मासूम बच्चों की पीड़ा का अंतर्राष्ट्रीय दिवस

डॉo सत्यवान सौरभ, 

अंतर्राष्ट्रीय दिवस जनता को चिंता के मुद्दों पर शिक्षित करने के लिए, वैश्विक समस्याओं को संबोधित करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और संसाधन जुटाने के लिए, मानवता की उपलब्धियों को मनाने और सुदृढ़ करने के अवसर हैं। अंतर्राष्ट्रीय दिनों का अस्तित्व संयुक्त राष्ट्र की स्थापना से पहले है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें एक शक्तिशाली वकालत उपकरण के रूप में अपनाया है।

19 अगस्त 1982 को फिलिस्तीन के सवाल पर एक विशेष सत्र में सयुंक्त राष्ट्र की महासभा ने  प्रत्येक वर्ष के 4 जून को “मासूम बच्चों की पीड़ा का अंतर्राष्ट्रीय दिवस” मनाने का फैसला किया,  इस दिन का उद्देश्य दुनिया भर में बच्चों द्वारा पीड़ित दर्द को स्वीकार करना है जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण का शिकार हैं। यह दिन बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है। इसका कार्य  बाल अधिकारों पर निर्देशित है,
सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा, हमें सार्वभौमिक मास्टरप्लान प्रदान करता है ताकि बच्चों के बेहतर भविष्य को सुरक्षित किया जा सके। नए एजेंडे में पहली बार बच्चों के खिलाफ हिंसा के सभी रूपों को समाप्त करने के लिए एक विशिष्ट लक्ष्य शामिल है, और बच्चों के दुर्व्यवहार, उपेक्षा और शोषण को समाप्त करने के लिए कई अन्य हिंसा-संबंधी लक्ष्यों को मुख्यधारा में शामिल किया गया है।

वर्ष 2012 में  भारत में भी पॉक्सो के लागू होने के बाद भी बाल उत्पीड़न संबंधी अपराधों के मामलों में वृद्धि को देखते हुए वर्ष 2019 में पॉक्सो अधिनियम में कई अन्य संशोधनों के साथ ऐसे अपराधों में मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया है । इस अधिनियम में किये गए हालिया संशोधनों के तहत कठोर सजा प्रावधानों के साथ अपराध की रोकथाम से संबंधित उपायो पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस संशोधन के माध्यम से बाल उत्पीड़न के मामलों को रोकने के लिये सरकार और अन्य हितधारकों के सहयोग से बच्चों को व्यक्तिगत सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और लैंगिक अपराधों आदि के बारे में अवगत कराना तथा इन अपराधों से संबंधित शिकायत एवं कानूनी प्रक्रिया के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देना है।         

 यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (प्रोटेक्शन  ऑफ़  चिल्ड्रन  फ्रॉम  सेक्सुअल  ओफ्फेंसेस  एक्ट – पोक्सो ) का संक्षिप्त नाम है।  इस अधिनियम को  2012 में बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्‍पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिये लागू किया गया था। इस अधिनियम में ‘बालक’ को 18 वर्ष से कम आयु के व्‍यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और यह बच्‍चे का शारीरिक, भावनात्‍मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिये हर चरण को ज़्यादा महत्त्व देते हुए बच्‍चे के श्रेष्‍ठ हितों और कल्‍याण का सम्‍मान करता है। इस अधिनियम में लैंगिक भेदभाव नहीं है। “ज्ञातव्य है कि पिछले वर्ष मद्रास उच्च न्यायालय ने सुझाव दिया था कि 16 वर्ष की आयु के बाद सहमति से यौनिक, शारीरिक संबंध या इस प्रकार के अन्य कृत्यों को पोस्को अधिनियम के दायरे से बाहर कर देना चाहिये।

 ”बाल यौन अपराध संरक्षण नियम, 2020 जागरूकता और क्षमता निर्माण  के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को बच्चों के लिये आयु-उपयुक्त शैक्षिक सामग्री और पाठ्यक्रम तैयार करने के लिये कहा गया है, जिससे उन्हें व्यक्तिगत सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में जागरूक किया जा सके। इस संशोधन के तहत शैक्षिक सामग्री के माध्यम से बच्चों के साथ होने वाले लैंगिक अपराधों की रोकथाम और सुरक्षा तथा ऐसे मामलों की शिकायत के लिये चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर 1098 जैसे माध्यमों से भी अवगत कराना है। व्यक्तिगत सुरक्षा में बच्चों की शारीरिक सुरक्षा के साथ ही ऑनलाइन मंचों पर उनकी पहचान से संबंधित सुरक्षा के उपायों, भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य को भी शामिल किया गया है।

