अपराजेय योद्धा छत्रपति शिवाजी

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— बृजनन्दन राजू

विदेशी आक्रान्ताओं ने जब से भारत की धरती पर पैर रखा तब से हिन्दुओं का प्रतिकार संग्राम अविरत और अखण्ड चलता रहा। महाराजा दाहिर से लेकर, विजय नगर का साम्राज्य, राणा सांगा, महाराणा प्रताप और गुरू गोविन्द सिंह के अलावा बहुत से प्रतापी महापुरूषों ने मुगलों से संघर्ष किया। युद्ध के मैदान बदले होंगे सेनापति और राजा बदले होंगे लेकिन हमारा संघर्ष अनवरत जारी रहा। इसी कड़ी में हिन्दवी साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी महाराज का नाम आता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब भारत पर मुगलों का आधिपत्य था। समाज में अनाचार अत्याचार का बोलबाला था। हिन्दु जनता मुगल शासकों के अत्याचारों से कराह रही थी। हिन्दू मंदिर तोड़े जा रहे थे। बलात धर्मान्तरण जोरों पर था। मां बहनों की इज्जत सुरक्षित नहीं थी। हिन्दुओं को जजिया कर देना पड़ता था।    
उस समय मुगल सल्तनत को चुनौती देने का साहस किसी में नहीं थी। हिन्दू राजा भी मुगलों के अधीन थे। परकीय आक्रमणों के कारण हिन्दू समाज में निराशा एवं भय का वातावरण व्याप्त हो गया था
ऐसे समय में 1630 ईसवी में चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को माता जीजाबाई के गर्भ से शिवाजी का जन्म होता है। समाज की परिस्थिति को देखकर माता जीजाबाई प्रण करती हैं कि मैं अपने पुत्र को इस योग्य बनाऊंगी कि वह मुगल सल्तनत को उखाड़ फेंकेगा। बच्चों को बचपन में मिला संस्कार स्थाई होता है। भारत देश की शक्ति महिलाओं में निहित है। महिलाएं शक्ति पुंज होती हैं। वह सृजन, पोषण, संवर्धन, संरक्षण और संहारक होती है। उस समय की समस्याओं का उपाय स्वयं माता जीजाबाई ने खोजा। माता जीजाबाई ने उस समय की परिस्थिति को देखकर किसी के सामने रोना नहीं रोया। इसके लिए उन्होंने शिवाजी को तैयार किया। आज यदि देश की माताएं ठान लें तो सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो सकती हैं लेकिन इसके लिए नारी शक्ति को आगे आना होगा। माता जीजाबाई शिवाजी को बचपन से रामायण महाभारत की कहानियां सुनाया करती। इससे शिवाजी के अंदर संस्कार के साथ शौर्य और स्वाभिमान की भावना उनके अंदर बलवती होती गयी। माता जीजाबाई ने उन्हें बचपन से ही शास्त्रों के साथ ही शस्त्र की भी शिक्षा दी। कम उम्र में ही कई किले जीते। मात्र 16 साल की आयु में शिवाजी ने पुणे के तोरण दुर्ग पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की तभी से उनकी बहादुरी के जयकारे पूरे दक्षिण भारत में गूंजने लगे। एक—एक करके शिवाजी ने कई किले जीत लिए। शिवाजी की बढ़ती प्रतिष्ठा को देखकर मुगल शासक घबरा गए और बीजापुर के शासक आदिलशाह ने शिवाजी को बंदी बनाना चाहा लेकिन वो असफल रहा तब उसने शिवाजी के पिताजी को बधंक बना लिया। शिवाजी ने औरंगजेब को पत्र लिखा कि हम आपके ईमानदार चाकर है और आपकी सरहदों की रखवाली कर रहे है। हम को आदिलशाह तंग कर रहा है। इस को कुछ समझाओ। यह पत्र मिलने के बाद वहाँ से पत्र गया शिवाजी राजे भोंसले छोड़ दिये गये। संसार के इतिहास में एक विशेष आदर्श उपस्थित करने वाले महापुरूषों में शिवाजी का अद्वितीय स्थान है। कब साहस दिखाना? कब धैर्य दिखाना? कब आक्रामक होना? कब चुप रहना? यह विवेक शिवाजी के पास था। तब तक की युद्धनीति जो पूरे भारत के राजा अपना रहे थे वह सीधी और धर्मसम्मत थी। हिन्दू राजा आक्रमण के समय शत्रु राजा की प्रजा को तंग नहीं करते थे। सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं करते थे। धोखे से किसी को नहीं मारते थे। क्षमा मांगने पर अभयदान दे देते थे। उस समय भारत के राजा धर्मयुद्ध करते थे जबकि विदेशी घात प्रतिघात का सहारा लेते थे। शिवाजी महाराज ने इस नीति की परिभाषा बदल दी। शिवाजी ने कहा जैसे को तैसा की रणनीति हमें अपनानी होगी सामनेवाला शत्रु छल कपट करता है तो धर्म के विजय के लिये हम वह भी करेंगे जो भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में किया था। इसी रणनीति और साहस के बल पर ही वे अफजलखाँ का वध करने में सफल हुए।

