भारत की शोचनीय स्थिति और बहुसंख्यक समाज की महिलाएं

-आनंद जी. शर्मा- india
निष्णात वैद्य किसी कष्टसाध्य रोग से ग्रस्त रोगी का मुखमंडल देख कर औषधि नहीं दे देता, अपितु रोग के कारण का अनुसंधान करने के लिये उसकी जड़ तक जाकर कारण सुनिश्चित करने के पश्चात ही उचित औषधि एवं पथ्य पालन का कठोरता से आदेश देता, क्योंकि एक वैद्य का कर्तव्य रोगी को त्वरित शांति एवं पूर्णतः रोगमुक्त करना होता है |
यदि भारत की वर्तमान कष्टदायक अवस्था का विवेचन किया जाय तो स्पष्ट हो जाएगा कि भारत के आर्थिक दृष्टि से मध्यम एवं उच्च वर्ग के श्रीमंत एवं उनकी श्रीमतियां चुनाव वाले दिन 5 वर्षों में 1 बार मिलने वाला अधिकार का दुरुपयोग कर मतदान करने नहीं जाते हैं एवं भारत के भविष्य ही नहीं अपितु अपने स्वयं तथा अपने वंश की मानसिक – चारित्रिक – आर्थिक स्वतन्त्रता के जीर्ण शीर्ण अवस्था को प्राप्त हुए भवन की नींव पर प्रबल कुठराघात कर – अपने उस अतिमहत्वपूर्ण दिन को आमोद प्रमोद में व्यतीत कर व्यर्थ कर देते हैं | 
इसके अतिरिक्त – भारत के आर्थिक दृष्टि से निम्न तथा निम्न-मध्यम आर्थिक स्थिति के लोग – अज्ञानवश अथवा लोभवश अथवा भयवश – 100% मतदान करने के लिये बाध्य कर दिये जाते हैं और वे किसे मतदान कर के भारत को विनाश के पथ पर अग्रसर करते हैं – यह सर्वविदित है |
भारत के अनेक मतदान महोत्सवों के अधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि 50% मतदान होता है |
इस 50% मतदान का गहन विश्लेषण किया जाये तो ज्ञात होगा कि मतदाताओं में निम्न उद्धृत 4 श्रेणी के ही वे लोग हैं जो 100% मतदान करते हैं :
1. भारत को अपना देश नहीं मानते अपितु इसे भारतीयता से विहीन कर अपनी पर-राष्ट्रीय विचार-धाराओं एवं मान्यताओं के अनुसार परिवर्तित करने के दूरगामी षड्यंत्र के अंतर्गत सतत प्रयत्नशील हैं…
2. ऐसे लोग जिन्हें 1965 से 1971 के काल में विशेष रूप से तथा उसके पश्चात अल्पसंख्या में परन्तु सतत रूप से विदेशी घुसपैठियों को भारत में प्रविष्ट करा उनका राशन कार्ड बनवाकर राजनीतिक दल विशेष द्वारा सत्ता प्राप्त की गयी थी एवं तदन्तर इस चमत्कारी परम लाभदायी सरल नुस्खे से प्रेरित हो कर सभी सेक्यूलर राजनीतिक दल उन लोगों को प्रश्रय देने में एक दूसरे से स्पर्धा करने में लग गए…
3. निम्न तथा निम्न-मध्यम आर्थिक स्थिति के लोग जो अज्ञानवश अथवा लोभवश अथवा भयवश किसी सेक्यूलर राजनीतिक दल द्वारा उनके पक्ष में मतदान करने के लिये बाध्य कर दिये जाते हैं…
4. मध्यम – उच्च एवं अति-उच्च आर्थिक स्थिति के लोग जो भ्रष्टाचारी सेक्यूलर राजनीतिक दल की नीतियों से लाभान्वित होते हैं |
शेष 50% जो मतदान करने नहीं जाते – उनका विवरण इस लेख के आरंभ में दिया जा चुका है |
एक भ्रष्टाचारी का मस्तिष्क किसी सदाचारी के मस्तिष्क से 10 गुना अधिक कार्य करता है | 
भ्रष्टाचारी सेक्यूलर राजनीतिक दल के षड्यंत्रकारी मस्तिष्क वाले मतदान वाले दिन के पूर्व से पेड मीडिया के माध्यम से भारत के आर्थिक दृष्टि से मध्यम एवं उच्च वर्ग की स्त्रियों को आमोद प्रमोद के लिये उनके अन्तर्मन में संदेश प्रेषित करने में प्रयत्नशील हो जाते हैं तथा सफल भी हो जाते हैं क्योंकि मतदान वाले दिन वे मतदान केंद्र की पंक्ति में 1 या 2 घंटे खड़े रहने की यंत्रणा भोगने की अपेक्षा अपने वातानुकूलित कक्ष में टीवी पर प्रहसन – नृत्य – संगीत अथवा हिन्दी के किसी फूहड़ सीरियल को देखना श्रेयस्कर मानते हैं |
मतदान करने न जाने के इस दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय के लिये इन मध्यम एवं उच्च वर्ग की स्त्रियों का विशेष आग्रह होता है और सर्वविदित है कि अपने घर परिवार में सुख शांति का वातावरण बनाये रखने के लिये इस वर्ग का कायर पुरुष विवश होता है और वो अपनी पत्नी की आज्ञा को शिरोधार्य करने की बाध्यता को ही अपना सौभाग्य समझता है |
अतः – यदि भारत को इन भ्रष्टाचारी सेक्यूलर राजनीतिक दलों से मुक्त करना है तो भारत के इस मध्यम एवं उच्च वर्ग के पुरुषों में पौरुष को जागृत करने की नितांत अवश्यकता है – भले ही वो पौरुष 1 दिन के लिये और मात्र 2-3 घंटों के लिये ही क्यों न हो | 
शोध कर के जनहित में सार्वजनिक कीजिये कि भारत में कौन ऐसा निष्णात वैद्य है जो भारत के मध्यम एवं उच्च वर्ग के पुरुषों में कम से कम मतदान वाले 1 दिन के लिये पौरुष जागृत करने की औषधि का ज्ञाता है ?

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