इस संशोधन में चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े प्रावधानों को भी कठोर किया गया है। नए नियमों के अनुसार, यदि कोई भी व्यक्ति चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित कोई फाइल प्राप्त करता है या ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के बारे में जानता है जिसके पास ऐसी फाइल हो या वह इन्हें अन्य लोगों को भेज रहा हो या भेज सकता है, उसके संबंध में विशेष किशोर पुलिस इकाई या साइबर क्राइम यूनिट  को सूचित करना चाहिये। नियम के अनुसार, ऐसे मामलों में जिस उपकरण (मोबाइल, कम्प्यूटर आदि) में पोर्नोग्राफिक फाइल रखी हो, जिस उपकरण से प्राप्त की गई हो और जिस ऑनलाइन प्लेटफार्म पर प्रदर्शित की गई हो सबकी विस्तृत जानकारी दी जाएगी।‘बाल संरक्षण नीति’के नए नियमों के तहत राज्य सरकारों को बाल उत्पीड़न के खिलाफ “शून्य-सहिष्णुता” के सिद्धांत पर आधारित एक ‘बाल संरक्षण नीति’  तैयार करने के निर्देश दिये गए हैं।

 केंद्र और राज्य सरकारें नियमित रूप से समय-समय पर बच्चों के साथ काम करने वाले सभी लोगों (शिक्षक, बस ड्राइवर, सहायक आदि, चाहे वे नियमित हों या अनुबंधित) को बाल सुरक्षा तथा संरक्षण के प्रति जागरूक करने एवं उन्हें उनकी ज़िम्मेदारी के प्रति शिक्षित करने के लिये प्रशिक्षण प्रदान करेंगी। संशोधन में बाल उत्पीड़न के मामलों पर कार्य कर रहे पुलिस कर्मियों और फाॅरेंसिक विशेषज्ञों के लिये भी समय-समय पर क्षमता विकास संबंधी प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन का भी सुझाव दिया गया है। ऐसा कोई भी संस्थान जहाँ बच्चे रहते हों या आते-जाते हों जैसे-स्कूल, शिशु गृह, खेल अकादमी आदि, को अपने सभी कर्मचारियों के बारे में पुलिस सत्यापन और उनकी पृष्ठभूमि की जाँच नियमित रूप से करनी होगी।

 यौन उत्पीड़न के मामले में प्राथमिकी दर्ज़ होने के बाद विशेष अदालत मामले में किसी भी समय पीड़ित की अपील या अपने विवेक से पीड़ित को राहत या पुनर्वास के लिये अंतरिम मुआवज़े का आदेश दे सकती है। ऐसे आदेश  के पारित होने के 30 दिनों के अंदर राज्य सरकार द्वारा पीड़ित को मुआवज़े का भुगतान किया जाएगा। बाल कल्याण समिति को यह अधिकार दिया गया है कि समिति अपने विवेक के अनुसार भोजन, कपड़े, परिवहन या पीड़ित की अन्य आकस्मिक ज़रूरतों के लिये उसे विशेष सहायता प्रदान करने के आदेश दे सकती है। इस तरह की आकस्मिक राशि का भुगतान आदेश की प्राप्ति के एक सप्ताह के अंदर पीड़ित को किया जाएगा। 

 ‘बाल यौन अपराध संरक्षण नियम, 2020’ देशभर में 9 मार्च, 2020 से लागू हो गया है। बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम के माध्यम से पहली बार ‘पेनीट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट’, यौन हमला और यौन उत्पीड़न को परिभाषित किया गया था। इस अधिनियम में अपराधों को ऐसी स्थितियों में अधिक गंभीर माना गया है यदि अपराध किसी प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस, सेना आदि के द्वारा किया गया हो।अधिनियम के तहत बच्चों से जुड़े यौन अपराध के मामलों की रोकथाम के साथ ऐसे मामलों में न्यायिक प्रक्रिया में हर स्तर पर विशेष सहयोग प्रदान करने की व्यवस्था की गई है।  साथ ही इस अधिनियम में पीड़ित को चिकित्सीय सहायता और पुनर्वास के लिये मुआवजा प्रदान करने की व्यवस्था भी की गई है

वर्ष 2019 में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (संशोधन) विधेयक , 2019 के माध्यम से ‘गंभीर पेनेट्रेटिव यौन प्रताड़ना’ के मामले में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया। हाल के वर्षों में, कई संघर्ष क्षेत्रों में, बच्चों के खिलाफ उल्लंघन की संख्या में वृद्धि हुई है। संघर्ष से प्रभावित देशों और क्षेत्रों में रहने वाले 250 मिलियन बच्चों की सुरक्षा के लिए और अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। हिंसक अतिवादियों द्वारा बच्चों को निशाना बनाने से बचाने के लिए और अंतर्राष्ट्रीय मानवीय और मानव अधिकार कानून को बढ़ावा देने के लिए और बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए और अधिक किया जाना चाहिए।

 डॉo सत्यवान सौरभ, 

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