इन्ही हाथों से तकदीर बना लेंगे

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मोहम्मद अनीस उर रहमान खान

असफल और मेहनत से परहेज़ करने वाले लोगों के मुंह से सामान्यता: यह वाक्य सुना जाता है कि “भाग्य में ही लिखा था तो क्या करें”। लेकिन समय बदल रहा है और यह वाक्य भी व्यर्थ होता नजर आता है क्योंकि अब लोगों ने अपनी किस्मत पर कम और मेहनत पर अधिक  भरोसा करना शुरू कर दिया है इसलिए वह अपनी मेहनत और  कलम से सफलता की कहानी लिखने पर विश्वास करते हैं|

दिल्ली स्थित चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क भी ऐसी ही गैर सरकारी, राजनीतिक और गैर धार्मिक संगठन है जो ग्रामीण भारत के युवाओं को अखबारों के लिए लेखन का प्रशिक्षण देकर उनके मूल व स्थानीय समस्याओं को अपनी तीन भाषाओं उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी में चलने वाली “चरखा फीचर” सेवा द्वारा देश के राजनेता और नीति निर्धारक वर्गों तक पहुंचाती है। ताकि उनकी समस्याओं का समाधान खोजा जा सके| ऐसी ही एक चार दिवसीय (18 से 21 अक्टूबर वर्ष 2016) लेखन कार्यशाला बिहार के जिला सीतामढ़ी के ब्लॉक पुपरी में भी आयोजित हुई थीं, जिसमें शामिल होने वाले लगभग22 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था। उनके द्वारा लिखे गए लेख प्रकाशित भी हो चुके हैं और हो रहे हैं। मगर सवाल है कि लिखने से लाभ भी हो पाता है या नहीं ??? जवाब खोजने के लिए हमनें प्रतिभागियों से बात की।

इस संबंध में मोहम्मद राशीद कहते है “जो दस-बारह वर्षों में हासिल नही किया था वो चार दिन में सीखा है, इसका सबसे बड़ा फायदा ये हुआ है कि हमारे अंदर आत्मविश्वास पैदा हुआ, मैने एक लेख लिखा था जो स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के अखबार में छप भी चूका है| जिसके बाद निर्णय किया कि हम अपनी तकदीर कलम से लिखेंगे|”

ज़िला मुज़फ्फरपुर के थाना ओराई के गांव रामदुलारी से संबंध रखने वाली नूरानी फातिमा बताती है कि “ हमने जब चरखा के बारे में सुना तो मुझे महसूस हुआ कि उससे मेरा कुछ खास फायदा नही होगा| लेकिन जब उपर्युक्त कार्यशाला में हिस्सा लिया तो मेरी सोच बदल गई, मुझे मालूम हुआ कि अपना हक कैसे प्राप्त कर सकते है| अब मेरे अंदर इतनी हिम्मत और जानकारी आ गई है कि मैं अब न सिर्फ अपना बल्कि दूसरों को भी उनका हक दिलाने में मदद कर सकती हूँ| वह अपनी फिल्ड विज़िट का अनुभव साझा करते हुए कहती हैं कि” जिला सीतामढ़ी ब्लॉक पुपरी के तहत आने वाले गांव भिट्टा पंचायत कुशैल गांव के एक मिडिल स्कूल गयी। वहाँ के बच्चों ने शिकायत की कि हमें छात्रवृत्ति नहीं मिलती है, जिसके बाद मैंने शोध करके एक लेख लिखा जो चरखा फीचर कि मदद से आम जनता तक पहुंचा। इसके अलावा मैंने सूचना के अधिकार का भी बखूबी इस्तेमाल करना सीखा है जो फोन और फार्म दोनों तरीकों से प्राप्त किया जा सकता। हमारे राज्य बिहार में अपने मोबाइल से 155311 डायल करके भी सूचना प्राप्त कर सकते हैं, इसके अलावा हमने संपादक के नाम, पत्र भी लिखना सीखा है। जो हम जेसी लड़कियों के लिए बहुत बड़ी बात है|”

मिर्जापुर बाजपट्टी, सीतामढ़ी से संबंध रखने वाले डॉक्टर राजिक हुसैन कहते हैं कि” हमारे लिए सौभाग्य यह है कि अभी तक कोई भी मीडिया संगठन इतने पास आकर हमारी समस्याओं को न तो सुनती थी और न जानने की कोशिश करती है जिस तरह चरखा के लोग इतने करीब आकर हमारे दर्द को न केवल महसूस करते हैं कि बल्कि हमें अपने दर्द को कलम कि जुबान देना भी सिखाया है। इसलिए में चरखा से वादा करता हूँ कि मैं आप का एक अच्छा लेखक साबित होकर दिखाऊंगा|”

एक अन्य स्त्री अपना परिचय कराते हुए कहती हैं कि” मेरा नाम सबीहा प्रवीन है मेरे पिता का नाम मोहम्मद नौशाद, घर जोगिया, जिला सीतामढ़ी, बिहार है, जब मैं पहले दिन इस कार्यक्रम में आई तो मुझे लग रहा था कि मैं कुछ भी बोलने में असमर्थ हूँ, लेकिन अभ्यास सत्र के दौरान मुझे अपने ब्लाक का विकास अधिकारी बना दिया गया और कुछ इस तरह से अभ्यास कराया गया कि मुझे हर सवाल का जवाब देने में तनिक भी झिझक महसूस नहीं हो रही थी| यहाँ तक कि मेरे साथी भी मेरे इस बदलाव पर आश्चर्य कर रहे थे। मेरे पास शब्द नहीं है कि मैं चरखा टीम का शुक्रिया अदा करूँ|”

