आधी दुनिया के हिस्से को पूरा हक

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विश्व महिला दिवस पर 8 मार्च पर विशेष

एक अनजाना सा गांव पुलवाही देश ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय फलक पर चमक उठा है. ग्राम फलवानी डिंडोरी जिले के मेहदवानी विकासखंड में आता है. भौगोलिक रूप से यह गांव, विकासखंड और जिला मध्यप्रदेश में है लेकिन इस पर कभी मध्यप्रदेश का अविभाज्य अंग रहे छत्तीसगढ़ की छाप भी दिखती है. आज जब एक ठेठ आदिवासी गांव की महिला रेखा दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित मंच पर बोलने जा रही है तब इस बात से किसी को इंकार नहीं होगा कि महिला सशक्तिकरण के लिए ऐसी कोशिशें हुई हैं, जो पूरी दुनिया में अपनी गमक पैदा करती हैं. कहने के लिए रेखा पंदवार मध्यप्रदेश की है लेकिन रेखा किसी गांव, शहर या जिले का नहीं बल्कि देश का प्रतिनिधित्व कर रही हैं और इस मायने में पूरे देश में हो रहे महिला सशक्तिकरण के प्रयासों का सुफल देखने को मिल रहा है.
छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश में महिलाओं को सशक्त करने की दिशा में जो प्रयास किए जा रहे हैं, उसका नतीजा है कि दूर-दराज गांवों की महिलाएं अपने आत्मनिर्भर होने और आत्मविश्वासी बन जाने के बाद अपनी प्रतिभा का डंका बजा रही हैं। इन्हीं हजारों महिलाओं में एक रेखा पंदराम प्रदेश में संचालित हो रहे तेजस्वी ग्रामीण महिला सशक्तिकरण से जुड़ी. अल्प समय में ही उनके भीतर का आत्मविश्वास इतना बढ़ गया कि वे स्व-सहायता समूह के महासंघ में महासचिव पद पर चुन ली गई. अपने स्वयं के बूते पर सशक्तिकरण योजनाओं को आगे बढ़ाने वाली रेखा ने अपने साथ और अपने से परे महिलाओं को जोड़ा. उन्हें सिखाया और बताया कि उन्हें एक कदम आगे बढ़ाने की जरूरत है. फिर पूरा आसमां खुला है, उनके स्वागत के लिए. रेखा के सहारे और ढाढस ने तो जैसे अन्य महिलाओं के भीतर असीम उत्साह का प्रसार किया और उनके हौसलों को पंख मिल गया. देखते ही देखते एक और एक मिलकर ग्यारह बनते गए और महिला सशक्तिकरण की एक नई इबारत लिखी जाने लगी. रेखा के प्रयासों से उनके महासंघ को भी चिंहा जाने लगा और एक दिन आया कि प्रतिष्ठित सीताराम राव ऐशिया पेसीफिक लाइवलीहुड अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। रेखा ने खाद्य उत्पादन की कमी, खाद्य सुरक्षा, महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक उत्थान, उनके स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों और महिलाओं और बच्चों के पोषण पर सराहनीय काम किया है। यह खास इसलिए भी है कि उनका काम उस जनजाति समाज के बीच है जिनके उत्थान के लिए केन्द्र से राज्य सरकार तक अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इनमें ज्यादातर बैगा, गौड़ और कौल जनजाति की महिलाएं हंै.
डिंडौरी जिले के ग्राम मेहदवानी में हो रही क्रांति और उसकी सूत्रधार रेखा पंदवार की आवाज छत्तीसगढ़ के गांवों में भी सुनाई देने लगी है. सरकार की विभिन्न योजनाओं का सुफल वहां भी मिलने लगा है. सरकार ने मातृशक्ति की प्रतिभा और हौसलों के लिए कई किसम के इंतजाम किए हैं. स्वयं के हौसले और सरकार की सहायता से वे लगातार कामयाबी की ओर बढ़ रही हैं. घरेलू कामों से लेकर बाजार तक स्वयं को महिलाएं आत्मनिर्भर बना सकें, इसके लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है. आमचो बस्तर बाजार हो या छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव जिगनिया से निकल कर दूर प्रदेश तमिलनाडु में अपने हुनर के दम पर नौकरी पाने वाली सनेश्वरी पहाड़ी.सनेश्वरी को अवसर मिला लाईवलीहुड कॉलेज में। लाईवलीहुड कॉलेज में सनेश्वरी को कपड़ा कटिंग, सिलाई और गारमेन्ट मेकिंग के बारे में बारीकी से सीखा। प्रशिक्षण पूर्ण होने के उपरान्त सनेश्वरी पहाड़ी को रोजगार के रूप में फ्रांनटियर निटर प्राईवेट लिमिटेड तिरूपुुर तमिलनाडु में प्रतिमाह 8500 रुपये वेतन एवं आवासीय सुविधा मिल रही है साथ ही वह अपनी पढ़ाई को भी आगे जारी रखी हुई है।
इनके हौसले और सरकार की मदद से मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ तक की महिलाएं सशक्तिकरण की दिशा में नए आयाम गढ़ रही हैं. ये वो लोग हैं जिन्होंने अपने गांव और घर की देहरी के बाहर की दुनिया नहीं देखी थी लेकिन आज वे दुनिया के सामने मिसाल के तौर पर खड़ी हैं. यह ठीक है कि सरकारी योजनाओं के चलते शिक्षा से लेकर रोजगार सम्पन्न होने का सहारा मिला है लेकिन हौसलों के पंख लगाकर जो वे उड़ चली हैं, वह आसमां से कह रही हैं और थोड़ा ऊंचा हो जाओ. यह सब कुछ बहुत आसान सा नहीं है और न ही सबके लिए कामयाबी कदम चूमने को लालायित हैं. इन्होंने अपनी प्रतिभा को तराशा और जमाने से लोहा लेेने की हिम्मत जुटाई. वे पहले कभी डरी होंगी लेकिन पहला कदम रखते ही उन्हें अहसास हो गया कि वे किसी से कम नहीं हैं. उनके हौसलों को पंख देने के लिए केन्द्र से राज्य तक की विभिन्न योजनाएं बांहें पसारे उनका स्वागत कर रही थी. अभिनंदन कर रही थी. दोनों ने मिलकर महिला सशक्तिकरण को नई दिशा दे रही हैं.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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