आइपीएल की पिच से उठती हुई दुर्गंध

आईपीएल यानी इण्डियन प्रीमियर लीग के कमीश्नर ललित मोदी और विदेश राज्य मंत्री शशी थरुर में पिछले कुछ दिनों से क्रिकेट को लेकर झगडा चल रहा है। बडे लोगों के झगडे से दो लाभ होते हैं। पहला तात्कालिक और दूसरा दीर्घगामी। थरुर मोदी की तू-तू मैं-मैं से तात्कालिक लाभ तो यह है कि जनता का मु्फ्त का मनोरंजन हो रहा है। उनका भी जो पैदल चलते है, उनका भी जो बस में चलते है, उनका भी जो रेलगाडी में चलते हैं और कुछ सीमा तक उनका भी जो हवाई जहाज की कैटल क्लास में सफर करते हैं। मनोरंजन प्रदान करने वाले शायद जनता की रुचि का ध्यान में रखते हुए एक -दूसरे के बारे में ऐसी -ऐसी बातें खोज कर लाते हैं जिनका किसी को अनुमान भी नहीं होता। उदाहरण के लिए ललित मोदी के बारे में ताजा सूचना यह है कि वे मादक द्रव्यों के बारे में पकडे गए थे। थरुर पर इस प्रकार का आरोप तो किसी ने नहीं लगाया लेकिन इतना जरुर बता दिया गया कि वे सुनंदा से शादी करने वाले हैं और रिकार्ड के लिए यह भी जोड दिया गया कि यदि उनकी सुनंदा से शादी हो जाती है तो वह उनकी तीसरी शादी होगी। सानिया मिर्जा और शोएब मलिक की शादी में पहली और दूसरी बीबी का दर्जा पाने के लिए ही मामला अदालत तक जा पहुंचा। लेकिन शशी थरुर तो तीसरे पति होंगे ऐसा विरोधी कैम्प ने सूचित कर दिया है। लेकिन यह बिना पैसे की नौटंकी है। बडे लोगों की नौटंकी देखने में आम लोगों को मजा भी ज्यादा आता है क्योंकि उससे आम जनता को यह प्रमाण मिल जाता है कि ये जो तथाकथित बडे आदमी हैं ये जोडतोड या सिस्टम की बारीकियों को लाभ उठाकर बडे बन गए हैं। लेकिन जब आपस में लडते हैं तो इनकी औकात आम आदमी से नीचे गिर जाती है। यह तो रहा ललित मोदी और शशी थरुर के बीच की शाब्दिक लडाई का मनोरंजक पक्ष।

