-प्रभात कुमार रॉय
सर्वविदित है कि कश्मीर के सियासी और सामाजिक हालात विगत कुछ महीनों से बेहद खराब बने रहे। हॉंलाकि अब वादी ए कश्मीर में स्कूल-कॉलिज खुल चुके हैं और दहकती हुई कश्मीर घाटी में सर्द शीतल हवा के पुरसुकून झोंके बहने लगे हैं। ये स्थिति केवल ऐसे कश्मीरी आवाम की पहल पर कायम हो सकी है, जिनके बच्चों के स्कूल कालिजों की पढाई लिखाई महीनों से तबाह बरबाद होती रही। कश्मीर में बेहतर स्थिति के निमार्ण के लिए उमर अब्दुल्ला हुकूमत का प्रयास किंचित भी कामयाब नहीं हो सका। ऐसी नाका़रा जालिम हुकूमत जो युवाओं की पथ्थरबाजी का जवाब महीनों तक गोली बारी से देती रही। और कश्मीर की हुकूमत में साझीदार और केंद्रीय हुकूमत में विराजमान कॉंग्रेस पार्टी उमर अब्दुल्ला की नौजवानों से निपटने की बर्बर वहशियाना रणनीति की हिमायत करती रही। जेहादी आतंकवादियों के समकक्ष वतनपरस्त किंतु सत्ता व्यस्था से नाराज युवाओं को रखने की समझ को वहशियाना बर्बरता नहीं तो और फिर क्या कहा जाए। गोली का जवाब यकी़नन गोली ही है किंतु गुस्से में फेंके गए पथ्थरों का समुचित शासकीय उत्तर ऑंसू गैस, लाठी चार्ज और हवाई फायरिंग होता है न कि किसी नौजवानों के सीने में गोली ठोंक देना। तकरीबन 110 नौजवान सुरक्षा बलों की फायरिंग में हलाक़ कर दिए गए। कश्मीर बेहद क्रोधित हो उठा है। यह शांति तूफान आने से पहले की शांति प्रतीत होती है। तमाम घटना क्रम को देखते हुए यही प्रतीत होता है कि केंद्रीय सरकार का कश्मीर के प्रश्न को हल करने के कतई गंभीर नहीं है।
कश्मीर के प्रश्न को हल करने की खातिर हुकूमत ए हिंदुस्तान ने एक वार्ताकारों के दल के गठन किया गया। कश्मीर वार्ताकारों का यह दल एक वर्ष तक कश्मीर के विभिन्न संगठनों के साथ बातचीत करके कश्मीर समस्या कोई सर्वमान्य हल निकालने का कोशिश करेगा। इस दल में प्रख्यात पत्रकार दिलीप पंडगांवकर, जामिया मीलिया की प्रोफेसर मैडम राधा कुमार एवं सूचना आयुक्त एम एम अंसारी को शामिल किया गया है । इस प्रकार एक पत्रकार, एक प्राफेसर और एक ब्यूरोक्रेट की वार्ताकार त्रिमूर्ति तशकील की गई। ऐतिहासिक तौर पर नज़र डाले तो पं0 जवाहरलाल नेहरू ने कश्मीर के लिए वार्ताकार के रूप में लाल बहादुर शास्त्री जैसे शख्स का इंतखाब किया। नरसिम्मा राव ने राजेश पायलट और जार्ज फर्नाडीज़ सरीखे असरदार राजनेताओं को कश्मीर मसअले के हल के लिए वार्ताकार मुकर्रर किया। कश्मीर के सवाल पर फौरी तौर पर सकारात्मक हल निकाले गए। अब जो वार्ताकार चुने गए गए है वे राजनीतिक तौर पर ताकतवर नहीं है उनको लेकर कश्मीर के लोग संजीदा नहीं है।
