अपमान

डॉ मनोज चतुर्वेदी

आकांक्षा को शाम से ही एक सौ तीन डिग्री बुखार था .उसके पापा जैसे ही घर आए, तो दादी ने उन्हें उसकी हालत के बारे में बताया. तब वह डॉ. सुधाकर शर्मा से बुखार की दवा ले आए. दो दिन तक आकांक्षा को बुखार चढ़ता- उतरता रहा. फिर उसके पापा शिवचरण सिंह उसे डॉ.सुधाकर शर्मा के यहां दिखाने क्लीनिक पर ले गए. डॉक्टर शर्मा होम्योपैथिक डॉक्टर थे .उन्होंने कॉलेज में प्रोफेसर होने के साथ-साथ शौक के लिए होम्योपैथी की पुस्तकों को पढ़कर दवा देना शुरू किया था और भाग्य से वे जिन लोगों को दवा देते, उनका मर्ज तत्काल ठीक हो जाया करता. इस तरह पूरे मोहल्ले, आसपास और दूरदराज के लोग भी उनके यश को सुनकर उनसे इलाज करवाने आते थे. अपने मकान में बैठक को ही उन्होंने मरीजों के दवा इलाज के लिए क्लीनिक का रूप दे दिया था. वास्तव में डॉ. शर्मा शुरू से ही डॉक्टर बनना चाहते थे. मगर वह बन न सके और पढ़ाई तथा शोध के बाद वह कॉलेज में पढ़ाने लगे.

आकांक्षा को लेकर उनके पिताजी डॉ. शर्मा के पास पहुंचे. लगातार दवा देने के बाद भी उसमें कोई सुधार नहीं हो रहा था .उसकी जीभ, आंखें ,नाड़ी आदि का मुआयना करने के बाद डॉ. शर्मा ने कहा- ‘आकांक्षा जब तुम खुद ही ठीक नहीं होगी, तो जीवन में कोई भी परीक्षा कैसे पास कर पाओगी.’
….’कौन सी परीक्षा …? अंकल एक मेडिकल एंट्रेंस तक तो मैं पास नहीं कर पाई और कौन सी परीक्षा पास कर पाऊंगी,….?

दरअसल वह इंटर में 85% लेकर पास हुई थी. उसके बाद उस का एकमात्र सपना डॉक्टर बनना था. मगर कठिन परिश्रम के बाद भी वह मेडिकल एंट्रेंस पास ना कर पाई थी. इस बार जब से टेस्ट का परिणाम आया था. तब से वह निरंतर हताश-निराश होती जा रही थी.. और बार- बार बुखार में जकड़ती जा रही थी .डॉ. शर्मा समझ गए थे कि, आकांक्षा अपनी बौद्धिक असफलता से इतनी हताश हो गई है कि, खाने पीने के साथ ही उसका अपने पर कोई ध्यान नहीं है.

