भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका

रायसीना संवाद से भारतीय कूटनीति को मिली नई धार

योगेश कुमार गोयल

            दुनियाभर में प्रतिष्ठित कूटनीतिक संवाद कार्यक्रम रायसीना डायलॉग के पांचवें संस्करण का आयोजन गत दिनों 14 से 16 जनवरी तक नई दिल्ली में भारतीय विदेश मंत्रालय और 1990 में स्थापित भारत के स्वतंत्र थिंक टैंक ‘ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन’ (ओआरएफ) की ओर से संयुक्त रूप से किया गया। कार्यक्रम कितना महत्वपूर्ण था, यह इसी से समझा जा सकता है कि इसमें बारह देशों के विदेश मंत्रियों तथा सौ देशों के करीब सात सौ अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों ने शिरकत की। तीनदिवसीय इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा विदेश मंत्री एस जयशंकर उपस्थित थे। सम्मेलन में रूस, ईरान, आस्ट्रेलिया, मालदीव, दक्षिण अफ्रीका, एस्तोनिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, लातविया, उज्बेकिस्तान सहित 12 देशों के विदेश मंत्री तथा यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि शामिल हुए। पिछले पांच वर्षों से वैश्विक रूप से प्रतिष्ठित कूटनीतिक संवाद कार्यक्रम ‘रायसीना डायलॉग’ का आयोजन प्रतिवर्ष नियमित रूप से किया जा रहा था और इस बार के सम्मेलन की थीम थी ‘नेविगेटिंग द अल्फा सेंचुरी’। चर्चा का मुख्य विषय था ‘आतंकवाद और आधुनिक दुनिया में टैक्नोलॉजी की भूमिका’।

            रायसीना संवाद वैश्विक कूटनीति पर एक ऐसा बहुपक्षीय सम्मेलन है, जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने आने वाले चुनौतीपूर्ण मुद्दों को सम्बोधित करने के लिए प्रतिबद्ध माना जाता है। इस संवाद कार्यक्रम में कई देशों के प्रतिनिधि और विशेषज्ञ विश्व की मौजूदा चुनौतियों पर विचार साझा करते हैं। पांच वर्षों से लगातार आयोजित किए जा रहे इस सम्मेलन से भारत सरकार की कूटनीतिक क्षमता में वृद्धि हुई है और यह वैश्विक कूटनीतिक पटल पर भारत की बढ़ती साख को प्रदर्शित करता है। सही मायनों में इस अनूठे संवाद कार्यक्रम का मंच दुनिया के विभिन्न देशों के बीच कूटनीतिक चहलकदमी का मंच और भारत की प्रभावी कूटनीति का गवाह बना है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की विभिन्न स्थितियों और मुद्दों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए यह संवाद कार्यक्रम सरकार को एक बड़ा मंच प्रदान करता है।

            अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर भारत के वैश्विक सम्मेलन ‘रायसीना डायलॉग’ की शुरूआत केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के पश्चात् वर्ष 2016 में हुई थी और पहला रायसीना संवाद दिल्ली में 1-3 मार्च को आयोजित किया गया था, जिसमें पैंतीस राष्ट्रों के सौ से अधिक वक्ताओं ने हिस्सा लिया था। 2016 के बाद से यह सम्मेलन प्रतिवर्ष जनवरी माह में ही आयोजित किया जा रहा है। इस संवाद कार्यक्रम के दौरान वर्ष 2017 में ‘द न्यू नॉर्मल: मल्टीलेटरिज्म विद मल्टीपोरेटी’, वर्ष 2018 में ‘मैनेजिंग डिसरप्टिव ट्रांजिशन: आइडियाज, इंस्टीट्यूशंस एंड इडियम्स’ तथा वर्ष 2019 में ‘बदलती राजनीति, अर्थव्यवस्था और स्ट्रैटेजिक लैंडस्केप’ पर चर्चा की गई थी। उल्लेखनीय है कि पांच वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि एक उभरते हुए शक्तिशाली देश के रूप में भारत को वैश्विक सम्मेलनों में हिस्सेदार ही नहीं बने रहना है बल्कि उससे आगे बढ़कर स्वयं के ऐसे मंच विकसित करने होंगे, जिनमें दुनिया के सभी ज्वलंत मुद्दों पर गहन मंथन किया जा सके। विदेशमंत्री जयशंकर प्रसाद का कहना है कि इस मंच ने लंबा सफर तय किया है और पांच वर्ष बाद भारत विश्वास के साथ कह सकता है कि हम इन अपेक्षाओं पर खरे उतरे हैं। दरअसल पूरी तरह समसामयिक इस संवाद कार्यक्रम की अहमियत इसी से समझी जा सकती है कि इसमें दुनिया के कोने-कोने से प्रतिनिधि हिस्सा लेने आते हैं।