इससे पहले भी सन् 2007 कश्मीर में ऑटानामी के प्रश्न पर एक प्राइम मिनिस्टर कोर कमेटी का गठन किया गया, जिसकी सदारत जस्टिस सगीर अहमद को दी गई थी। इस कमेटी में कश्मीर में विद्यमान प्राय: सभी दलों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया। कश्मीर ऑटोनामी के प्रश्न पर पीएम कोर कमेटी का जो हश्र हुआ यह तथ्य तो अब जग जाहिर हो चुका है। पीएम कोर कमेटी की केवल तीन बैठक आयेजित की गई और कमेटी किसी आम रॉय पर पॅहुचने में नाकाम रही। आखिर में जस्टिस सगीर अहमद ने मनमाने तौर पर कमेटी सदस्यों के दस्तख़त के बिना ही अपनी रिर्पोट प्रधानमंत्री महोदय को सौंपने के स्थान पर वजीर ए आला कश्मीर जनाब उमर अब्दुल्ला को सौंप दी।
जस्टिस सगीर अहमद की ऑटानोमी रिर्पोट पर क्या कार्यवाही अंजाम दी गई, सरकारी तौर कुछ अभी तक बताया नहीं गया। जहॉ तक अनुमान है इसे भी सरकारी कमीशनों की रिर्पोट्स की तर्ज पर सरकार के ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
कश्मीर के प्रश्न पर अब एक नई सरकारी वार्ताकार कमेटी अस्तीत्व में आ गई, जिसे हुकूमत ए हिंदुस्तान के गृहमंत्री महोदय ने तशकील किया। सभी जानते हैं कि एक सासंदों का एक सर्वदलीय दल कश्मीर के दौरे पर गया था जिसने अपनी रिर्पोट्स सरकार को पेश कर दी। हॉंलाकि यह कोई सर्वसम्मत रिर्पोट नहीं हो सकती थी, क्योंकि विभिन्न दलों की कश्मीर मसअले पर मुखतलिफ राय रही है। अत: वही सब अंतरविरोध सांसदों की रिर्पोट्स में भी प्रतिबिंबित हुए। कश्मीर के प्रश्न पर रणनीतिक तौर पर देश के सभी दलों में विभिन्न विचार रहे, किंतु सभी राष्ट्रीय दल इस बात पर पूर्णत: सहमत हैं कि संपूर्ण कश्मीर भारत का अटूट अंग है। कश्मीर को लेकर वर्तमान केंद्रीय सरकार कितनी कम संजीदा है, यह तो इस कटु तथ्य से साबित हो जाता है कि वजीर ए आला उमर अब्दुल्ला के खतरनाक भटके हुए बयान के बावजूद कि जम्मू-कश्मीर का भारत में मर्जर नहीं एक्सैशन हुआ है, केंद्रीय सरकार ने उसे कंडम नहीं किया, वरन् बहुत बेशर्मी के साथ उसके नेता बचाव में उतर आए। कश्मीर में सेना से स्पेशल पावर छीनने के प्रश्न पर भी केंद्र सरकार उहापोह में प्रतीत होती है। जबकि केंद्र सरकार के बडे़ ओहदेदार इस तथ्य से भली भॉंति परिचित हैं कि कश्मीर को जेहादी आतंकवाद से निजा़त दिलाने का दुरूह कार्य भारतीय सेना के अफसरों और जवानों के असीम बलिदानों से ही मुमकिन हुआ है। कश्मीर में कथित जे़हाद अपनी आखिरी सॉंसें ले रहा है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ सेना के कारण ही। कश्मीर के गद्दार पृथकतावादी तत्व पेट्रोडालर के बलबूते पर अफरातफरी के हालत को तशकील करने की जोरदार कोशिश अंजाम दे रहे हैं। ऐसे सभी तत्वों पर लगाम कसने के विषय पर नेशनल कॉंफ्रेंस और नेशनल कॉंग्रेस की संविद सरकार दृढ़प्रतिज्ञ नहीं रही, वरन् इन तत्वों को कश्मीर के नौजवानों को बरगलाने और पथ्थर बाजी के लिए उत्तेजित करने का भरपूर अवसर प्रदान किया। इस तमाम निरंतर बिगड़ते हुए हालत पर केंद्र सरकार महज़ तमाशबीन बनी रही। विगत चार माह से कश्मीर में अकसर कर्फ्यू नाफ़ीज़ रहा । कश्मीर घाटी में ऐसा नजा़रा विगत दस वर्षो से कभी नहीं दिखाई दिया। गुलामनबी सरकार के अमरनाथ श्राइन को जमीन प्रदान करने के विरूद्ध हुए आंदोलन में कदाचित ऐसे बदतर हालात पेश नहीं आए। केंद्र सरकार का निकम्मापन हर कदम पर जाहिर होता रहा है। कश्मीर ऐसा राज्य कदाचित नहीं है कि केंद्र सरकार कानून व्यवस्था का सारा मामला राज्य सरकार के जिम्मे छोड़कर निश्चिंत हो जाए। जैसा रवैया मनमोहन सरकार ने कश्मीर पर अपनाया है वह देश की अखंडता और एकता के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इसे तत्काल बदला जाना चाहिए।
केंद्र सरकार का पाकिस्तान के हुकमरानों की नीयत पर अधिक भरोसा करके चलना कश्मीर के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है। उच्चस्थ खुफि़या सूत्रों के अनुसार पाक अधिकृत कश्मीर में जेहादी आतंकादी प्रशिक्षण शिवरों को बाकायदा आईएसआई संचालित कर रही है। अमेरिका की कूटनीति भारत के लिए छलावा सिद्ध हो सकती है। अफ़ग़ान युद्ध के कारण अमेरिका के पास पाकिस्तान पर भरोसा करने और उसको सहयोगी बनाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं है, अत: वह पाकि़स्तान की हिमायत के लिए विवश है। जे़हादी आतंकवादियों ने अभी कश्मीर में पराजय स्वीकार नहीं की है, वे एक और बडे़ आक्रमण की जोरदार तैयारियों में जुटे हैं। केंद्रीय सरकार को अपने कश्मीर को संभालना है और संवारना है। संपूर्ण जम्मू-कश्मीर की तरक्की में, कश्मीरी नौजवानों के रोजगार में और कश्मीरी दस्तकारों की खुशहाली में तथा सरकारी अमले की ईमानदारी में ही जेहादी आतंकवाद की मुकम्मल शिकस्त निहित है। भारतीय सुरक्षा बलों को अपनी गोलियां जेहादियों पर बरसानी हैं। केंद्रीय हुकूमत में यदि जरा सी संजीदगी शेष है तो युवाओं पर गोली बारी का प्रहार करने वाली गद्दाराना बयानबाजी करने वाले वजीर ए आला उमर सरकार को तुरंत बर्खास्त करके, वह अपनी सदाशयता का परिचय दे, अन्यथा केंद्रीय हुकूमत द्वारा चाहे जितनी भी सरकारी कमेटियां क्यों ना बना दी जाएं, वे सभी नाका़म बेकार साबित होगीं।
श्रीमान् आर सिंह ने अत्यंत गंभीरता के साथ एकदम ठीक कहा कि कश्मीर की समस्या दिन ब दिन उलझती ही जा रही है। कश्मीर की समस्या को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल ने शुरू से यूनओ में बेवजह ले जाकर उलझा दिया गया। कश्मीर के बहाने साम्राज्यवादी ताकतों को अपना खेल खेलना का भरपूर अवसर हासिल हो गया। आज भी वही ताकतें हैं, जोकि जबरदस्त तौर पर पाकिस्तान की मदद कर रही हैं। जिन ताकतों ने अलकायदा के जेहाद को जन्म दिया है उन्ही पर जेहाद से युद्ध करने के लिए भरोसा किया जा रहा है। कश्मीर में भारत के शासकों ने भी एक बाद दूसरी गलती अंजाम दी जिसका परिणाम अभी तक तकरीबन एक लाख लोगों की कुर्बानियां देकर भुगता जा चुका है। कश्मीर में पाकिस्तान की निर्णायक पराजय में ही कश्मीर समस्या का निदान छिपा है। यह पराजय अपने भीतर कूटनीतिक राजनीतिक, भौतिक एवं नैतिक आदि बहुत से आयाम लिए हुए है।
