दिलचस्प दिन

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गंगानन्द झा

श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार का सत्तारूढ़ होना गणतान्त्रिक  भारत के विकास के इतिहास की दिशा और दशा परिभाषित करने वाली घटना है। उनका आश्वासन है— “अच्छे दिन आनेवाले हैं।“ हमें विश्वास है कि आनेवाले दिन अच्छे न भी हों पर, दिलचस्प तो अवश्य होंगे। सत्ता परिवर्तन पहली बार नहीं हुआ था, फिर भी यह तय था कि इस सत्ता परिवर्तन से दूरगामी प्रभाव डालनेवाली दिलचस्प सम्भावनों का सिलसिला शुरु होने जा रहा है। इनका विवरण प्रस्तुत करने के लिए नए राजनीतिक मुहावरे और मापदण्ड प्रासंगिक होंगे।

संसदीय निर्वाचन के नतीजों की घोषणा के पूर्व ही इस सम्भावना के संकेत थे। श्री स्वागत गांगुली ने अपने एक आलेख की शुरुआत भारत की उपमा एक कम्प्युटर से और कांग्रेस पार्टी द्वारा अपनाई गई  नेहरुवियन मतैक्य (Nehruvian consensus) की नीति की उसके डिफॉल्ट ऑपरेटिंग सिस्टम से दी है। उन्होंने आगे लिखा है कि नेहरु के बाद के समय में इस सॉफ्टवेयर का काफी अपग्रेड हुआ हैं। परिवारवाद तथा आरक्षण के जरिए जातीय पहचान की राजनीति इसमें शामिल हुए। अटल बिहारी वाजपेयी   तक ने भी इस मतैक्य की धारा को अक्षुण्ण रखा था। परिवारवाद तथा जाति आधारित आरक्षण आज कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों के ढाँचों में शामिल है। अब तक भारत मोटामोटी तौर पर नेहरुवियन मतैक्य के द्वारा शासित होता रहा है। यद्यपि इस बीच कांग्रेस विरोधी दलों की हुकूमतें भी रही हैं।भारत की वर्तमान अवधारणा नेहरुवियन मतैक्य  से निर्मित और पुष्ट हुई है। नेहरु गणतंत्रवादी और समाजवादी थे। उन्होंने उस समय सार्वजनिक मताधिकार की वकालत की, जब नए आजाद मुल्कों में इसे सर्वमान्य राह की मान्यता नहीं थी। इसके फलस्वरुप भारत विश्व का ऐसा गणतांत्रिक देश बना जिसकी अधिकतर जनता निरक्षर थी ।इस अवधारणा में भारत की विविधता को पूरा सम्मान उपलब्ध है। विविधता के प्रति इसी सम्मान का प्रभाव है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों के विच्छिन्नतावादी आन्दोलन पनप नहीं पाए और वे अब भारतीय गणतंत्र के ढाँचे के अन्दर ही क्षेत्रीय अधिकारों की स्वीकृति की माँगों के रुप में सहज रुप से संघर्षशील हैं। देश की अक्षुण्णता बरकरार है। जवाहरलाल नेहरु सार्वजनिक भाषणों  के दौरान सामान्य जनता से भारत माता की पहचान करवाया करते थे। भारत की विरासत के प्रति उनमें गहरी श्रद्धा थी,साथ ही प्रखर इतिहास-बोध था। आधुनिक भारत के लिए एक स्वप्न था उनकी चेतना में।इससे उस व्यक्ति के कद की झाँकी मिलती है। इतिहास से हम जानते हैं कि अधिकतर देशों में सार्वजनिक मताधिकार के पहले शिक्षा का प्रसार हुआ। लेकिन सन 1952 ई में भारत के पहले राष्ट्रीय चुनाव के समय उपयुक्त मतदाताओं का 85% निरक्षर था। हमारी आज की अनेकों आजादियों का श्रेय नेहरु एवम् उनके ऐतिहासिक साहस का ही है।विडम्बना की बात है कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के नेहरूवियन  मतैक्य से हटकर खुदरा व्यवसाय में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तथा अमेरिका के साथ नाभिकीय सन्धि हस्ताक्षरित करने जैसे कुछ तात्कालिक कदम  उठाने की कोशिश की तो उसके विरोध में भारतीय जनता पार्टी ने सबसे अधिक शोर मचाया था। वामपंथी दलों तक ने मार्क्सवाद को करीब करीब दरकिनार कर नेहरूवियन  मतैक्य  वरण कर लिया है।

लेकिन साथ साथ नेहरु के उत्तराधिकार के अँधेरे पहलू भी रहे हैं।  शिक्षा के बगैर गणतंत्र को बहुत अच्छी तरह काम करने में दिक्कत होती है। लेकिन भारत में शिक्षा के क्षेत्र मे प्रगति बहुत धीमी रही है। गाँधी और नेहरु ने शिक्षा पर बहुत जोर नहीं दिया। नतीजा है कि आज भी भारत विश्व के सर्वाधिक कम शिक्षित देशों की जमात में शामिल है।

एक प्रसंग की चर्चा। भारत सन 1947 ई मे आजाद हुआ और चीन दो साल बाद सन 1949 ई में। सन 1954 ई में जवाहरलाल चीन के सफर से लौटे थे। संवाददाताओं के प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बतलाया कि चीन ने भारत के मुकाबले में काफी अधिक प्रगति की है। अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि भारत ने गणतंत्र का रास्ता अपनाया है, जिसमें प्रगति की गति धीमी होती है, लेकिन हर नागरिक के विचारों और अघिकारों का खयाल रखा जाता है।

लेकिन सम्भवतः नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गठित एवम् संचालित भारतीय जनता पार्टी की सरकार के लिए नेहरूवियन  मतैक्य का  सॉफ्टवेयर  उपयुक्त नहीं होगा। उनकी सामाजिक जड़ें नेहरु और  अटल बिहारी वाजपेयी  से यथासम्भव अलग हैं। वे ब्राह्मण नहीं, निम्न जाति के गाञ्ची समूह से हैं। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में उनकी दीक्षा नहीं हुई,  न ही उसके बाद केअटल बिहारी वाजपेयी  की तरह संसदीय बहस की भद्र परम्परा में। अटल बिहारी वाजपेयी  ने बड़े कायदे से अपने आपको नेहरु के विम्ब में गढ़ा था। इसलिए उनको भिन्न सॉफ्टवेयर की जरूरत नहीं पड़ी थी।

 

मोदी की प्रधानमंत्री के रुप में स्थिर सरकार की अगुवाई के एक अथवा दो दौर नेहरुविन मतैक्य की गुत्थी को सुलझाने की ओर प्रभावी होंगे। इसमें नेहरु-गांधी परिवार के प्रभाव का अन्त भी सन्निहित रहेगा। मोदी के इस पहलू के असर में आशंका है कि मोदी का उदय भारत की वर्तमान अवधारणा नष्ट कर देगा। उनका दर्शन विविधता को नहीं, एकरुपता को सम्मान देता है। विचारों के परिवेश के दूषित होने के खतरे के वास्तविक होने की सम्भावना दिख रही है। विचारों के इस परिवेश को गढ़ने की यात्रा संघर्षपूर्ण रही है। इसके प्रति हम विशेष रुप से संवेदनशील हैं क्योंकि हमारे अधिकतर पड़ोसी मुल्क विविधता के प्रति सम्मान के इस परिवेश से वञ्चित रहे हैं। इसलिए सम्भावना है कि भारत की मौजूदा अवधारणा को गम्भीर खतरे होंगे। हो सकता है कि इसके बारे में तो कुछ कहना जल्दबाजी हो सकती है।

मोदी सरकार के बारे में सबसे अधिक निर्णायक पक्ष होगा कि क्या नेहरुवियन मॉडेल की राजनीतिक स्वाधीनता,अल्पसंख्यकों के प्रति सम्यक् आचरण जैसे सकारात्मक पहलुओं की उपेक्षा राष्ट्र को संकट के सम्मुखीन करती है? क्या बहुसंख्यकवादी अथवा अधिनायकवादी केन्द्र भारत जैसे विशाल एवम् विविधताओं से भरे देश को कायम रखने में असमर्थ होगा?

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