश की साक्षरता दर बढ़ तो रही है .लेकिन दुसरे पक्ष में जनसंख्या का होता विस्फोट हर तरफ में निरक्षरों की दर बढ़ा रहा है . बिहार नागालेंड .मणिपुर ही मात्र ऐसे राज्य है जहा निरक्षरों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

जिस शिक्षा कों हमने गुरु -शिष्य के पवित्र रिश्तो कों गंगा जैसे पवित्र जल की तरह समझा . आज वही शिक्षा एक सब्जी मंदी की तरह हो गयी है जो चाहे खरीद लो ,पैसे के बल पर आज पूंजीपति लोगो ने शिक्षा कों बाज़ार का रूप दे दिया .क्या आज के दोर में शिक्षा के अधिकार की यही एहमियत है

ललित कुमार कुचालिया

1 COMMENT

  1. भारत सरकार की वर्तमान शिक्षा नीति वास्तव में असफल है किन्तु शिक्षा तो राज्य का विषय है ,वे क्या कर रहे हैं?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here