शिवाजी ने हिन्दू जीवन मूल्यों को आत्मसात कर समाज के सभी वर्गों को जोड़ने का कार्य किया। उनकी समाज व्यवस्था का आधार धर्म था। प्रजा में किसी को दुख न पहुंचे इसकी वह चिंता करते थे। सेवा व समरसता का माहौल समाज में बनाया। संत तुकाराम और समर्थ गुरू रामदास की आज्ञा के अनुसार उन्होंने राज्य का संचालन किया। यश की तरफ ही केवल उनका ध्यान नहीं था। जनता में जन्मभूमि के प्रति प्रेम और उत्सर्ग की भावना को जाग्रत करने का कार्य किया। नारी के प्रति सम्मान और सामाजिक समरसता उनके जीवन की विशेषता थी।
भारत में मुद्रण कला की शुरूआत उन्होंने कराई। नौ सेना खड़ी की,तोपों का निर्माण शुरू कराया, गुप्तचर विभाग सुदृढ़ किया और श्रीकृष्ण की युक्ति का सहारा लिया। नौकाकदल, अश्वदल व पदातिसेना को एकसाथ उपयोग करनेवाली व्यूहरचना का प्रयोग करने वाले तत्कालीन भारत के वे पहले राजा थे। ऐसा नीतिकार, ऐसे साहस और दूर दृष्टिवाले शिवाजी महाराज केवल सत्ता संपादन के लिये राजा नहीं बने थे। माता जीजाबाई और समर्थ गुरू रामदास की आज्ञा से भगवाध्वज की छत्रछाया में राज्य का संचालन किया। उन के सामने सुरक्षित हिंदू धर्म, हिंदू संस्कृति, हिंदू समाज और हिन्दू राष्ट्र था। उन्होंने तालाब निर्माण कराये, जलकूप खुदवाये, वृक्ष लगवाये, धर्मशालाएँ, मंदिर व रास्तोंका निर्माण कराया। छापामार युद्ध उन्होंने शुरू किया। मुगलों द्वारा थोपी गयी फारसी भाषा का बहिष्कार किया। संस्कृत को बढ़ावा दिया। वह चतुर भी थे। जब औरंगजेब ने धोखे से शिवाजी को आगरा बुलाकर कैद कर लिया तो वह चतुराई से किले से भाग निकले। बीजापुर के सुल्तान ने औरंगजेब की शह पर शाहजी राजे को जब धोखे से बंदी बना लिया तो उन्होंने उससे संधि भी की। बाद में बीजापुर पर हमला कर किले पर कब्जा किया और सुल्तान को मौत के घाट भी उतारा।
उनके जीवन में प्रमाणिकता थी। उनकी मूल प्रवृत्ति वैराग्य की थी। जमीदारी प्रथा उन्होंने खत्म कर दिया था। घर वापसी शिवाजी ने कराई। अन्य क्षेत्रों के राजाओं को एक साथ लाने का प्रयास किया था। काशी का मंदिर तोड़ा गया तो उन्होंने औरंगजेब को पत्र लिखा। अगर यह बंद नहीं हुआ तो हमें तलवार लेकर उतरना पड़ेगा। शिवाजी भारतीय इतिहास के सबसे पराक्रमी योद्धा माने जाते हैं| शिवाजी ही वो शख्स थे जिन्होंने औरंगजेब जैसे क्रूर शासक को नाकों चने चबवा दिए थे।
महाराष्ट्र के पंडितों ने जब उनका राज्याभिषेक करने से मना किया तब काशी के गागाभट्ट ने उनका राज्याभिषेक किया। शिवाजी ने छत्रपति की उपाधि ग्रहण की विजयनगर के पतन के बाद दक्षिण में यह पहला हिन्दू साम्राज्य था। एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। शिवाजी ने जीवन में 276 युद्ध लड़े और 268 जीते। देश के अन्य हिस्सों के राजाओं को एकजुट करने का उन्होंने प्रयास किया। अगर उनका प्रयास सफल होता तो उनके समय में ही भारत मुगलों के चंगुल से मुक्त हो जाता। उन्होंने जनता में मातृभूमि के प्रति उत्सर्ग की भावना का विकास किया था उसके कारण शिवाजी के निधन के कई वर्षों बाद तक वहां की जनता मुगलों से लोहा लेती रही। छत्रसाल शिवाजी की सेना में नौकरी मांगने आये थे। उन्होंने छत्रसाल से कहा “तुम नौकर बनने के लिये हो क्या? क्षत्रिय कुल में जन्में तुम सेवा करोगे दूसरे राजाओं की? अपना राज्य बनाओ।” उनसे प्रेरणा पाकर आकर छत्रसाल ने मुगलों के खिलाफ संघर्ष शुरू किया। वीर छत्रसाल ने 52 युद्ध लड़ा और जीता। भारत का उत्थान करना है तो हमें छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरक जीवन का विस्मरण नहीं होना चाहिए। विपरित परिस्थितियों में शिवाजी महाराज ने कठोर मेहनत से संघर्ष कर समाज को समतायुक्त, शोषण मुक्त समाज खड़ा करने का कार्य किया।

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