आकांक्षा की मां नहीं थी .बूढ़ी दादी घर का ख्याल रखती थी और हर पल उसका ध्यान रखती थी. मानसिक थकान और असफलता के कारण जीवन के प्रति आकांक्षा की नकारात्मक सोच हो रही थी .जिसके कारण वह बार-बार बीमार पड़ती और दवा भी बेअसर हो जाती .डॉक्टर सुधाकर शर्मा यद्यपि आकांक्षा के अभी नए नए पड़ोसी बने थे .मगर परिचय होने से वह उसके और उसके परिवार के बारे में जान गए थे. अब वह दवा से ज्यादा उसका मनोबल बढ़ाने का प्रयास करते. उनके सकारात्मक और उत्साहवर्धक बातों का आकांक्षा पर काफी असर हुआ .अब वह धीरे-धीरे ठीक हो रही थी. इस बार वह प्री- मेडिकल टेस्ट में कड़े परिश्रम और मनोयोग से तैयारी करके बैठी और पास हो गई. मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद वह सबसे  पहले डॉ. शर्मा को धन्यवाद देने गई. जिनके प्रोत्साहन से वह सफल हो सकी। डा.शर्मा ने सफलता का श्रेय उसके कड़े परिश्रम को बताया और शुभकामनाएं दी. उसके बाद आकांक्षा मेडिकल की पढ़ाई करने शहर से बाहर चली गई. बीच में छुट्टियों में जब भी वह आती… तो डॉ. शर्मा से पढ़ाई से लेकर कॉलेज की बातें और नए-नए केस हिस्ट्री के किस्से सुनाती. अब डॉक्टर शर्मा उसके पड़ोसी होने के साथ -साथ मानसिक संबल भी बन गए थे । धीरे-धीरे वह भी दिन आ गया, जब आकांक्षा मेडिकल की पढ़ाई पूरी करके हार्ट स्पेशलिस्ट बन गई और डॉक्टर बन कर अपने शहर आ गई. यहां उसे शहर के नामी अस्पताल में काम करने का मौका मिला. यहां आने के कुछ ही दिनों बाद वह मरीजों और डॉक्टर स्टाफ की सबसे प्रिय डॉक्टर बन गई. उसके मधुर व्यवहार से जहां मरीज खुश रहते. वहीं काम के प्रति तत्परता और लगन से उसके सीनियर डॉक्टर भी उसकी तारीफ करते नहीं थकते .
यहां उसकी मुलाकात डॉक्टर नगेंद्र से हुई. जो जनरल फिजीशियन थे. मुलाकात के बाद परिचय हुआ. फिर जान- पहचान से आगे बढ़ते हुए उनमें अच्छी दोस्ती हो गई. डॉक्टर नगेन्द्र इस हॉस्पिटल में आकांक्षा से छ:महीने पहले ही आए थे. इधर आकांक्षा के पिताजी ने दूसरी जगह यानी अस्पताल के नजदीक ही मकान ले लिया था. अब मकान बदलने से डॉक्टर शर्मा उनके पड़ोसी नहीं रहे. अस्पताल से घर और घर से अस्पताल आते -जाते मरीजों के इलाज में दिन-रात जुटी डॉ आकांक्षा को अपने अंकल डॉक्टर सुधाकर शर्मा से मिलने का समय ही नहीं मिला।
धीरे-धीरे समय बीत रहा था कि, एक दिन उसकी जिंदगी में तूफान आ गया। जब एक कार एक्सीडेंट में उसके पिता की मृत्यु हो गई ।उस समय डॉक्टर नगेंद्र ने उसे भावनात्मक सहारा दिया था .समय के साथ दोनों की आपसी वैचारिक समानता प्यार में बदल रही थी .
एक बार आवश्यक काम से नगेंद्र को दिल्ली जाना पड़ा .इसी बीच आकांक्षा के पास एक ऐसा केस आया जो काफी पेचीदा था. दरअसल एक मरीज के दिल का आकार ही कुछ बढ़ गया था. पहले उसे सांस फूलने और सांस लेने में तकलीफ हुई .जिसका एक अनुभवहीन डॉक्टर ने दमा समझकर इलाज शुरू कर दिया. धीरे-धीरे तकलीफ ज्यादा होने पर उसे हॉस्पिटल लाया गया. डॉक्टर आकांक्षा ने उसकी सारी रिपोर्ट देखने के बाद बताया कि- उसका  एकमात्र इलाज सर्जरी यानी ऑपरेशन है .
साथ ही मरीज के घरवालों को डांटते हुए उसने कहा कि, मरीज के इलाज के लिए आप लोगों ने पहले ध्यान क्यों नहीं दिया .अन्यथा कोई दूसरा उपाय जरूर किया जाता .मगर उस मरीज के घर वालों ने बताया कि ,मरीज का इलाज एक डॉक्टर से हो रहा था और उन्होंने विश्वास दिलाया था कि, बीमारी जल्दी ठीक हो जाएंगी.मगर धीरे-धीरे हालत ठीक होने के बजाए बिगड़ती चली गई .