अब दूसरे पक्ष की बात की जाए। जब तक इन दोनों ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से एक दूसरे के कच्चे चिट्ठे खोलने नहीं शुरु की तब तक यही माना जाता था कि ललित मोदी ने क्रिकेट को आईपीएल बनाकर नई बुलंदिया प्रदान की हैं। लेकिन अब कहा जा रहा है कि यह क्रिकेट नहीं है बल्कि क्रिकेट के नाम पर ललित मोदी जुआ चला रहे हैं। बात ठीक भी है। क्रिकेट के खेल को शातिर लोगों ने व्यवसाय तो अर्सा पहले ही बना दिया था। मैच फिक्सिंग की छौंक ने इस विषय को लेकर रही -सही गलत फहमी भी दूर कर दी थी। मल्टीनेशनल कम्पनियों ने विज्ञापन के माध्यम से इस खेल में प्रवेश करके इसकी आत्मा को हर लिया और क्रिकेट व्यवसाय का ब्रांड बनाकर मैदान में उतार दिया। ललित मोदी का उससे भी आगे जाना था क्योंकि वह व्यवसायी या उद्यमी ही क्या जो अपने व्यवसाय को आगे तक न ले जा सके। इसलिए ललित मोदी ने आइपीएल के बहाने क्रिकेट को जुए का माध्यम बना दिया। इसके साथ जुडा हुए एक और प्रश्न भी है कि इन नई टीमों के जो मालिक हैं वे लोग कौन हैं और आईपीएल में पैसा किसका खर्च हो रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि पैसा तो किसी और का खर्च हो रहा हो और कुछ लोग मुुखौटा पहनकर रिकार्ड के लिए सामने बैठे हों। इसलिए आम जनता ने ललित मोदी से पूछना शुरु कर दिया है कि इन टीमों को खरीदने में और इनको चमकाने में जो रुपया आ रहा है, वह कहां से आ रहा है और कौन इनके मालिक हैं। अमर सिंह थोडा और पीछे जाते हैं वे कहते है कि आईपीएल वालों ने रिकार्ड के लिए आगे पप्पू लोग किए हुए हैं और पीछे से उनके पापा इस पर नियंत्रण रखे हुए हैं। ये पापा कौन हैं ? अंडरवर्ल्ड के लोग भी हो सकते हैं, आतंकवादी भी हो सकते हैं। काले धन को सफेद करवाने वाले उस्ताद भी हो सकते हैं। अभी बहुत समय नहीं बीता है जब मुम्बई के वालीवुड में ज्यादा पैसा अंडरवर्ल्ड का ही लगता था और परदे पर लम्बी -लम्बी हांकने वाले और कूल्हे मटकाने वाली नचनियां अंडरवर्ल्ड के सामने पानी भरती थी। अब धीरे -धीरे आइपीएल भी इसी प्रकार का धंधा बनता जा रहा है। टीमें खरीदने वाली कम्पनियां कौन है इनके अंशधारक कौन है। यह सारी चीजें अभी तक परदे में सिमटी हुई थी।लेकिन मोदी थरुर विवाद के कारण अब यह सब कुछ सामने आ रहा है। थरुर के चम्पुओं ने ललित मोदी और दक्षिण अफ्रीका की एक मॉडल के सम्बंधों को लेकर वातावरण में सुगंध बिखेरी तो ललित मोदी ने सुनंदा पुष्कर के आगे से परदा हटा दिया। कोच्ची टीम में सुनंदा पुष्कर को जो शेयर दिए गए हैं उससे उसको लगभग 70 करोड का लाभ होगा। उपर से तुर्रा यह कि सुनंदा ने इन अंशों को खरीदने के लिए एक खोटा पैसा भी खर्च नहीं किया। व्यवसाय जगत में सुनंदा और थरुर की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है इसलिए शायद थरुर ने सुनंदा की तरफ से सफाई देने को अपना नैतिक दायित्व समझा हो। उनका कहना है जब कोई व्यक्ति किसी कम्पनी के लिए अपना खून पसीना बहाता है और उस कम्पनी को विश्वास हो जाता है कि इस व्यक्ति के खून पसीने से कम्पनी को बहुत लाभ हुआ है और भविष्य में भी होने की सम्भावना है तो कम्पनी ऐसे व्यक्ति को बिना कुछ लिए अपने शेयर दे देती है। उनकी दृष्टि में सुनंदा का मामला ऐसा ही है। लेकिन प्रश्न यह है कि सुनंदा ने इस कम्पनी के लिए कब, कितना और कहां पसीना बहाया, इसका हिसाब थरुर नहीं दे रहे।

आइपीएल का इतना बडा दावं बिना सरकार की मर्जी और सरकारी सहायता के तो खेला नहीं जा सकता। अब पता चला है कि सरकार आइपीएल से टैक्स भी नहीं ले रही है।टैक्स से छूट उन संस्थानों को दी जाती है जो बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय हों। आइपीएल से जिन लोगों की हित साधना हो रही है और जिन लोगों को सुख मिल रहा है वे गिनती के लोग है और परदे के पीछे है। ललित मोदी भी बजिद हैं कि वे यह पर्दा उठने नहीं देंगे। मोदी और थरुर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी लगा रहे हैं लेकिन पर्दे को दोनों ही बचाए है क्योंकि वे जानते हैं कि पर्दा के उठने से भेद खुल जाएगा। भेद के खुलने से ये दोनों तो पूरी तरह नंगे हो ही जाएंगे लेकिन कई और लोगों के चेहरे से भी नकाब हट जाएगा। इसलिए सरकार की रुचि इस भेद को खोलने में कम और छुपाने में ज्यादा है। शायद भाजपा ने सही ही कहा है कि इन परिस्थितियों के चलते शशी थरुर को स्वयं ही इस्तीफा दे देना चाहिए,यदि वे ऐसा नहीं करते तो उन्हें डिस्मिस किया जाना चाहिए और ललित मोदी के पीछे की शक्तियों को भी बेनकाब किया जाना चाहिए ताकि क्रिकेट के बहाने इस देश में जो लो सेंधमारी कर रहे है वे बेनकाब हो सकें।

– डॉ कुलदीप चंद अग्निहोत्री

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