अनिल सहगल साहब ने कश्मीर की समस्या को सुलझाने की खातिर अत्यंत महत्वपूर्ण सुझाव पेश किए हैं।
भारत सरकार को इन पर अपना ध्यान केंद्रीत करना चाहिए। कश्मीर समस्या के स्थाई निदान के लिए कश्मीर के नौजवानों के दिलों का जीतना होगा। यह लडा़ई केवल बंदूक के बल पर कदाचित नहीं जीती जा सकेगी।
इस युद्ध के भौतिक और मानसिक दोनों ही आयाम हैं।
डाक्टर रॉय,आपका कश्मीर समस्या का विश्लेषण बहुत हद तक सही है.यह सच्च है की कश्मीर समस्या को कभी भी संजीदगी से नहीं लिया गया और आज भी रवैया नहीं बदला है.पर पूर्व प्रशाशनिक अधिकारी होने के नाते आपसे समस्या के समाधान के लिए कुछ ठोस सुझाव की अपेक्षा की जाती है.और यह कोई गलत भी नहीं. हो सकता है की आप कश्मीर समस्या से सीधा जुड़े हुए नहो,पर प्रशासन की कश्मीर में जो जिम्मेवारियां होनी चाहिए थी ,,उसपर तो आपने कभी न कभी तो सोचा ही होगा.अब आप बताइये की आपके पास ऐसा कोई सुझाव है,कश्मीर समस्या के समाधान हेतु ?
मेरे विचार से तो कश्मीर के केस में बिश्मिल्लाह ही गलत हो गया है और मर्ज बढ़ता ही जारहा है ज्यों ज्यों दवा की जा रही है,पर मैं तो आशा वादी हूँऔर समझता हूँ की आज भी अगर हम मिल बैठ कर एक दूसरे पर विश्वास के साथ समस्या के समाधान हेतु कतिवद्ध्ता दिखाए तो कोई कारन नहीं की इस समस्या का समाधान न हो. पर इसके लिए कश्मीर के इतिहास के पन्नों को कमसे कम १९४८से तो पलटना ही होगा.फिर लोगों में विश्वास पैदा करना होगा..आपलोगों को नहीं लगता है की कश्मीर समस्या बहुत बार सुलझते सुलझते उलझ जाती है है.ऐसा क्यों होता है?अगर सच्च पूछिए तो मुझे तो प्रायः यह लगता है की हमारी सरकारे इस समस्या को सुलझाना ही नहीं चाहती. ऐसे कश्मीर समस्या दिनोदिन अधिक उलझती जा रही है,अतः इसका समाधान जल्द ही ढूंढने में सबका कल्याण है.
सच मे कश्मीर समस्या के लिए कोई गंभीर नही है अन्यथा जब भी इस विषय पर चर्चा होती, तब कश्मीरी पंडित, जम्मू निवासी, एवं लद्दाख निवासियों को भी इसमे सम्मिलित किया जाता।
क्या हुकूमत ए हिंदुस्तान संजीदा है कश्मीर के सवाल पर – by – प्रभात कुमार रॉय
यह मान कर चलना होगा कि :
(१) आजादी नाम की धारणा पर विचार केवल एक स्वप्नं मात्र है.
(२) कश्मीर का हल स्तर पर करें :
(i) आर्थेक
(ii) राजनेतिक.
(३) आर्थिक योजना में
– युवा को नौकरी सारे देश में मिलें;
– घाटी में व्यापार के लिए स्थानीय व्यापारी अन्य प्रदेशों से व्यापारी वर्ग के साथ विश्वास कर अपना रोज़गार बढाये.
– इस प्रकार से युवा को राज्य और राज्य के बाहिर नौकरी और व्यापार मिले.
(४) राजनीति योजना पर यह सन्देश जाना चाहिये कि भारत देश के साथ रहने में ही प्रदेश के लोगों का हित है.
चदते सूर्य की उपासना होती है. पाकिस्तान और POK का भविष्य अंधकारमय है.
(५) उपर का उपचार गम्भीरता से प्रयोग हो तो economics will overcome politics – future of
J & K lies with India alone
– अनिल सहगल –