जब आकांक्षा ने उस डॉक्टर और अस्पताल का नाम पूछा, जहां पहले उस मरीज का इलाज हो रहा था ,तो घर वालों ने डॉक्टर सुधाकर शर्मा का नाम बताया .
डॉक्टर सुधाकर शर्मा आकांक्षा के पड़ोसी भी रहे थे. इसीलिए एक दिन आकांक्षा उनसे मिलने उनके घर गई और औपचारिक बातचीत के बाद  उन्हें उस मरीज के केस के बारे में बताया जो कि ,डॉक्टर सुधाकर शर्मा के इलाज की वजह से बिगड़ गया था. चलते समय आकांक्षा ने डॉक्टर शर्मा को दिल से संबंधित किसी बीमारी का इलाज न करने की सलाह दी.

डॉक्टर शर्मा उसके पड़ोसी ही नहीं बल्कि उसके पिता समान भी थे और उनसे मिल कर उसे अपने किसी आत्मीय से मिलने का सुख प्राप्त हो रहा था .उसके बाद उस मरीज की हार्ट सर्जरी हो गई और 15 दिन के टूर के बाद नगेंद्र भी वापस आ गए . एक दिन बातों ही बातों में डॉ नगेंद्र ने आकांक्षा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा और बताया कि, वह उसे अपनी मां से मिलना चाहते हैं .
डॉक्टर नागेंद्र आकांक्षा को लेकर अपने घर पहुंचे तो चकित रह गई कि, वह मकान डॉक्टर सुधाकर शर्मा का ही था। आकांक्षा ने जब से पूछा तो उसने बताया कि, सुधाकर शर्मा उसके पिता हैं. आकांक्षा के सपने  पंख लगाकर आकाश में उड़ने लगे .वह सोचने लगी कि, वह सुधाकर शर्मा को कल तक अपना सिर्फ़ एक मार्गदर्शक और शुभ चिंतक के रूप में देखती थी . लेकिन अब उनसे उसका एक नया रिश्ता जुड़ने जा रहा है ।अब वह उसके ससुर बनेंगे।  आकांक्षा दिल ही दिल में खुश हो रही थी. डॉक्टर शर्मा का एक बेटा है. यह तो वह जानती थी .लेकिन उसे कभी मिली नहीं थी और नागेंद्र भी पढ़ाई के लिए हॉस्टल में रहता था. उसका कोई खास जिक्र भी डॉक्टर सुधाकर शर्मा नहीं करते थे. लेकिन अब जबकि आकांशा नगेंद्र के साथ अपना जीवन शुरू करने जा रही थी, तो उसे देखकर यह सुकून हो रहा था कि, विवाह के बाद वह अपनो के बीच जाएगी, अजनबियों के नहीं …
आकांक्षा..।। आकांक्षा अरे अंदर नहीं चलना है क्या …?दरवाजे के बाहर खड़ी आकांक्षा से नगेंद्र ने कहा .उसके बाद उसे ले जाकर अपनी मां और डॉक्टर शर्मा की पत्नी से मिलाया. आकांक्षा को अपनी बहू के रूप में देख कर मिसेज शर्मा ने कहा कि- उन्हें अपने बेटे की पसंद पर गर्व है  .अभी वह सब बातें कर ही रहे थे ,तभी बाहर से डॉक्टर शर्मा आए . लेकिन अपने घर में आकांक्षा को देख कर वह ना ही मुस्कुराए और ना ही उसका गर्मजोशी से स्वागत ही किया । डा.सुधाकर शर्मा का ऐसा व्यवहार आकांक्षा को थोड़ा अखरा जरूर…. मगर उसने सोचा कि, शायद किसी बात पर उनका मूड खराब हो। उसके अभिवादन का संक्षिप्त उत्तर देकर वह सोफे पर बैठ गए. फिर डॉक्टर सुधाकर शर्मा की पत्नी ने उन्हें बताया कि, आकांक्षा उनके बेटे नागेंद्र की पसंद है और दोनों शादी करना चाहते हैं ।यह सुनकर वह चौंक पड़े ।
फिर स्वयं को संयत करते हुए उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि- ‘उन्हें यह शादी मंजूर नहीं’. क्योंकि आकांक्षा ब्राम्हण नहीं है ठाकुर है ।इस शादी में जाति का अंतर है और ऐसा विवाह सुख नहीं आजीवन दुख का कारण बनता है .
