भारत का पहला आक्रांता ईरानी साइरस

—विनय कुमार विनायक
भारत का पहला आक्रांता
ईरानी हखमीवंशी साइरस;
कुरोश राजा था फारस का!
तबतक इस्लाम का उदय नहीं हुआ था
ईरानी था भारतीय आर्यों की भातृ शाखा
अग्नि पूजक, जरथुष्ट्र का अनुयाई
ईसा पूर्व पांच सौ अंठावन से
ईसा पूर्व पांच सौ तीस तक,
साइरस/करुष/कुरोश ही था ईरान का शासक
बना बाह्लीक और गांधार का प्रथम विजेता
करके किन्तु सीमा पार आ नहीं सका अंदर,
फिर पुत्र कम्बुजी;केमबैसेस,
फिर साइरस द्वितीय,फिर द्वितीय कम्बुजी
बैठे ईरान की गद्दी पर
पर बना रहा भारत एक पहेली अनबुझी!

फिर डेरियस;दारा/दरायवोष ने,
ईसा पूर्व पांच सौ बाईस वर्ष में
भेजा स्काइलेक्स का खोजी दस्ता,
(एक नाविक के नेतृत्व में अभियान दल)
जिसने प्रशस्त किया भारत जय का रास्ता!
अब काम्बोज, गांधार और सिन्ध
हुआ डेरियस;दरायवोष/दारा/दारुश के अधीन!
यहाँ से ईरानियों ने प्राप्त किया
अतिशय कर, प्रचूर धन, सोना
360 टैलण्ट जो ईरान के अठाईस क्षत्रपों से
प्राप्त कर का एक तिहाई हिस्सा था!

पर बदले में दिया क्या?
अमराईक-खरोष्ठी लिपि का ज्ञान
दाई से बाई ओर लिखी जाने वाली,
शासन का क्षत्रप प्रणाली,
समुद्री व्यापार का माध्यम,
जब भारतीय सामान,
जाने लगा मिश्र और यूनान,
भारत की सम्पन्ता का,
उन देशों को भी हो गया भान,
जो अबतक थे अंजान,
आगे मौर्य काल में दंड स्वरूप
सर मुंडवाने की प्रथा,
स्त्रियो को अंगरक्षक में नियुक्ति
और मंत्रियों के कक्ष में
हर क्षण अग्नि जलाने की रीति
ईरानियों से मिली थी!

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