स्नातक प्रथम वर्ष की छात्रा ने कहा कि” मेरा हाल ये था कि मैं अपने शिक्षकों से भी बात करते हुए या कुछ सवाल करते हुए बहुत डरती थी, किसी अधिकारी से जाकर अपने अधिकार की बात करना तो बहुत दूर की बात थी। लेकिन इस प्रशिक्षण में स्थानीय अधिकारियों से बात करने के बाद मैं अपने आप में महसूस करने लगी हूँ कि अब मैं किसी भी अधिकारी से अपने अधिकारों की मांग कर सकती हूँ| आंख में आंख डालकर बात करने का तरीका जान चुकी हूँ। जानती हूँ कि एक अधिकारी के ऊपर भी कोई दूसरा अधिकारी होता है,  हम उस से भी अपनी शिकायत कर सकते हैं|”

स्नातक की छात्रा दौलत खातून बताती हैं ” हम लोग पढ़े लिखे जाहिल थे, अधिक जानकारी नहीं थी लेकिन यहां आकर हमारी आँखें खुल गई हैं। हम प्रार्थना करते हैं इस तरह का अवसर हर लड़की को मिले ताकि उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सके, कार्यशाला के बाद हमारे अंदर जो परिवर्तन आया वो यह था कि जब मैं घर का राशन लेने राशन डिपो गई तो वहां मैंने देखा कि राशन डीलर प्रत्येक राशन कार्ड पर तीन किलो राशन कम दे रहे हैं,मैंने सवाल किया तो जवाब मिला कि यहाँ इतना ही मिलेगा जो चाहो कर लो!  मैं राशन कार्ड पर लिखा टोल फ्री नंबर डायल करने लगी तो उन्होंने मुझसे पूछा क्या कर रही है?  मैंने जवाब दिया कि खाद्य निरीक्षक को फोन करके आपकी शिकायत। उन्होंने तुरंत मुझे रोक दिया और खुशामद करते हुए कहा कि तुम तो अच्छी लड़की हो। मैं तुम्हारा राशन कम नहीं करूंगा। मैंने कहा कि मेरा नहीं किसी का भी कम नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा अच्छा ऐसा ही होगा| मैं दिल ही दिल में अपनी सफलता पर झूम उठी, मुझे लगा अब मैं भी समाज के लिए कुछ अच्छा कर सकती हूँ “।

उपर्युक्त कुछ ग्रामीण लेखकों के विचार जानने के बाद एक सवाल मन में आता है कि आखिर इन लोगों को क्या मिलता है जिनके बारे में लेख लिखे जाते हैं? जवाब जानने के लिए हमने सीतामढ़ी के कोर्डिनेटर श्री क़मरे आलम शाज़ से बात की तो उनका जवाब था कि “लेखन कार्यशाला के दौरान हम लोगों ने जिला सीतामढ़ी ब्लॉक पुपरी के तहत आने वाली पंचायत भट्टा धर्मपुर के कुशैल गाँव का दौरा किया था, जिसके बाद हमारे लेखकों ने कई विषयों पर अपने-अपने लेख लिखें, जो राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर के अखबारों में उर्दू और हिंदी भाषाओं में प्रकाशित हुए, जिसके बाद मैं उक्त गांव की समीक्षा के लिए गया जहां यह देखकर खुशी हुई कि जिन विषयों पर लेख लिखा गया था उनमें से दो समस्याएं हल होने वाली थी। एक तो यह कि मिडल स्कूल का रास्ता नहीं था अब वहाँ मिट्टी और ईंट के ढेर लगे थे और काम भी चल रहा था। दूसरा यह कि गांव के एक से दूसरे मुहल्ले में जाने के लिए कोई भी रास्ता नहीं था।लोगों को पानी और दूसरों के खेत में से आना जाना करते थे। वहाँ रोड बनने की तैयारी चल रही थी। इन दोनों बातों से न केवल मुझे खुशी हुई बल्कि सभी प्रतिभागियों और गांव के लोग भी इससे खुश हैं और वह फिर हमें अपने गांव में आमंत्रित कर रहे हैं, लेकिन अब हमारा मोड़ किसी और गांव की तरफ होगा, क्योंकि मुद्दों की कमी नहीं है केवल शासक वर्ग को एहसास दिलाने की जरूरत है|”

उल्लेखनीय हैं कि कमरे आलम शाज़ खुद भी एक लेखक हैं इसके अलावा वे विभिन्न प्रकार के सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों को हल करने में काफी व्यस्त रहते हैं। लेकिन इसमें कोई संदेह  नहीं कि लेख ,भाग्य ज़रूर बदल देता हैं। शर्त यह है कि उन्हें जनता के कल्याण के इरादे से लिखा जाए।

 

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