इस पर नगेंद्र ने उन्हें जाति, धर्म से ऊपर उठकर सोचने को कहा, साथ ही बताया कि -आजकल जाति -धर्म की तमाम वर्जनाएं टूट रही हैं . हम बाईसवीं सदी की ओर बढ़ रहे हैं. विवाह के लिए दो दिलों का मेल, आपसी समझ ,संतुलन होना  जरूरी है . दो जातियों की मेल खाने से शादी सफल हो ,यह जरूरी नहीं. मगर डॉक्टर शर्मा अपने फैसले से टस से मस नहीं हुए. काफी देर तक  बाप -बेटे में जाति, धर्म को लेकर बहस चलती रही.
आकांक्षा को समझ में नहीं आ रहा था कि,7 डॉ शर्मा ऐसा क्यों कह रहे हैं .इतने पढ़े- लिखे और बुद्धिमान होकर भी वह रिश्तो में जाति की दीवार क्यों खड़ी कर रहे हैं. फिर उसने सोचा नगेंद्र उन्हें जरूर मना लेगा. अपने संस्कारों से बंधे होने के कारण शायद डॉक्टर शर्मा इस तरह के आकस्मिक बदलाव को तत्काल सहन नहीं कर पा रहे हैं .
अभी वह सोच ही रही थी कि, अचानक डॉक्टर शर्मा ने चिल्लाते हुए कहा,- नगेंद्र मैं एक बार नहीं हजार बार कह चुका हूं कि इस शादी से मैं
कतई सहमत नहीं हूं ,क्योंकि मुझे इस लड़की की जाति से नहीं बल्कि इस लड़की से ही नफरत है. मैं अपने सामने इसे एक पल भी बर्दाश्त नहीं कर सकता और तुम इसे पत्नी बनाकर आजीवन  मेरे घर में लाकर बहू रूप में ,मेरे सामने रखना चाहते हो .डॉक्टर सुधाकर शर्मा के मुंह से अपने लिए ऐसा विचार सुनकर वह स्तब्ध रह गई.
अचानक ऐसा क्या हुआ ,जो डॉक्टर शर्मा की नजर में वह इतनी गिर गई. ऐसी कौन सी गलती कर दी उसने… अभी कुछ ही दिन पहले वह इस घर में आई थी. तब तो उनका व्यवहार ऐसा नहीं था. फिर उसे एक पल के लिए अपनी आंखों के सामने बर्दाश्त नहीं कर सकता..। प्रश्न कहां से उठ गया ? आज वह ऐसा क्यों कह रहे हैं ।आकांक्षा के मन में प्रश्नों का ज्वार उठने लगा ।
उधर डॉक्टर नगेंद्र और उसकी मां ने आकांक्षा के प्रति डॉक्टर शर्मा से उनकी नफरत का कारण पूछा. तो वह बोले,.. यह लड़की जो लगातार एंट्रेंस एग्जाम में फेल हो रही थी .असहाय, हताश ,निराश हो चुकी थी.. और आत्महत्या की ओर बढ़ रही थी. मैंने उसे सांत्वना दिया. इसके मन में निराशा और हीनता की जड़ उखाड़ कर इसे प्रोत्साहित  किया. इसे डॉक्टर बनने का सपना और जीवन को एक उद्देश्य दिया. आज अगर यह डॉक्टर है, तो सिर्फ मेरे ही प्रोत्साहन, उत्साहवर्धन के कारण,. वरना मेडिकल की प्रवेश परीक्षा में लगातार फेल होने के कारण कुंठाग्रस्त होकर यह आत्महत्या कर लेती. .या निराश होकर पढ़ाई छोड़ देती .मगर इसने मेरे सारे एहसानों को एक ही पल में भुला दिया. आज डॉक्टर बन कर मुझ पर धौंस जमा रही है. मेरा एक मरीज इस के पास क्या चला गया कि, इसने यहां मेरे घर आकर मुझे ही बिना सोचे -समझे किसी का इलाज ना करने का फरमान सुना दिया. इसने मेरा इलाज झोला छाप डॉक्टरों की तरह बता दिया. बचपन से जिसके इलाज से यह ठीक होती आई है.
