सहिष्‍णु देश में हामिद अंसारी की असहिष्‍णुता

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

विश्‍वभर में भारत में मुसलमान कितने सुरक्षित एवं सफल हैं यह सदियों से किसी से छिपी बात नहीं है, किंतु इसके बाद भी जब किसी न किसी तरह देश के बहुसंख्‍यक समाज को कटघरे में खड़ा किया जाता है तब अवश्‍य यह  यक्ष प्रश्‍न उभरकर आता है कि आखिर देश के अब पूर्व उपराष्ट्रपति हो चुके हामिद अंसारी और इन जैसे उन तमाम पढ़े लिखे मुसलमानों को भारत में रहते हुए यह क्‍यों कहना पड़ रहा है कि देश के मुस्लिमों में असुरक्षा की भावना है और घबराहट का माहौल है ? क्‍या सही में देश में सदैव से मुसलमानों के प्रति असहिष्‍णु व्‍यवहार रहता आया है या नया भारत 1947 क बाद से पिछली केंद्र में रही कांग्रेस सरकारों को छोड़कर जब-जब अन्‍य किसी राजनीतिक पार्टी या मिलेजुले दलों की सरकारें आती हैं तो देश में अचानक से सब कुछ बदल जाता है और भारत का बहुसंख्‍यक हिन्‍दू समाज मुसलमानों के विरोध में खड़ा दिखाई देने लगता है? यह वो सवाल हैं जिनके जवाब शायद  उनके पास भी नहीं होंगे जो बड़े-बड़े पदों पर बैठकर भी इतनी निम्‍नस्‍तर की घटिया बातें कर देश का माहौल बिगाड़ने का कार्य करते हैं।

देश के पूर्व उपराष्‍ट्रपति हामिद अंसारी ने उपराष्‍ट्रपति के पद पर रहते हुए जिस तरह का बयान दिया है, वह घोर अपत्‍तीजनक है। वस्‍तुत: यह बयान सीधे भारतीय संविधान को चुनौती देता है, जिसके काधों पर संवैधानिक पद की मर्यादा एवं उसके मान को बनाए रखने का दायित्‍व है, यदि वही इस तरह की अमर्यादित बातें करें तो निश्च‍ित ही लोकतंत्र में बहुसंख्‍यक समाज को यह अवश्‍य विचारना चाहिए कि क्‍या उनकी सहिष्‍णुता को कोई मजबूरी या कायरता तो नहीं मान रहा है या उनके सहिष्‍णुपन को अंसारी जैसे तथाकथित  मुसलमान कुछ महत्‍व ही नहीं देते, उन्‍हें तो सिर्फ अपने राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने से मतलब है। यह खास मायनों में किसी विशेष उद्देश्‍य की पूर्ति की मंशा से दिया गया राजनीतिक एजेंडा नहीं तो ओर क्‍या है ? जहां समुचे बहुसंख्‍यक समुदाय की सहिष्‍णुता को एक सिरे से खारिज करते हुए उसे मुसलमानों के लिए खतरा बता दिया गया हो। यहां कोई यह अवश्‍य कह सकता है कि उपराष्‍ट्रपति रहते हुए मिस्‍टर अंसारी ने बहुसंख्‍यक समाज की सहिष्‍णुता को नकारा कब है ? उन्‍हें साम्‍प्रदायिक कब कहा ? इसका उत्‍तर इतनाभर है कि जिस पल उन्‍होंने यह कह दिया कि ‘देश के मुस्लिमों में असुरक्षा की भावना है और घबराहट का माहौल है।‘ उसी समय इस बात के अर्थ निकल आए कि वह भारत के बहुसंख्‍यक हिन्‍दू समाज पर भरोसा नहीं करते हैं। हिन्‍दुओं को वह साम्‍प्रदायिक मानते हैं, इसलिए उनसे उन्‍हें असुरक्षा महसूस होती है। वस्‍तुत: यहां अंसारी जैसे लोगों से यह कहा जा सकता है कि उन्‍हें पहले इतिहास का ज्ञान और वर्तमान परिदृष्‍य पर इस तरह के बयान देने से पूर्व अवश्‍य गौर करना चाहिए।