            प्रतिवर्ष इस संवाद कार्यक्रम के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक परिस्थितियों और चुनौतियों पर सार्थक चर्चा करने के लिए विश्व के विभिन्न देशों और विशेषज्ञों को एक मंच पर लाना है। कार्यक्रम में नीतिगत, व्यापार, मीडिया तथा नागरिक समाज से संबंधित वैश्विक नेताओं और उच्चाधिकारियों तथा विभिन्न देशों के विदेश, रक्षा और वित्त मंत्रियों को व्यापक अंतर्राष्ट्रीय नीतिगत मामलों पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया जाता है, जो एक ही मंच पर अपने विचार साझा करते हैं। भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए आयोजित किए जाने वाले इस वार्षिक सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य एशियाई एकीकरण के अलावा बाकी दुनिया के साथ एशिया के बेहतर समन्वय हेतु संभावनाओं और अवसरों की तलाश करना है। भारतीय महासागरीय क्षेत्र में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर आधारित इस सम्मेलन का नाम ‘रायसीना डायलॉग’ इसीलिए रखा गया क्योंकि भारतीय विदेश मंत्रालय का मुख्यालय नई दिल्ली में रायसीना हिल्स (साउथ ब्लॉक) में स्थित है।

            रायसीना डायलॉग जैसे मंचों के माध्यम से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भारत का प्रभाव पूरी दुनिया में बढ़ रहा है और भारत ऐसे मंचों के माध्यम से अपनी बढ़ती कूटनीतिक ताकत और दुनिया के अनेक देशों के बीच अपनी बढ़ती अहमियत का अहसास कराने में भी सफल हो रहा है। इसका अहसास इसी से हो जाता है कि संवाद के दौरान जहां भारत की भूमिका वैश्विक कूटनीतिक मंच पर बेहद प्रभावी नजर आई, वहीं संवाद में शामिल हुए किसी भी देश के प्रतिनिधि ने न कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया और न ही किसी ने अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर भारत से कोई सवाल किया। आज अगर दुनिया में एक बड़े बाजार के अलावा भारत की कूटनीतिक ताकत और सॉफ्ट पावर की एक अलग जगह बनी है तो इसमें इस तरह के संवाद कार्यक्रमों का भी अहम योगदान रहा है। इस तीनदिवसीय सम्मेलन के दौरान जिस प्रकार रूस के विदेशमंत्री लाबरोव ने संयुक्त राष्ट्र परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता कर पुरजोर वकालत की और डेनमार्क के पूर्व प्रधानमंत्री एवं नाटो के पूर्व महासचिव आंद्रेस रासमुसेन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन सहित कुछ अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका को स्वीकारा, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरी दुनिया भारत को किस प्रकार एक ऐसी बड़ी ताकत के रूप में देखने लगी है, जिसकी वैश्विक घटनाक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका और योगदान है।

            रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लाबरोव के अनुसार नई दिल्ली वैश्विक प्रभाव रखने वाले नए केन्द्रों में शामिल है। रायसीना डायलॉग के मंच पर नाटो के पूर्व महासचिव आंद्रेस रासमुसेन का कहना था कि वे लोकतांत्रिक देशों का एक ऐसा वैश्विक गठबंधन देखना चाहेंगे, जो दमनकारी शासकों और सत्ता के खिलाफ खड़ा हो और उनके मुताबिक ऐसे गठबंधन में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। स्कॉट मॉरिसन ने भी भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका के बारे में अपने संदेश में कहा कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत महत्वपूर्ण देश है और रहेगा। उनका कहना था कि हिन्द महासागर में भारत काफी सक्रिय भूमिका में है और इसमें भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जिस प्रकार कई बड़े वैश्विक नेताओं ने वैश्विक मंच पर भारत को और ज्यादा सक्रिय होने की सलाह दी तथा अमेरिका-ईरान संघर्ष के इस दौर में तनाव कम करने के लिए ईरान ने भारत की ओर आशा भरी नजरों से देखते हुए भारत से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अपील की, उससे भारतीय कूटनीति तथा रायसीना संवाद की सार्थकता पर स्वतः ही मुहर लग गई है।