उसे ही अपने आगे इसने बौना साबित करने की कोशिश की.

नागेंद्र तुम्हारी अनुपस्थिति में इसने मेरा और मेरी इलाज का अपमान किया है .अपने जीते- जी इस लड़की को मैं अपने घर की बहू कभी नहीं बना सकता और अगर मेरी मर्जी के खिलाफ तुमने इसकी मांग में सिंदूर भरा तो उसी दिन मेरी चिता को भी आग लगा देना. डॉ शर्मा आपे से बाहर हुए जा रहे थे .
इतनी कड़वाहट सुनकर आकांक्षा के साथ ही नागेंद्र और उसकी मां भी स्तब्ध थे। आकांक्षा को अपनी बेटी की तरह मानने वाले डॉक्टर शर्मा के दिल में उसके लिए इतनी कड़वाहट है ..यह सोचकर आकांक्षा का दिल छलनी हुआ जा रहा था. उसने तो मरीजों के इलाज में सावधानी बरतने को उनसे इसलिए कहा था, क्योंकि वास्तव में डॉक्टर शर्मा तो किताबों से ही पढ़कर चिकित्सा करते थे और वह नहीं चाहती थी कि कोई केस बिगड़े और डॉक्टर सुधाकर शर्मा का नाम बदनाम हो .
मगर उन्होंने उसकी इस बात का इतना गलत मतलब निकाला. वह सोचने लगी ,उसने तो उन्हें पिता समान समझ कर सलाह दी थी .लेकिन उन्होंने उसे बेटी नहीं बल्कि प्रतिद्वंदी मान लिया. आकांक्षा के लिए उनके सामने खड़े होना भी भारी हो रहा था. वह झटके से उठी और घर से बाहर आ गई .
भादो महीने के बादल आसमान में छाए हुए थे. आकांक्षा के मन में डॉक्टर शर्मा का एक-एक शब्द आग पैदा कर रहा था वह दुख और अपमान की आग में जली जा रही थी.तभी बारिश शुरू हो गई वह पैदल ही चलती जा रही थी .थोड़ी देर में उसका घर आ गया. बारिश से बचने के लिए लोग छाता लगा रहे थे और सुरक्षित स्थानों पर जा रहे थे. मगर अपना घर आने पर भी आकांक्षा बहुत देर तक बाहर खड़ी बारिश में भीगती रही.अगले दिन वह अस्पताल नहीं गई। दो दिन तक वह मन की उलझनें सुलझाती रही. इन दो दिनों में नागेंद्र भी उससे मिलने नहीं आया. शायद वह अपने पिता की दी हुई धमकी से डर गया था. वास्तव में वह केवल उसके लिए तो ,अपनों को छोड़ नहीं सकता था .
दो-तीन दिन बाद जब आकांक्षा हॉस्पिटल गई तो अपना इस्तीफा देकर लौट आई .रात की गाड़ी से वह शहर को छोड़कर दूसरे शहर की तरफ चल दी. जहां ना तो कोई उसके अपने होंगे ,ना ही अपनापन दिखा कर उसे अपमानित करने वाले पराए… दिशाहीन हो चुके अपने जीवन को एक नई दिशा देने के लिए इस शहर से वह हमेशा हमेशा के लिए दूर हो गई….।

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