इस सब के बीच दुखद यह है कि हामिद अंसारी इस तरह की बातें अलग-अलग समय में उप राष्‍ट्रपति रहते हुए पहले भी करते रहे हैं। संवैधानि‍क पद पर रहते हुए ऐसी बातों में सम्‍मलित होना, उसका हिस्‍सा बनना क्‍या भारतीय लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था के अनुरूप है ? पहले वे योग दिवस पर योग को भी विशेष हिन्‍दू धर्म से जोड़कर उसका विरोध करने पर सुर्खियों में आए थे । जब सऊदी अरब जैसे कट्टर-मुस्लिम देश में भी हज़ारों लोगों ने इस दिन योग-कार्यक्रम में भाग लेकर स्‍वास्‍थ्‍य जागरुकता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शायी, तब भी इस दिन को साम्प्रदायिक कहकर हामिद अंसारी ने उसे ठुकरा दिया था। ऐसे ही ऑल इंडिया मजलिसे-मुशावरत के एक कार्यक्रम में दिए भाषण में अंसारी सहाब, जिस अंदाज में बोले थे, उस वक्‍त किसी को नहीं लग रहा था कि वे देश के श्रेष्‍ठ संवै‍धानिक पद पर बैठे कोई अति‍महत्‍वपूर्ण व्‍यक्‍ति हैं । यहां बोला गया उनका एक-एक शब्‍द सांप्रदायिक मुस्‍लिम नेता की तरह था।

आखिर, मुसलमानों की प्रगति में बाधक हिन्‍दू या देश का बहुसंख्‍यक समाज कैसे हो सकता है, जबकि सबसे ज्‍यादा वही उनकी बनाई गई वस्‍तुओं को खरीदता है?भारत में उनसे अपनी गाड़ि‍यां सुधरवानेवाले लोग कौन हैं? अच्‍छा कार्य करने पर उन्‍हें पदोन्‍नत करनेवाले लोग कौन हैं? निश्‍च‍ित ही वह बहुसंख्‍यक हिंदू हैं। यदि मुसलमानों के बीच शिक्षा की दिशा में अथवा उनके बीच उच्‍चस्‍तर की आर्थ‍िक प्रगति नहीं हो रही तो उसके लिए वे ही जिम्‍मेदार हैं। क्‍योंकि जब वे सरकार के द्वारा उनके और देशहित में चलाए जा रहे परिवार नियोजन में अपनी सहभागिता नहीं निभाएंगे तो उनकी माली हालत खस्‍ता रहेगी ही। अधिक बच्‍चों के कारण परिवारिक भरण-पोषण का ज्‍यादा व्‍यय उन पर आना स्‍वभाविक है। क्‍यों नहीं वे भी हिन्‍दुओं की तरह एक या दो बच्‍चे पैदा करते। बहुसंख्‍यक विवाह आज 21 वीं सदी में कितना सही है? केंद्र और राज्‍य सरकारों की तमाम योजनाएं अल्‍पसंख्‍यकों के कल्‍याण में संचालित हैं, किसने रोका है मुसलमानों को कि वे उनका लाभ न लें? जैसे हज यात्रा के वक्‍त सरकार की रियायत उन्‍हें याद आती है, वैसे ओर विषय उनके ध्‍यान में क्‍यों नहीं आते ? वस्‍तुत: हज यात्रा उनकी प्राथमिक सूची में है, लेकिन अन्‍य विषय नहीं,यही उनके विकास के लिए सबसे बड़ी दिक्‍कत है।