            यह भारत की कूटनीतिक जीत ही है कि एक ओर जहां अमेरिका भारत का बड़ा रणनीतिक साझेदार है, वहीं चीन, रूस तथा ईरान जैसे देशों के साथ अमेरिका के तनावपूर्ण संबंधों के दौर में भी भारत इन देशों के अलावा यूएई, सऊदी अरब, यूरोप इत्यादि के साथ भी अपने संतुलित कूटनीतिक संबंध बनाए रखने में सफल रहा है। हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन की मनमानियों का विरोध करने के साथ-साथ भारत दुनियाभर के समुद्रों में सभी देशों की स्वतंत्र आवाजाही की पैरोकारी करता रहा है और रायसीना संवाद में अमेरिकी उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मैथ्यू पोटिंगर ने भी हिन्द-प्रशांत को एक उल्लेखनीय सिद्धांत बताते हुए भारत की भूमिका को सराहा है। दरअसल चीन की बादशाहत कायम करने वाला ‘क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग करार’ (आरईसीपी) हो या अमेरिकी संरक्षणवाद, भारत की कूटनीतिक विशेषता यही रही है कि उसने दूर रहते हुए ही दुनिया के अन्य देशों को एक अलग ही राह दिखाई है। इस कारण भी अनेक देशों का नजरिया भारत के प्रति बदला है और वे भारत को एक बड़ी ताकत के रूप में देखने लगे हैं।

            रायसीना संवाद के मंच पर जिस प्रकार भारत के प्रथम सीडीएस बिपिन रावत ने सौ देशों के करीब सात सौ प्रतिनिधियों के समक्ष दो टूक शब्दों में आतंकवाद पर निशाना साधते हुए इसकी जड़ों पर प्रहार करने और आतंक के प्रायोजक देशों के खिलाफ सख्त वैश्विक कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि आतंकवाद से निपटने के लिए वैसा ही बेहद कड़ा रुख अपनाने की जरूरत है, जैसा 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अपनाया था, ऐसे में विभिन्न मसलों पर वैश्विक समुदाय को स्पष्ट संदेश देने के लिए भारत के लिए ऐसे सम्मेलनों का महत्व समझना मुश्किल नहीं है। भारत की बढ़ती वैश्विक महत्ता का ही नतीजा है कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान और उसके अंधभक्त चीन को एक बार फिर उस समय मुंह की खानी पड़ी, जब सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों ने कश्मीर को द्विपक्षीय मामला बताते हुए उनकी दलीलों को नकार दिया।

            बहरहाल, रायसीना संवाद जैसे कार्यक्रमों का एक ओर जहां वर्तमान कूटनीतिक व्यवस्था में बड़ा महत्व है, वहीं आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक जनमत बनाने में भी ऐसे कार्यक्रमों की बड़ी भूमिका है। लगातार पांचवें साल बहुत बड़े स्तर पर इस सम्मेलन का आयोजन कर भारत ने पूरी दुनिया को एक ऐसा वैश्विक मंच प्रदान किया है, जहां बहुध्रुवीय बनती दुनिया में सभी पक्ष एक ही मंच पर एक-दूसरे की राय जान सकते हैं। इसके साथ ही भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश भी दे दिया है कि भारत अब ऐसे सम्मेलनों का हिस्सा भर ही नहीं बना रहेगा बल्कि वह स्वयं को ऐसे सम्मेलनों के केन्द्र के रूप में स्थापित करेगा। कहना असंगत नहीं होगा कि रायसीना संवाद ने भारतीय कूटनीति को एक नई धार प्रदान करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और भारत की वैश्विक भूमिका दिनों-दिन बढ़ रही है।

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