किसी भी मुस्‍लिम परिवार का अपने बच्‍चे को रोजगार परक धंधे में लगा देने से तत्‍कालीन आय होती है किंतु ज्‍यादातर मामलों में बच्‍चा प्रतिभावान होने के बाद भी अकादमिक शिक्षा से दूर हो जाता है, परिणामत: आगे वह जीवनभर मैकेनिक, कारपेंटर जैसे कार्यों को ही अपना अंतिम ध्‍येय मानने लगता है। हालांकि रोजगार परक कार्य कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता, परन्‍तु इसी के साथ यह भी सच है कि हर कार्य का एक निश्‍चित परिणाम है। बौ‍द्धिक और श्रमिक कार्य की अपनी अलग-अलग कीमत होती है। इसी के साथ हामिद अंसारी जैसी मानसिकता रखनेवाले लोगों को यह भी समझना होगा कि मुसलमानों को यदि भारत का बहुसंख्‍यक समुदाय नहीं अपनाता तो क्‍या भारत में संविधान प्रदत्‍त अधिकार उन्‍हें मिल पाते? आखिर संविधान जब बन रहा था, उस समय उसे बनानेवाले भी बहुसंख्‍यक थे। पाकिस्‍तान का विभाजन जैसी नौबत क्‍या भारत में कभी पैदा होती, यदि हिन्‍दू सहिष्‍णु नहीं होता? अव्‍वल तो यह कि यदि भारत का बहुसंख्‍यक समाज सहिष्‍णु नहीं होता तो मुसलमानों की जनसंख्‍या भारतीय उपमहाद्वीय में कभी नहीं बढ़ती। कारण, जिस धर्मांधता का परिचय इस्‍लाम ने दिया यदि हिन्‍दू देता तो क्‍या होता ? यह सहज समझा जा सकता है।

वस्‍तुत: यह बात सभी को समझना होगी जो भारत हमेशा से कहता आया है, विविध पंथ, मत, दर्शन अपने भेद नहीं, वैशिष्‍ट हमारा, एक एक को ह्दय लगाकर विराट शक्‍ति प्रगटाएं। मां भारती की करें प्रतिष्‍ठा विश्‍व पताका लहराएं। अलग भाषा, अलग वेश फिर भी अपना देश एक।  विविधता में भी एकता का दर्शन भारत की यही तो सबसे बड़ी विशेषता है। देखा जाए तो समुची दुनिया में मुस्लिमों के लिए भारत जैसा कोई सहिष्‍णू देश नहीं है। भारत के बहुसंख्‍यक समाज की सहिष्‍णुता इससे भी प्रगट होती है‍ कि 80 प्रतिशत हिंदू आबादी वाले देश में वे उपराष्ट्रपति चुने जाते हैं। क्‍या विश्‍व का है कोई देश ऐसा, जहां कि 80 प्रतिशत बहुसंख्‍यक आबादी अपने लिए किसी अल्‍पसंख्‍यक को अपना नेता चुने ? क्या दुनिया में कोई मुस्‍लिम देश ऐसा है जिसने किसी गैर मुसलमान को सत्‍ता और व्‍यवस्‍था का केंद्र बिन्‍दु बनाया  हो ?

भारत की सहिष्‍णुता को देखना है तो विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के उन अवशेषों को एक बार देख लो, जिसने इस्‍लाम में धर्मांध होकर इस विश्‍वविद्यालय का नाश किया । बख्तियार खिलजी जो एक सनकी और चिड़चिड़े स्वभाव वाला तुर्क जेहादी मुस्लिम लूटेरा था, जिसने तत्‍कालीन समय में कई हजार हिन्‍दुओं, बौद्ध भिक्षुओं, गुरूओं, शिक्षकों का कत्‍लेआम किया, उस पागल और एहसानफरामोश बख्तियार खिलजी के नाम पर आज भी रेलवे स्टेशन देश में खड़ा है। इतना ही नहीं तो बख्तियारपुर भारत की हवाओं में आज भी जिंदा है। ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण देशभर में कौने-कौने में बिखरे पड़े हैं। इसलिए सहिष्‍णु होने की जरूरत हिन्‍दुओं को नहीं,  आज के दौर में सबसे ज्‍यादा तथाकथित हामिद अंसारी जैसे मुसलमानों को ही है

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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